बान की मून/ हम सभी आज सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तव में हो रहा है और हम ही इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद चंद लोग ही इस खतरे की गंभीरता को समझ पा रहे हैं। मैं भी इसे गंभीरता से नहीं लेता था। आंखें खोल देने वाले `इको टूर' के बाद मैंने इस खतरे की भयावहता को समझा। यूं मैंने ग्लोबल वार्मिंग को हमेशा ही सर्वोच्च् प्राथमिकता दी है, लेकिन अब तो मैं मानता हूं कि हम विनाश के मुहाने पर खड़े हैं और इस दिशा में समय रहते ठोस प्रयास किए जाने की जरूरत है।
पिछले दिनों अंटार्कटिक में मैंने दुलर्भ नजारों के दर्शन किए। ऐसे खूबसूरत नजारों को देखना मेरे जीवन का बहुत ही यादगार अनुभव रहा। इसके बावजूद इन नजारों ने मुझे दु:खी भी कर दिया, क्योंकि मैं बदलती दुनिया को स्पष्ट देख पा रहा था। सदियों पुरानी बर्फ हमारी कल्पना से कहीं अधिक तेजी से पिघल रही है। जगप्रसिद्ध लार्सन हिमखंड पांच वर्ष पहले ही लुप्त् हो चुका है। 87 किलोमीटर लंबे इस विशाल हिमखंड में छोटे देश समा सकते थे, लेकिन महज तीन सप्तह में यह हिमखंड पिघल कर लुप्त् हो गया। किंग जॉर्ज द्वीप में चिली रिसर्च बेस में कार्यरत वैज्ञानिकों ने मुझे बताया कि संपूर्ण पश्चिमी अंटार्कटिक हिम पट्टी खतरे में है। लार्सन की ही तरह यह पट्टी भी पानी पर तैर रही है और इसका आकार पूरे द्वीप के कुल क्षेत्रफल का पांचवा हिस्सा है। अगर यह टूटती है तो समुद्र स्तर में छह मीटर की वृद्धि तय है। अब जरा इस वृद्धि के आलोक में समुद्र तट और उसके किनारे बसे शहरों की कल्पना कीजिए।
समुद्र स्तर में वृद्धि से न्यूयॉर्क, मुंबई और शंघाई जैसे तटीय शहरों का क्या होगा। विभिन्न द्वीपों पर बसे छोटे-छोटे देशों का जिक्र करने की तो आवश्यकता ही नहीं है। हो सकता है कि ऐसा कुछ अगले सौ वर्षो में भी न हो और हो सकता है कि महज दस वर्षो में ही ऐसा कुछ हो जाए। हम वास्तव में इस बाबत कुछ नहीं जानते हैं, लेकिन इतना तय है कि ऐसा कुछ भी घटेगा तो बहुत तेजी से घटेगा। रातोरात ऐसा कुछ हो जाएगा। यह किसी विध्वंस प्रधान फिल्म की कहानी सी लगती है, लेकिन यह वास्तव में विज्ञान है। कोई विज्ञान फंतासी फिल्म नहीं। विशेषज्ञ इस बाबत चिंतित हैं। उत्तरी दिशा में स्थित इस क्षेत्र को मध्य एशिया और ग्रीनलैंड के साथ तीन संवेदनशील `हॉट स्पॉट' में से एक माना गया है।
कारण, यहां तापमान वैश्विक औसत तापमान से दस गुना अधिक तेजी से बढ़ रहा है। ग्लेशियर आंखों के सामने पीछे खिसक रहे हैं। घास-फूस जड़ें जमाने लगी है। अक्सर गर्मी के मौसम में बर्फबारी के बजाय पानी बरसने लगा है। मैं आपको डरा नहीं रहा हूं, लेकिन मुझे लगता है कि हम चरम बिंदु पहुंच चुके हैं। इसके संकेत एकदम साफ हैं। मैं जहां-जहां गया मैंने ये संकेत स्पष्ट देखे। चिली में शोधकर्ताओं ने बताया कि वे जिन १२० ग्लेशियर्स पर निगाह रखे हुए हैं उनमें से आधे सिकुड़ रहे हैं। उनके सिकुड़ने की दर बीते एक-दो दशकों से दोगुना है। इनमें राजधानी सेंटियागो से बाहर स्थित पहाड़ों के ग्लेशियर भी शामिल हैं, जो साठ लाख क्षेत्रीय लोगों को पीने का पानी मुहैया कराने के प्रमुख स्त्रोत हैं। उत्तर में सूखे के बढ़ते प्रकोप ने खनन उद्योग को संकट में ला दिया है। अर्थव्यवस्था के इस महत्वपूर्ण अंग के साथ-साथ कृषि और जलविद्युत ऊर्जा पर भी संकट मंडरा रहा है। इस यात्रा के दौरान मैंने एक पूरा दिन अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त् टोरेस डेल नेशनल पार्क में भी बिताया। इस बेहद खूबसूरत, शांत और भव्य पार्क में भी संकट के चिन्ह देखने में आए।
एंडीज पर्वत श्रृंखला की बर्फ भी हमारी सोच से कहीं तेजी से पिघल रही है। अल्पाइन से घिरे बर्फीले समुद्र का नजारा देते ग्रे ग्लेशियर का मैंने हवाई नजारा किया। 1985 में यह महज दो सप्तह में तीन किलोमीटर पीछे खिसक गया था। एक बार फिर विषम, अनिश्चित और विध्वंसक लार्सन प्रभाव के साक्षात दर्शन हुए। कोम्बू द्वीप समाउमीरा पेड़ के तले मैंने अपनी यात्रा समाप्त् की। यह स्थान अमेजन नदी के मुहाने से ज्यादा दूर नहीं हैं। यह कपोल कल्पित `पृथ्वी के फेफड़े' का हृदय स्थल भी है। यहां के उष्णकटिंबंधीय वर्षाऋतु वाले वन भी जंगलों की कटाई और भूमि क्षरण की भेंट चढ़ चुके हैं। यानी वैश्विक स्तर पर 21 फीसदी कार्बन के उत्सर्जन के लिए सीधे तौर पर यह क्षेत्र जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पूर्वी अमेजन को कुछ ही दशकों में वृक्षहीन लंबी घास वाले क्षेत्र में परिवर्तित करके रख देगा। यह सब काफी निराश करने वाला था। फिर भी मैं पूरी तरह बुझे मन से रवाना नहीं हुआ। कारण, शेष विश्व को शायद ही यह मालूम हो कि ब्राजील ने स्वयं को विशालकाय हरियाली वाले क्षेत्र में बदल कर रख दिया है। पिछले दो वर्षो में ब्राजील ने अमेजन के जंगलों की कटाई की दर आधी कर दी है। जंगलों का एक बड़ा हिस्सा संरक्षित कर दिया है। ब्राजील ऊर्जा के नवीनीकरण में शेष विश्व का अग्रणी बनकर उभरा है। यह उन चंद देशों में शामिल हैं, जो विस्तृत पैमाने पर बायो इंर्धन का सफलतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं।
यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सामाजिक दायित्वों और सरकारी लाभ के बीच संतुलन कैसे स्थापित करती है। महत्वपूर्ण यह है कि ब्राजील इस दिशा में कुछ सार्थक कर रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ उसके प्रयास अनुकरणीय और सराहनीय हैं। यह हम सभी के लिए एक सबक भी है। लंबे समय तक हमने जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कमतर आंकने का काम किया है। ऐसे में अब यह समय जागने का है। हम इसे पराजित कर सकते है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के तमाम वाजिब तरीके हैं। हमें ध्यान रखना होगा कि जलवायु परिवर्तन किसी सीमा को नहीं पहचानता है। अत: इसका समाधान भी वैश्विक ही होना चाहिए। दुनिया में रहने वाले हर एक इंसान को इस बारे में गंभीरता से विचार और काम करना होगा।
/articles/vainaasa-kae-mauhaanae-para-daunaiyaa