नदी केवल पानी का भण्डार भर नहीं है, भारत में तो वह जीवन, संस्कृति तथा चेतना की वाहक है। हर नदी का अपना भौतिकशास्त्र है, उसका रसायन है, जीव-विज्ञान है। इस प्रकार नदी की धारा के साथ खिलवाड़ भयंकर भूल सिद्ध होगा। केवल कागज पर सुन्दर दिखने वाली और अपेक्षाकृत शान्त बुन्देलखण्ड में जबरन थोपे जाने वाली यह परियोजना उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में बिखरे इस भू-भाग में कलह तथा अशान्ति को जन्म देगी। पहले से ही पानी के वितरण में असन्तुलन तथा भेदभाव महसूस करने वाला यहाँ का जनसमुदाय केन नदी के पानी के स्थानान्तरण की आशंका को एक आतंक की तरह महसूस करने लगा है। विगत एक वर्ष से बुन्देलखण्ड पर केन नदी के पानी को बाँध बनाकर बेतवा नदी की ओर मोड़ने की धारदार तलवार लटकी हुई है। केन नदी बुन्देलखण्ड के एक बड़े भू-भाग के लिये पानी का एकमात्र स्रोत है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के पन्ना, छतरपुर, बांदा, महोबा तथा हमीरपुर जिलों के सैंकड़ों गाँव इससे सीधे पानी पीते हैं। 100 वर्ष पूर्व बने गंगऊ तथा बरियारपुर बैराजों से निकली केन नहर प्रणाली पर बांदा जिले का लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई का दायित्व है। पन्ना तथा छतरपुर जिलों के महत्त्वपूर्ण भू-भाग की सिंचाई भी धीरे-धीरे इन्हीं बैराजों तथा उसके फीडर रंगनवा बाँध पर आश्रित हो गई है।
प्रस्तावित नदी गठजोड़ के अन्तर्गत गंगऊ बैराज के ऊपर डौढ़न गाँव के निकट 73 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर केन नदी के सम्पूर्ण पानी को रोककर वहाँ से 231 किमी. लम्बी विशालकाय नहर द्वारा पश्चिम में धसान आदि नदियों-नालों को पार कर झाँसी जिले में स्थित बरुआसागर झील में डाला जाएगा, जहाँ से बेतवा नदी में पारीछा बैराज के पूर्व मिलाया जाएगा।
व्यवहार में देखा जाय तो यह स्पष्ट है कि केन नदी बेतवा की अपेक्षा छोटी नदी है, पर राजघाट-माताटीला बाँधों से जर्जर हुई बेतवा में अधिक पानी लाने के लिये गलत आँकड़े दिखाकर केन घाटी के सम्पूर्ण पानी को बिना स्थानीय आवश्यकताओं तथा पहले से हो रहे उपयोग का आकलन करते हुए मोड़ा जा रहा है।
विगत मार्च से ही, जबसे यह योजना संज्ञान में आई है, बुन्देलखण्ड इस समस्या से आशंकित है। मई-जून में पूरे बुन्देलखण्ड के भ्रमण, सभी तरह के लोगों से सम्पर्क कर, प्रभावित गाँवों के निवासियों, ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों से मिलकर इस समस्या का आकलन किया गया था। इससे मालूम हुआ कि अधिकांश ग्रामीणों तथा अनेक नगरवासियों को इसके बारे में पता ही नहीं है। यहाँ तक कि सम्बद्ध विभागों को भी कोई जानकारी नहीं है। ‘विज्ञान शिक्षा केन्द्र’ तथा ‘नवदान्य’ द्वारा आयोजित इस सर्वेक्षण यात्रा के अन्त में जुलाई 2003 को टीकमगढ़ जिले में स्थित सातार (ओरछा) बुन्देलखण्ड जल संसद का आयोजन किया गया था जिसमें स्पष्ट शब्दों में केन-बेतवा गठजोड़ को अव्यवहारिक तथा अप्राकृतिक घोषित किया गया था। तब से अनेक लोगों ने अपने स्तर पर पदयात्राएँ, ग्रामीण सम्पर्क कार्य, अध्ययन तथा विश्लेषण किये हैं। दिल्ली स्थित ‘रिसर्च फाउंडेशन फॉर साइंस’ टेक्नोलॉजी एड इकोलॉजी’ तथा ‘सैण्ड्रप’ (साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल) ने इस विषय में अच्छे प्रकाशन किये हैं जो कि केन-बेतवा तथा पार्वती-कालीसिंध-चंबल गठजोड़ों को विनाशकारी बताते हैं।
प्रसिद्ध चिन्तक एवं पूर्व प्रशासक श्री रामास्वामी अय्यर ने इसे पूर्णतः अव्यावहारिक कहा है। पर्यावरणविद शैलेन्द्र नाथ घोष भारत सरकार के इस निर्णय को भयंकर भूल कहते हैं। पर्यावरण क्षेत्र में कार्य एवं चिन्तन करने वाली डॉ. वंदना शिवा, सर्वश्री हिमांशु ठक्कर, भारत डोगरा, अनुपम मिश्र, राजेन्द्र सिंह तथा प्रख्यात चिन्तक श्री नानाजी देशमुख ने इसे पूर्णतः प्रकृति विरुद्ध अनपेक्षित बताया है।
दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में थाईलैंड में ‘अन्तरराष्ट्रीय रिवर नेटवर्क’ की बैठक में भी इस समस्या को गम्भीर माना गया था। दिसम्बर में पटना में आयोजित ‘जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय’ आदि संगठनों ने केन-बेतवा गठजोड़ के विरोध में योजना बनाई है। 4 जनवरी, 2004 को ‘आपदा निवारण मंच’ (बुन्देलखण्ड) ने बांदा में एक दिवसीय परामर्श सभा का आयोजन किया गया था, जिसमें पूरे बुन्देलखण्ड से अनेक किसान, राजनीतिज्ञ, समाजकर्मी, वैज्ञानिक तथा अध्ययनकर्ता शामिल हुए थे। दिल्ली से ‘रिसर्च फाउंडेशन’ तथा ‘सैण्ड्रप’ के प्रतिनिधि भी आये थे। इस सभा में पूरी स्थिति का आकलन हुआ था। पदयात्रियों ने अपने अनुभव तथा प्रेक्षण सामने रखे थे और भावी रणनीति पर विचार विमर्श हुआ था।
कार्यक्रम की विशेषता यह थी कि विभिन्न पार्टियों के राजनेता समस्या की गम्भीरता को देखते हुए इस सभा में शामिल हुए थे तथा संगठित होकर सभी ने संघर्ष के लिये अपनी सहमति दी थी। सभी उपस्थित सहभागियों ने एक स्वर में पूरे बुन्देलखण्ड में एक व्यापक संगठन के मार्फत जन-जागरण कर इस समस्या के निराकरण का संकल्प लिया था तथा यह निश्चय किया गया था कि इस प्रकार के अनर्गल गठजोड़ों का विरोध किया जाएगा।
बुन्देलखण्ड के लोगों को महसूस हो रहा है कि भारत सरकार द्वारा इस परियोजना को कार्यदल के गठन के तुरन्त बाद बिना सम्पूर्ण सम्भाव्यता अध्ययन किये। बिना स्थानीय आवश्यकताओं तथा हो रहे उपयोग का आकलन किये, बिना भौगोलिक स्थिति तथा पारिस्थितिकी का समुचित ध्यान दिये। सैंकड़ों वर्षों से नदी आधारित गाँवों की कृषि तथा जीवन की परवाह किये बिना, पूर्व से पश्चिम बनाई जाने वाली नहर द्वारा बुन्देलखण्ड के दक्षिण से उत्तर की ओर प्राकृतिक जल निकास के रास्ते में अवरोध पैदा करते हुए।
बाँध द्वारा नष्ट होने वाले पर्यावरण, पन्ना टाइगर रिजर्व के अस्त-व्यस्त होने एवं पारिस्थितिक असन्तुलन को नजरअन्दाज करते हुए छतरपुर, टीकमगढ़ तथा झाँसी के अनेक गाँवों की जमीनें उजाड़ते हुए, छतरपुर, पन्ना, बांदा, महोबा तथा हमीरपुर के सिंचाई तथा पेयजल के स्रोतों को छिन्न-भिन्न करते हुए तथा बेतवा में सम्भावित अतिरिक्त पानी द्वारा यमुना में बढ़े जलस्तर के कारण हमीरपुर तथा बांदा जिलों के उत्तर पूर्वी भाग में बाढ़ की विभीषिका के आकलन किये बिना बुन्देलखण्ड पर थोपा जा रहा है।
नदी गठजोड़ के कार्यदल के अध्यक्ष सुरेश प्रभु तथा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी केन-बेतवा गठजोड़ को उपयुक्त आदर्श तथा अनिवार्य मान रहे हैं, और तो और इसे महाभगीरथी प्रयास की संज्ञा दी जा रही है। इससे पूर्व प्रधानमंत्री को यहाँ से कई ज्ञापन दिये गए हैं, जिनका अब तक कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ है।
नदी केवल पानी का भण्डार भर नहीं है, भारत में तो वह जीवन, संस्कृति तथा चेतना की वाहक है। हर नदी का अपना भौतिकशास्त्र है, उसका रसायन है, जीव-विज्ञान है। इस प्रकार नदी की धारा के साथ खिलवाड़ भयंकर भूल सिद्ध होगा। केवल कागज पर सुन्दर दिखने वाली और अपेक्षाकृत शान्त बुन्देलखण्ड में जबरन थोपे जाने वाली यह परियोजना उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में बिखरे इस भू-भाग में कलह तथा अशान्ति को जन्म देगी। पहले से ही पानी के वितरण में असन्तुलन तथा भेदभाव महसूस करने वाला यहाँ का जनसमुदाय केन नदी के पानी के स्थानान्तरण की आशंका को एक आतंक की तरह महसूस करने लगा है।
भारत सरकार सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव को ही निर्देश मानकर बिना किसी पूर्व तैयारी के कई हजार करोड़ रुपयों के विनिवेश की इस परियोजना को पर्याप्त सोच-विचार के आगे बढ़ा रही है और इस तरह यहाँ के पूरे जनजीवन, पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी को अस्त-व्यस्त कर रही है। सबसे भयभीत करने वाली बात यह भी है कि इस पूरे विनिवेश का अधिकांश भाग बुन्देलखण्ड के निवासियों से ही वसूला जाएगा।
बुन्देलखण्ड में इस आत्मघाती प्रयास को बिना पर्याप्त अध्ययन तथा निराकरण के आगे बढ़ाना देश तथा समाज के लिये घातक सिद्ध होगा। क्या हम अपेक्षाकृत सस्ते तथा सहज विकल्पों को नजदअन्दाज कर अनावश्यक महंगे, पुनः वापस न आ सकने वाले गठजोड़ जैसे समाधान पर जोर देते रहेंगे? क्या हम अमेरिका तथा रूस में हुई इस प्रकार के गठजोड़ों से उत्पन्न भयंकर त्रासदी को जानते हुए भी इसको आदर्श तथा महाभगीरथी प्रयास मानते रहेंगे? क्या हम इन सब पर एक बार पुनः विचार नहीं करेंगे।
केन-बेतवा नदीजोड़ (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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(सप्रेस 300104 एवं जनसत्ता 070204)
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Post By: RuralWater