विलुप्त होने की कगार पर हैं दस लाख प्रजातियांः यूएन

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हम खूब आर्थिक विकास कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन भी हो रहा है। जिसका नतीजा ये हुआ है कि लगभग 10 लाख अभूतपूर्व प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। वैज्ञानिकों ने ये सब एक रिपोर्ट में कहा जो उन्होंने आधुनिक सभ्यता द्वारा प्रकृति के नुकसान पर पेश की। इस रिपोर्ट के हवाले से निष्कर्ष निकला कि वैश्विक आर्थिक और वित्तीय सिस्टम का व्यापक परिवर्तन ही पारिस्थितिक तंत्र को खींच सकता है जो पूरे विश्व के लोगों के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो इस समय पतन के कगार पर है। इस निष्कर्ष को अमेरिका, रूस और चीन सहित 130 देशों ने अपना समर्थन दिया।

जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र में आने वाले परिवर्तन को लेकर पेरिस में शुरू हुए इस स्टडी के सह-अध्यक्ष प्रोफेसर जोसेफ सेटेले  ने कहा, पृथ्वी पर जीवन की आवश्यकता, आपस में जुड़ी हुई है। पृथ्वी पर जीवन की तरंगे छोटी और बढ़ती जा रही हैं। यह नुकसान इंसान की गतिविधियों का सीधा परिणाम है और दुनिया के सभी क्षेत्रों में मनुष्य के लिए खतरा है।

145 लेखक, 50 देश

50 देशों के 145 विशेषज्ञों के द्वारा अध्ययन किया गया और इस अध्ययन को संकलित कर रिसर्च करके एक उभरते निकाय की आधारशिला रखी। जो सुझाव देता है कि दुनिया को अर्थशास्त्र के नए ‘पोस्ट ग्रोथ’ रूप को अपनाने की आवश्यकता हो सकती है। ये पारस्परिक रूप से उत्पन्न अस्तित्वगत जोखिमों को पूरा करता है जैसे प्रदूषण, हैबिटेट विनाश और कार्बन उत्सर्जन के संभावित परिणाम।ये ग्लोबल असेसमेंट के रूप में जाना जाता है, इस रिपोर्ट में पाया गया कि कई दशकों में पृथ्वी के लगभग 8 मिलियन पौधे, कीट और जानवरों की प्रजातियों में से एक मिलियन तक विलुप्त होने का खतरा है।

विशेषज्ञों ने बताया कि इस समय औद्योगिक खेती और मछली पकड़ना प्रजातियों के विलुप्त होने का एक बड़ा कारण है। पिछले 10 मिलियन वर्षों की तुलना में इस समय सौगुना अधिक प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। रिपोर्ट में पाया गया कि उद्योग से निकलता कोयला, तेल और गैस के जलाने के कारण उत्पन्न हुए जलवायु परिवर्तन से नुकसान कम हो रहा है। आईपीबीईस की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश पर्यावरण वैज्ञानिक राॅबर्ट वाटसन का कहना है कि प्रकति का संरक्षण करना और उसका उपयोग करना तभी संभव होगा। जब समाज इस स्थिति को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध और अपने स्वार्थों को दूर रखकर इसका सामना करने के लिए तैयार हों।

वाटसन ने आगे कहा, रिपोर्ट हमें बताती है कि अभी भी सबकुछ सही करने में देर नहीं हुई है। लेकिन वो तभी संभव है जब हम स्थानीय से लेकर वैश्विक लेवल के हर स्तर पर इसकी शुरूआत करेंगे। परिवर्तनकारी परिवर्तन से हमारा मतलब है कि तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक कारकों में एक मौलिक प्रणाली का पुनर्गठन, जिसमें प्रतिमान, लक्ष्य और मूल्य शामिल हैं। इस रिपोर्ट को स्पष्ट भाषा में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के पैनल को बताया गया, जिसमें कहा गया था कि एक गर्म दुनिया के सबसे विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता होगी। अगले साल के आखिर में चीन में होने वाले जैव विविधता पर एक प्रमुख सम्मेलन होने वाला है। जहां इस रिपोर्ट के निष्कर्ष पर वन्यजीवों की रक्षा के लिए बोल्ड एक्शन पर मंजूरी के लिए देशों पर दवाब बढ़ेगा।

तीन साल की समीक्षा

ग्लोबल असेसमेंट लगभग 15 हजार वैज्ञानिकों का समूह है जिसने लगातार तीन साल तक समीक्षा की। जिसने पिछली आधी सदी में इस ग्रह पर वैश्विक औद्योगिक समाज पर अपना असर दिखाया। अगर हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं तो उसका असर हम पर कैसे पड़ता है, इन्हीं सबको इस रिपोर्ट में रखा गया है। रिपोर्ट में खाद्य-फसलों के लिए जरूरी कीटों के खत्म होने से लेकर कोरल रीफ्स का समर्थन करने वाली मछली का पक्ष रखने वाले खतरों की एक सूची को तैयार किया गया है। जो तटीय समुदायों और औषधीय पौधों का नुकसान करते हैं।

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि भूमि पर रहने वाली प्रजातियां 1990 के बाद से विलुप्त होने में 20 प्रतिशत की गिरावट हुई है। ये हमारे लिए डराने वाली सूची है जिसमें 40 प्रतिशत से अधिक उभयचर प्रजातियां, 33 प्रतिशत मूंगा और एक तिहाई से ज्यादा समुद्र स्तनधारी विलुप्त होने की कगार पर हैं। कीट प्रजातियों के बारे तस्वीर स्पष्ट नहीं है लेकिन एक अनुमान है कि कीट प्रजातियों की 10 प्रतिशत प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर है। संयुक्त राज्य अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडुआर्डो ब्रोंडजियो कहते हैं कि हम इन प्रजातियों का बचाने के रास्ते खोज रहे हैं। हम पूरे ग्रह पर सस्ते संसाधन को खोजने की कोशिश में लगे हुये हैं और आखिर में हर तरह के व्यापार को खत्म होना ही है।

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