विश्व बैंक ने किशनगंगा और रतले जलविद्युत संयंत्रों के संबंध में एक "तटस्थ विशेषज्ञ" (एनई) और मध्यस्थता न्यायालय के अध्यक्ष को नियुक्त किया है। 1960 की सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद चल रहा है।
पाकिस्तान ने विश्व बैंक से दो पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन के बारे में अपनी चिंताओं पर विचार करने के लिए मध्यस्थता अदालत बनाने की मांग की थी, जबकि भारत ने इन दो परियोजनाओं पर समान चिंताओं पर विचार करने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की अपील की थी।
मिशेल लिनो को 'तटस्थ विशेषज्ञ' (NE) के रूप में नियुक्त किया गया है जबकि सीन मर्फी को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।
विश्व बैंक ने एक बयान में कहा, "वे विषय विशेषज्ञ के रूप में अपनी व्यक्तिगत क्षमता में अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे और वर्तमान में किसी भी अन्य नियुक्तियों से स्वतंत्र रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे।"
इसने पहले रेमंड लाफिटे को भारत द्वारा चिनाब पर रन-ऑफ-द-रिवर प्लांट के रूप में बगलिहार बांध से संबंधित विवाद में 'तटस्थ विशेषज्ञ' के रूप में नियुक्त किया था। 2007 में अपने फैसले में, उन्होंने बिजली उत्पादन के लिए, संधि के दायरे में, पश्चिमी नदियों के पानी का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने के भारत के अधिकार को बरकरार रखा था।
भारत और पाकिस्तान ने 1960 में विश्व बैंक के साथ एक हस्ताक्षरकर्ता के रूप में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस बार तकनीकी डिजाइन को लेकर है असहमति बनी हुई है।
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