विकास के आड़े नहीं आएगा उत्सर्जनः अशोक लवासा

भारत सरकार ने कहा कि भारत ने दुनिया के सामने बहुत ही महत्वाकांक्षी आईएनडीसी प्रस्तुत किया है। दुनिया के अन्य देशों ने इसकी प्रशंसा की है। जलवायु परिवर्तन पर एक बैठक को सम्बोधित करते हुए अशोक लवासा, सचिव-वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने यह बात कही।

भारत द्वारा प्रस्तुत आईएनडीसी के बारे में बताते हुए अशोक लवासा ने कहा कि विकसित देशों के विकास में ग्रीन हाउस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन भी साथ-साथ हुआ है, जबकि भारत ने अपने आईएनडीसी में इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि उत्सर्जन को कम रखते हुए भी हम विकास की राह पर कैसे आगे बढ़ सकते हैं।

उन्होंने कहा कि कोयला हमारे लिए ऊर्जा का बड़ा स्रोत है, कोयला आधारित ऊर्जा का उपयोग भारत में जारी रहेगा लेकिन इसके उपयोग और तकनीक में सुधार करके स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ेंगे। अशोक लवासा ‘बियाॅण्ड कोपेनहेगन’ द्वारा पेरिस जलवायु सम्मेलन के पूर्व आयोजित की गई एक बैठक में बोल रहे थे। यह बैठक आॅक्सफेम इण्डिया, आईनेक और एआईडब्ल्यूसी के साथ मिलकर आयोजित की गई थी।

इस अवसर पर बोलते हुए भारत जन विज्ञान जत्था के सौम्या दत्ता ने कहा कि हालांकि भारत ने एक अपेक्षाकृत अच्छा आईएनडीसी प्रस्तुत किया है लेकिन इसे और बेहतर व व्यापक बनाने की आवश्यकता है। भारत ने अन्तरराष्ट्रीय विमर्श में विकासशील देशों का नेतृत्त्व करने के अवसर को खो दिया है। चर्चा को आगे बढ़ाते हुए आॅल इण्डिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क के डी. रघुनंदन ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मंच पर विकसित देशों, खासकर अमेरिका का दबाव बना रहता है।

किसी भी अन्तरराष्ट्रीय समझौते के प्रति इनका नज़रिया यह है कि बिना उनकी उपस्थिति और सहमति के कोई समझौता न हो और कोई समझौता उन पर बाध्यकारी न हो। इसीलिये अब तक उत्सर्जन की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए बराबरी की कोई व्यवस्था नहीं बन पाई है।

टेरी के मनीष श्रीवास्तव ने कहा कि भारत को अन्य अल्पविकसित और अपने जैसे विकासशील देशों को साथ लेकर उस भूमिका में आने की जरूरत है जहाँ वह शमन और अनुकूलन के साथ ही ‘लाॅस एण्ड डैमेज’ पर एक विमर्श और समझौते में नेतृत्त्वकारी भूमिका निभा सके, जो बराबरी के सिद्धान्त पर आधारित हो और सभी को बराबरी के अवसर मुहैया कराए। प्रस्तुत आईएनडीसी में इस ओर कोई इशारा नहीं है।

पैरवी के निदेशक व ‘बियाॅण्ड काोपेनहेगन’ के संयोजक अजय कुमार झा ने कहा कि दुनिया के सभी आईएनडीसी मिलकर भी तापमान में वृद्धि को दो डिग्री बढ़ने से रोकने में सक्षम नजर नहीं आते। इसलिये इस बात की भी जरूरत है कि भारत सहित सभी देश अपने आईएनडीसी में दर्शाए गए लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं की व्यापकता और प्रभाव पर पुनर्विचार करें।

सभा की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अन्तरराष्ट्रीय विमर्श में बाजार और उपभोक्तावाद पर परिचर्चा को शामिल करने पर जोर देते हुए कहा कि हमको अपनी ऊर्जा के उपभोग की आदतों और जरूरतों को बदलने व सीमित करने की आवश्यकता है। साथ ही हमें उन सभी प्रयासों से भी सीखना चाहिए जो भले ही बहुत छोटे स्तरों पर दूर-दराज के क्षेत्रों में हो रहे हों, लेकिन जलवायु संकट के प्रभाव को कम करने में हमारे मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं।

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Post By: RuralWater
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