विकास की आंधी में सूख गए तालाब

कुछ निजी कंपनियां उन्नयन के नाम पर तालाबों को गोद आस-पास के क्षेत्रों का केवल वाणिज्यिक का उपयोग कर रही है। कुल मिलाकर तालाबों के उन्नयन का कार्यक्रम केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। बेंगलुरु विकास प्राधिकरण के सहायक अभियंता पुट्टस्वामी के मुताबिक बीडीए को सौंपे गए तालाबों का उन्नयन का कार्य चल रहा है। अभी तक प्राधिकरण ने तालाबों के उन्नयन के लिए आवंटित राशि का शत-प्रतिशत उपयोग किया है।विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी होने के बावजूद बंगलूरु के लिए पेयजल की समस्या आम है। इस शहर को कभी झिलों की नगरी कहा जाता था लेकिन अब यहां काफी कम संख्या में झिलें बची हैं। कुछ यही हाल तालाबों का भी हुआ। कभी शहर में सैकड़ों की संख्या में तालाब थे लेकिन पिछले तीन-चार दशकों के दौरान विकास की बयार में अधिकांश तालाब सूख गए। कहीं गगनचुंबी अट्टालुकाएं बन गई तो कहीं खेल का मैदान। कुछ को लोगों की लालच खा गई और कुछ को बिना सोचे-समझे विकास करवाने वाले अधिकारी नतीजा, शहर की प्राकृतिक स्थलाकृति (टोपोग्रॉफी) बिगड़ गई जिसके कारण इसकी वजह से आज पानी पाताल में चला गया है और बारिश में जलभराव से शहर त्राहि-त्राहि करता है।

800 फीट तक भी पानी नहीं


शहर के लगभग सभी तालाबों व झीलों को अनियोजित विकास निगल गया। तालाब और झील भू-जल के प्राकृतिक स्रोत थे। इनके खत्म होने के कारण भू-जल स्तर भी कम होने लगा है। शहर के पूर्व तथा पश्चिम क्षेत्र में अब 800 फीट गहराई पर भी पीने के लिए लायक पानी नहीं मिल रहा है। कई सूखे तालाबों के क्षेत्र पर आवासीय ले आउटस अस्तित्व में आ गए हैं।

तालाब का पानी ‘जहर’


वर्ष 1960 में बेंगलूरु शहर में तालाबों की संख्या 260 थी, जो वर्ष 2012 में सिमटकर 55 ही रह गई। इन तालाबों का पानी भी ‘जहर’ जैसा हो चुका है। किसी भी तालाब का पानी पीने योग्य नहीं।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के अध्यक्ष डॉ. वामनाचार्य के मुताबिक शहर के किसी भी तालाब का पानी पीने लायक नहीं रहा है। साथ में शहर का भूजल भी पारा तथा शीशे जैसे ख़तरनाक रसायनों के कारण प्रदूषित हो गया है। शहर के बेंलदूर तथा अरगा तालाब सबसे अधिक प्रदूषित हो गए हैं। प्रदूषण के कारण इन तालाबोँं के आस-पास रहनेवालों का जीना दूभर हो गया हो रहा है। साथ ही जैव विविधता भी खतरे में है। डॉ. वामनाचार्य कहते हैं कि कुछ तालाबों में शहर के सीवर का पानी तथा औद्योगिक इकाइयों के खतरनाक रसायन भी छोड़े जा रहे हैं, ज जिस की बदबू के कारण इन तालाबों के पास आने-वाले किंगफिशर जैसे पंछी भी अब नहीं दिखते हैं।

वन विभाग के रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 1895 में धर्माबुधी तालाब तथा छावनी में स्थित मिल्लर हलसूर तथा सैंकी तालाब से ही शहर के सभी क्षेत्रों को सिंचाई तथा पेयजलापूर्ति होती थी। लेकिन, बाद में स्थिति बदल गई। विभाग के मुताबिक शहर के 60 तालाबों में सीवर का पानी छोड़ा जा रहा है। 13 सूखे तालाबों की भूमि विभिन्न संगठनों को पट्टे पर दी गई हे जबकि 28 तालाबों के क्षेत्र में बीडीए ने आवासीय क्षेत्र विकसित किया है। 15 तालाबों के क्षेत्र पर कच्ची बस्तीयां बस चुकी है।

विफल रहा प्रयोग


केंपेगौड़ा, मैसूर के वाडियार राजवंश तथा ब्रिटिश शासन के दौरान शहर में कई तालाबों का निर्माण किया गया था। शहर में कोई नदी नहीं होने के कारण शहर की पेयजलापूर्ति तथा सिंचाई इन्हीं तालाबों पर निर्भर थी। लेकिन बाद में तालाब पर अतिक्रमण होने लगा। तालाबों पर हुए अतिक्रमण के कारण ही आधे घंटे की बारिश के बाद ही शहर के निचले क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। झील विकास प्राधिकरण (एलडीए), बेंगलूरु विकास प्राधिकरण (बीडीए) बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) वन विभाग तथा कुछ स्वयंसेवी संगठनों की ओर से शहर के कुछ तालाबों के उन्नयन पर करोड़ो खर्च किए जा चुके हैं लेकिन इन प्रयासों के बावजूद शहर के किसी भी तालाब का पानी पीने के लिए योग्य नही बन सका है।

तालाबों का उन्नयन करने वाले इन संस्थाओं के बीच समन्वयन का आभाव इस समस्या का प्रमुख कारण है। कुछ निजी कंपनियां उन्नयन के नाम पर तालाबों को गोद आस-पास के क्षेत्रों का केवल वाणिज्यिक का उपयोग कर रही है। कुल मिलाकर तालाबों के उन्नयन का कार्यक्रम केवल औपचारिकता बनकर रह गया है। बेंगलुरु विकास प्राधिकरण के सहायक अभियंता पुट्टस्वामी के मुताबिक बीडीए को सौंपे गए तालाबों का उन्नयन का कार्य चल रहा है। अभी तक प्राधिकरण ने तालाबों के उन्नयन के लिए आवंटित राशि का शत-प्रतिशत उपयोग किया है।

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