भूकम्प आने की स्थिति में तुरन्त खुले स्थान की ओर भागना चाहिए। यदि घर के भीतर फंस गये हों तो दरवाजे की चौखट तले खड़े हो जाएँ या मेज, बेंच, डेस्क अथवा पलंग के नीचे छिप जाएँ ताकि ऊपर से गिरने वाली कोई भी वस्तु प्रत्यक्ष चोट न पहुँचा सकें। यदि उस समय आप किसी चलते-फिरते वाहन पर हैं तो वाहन को तुरन्त सड़क के किनारे रोक कर उससे दूर तब तक खड़े रहे जब तक आप पूरी तरह सुरक्षित न हो जाएँ।
हिन्द महासागर में वर्ष 2004 के 26 दिसम्बर को महाविनाशकारी सुनामी लहरें पैदा करने वाले भूकम्प का असर इतना जबर्दस्त था कि इससे पूरी धरती काँप उठी थी। येल विश्वविद्यालय के प्रो. जेफ्री पार्क के अनुसार 9.1 से 9.3 तीव्रता के इस भूकम्प से पृथ्वी चर्च के घंटे की तरह दोलन करने लगी थी, जिसका आवर्तकाल 17 मिनट था। अंडमान निकोबार द्वीप में जुलाई, 2005 के आखिरी सप्ताह में मध्यम दर्जे के भूकम्प के पाँच झटके महसूस किए गए। विशेषज्ञों के अनुसार भू-पट्टियों में लगातार हो रही गति, जमीन के अंदर ज्वालामुखीय गति और मैग्मा (पृथ्वी की परतों के अंदर गर्म द्रव) के निर्माण के कारण ये कंपन्न हुए थे।भूकम्प दुनिया के तमाम देशों - जापान, चीन, फिलिपीन्स, अमेरिका, मेक्सिको, न्यूजीलैंड आदि में आते रहते हैं। भारत में भी खासकर हिमालय पट्टी में भूकम्प आते हैं। भारतीय पट्टिका का उत्तरी तथा पूर्वोत्तर की ओर प्रतिवर्ष पाँच सेन्टीमीटर की दर से बढना और उसका यूरेशियन पट्टिका से टकराव होने के कारण हिमालय क्षेत्र भूकम्प सम्भावित क्षेत्र बन चुका है। देश का 60 प्रतिशत भूभाग ऐसा है, जहाँ भूकम्प के तेज या हल्के झटके आ सकते हैं।
भूकम्प आने का मुख्य कारण पृथ्वी की प्लेटों का खिसकना है। पृथ्वी छह-सात बड़ी प्लेटों में विभक्त है और ये सारी प्लेट गतिशील हैं। जहाँ-जहाँ प्लेट मिलती हैं वे आपस में वे रगड़ खाती हैं या फिर अलग हो जाती हैं। इन प्लेटों की आन्तरिक संरचना में परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन को एक स्थायी आकार देने के लिए चट्टानें खिसकती हैं, जिससे भूकम्प आते हैं। इसके अतिरिक्त पृथ्वी के अन्दर लावा का सम्पर्क जब पानी से होता है तो भाप बनती है। चूँकि भाप ज्यादा जगह घेरती है इसलिए वह बाहर आने की कोशिश करती है। इस वजह से भी कम्पन होता है। लेकिन यह स्थिति अधिकतर ज्वालामुखी वाले क्षेत्रों में होती है।
धरती के भीतर चल रही भूगर्भीय प्रक्रियाओं के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग दस करोड़ छोटे-बड़े भूकम्प आते हैं। हर सैकेंड लगभग तीन भूकम्प ग्लोब के किसी न किसी कोने पर सिस्मोग्रॉफ के जरिए अनुभव किए जाते हैं। इनमें से 98 प्रतिशत भूकम्प सागर तलों में आते हैं। दो प्रतिशत भूकम्प सतह पर महसूस होते हैं। इनमें से लगभग 100 भूकम्प हर साल रिक्टर पैमाने पर दर्ज होते हैं।
भूकम्पीय सक्रियता तथा भूकम्पों की तीव्रता के आधार पर भारत को पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। देश के भूकम्पीय मानचित्र के अनुसार पूर्वोत्तर क्षेत्र, अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, गुजरात में कच्छ, हिमाचल प्रदेश में काँगड़ा, चमोली और उत्तरकाशी और जम्मू क्षेत्र के आसपास के क्षेत्र उच्च भूकम्प सम्भावित क्षेत्र पाँच के अन्तर्गत आते हैं। ये क्षेत्र भूकम्प की दृष्टि से अति सक्रिय हैं जहाँ आठ अथवा उससे ज्यादा तीव्रता वाले भूकम्प आ सकते हैं।
मापन और गहनता
भूतल के नीचे की चट्टानों में अचानक ऊर्जा अवमुक्त होने से भूकम्प आता है। इसका परिणाम पृथ्वी और उस क्षेत्र विशेष में स्थित ढाँचों के कम्पन्न के रूप में सामने आता है। स्थानीय परिस्थितियों, भूकम्प की अवधि तथा विस्तार के आधार पर क्षेत्र-दर-क्षेत्र क्षति अलग-अलग होती है। भूकम्प की गुरूता का मापन उसकी गहनता तथा विस्तार से किया जाता है। गहनता का सम्बन्ध विशिष्ट स्थान पर कम्पन्न अथवा क्षति से है। भूकम्पीय विस्तार का मापन रिक्टर स्केल पर होता है। विस्तार में एक अंक की वृध्दि अवमुक्त होने वाली ऊर्जा में तीस गुना वृध्दि का प्रतीक होती है।
इस पैमाने की शुरूआत 1935 में अमरीकी भौतिक वैज्ञानिक चार्ल्स एफ. रिक्टर ने की थी। उन्होंने दो सौ से ज्यादा भूकम्पों का अध्ययन करके यह पैमाना विकसित किया था। रिक्टर पैमाना भूकम्प के प्रभाव की बजाय उसकी ऊर्जा को मापता है। यह पैमाना एक से शुरू होता है। इसकी कोई ऊपरी सीमा नहीं है। पिछले अंक के मुकाबले अगला अंक 10 गुना ज्यादा ऊर्जा प्रदर्शित करता है। इस पैमाने के अन्तर्गत दो तीव्रता तक के भूकम्प हल्के माने जाते हैं। इन्हें लोग महसूस नहीं कर पाते। इन्हें सिर्फ स्थानीय सिस्मोग्राफ ही पकड़ पाते हैं।
6 रिक्टर से ऊपर की तीव्रता वाले भूकम्प अत्यधिक विनाशकारी होते हैं, जबकि हजारों की संख्या में रोजाना आने वाले हल्के भूकम्पों से कोई विनाश नहीं होता। जहाँ-जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक है उन क्षेत्रों में भूकम्प से अधिक जन-धन की हानि होने की आशंका बनी रहती है।
एक अन्य पैमाना मर्केली है, जिसमें तीव्रता 12 प्वाइंट तक आँकी जाती है। इस पैमाने के अनुसार यदि पाँच तीव्रता का भूकम्प आता है तो यह माना जाता है कि उसकी क्षमता से फर्नीचर हिल सकता है और चर्च की घन्टियाँ बज सकती हैं, लेकिन जानमाल की हानि नहीं होती है। 12 तीव्रता के भूकम्प से मानव निर्मित सभी चीजें नष्ट हो जाएँगी और पृथ्वी की टोपोग्राफी नए रूप में होगी यानी नई झीलें, नए पहाड़ आदि।
भीषण तबाही
भूकम्प से तबाही पहले की अपेक्षा अब अधिक बढता जा रही है। इसके अनेक कारण हैं। वनों का विनाश होने पर धरती पर हरियाली कम होती जा रही है। खनन व निर्माण कार्य के दौरान अनेक विस्फोट होते हैं। इनसे चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं। इस कारण वहाँ अपेक्षाकृत कम शक्ति के भूकम्प से भी अधिक नुकसान होने की सम्भावना होती है। भूकम्पीय क्षेत्र में खतरनाक उद्योगों, परमाणु संयन्त्रों एवं बड़े बाँधों के निर्माण से भी तबाही का खतरा बढता जा रहा है। भूकम्प से होने वाली अधिक क्षति का एक अन्य कारण ऐसे अनेक भवन है, जिनमें एक समय में हजारों लोग होते हैं।
भूकम्प आने पर क्या करें?
भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है जिसे हम रोक नहीं सकते। परन्तु कई पूर्वानुमानों और संकेतों के आधार पर हम इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं। भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में हल्की सामग्री से मकान बनाये जाने चाहिए क्योंकि भूकम्प नहीं मारता, मारते हैं, मकान। भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में हम कुछ आधारभूत सावधानियाँ अपना कर आने वाले संकट को कुछ सीमा तक कम कर सकते हैं। कुछ आवश्यक वस्तुएँ जैसे टार्च, मोमबत्तियाँ, माचिस, ट्रांजिस्टर, रेडियो और प्राथमिक उपचार किट हमेशा तैयार रखने चाहिए। खाद्य सामग्री तथा पेयजल का भण्डार भी रखें और काँच की खिड़कियों और गिरने योग्य सभी वस्तुओं से हमेशा दूर रहे।
भूकम्प आने की स्थिति में तुरन्त खुले स्थान की ओर भागना चाहिए। यदि घर के भीतर फंस गये हों तो दरवाजे की चौखट तले खड़े हो जाएँ या मेज, बेंच, डेस्क अथवा पलंग के नीचे छिप जाएँ ताकि ऊपर से गिरने वाली कोई भी वस्तु प्रत्यक्ष चोट न पहुँचा सकें। यदि उस समय आप किसी चलते-फिरते वाहन पर हैं तो वाहन को तुरन्त सड़क के किनारे रोक कर उससे दूर तब तक खड़े रहे जब तक आप पूरी तरह सुरक्षित न हो जाएँ। भूकम्प वाले क्षेत्र को देखने न जाएँ क्योंकि ध्वस्त ढाँचा बिना पूर्व चेतावनी के कभी भी गिर सकता है। इससे गम्भीर चोट लग सकती है।
भूकम्प के बाद
भूकम्प अपने प्रभाव से काफी कुछ विध्वंस कर देता है। भूकम्प के बाद के झटके सामान्य होते हैं। वे समय के साथ-साथ समाप्त भी हो जाते हैं। तोप के गोले छूटने जैसी आवाजें, गैस का रिसाव, धमाके, भूगर्भ जल स्तर में परिवर्तन आदि भूकम्प के आम प्रभाव हैं। भूकम्प के बाद अतिसार, कन्जक्टिवाइटिस और मलेरिया जैसी बीमारियां फैल सकती हैं। स्वास्थ्य सम्बन्धी आम सावधानियाँ बरतने के लिए निम्नलिखित उपायों की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है- तालाबों का पानी प्रयोग न करें, पानी उबाल कर पियें या पानी में क्लोरीन की गोलियों का उपयोग करें। खुले कुएँ और हैंडपम्प जैसे जलस्रोतों के आस-पास के क्षेत्रों को स्वच्छ रखना चाहिए जिससे भूजल को प्रदूषण से बचाया जा सके। बच्चों को रोग निरोधी टीके लगवाये, स्वच्छ शौचालयों का प्रयोग करें। यदि ये उपलब्ध नहीं हों तो गङ्ढे खोद लेने चाहिए और इस्तेमाल के बाद उन्हें ढक देना चाहिए।
सरकार एक संकटकालीन कार्रवाई योजना चला रही है। भूकम्प जोखिम के आकलन का एक केन्द्र बनाने के इरादे से 1999 में एक टास्क फोर्स बनाई गई थी। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैडर्ड के अनुसार मात्र एक प्रतिशत के अतिरिक्त खर्च पर किसी भी इमारत को भूकम्प-रोधी बनाया जा सकता है। विनाशकारी भूकम्प से बचाव के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है कि हम प्रकृति का अनावश्यक दोहन न करें और भूकम्प के विषय में आम नागरिक को जागरूक बनाया जाए।
लेखक पत्र सूचना कार्यालय से सम्बद्ध हैं।
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