विलुप्त हो गयी कुदरा नदी

कुदरा नदी अस्तित्व ही खत्म हो गया है
कुदरा नदी अस्तित्व ही खत्म हो गया है

सासाराम। इतिहास गवाह है कि सभ्यताएं नदी के किनारे पनपीं देश व दुनिया के अधिकतर शहर आज भी नदियों के किनारे ही बसे हैं, ऐसे में बिना नदी के शहर सासाराम का बसा होना आश्चर्य की बात लगती है वह भी ऐसा शहर, जिसका लिखित इतिहास 251 ईसा पूर्व का है।

शहर के प्राचीन होने का प्रमाण चंदतन शहीद पीर पहाड़ी पर अवस्थित सम्राट अशोक के लघु शिलालेख से मिलता है। यहां ईसा पूर्व 251 में बौद्धों का समागम हुआ था। उसी समय यह शिलालेख लगा था। यह तो हो गयी प्राचीनता की बात। दूसरी मिसाल है शहर में मछुआरों (मल्लाह) की दो बड़ी बस्तियों का होना।

शहर के भारतीगंज व चंवर तकिया मोहल्ले में मल्लाह जाति के लोग रहते हैं। कहा जाता है कि नदी किनारे ही मल्लाहों की बस्ती पायी जाती है। उनकी जीविका नदी पर आधारित है, जबकि शहर में कोई नदी नहीं है। ऐसे में मल्लाहों की इतनी बड़ी बस्ती क्यों बसी है? इस प्रश्न का जवाब यह है कि शहर में एक नदी हुआ करती थी, जिसका नाम कुदरा था। आज उसका अस्तित्व भले ही समाप्त हो गया है, लेकिन 1912 व 1931 के नक्शों में इसका चित्रण आज भी बरकरार है।

यह नदी कैमूर पहाड़ी की वादियों से निकल कर शहर के दक्षिणी छोर को छूते हुए पश्चिम दिशा में बहती थी। इसका प्रमाण है शहर के दक्षिणी छोर पर नदी के नाम से एक मोहल्ले का बसा होना। यहां पुल से वाहनों व लोगों का आना-जाना होता है। कालांतर में जब सोन नहर प्रणाली विकसित हुई, तो शहर के पश्चिम स्थित बेदा नहर को नदी पर पुल बना दक्षिण दिशा में पार कराया गया था। आज यह नदी विलुप्त हो चुकी है।

इसके अधिकतर भू-भाग को या तो किसी को बंदोबस्त किया जा चुका है, या कुछ लोग कब्जा कर चुके हैं। 1971 ई के सर्वे के नक्शे में भी इस नदी का निशान अंकित है लेकिन, ग्लोबल वार्मिंग के असर से यह नदी सूख चुकी है। इसकी चिंता न तो लोगों को है और न प्रशासन को। आज यदि यह नदी रहती, तो शहर को भूमिगत पानी के लिए तरसना नहीं पड़ता।
 

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