विश्व भर में लाखों लोग विनाशकारी बाँध के खिलाफ संघर्ष करते हैं। पाकिस्तान में मछुआरे, थाइलैण्ड में किसान एवं ग्वाटेमाला में आदिवासी लोग बाँधों के खिलाफ संघर्ष करते हैं। जापान में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं युगाण्डा में मानवाधिकार स्वैच्छिक संगठन बाँधों के खिलाफ संघर्ष करते हैं। वे लोगों की आजीविका एवं प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिये लड़ते हैं। उनके जीवन को प्रभावित करने वाली निर्णयों में लोगों की भागीदारी के अधिकार के लिये संघर्ष करते हैं।
ये प्रयास तब ज्यादा प्रभावी होते हैं जब क्षेत्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वय बनाकर लोग एक साथ काम करते हैं। आज, लैटिन अमेरिका, पूर्व एवं दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, यूरोप एवं अफ्रीका में बाँध के खिलाफ संघर्ष करने वालों का नेटवर्क है। इन नेटवर्कों में बाँध प्रभावित लोग, जन आन्दोलन, स्वैच्छिक संगठन, शोधार्थी एवं अन्य समूह शामिल हैं। लोग जानकारी बाँटने के लिये, संयुक्त गतिविधियाँ आयोजित करने के लिये एवं विनाशकारी बाँधों को रोकने व लोगों की मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा हेतु एक साथ काम करने के लिये इन नेटवर्कों का उपयोग करते हैं।
भारत में बड़े बाँधों के खिलाफ हुए कुछ महत्त्वपूर्ण संघर्ष हैं: कोयल कारो, सरदार सरोवर, इंदिरा सागर, बेडती, साइलैण्ट वैली, टिहरी, कोटली भेल, महेश्वर, ओंकारेश्वर, इन्द्रावती, भोपालपटनम, तिपाईमुख, सुबनसीरी, पोलावरम, अलायन दुहंगन, करछम वांगतू, बीसलपुर, डांडेली, अथिरापल्ली, बोधघाट इत्यादि।
बाँध संघर्षकर्ताओं ने अनुभव बाँटने के लिये एवं विनाशकारी बाँधों के खिलाफ रणनीति तय करने के लिये दो अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठियाँ आयोजित की हैं। सन 1997 में, 20 देशों के प्रतिभागी ब्राजील में एक साथ मिले। दूसरी गोष्ठी थाइलैण्ड में सन 2003 में आयोजित हुई, जिसमें 61 देशों के 300 प्रतिभागी शामिल हुए। आन्दोलन लगातार आगे बढ़ रहा है और मजबूत हो रहा है।
बाँध संघर्षकारियों की सफलताएँ
बाँध कम बन रहे हैं
विनाशकारी बाँधों को रोकने में अन्तरराष्ट्रीय आन्दोलन कुछ हद तक सफल रहा है। पहले के मुकाबले अब कम बाँध बन रहे हैं। बाँधों के जबरदस्त विरोध के कारण, यहाँ तक कि सरकारों ने बाँध परियोजनाओं को रद्द भी किया है। उदाहरणतया: कोयल कारो (झारखण्ड), साइलेण्ट वैली (केरल), बेडती व डांडेली (कर्नाटक)। कुछ नदियों पर बाँध न बनाने का फैसला भी किया गया है।
कुछ बाँधों को हटाया गया है
आज, अमेरिका एवं यूरोप में कई सालों पहले बने बाँधों को डीकमीशन किया जा रहा है या तोड़ा जा रहा है। नदियों का जीवन लौटाया जा रहा है। फ्रांस में, लाइरे एवं लेग्वेर नदियों पर कई बाँधों को हाल के वर्षों में डीकमीशन किया गया है। बाँधों को तोड़े जाने के बाद, नदियों का जीवन वापस आ जाता है। सालमोन एवं अन्य मछलियों ने नदी में फिर से ऊपर नीचे आना-जाना शुरू कर दिया है।
प्रभावित लोगों के अधिकारों को मान्यता
कई बाँध प्रभावित लोगों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिये सफलतापूर्वक संघर्ष किया। कुछ लोगों ने बेहतर मुआवजा हासिल किया। कुछ लोगों ने निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी की। और कुछ लोगों ने सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली हासिल किया। भारत के उदाहरण: सरदार सरोवर, तवा, बरगी बाँध।
प्रभावित लोगों एवं उनके सहयोगियों के विरोध के कारण अब बाँध निर्माण में सुधार लाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय दिशा-निर्देश मौजूद हैं। ये दिशा-निर्देश विश्व बाँध आयोग (डब्ल्यूसीडी) द्वारा विकसित किये गये हैं।
डब्ल्यूसीडी का कहना है कि प्रभावित लोगों की सहमति के बगैर कोई बाँध नहीं बनना चाहिए। बाँध निर्माताओं को प्रभावित लोगों के साथ क्षति-पूर्ति के लिये कानूनी समझौते पर हस्ताक्षर करने चाहिए। यदि समझौता टूटता है तो, बाँध का काम रुक जाना चाहिए एवं प्रभावित लोगों को बाँध निर्माता के खिलाफ कानूनी कार्य करने का अधिकार होना चाहिए। कई सरकारों ने इन दिशा-निर्देशों को नहीं अपनाया है, लेकिन बाँध प्रभावित लोग अपने अधिकारों के संघर्ष के लिये इन दिशा-निर्देशों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बाँधों के लिये कम रकम
बाँध बहुत खर्चीले होते हैं। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका एवं एशिया में सरकारें बाँधों के लिये सार्वजनिक विकास बैंक एवं निजी बैंकों से रकम उधार लेते हैं। बीस साल पहले, इन वित्तपोषकों ने बाँध निर्माण के लिये बहुत ज्यादा रकम दी है। आज, बड़े बाँधों के जबरदस्त विरोध के कारण, वे इन परियोजनाओं के लिये कम रकम ऋण दे रहे हैं। इससे सरकारों के लिये बाँध बनाना और कठिन हो गया है। भारत में महेश्वर बाँध के खिलाफ संघर्ष ने कई सालों तक बाँध के लिये आने वाले रकम को सफलतापूर्वक रोक कर बाँध के काम को रोकने में सफलता पायी है।
राशि सलाई बाँध - ग्रामीणों की विजय सन 2000 में थाइलैण्ड के राशि सलाई बाँध के फाटक हमेशा के लिये खोल दिये गये। यह बाँध प्रभावित लोगों के लिये बड़ी विजय थी। राशि सलाई बाँध ने 15000 लोगों के खेतों को डुबो दिया था। उसने मछलियों के आवागमन के रास्ते को अवरुद्ध कर दिया था एवं स्वैम्प के जंगलों को नष्ट कर दिया था। प्रभावित लोगों ने संघर्ष करने का निर्णय लिया। उन-लोगों ने माँग की कि नदी को पुनर्जिवित करने के लिये एवं लोगों की आजीविका कायम करने के लिये बाँध के फाटक को हमेशा के लिये खोल दिया जाय। अपने माँगो के प्रति ध्यान आकर्षण के लिये उन-लोगों ने जलाशय के इलाके में एक विरोध ग्राम का निर्माण किया। लोगों ने कहा कि बाँध के फाटक खुलने तक वे वहाँ से नहीं हटेंगे। एक जगह तो विरोधकर्ता बढ़ते पानी से घिर गये थे। ऐसा कई सालों तक चला। अंत में, ग्रामीणों की विजय हुई। थाईलैण्ड सरकार बाँध के फाटक को खोलने के लिये सहमत हो गई। तब से, मून नदी के जीवन की वापसी हुई। अब लोग एक बार फिर नदी के किनारे फसल पैदा कर सकते हैं एवं मछली पकड़ सकते हैं। लोगों ने अपनी आजीविका फिर से हासिल की। राशि सलाई आन्दोलन के एक नेतृत्वकर्ता, बप्पा कोंगथाम ने बताया कि, उसने बाँध के डीकमीशन के लिये क्यों संघर्ष किया: ‘‘दीर्घकाल में हमारे नाती-पोतों के मदद के लिये पर्यावरण को बचाना ही एकमात्र रास्ता है। इसिलिये मैं आज उनके लिये यह कर रही हूँ।’’ |
सफलता : लेकिन बाँध से समुदायों को अब भी खतरा
ये बड़ी सफलताएँ हैं। लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विश्व भर के कई देशों में, सरकारें अब भी विनाशकारी बाँध बना रही हैं। बहुत लोग आज भी बाँधों एवं जलाशयों के लिये अपने घर एवं जमीन खो रहे हैं। कई शक्तिशाली सरकारों, बैंकों, कम्पनियों एवं अन्तरराष्ट्रीय संस्थाओं के पास और बड़े बाँध बनाने की योजनाएँ हैं।
- हमें आवश्यकता है विनाशकारी बाँध के खिलाफ संघर्ष को मजबूत करने की।
- हमें आवश्यकता है बाँध प्रभावित लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिये एक साथ काम करने, एक-दूसरे को समर्थन करने एवं एक-दूसरे से सीखने की।
जब कई लोग बाँध के खिलाफ एक साथ संघर्ष करते हैं तो, सरकारों एवं कम्पनियों के लिये बाँध बनाना एवं समुदायों को नुकसान पहुँचाना मुश्किल हो जाता है।
बाँध, नदी एवं अधिकार (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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