विश्व पर्यावरण दिवस की शुरुआत 1974 में हुई। किसी भी अंतरराष्ट्रीय दिवस के मनाए जाने के पीछे एक मोटिव होता है। यह उद्देश्य होता है आम जनता में उस मामले के प्रति जागरूकता पैदा करना। पॉलीटिकल विल मोबिलाइज करना तथा ग्लोबल प्रॉब्लम्स को ठीक तरह से एड्रेस करना। आज लगभग 100 ऐसे देश हैं जहां बहुत बहुत ही प्रभावशाली तरीके से इस दिवस को मनाया जा रहा है। विश्व के सामने आज अगर कोई सबसे बड़ी चुनौती है तो वह है पर्यावरण का संरक्षण।
ऐसे में अगर हम फ्री इंडस्ट्राइलाइजेशन फेज से वर्तमान समय के बीच ग्लोबल वॉर्मिंग को कंपेयर करें तो इसमें लगभग डेढ़ प्रतिशत की वृद्धि हुई है तथा 2030 से 2050 के बीच यह आंकड़ा 2 प्रतिशत को पार कर सकता है। पिछले 300 वर्षों में हमारे पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड लगभग 30 प्रतिशत बढ़ चुकी है तथा वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक हमारे समुद्रों में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार हर मिनट होने वाली 13 लोगों की मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण है अर्थात 800 मृत्यु प्रति घंटे वायु प्रदूषण के कारण हो रही हैं। 5 वर्ष की आयु के नीचे होने वाली 10 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु का कारण भी वायु प्रदूषण ही है।
सरकार कठोर कदम उठाने से बचती है और आम जनता इतनी जागरुक नहीं कि विषम होती परिस्थितियों का उचित आकलन कर सके। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, जिससे हम उम्मीद लगाते हैं, उसका स्वयं हाल खराब है। 2018 में स्टाफ की कमी के कारण उसे अपनी कई रीजनल बेंच बंद करनी पड़ी। अगर हालात नहीं सुधरे तो कुछ ही वर्षों में भारत एक बीमार देश होगा।
इस सिचुएशन को प्लेनेटरी इमरजेंसी का दर्जा देना अनुचित नहीं होगा। संभवत: इसी कारण इस बार के चाइना द्वारा होस्टेड विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है "बीट एयर पोलूशन"। डेवलप्ड नेशंस के समक्ष भारत जैसे डेवलपिंग नेशन की स्थिति ऐसे चैलेंजेज के समक्ष और भी जटिल हो जाती है। एक जीडीपी ग्रोथ रेट संभालना तो दूसरी और पर्यावरण संरक्षण का चैलेंज। ग्लोबल एनवायरनमेंट परफॉर्मेंस इंडेक्स 2016 में भारत की 180 देशों में 144वीं रैंक थी जो 2018 में गिरकर 177वीं हो गई। इस इंडेक्स में जहां भारत का स्कोर 100 ओवर में मात्र 5.75 था वहीँ स्विट्ज़रलैंड और जापान जैसे देशों का स्कोर 90 के ऊपर था। यह चिंता का विषय है क्योंकि पर्यावरण डिग्रेडेशन का सीधा असर जीडीपी पर पड़ सकता है।
वर्ल्ड ट्रैवल एंड टूरिज्म काउंसिल के अनुसार 2018 में देश के जीडीपी में 9.2 शेयर टूरिज्म इंडस्ट्री का था और लगभग 16.91 लाख करोड़ रिवेन्यू टूरिज्म द्वारा देश की इकोनॉमी के लिए अर्जित किया गया था। बिना रोकथाम तथा फर्म पॉलिसी के अभाव में बढ़ती जनसंख्या, अर्बनाइजेशन गुड्स एंड सर्विसेस की डिमांड, पेट्रोल एवं डीजल पर आश्रित ट्रांसपोर्ट व्यवस्था तथा पर्यावरण को लेकर आम जनता की उदासीनता इसका मुख्य कारण है। वर्ष 2018 में पैसेंजर वाहनों की सेल लगभग 34 लाख यूनिट्स थे जो 2017 के मुकाबले लगभग 5.4 प्रतिशत अधिक थी। स्टेट ऑफ इंडिया एनवायरमेंट के अनुसार हमारे देश में लगभग 4.8 करोड लोग प्रदूषित जल पीने को विवश हैं। हमारे देश में सरेआम खुले में कूड़ा जलाना, पॉलिथीन का प्रयोग, एक घर में दो से तीन कारें रखना, किसानों द्वारा खेती के बाद बची पराली को खुले में जलाना, पेड़ काटना तथा धुँआ छोड़ती गाड़ियों के बेधड़क प्रयोग आम बात है।
सरकार कठोर कदम उठाने से बचती है और आम जनता इतनी जागरुक नहीं कि विषम होती परिस्थितियों का उचित आकलन कर सके। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, जिससे हम उम्मीद लगाते हैं, उसका स्वयं हाल खराब है। 2018 में स्टाफ की कमी के कारण उसे अपनी कई रीजनल बेंच बंद करनी पड़ी। अगर हालात नहीं सुधरे तो कुछ ही वर्षों में भारत एक बीमार देश होगा। निमोनिया, अस्थमा, ह्रदय रोग तथा हाई ब्लड प्रेशर एक महामारी की तरह देश को खोखला कर देंगे और उसका सबसे बड़ा कारण होगा पर्यावरण के प्रति हमारी उदासीनता। केंद्र तथा राज्य सरकारों को पर्यावरण वैज्ञानिकों की सहायता से ऐसी कठोर नीतियां बनानी तथा लागू करनी होंगी, जिससे हमारे शहर जीरो कार्बन सिटी बनने की ओर बढ़ सकें। 2025 तक सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रजिस्टर होने वाले नए वाहनों में कम से कम 25 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक हो, या फिर स्वच्छ इंधन द्वारा चालित हों।
प्रदूषण फैलाने वाला, चाहे आम आदमी हो, कोई इंडस्ट्री हो या फिर किसान हो, उसके खिलाफ सरकार को कठोर दंड का प्रावधान लागू करना होगा। स्कूलों में पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विषय को उत्कृष्ट टीचर द्वारा पढ़ाया जाना सरकार की प्राथमिकता में से होना चाहिए। ऐसे अनेक कार्य हैं जिनके द्वारा आम जनता स्वयं पर्यावरण में बड़ा बदलाव ला सकती है - जैसे एनर्जी स्टार लेबल देखकर इक्विपमेंट की खरीद, पॉलिथीन के प्रयोग को डिसकैरेज करना, कारपूल छोटे डिस्टेंस को पैदल अथवा साइकिल से कवर करना, सॉलि़ड वेस्ट को नालियों में ना बहाना, खुले में कुडा ना जलाना तथा अपने रोजमर्रा के कार्यों में क्लीन फ्यूल के ऑप्शन को चूज करना आदि।
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