विकास का वर्तमान स्वरूप बदलना होगा

मजदूर नेताओं के अनुसार उक्त तथ्यों के आधार पर यह निर्विवाद है कि इस काण्ड में लगभग एक करोड़ रूपये का घोटाला हुआ है। फैक्ट्री को घाटे में दिखाना एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। यद्यपि एफस आई व पिकप आदि के अधिकारी भी इस प्रतिष्ठान के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में हैं, परन्तु प्रबंध निदेशक के सामने उनका कोई मत्व नहीं है। सब जानते हुए भी वे कुछ कर पाने में असमर्थ हैं। एक स्थानीय श्रमिक नेता के अनुसार तो मि. अग्रवाल भारत के दस बड़े भ्रष्ट सफेदपोशों में से एक हैं, जिनकी गोटियाँ इस तंत्र में हर जगह फिट हैं, मजदूरों के सम्मुख एक बार मि. अग्रवाल ने कहा था, “मैंने आपके एम.पी. को खरीद रखा है। मैं किसी और को भी खरीद सकता हूँ। आपको जहाँ जाना हो, वहाँ शिकायत ले जाइये।”

ऐसे में जब कि सरकार उत्तराखंड में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये प्रयत्नशीन होने का दावा भर रही है। उत्तरकाशी जिले के बड़कोट से लेकर नैनीताल जिले के मोहान तक सरकारी मन्त्री दसियों उद्योगों का शिलान्यास/लोष्ठत्रोटन कर रहे/चुके हैं, ठीक उन्हीं दिनों उत्तराखंड के एक हिस्से में एशिया का दूसरा व भारत में अपनी तरह का पहला उद्योग अपने श्रमिकों को रोटी दे पाने में असहाय हो रहा है, पाँच साल की घिसटन के बाद दम तोड़ने की स्थिति में हैं।

यह उद्योग है कुमार ब्रौंज पाउडर्स ताड़ीखेत (जिला अल्मोड़ा)। 1 अक्टूबर 1976 में पश्चिमी जर्मनी के तकनीकी सहयोग से स्थापित व जुलाई 1977 से उत्पादन करने वाली यह इकाई ताम्बे, जस्ते एवं एल्युमीनियम के मिश्रण से ब्रौंज पाउडर (एक तरह का सुनहरी पाउडर) बनाती है, जो तरह-तरह की छपाई (मसलन सिगरेट के डिब्बों में सुनहरी रंग देने के लिये) व पेण्ट, पालिश आदि के निर्माण में प्रयुक्त होता है और इसकी भारत में हर समय माँग बनी रहती है और यह अच्छे लाभी का उद्योग भी है।

लेकिन पाँच वर्ष तक किसी तरह ढुलमुल तरीके से चलने के बाद अन्ततः 1 नवम्बर 1982 को इकाई के प्रबन्धकों/संचालकों ने कम्पनी में डेढ़ करोड़ का घाटा हो जाने के कारण अनिश्चितकालीन जबरन तालाबन्दी (ले ऑफ) घोषित कर दी। परन्तु इकाई में कार्य करने वाले लगभग 42 कर्मचारियों/मजदूरों को अगस्त 82 से अक्टूबर 82 तक तीन महीने लगातार वेतन नहीं मिला है। प्रबन्धकों से बार-बार इस विषय पर शिकायतें करने पर अक्टूबर माह में इकाई के प्रबन्ध निदेशक एस.के.अग्रवाल की ओर से कर्मचारियों को यह सूचना दी गई कि रानीखेत स्टेट बैंक द्वारा कम्पनी के खातों में लेनदेन बन्द कर दिये जाने के कारण कर्मचारियों को वेतन नहीं दिया जा रहा है। यद्यपि रानीखेत स्टेट बैंक से इस बारे में छानबीन करने पर यह तथ्य उजागर हुआ कि इकाई को बैंक द्वारा यह सूचना दी गई है कि इकाई द्वारा अपने खातों से देयकों का भुगतान करने के बाद ही इकाई के खातों पर भुगतान दिया जा सकता है।

इधर दो माह तक लगातार वेतन न मिल पाने के कारण ब्रौंज पाउडर्स ट्रेड यूनियन के द्वारा लेबर कमिश्नर हल्द्वानी की अदालत में प्रबन्ध के विरूद्ध एक याचिका दायर की गई थी। जिसकी सुनवाई 25 अक्टूबर को होनी थी। परन्तु आर्थिक कारणों से मजदूर संघ के चार सदस्य वहाँ नहीं जा सके, अतः टेलीग्राम द्वारा इसकी सूचना लेबर कमिश्नर को दे दी गई थी।

तीन माह से वेतन न मिलने व जबरन तालाबन्दी कर दिये जाने के विरोध में इकाई के कर्मचारियों ने क्षेत्र के विधायकों/सांसदों, मन्त्रियों, अधिकारियों व मुख्यमन्त्री तक को अनेक माँग पत्र, स्मृति पत्र, विरोध पत्र, समाचार पत्र व तार आदि अनेक माध्यमों से अपनी बात कही, परन्तु किसी ने तनिक भी सहानुभूति इस मामले में नहीं दिखाई, मुख्यमन्त्री के 26-27 अक्टूबर को रानीखेत आगमन पर कर्मचारियों के प्रतिनिधिमंडल ने अपनी समस्या उन तक पहुँचाई (इससे पहले भी मुख्यमन्त्री तक वे अनेकों रजिस्टर्ड पत्र भेज चुके थे) तो उन्होंने मामले के प्रति अपनी अनभिज्ञता दर्शाते हुए कुछ करने का प्रयास करने व न्यायिक जाँच की सम्भावनाओं पर विचार करने का आश्वासन दिया।

हर तरह से निराश होकर ट्रेड यूनियन ने 18 अक्टूबर को हुई आपात बैठक में शेष वेतन के भुगतान, उद्योग पुनर्चालन, कर्मचारियों से सम्बन्धित अवैधानिक आदेशों के निरस्तीकरण, उद्योग के सरकारीकरण, समस्त लेखों-जोखों की न्यायिक जाँच सम्बन्धी अपनी पाँच माँगे तय कर 23 अक्टूबर से क्रमिक अनशन प्रारम्भ कर दिया, जिसकी सूचना पर्याप्त समय पूर्व सम्बद्ध अधिकारियों को दे दी गई थी। परन्तु क्रमिक अनशन से भी मामला न सुलझने पर 26 अक्टूबर से फैक्ट्री के दो कर्मचारियों, हरीश चन्द्र पाण्डे व गोपाल सिंह द्वारा आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया, जिसे पुलिस द्वारा कई बार भंग करवाने की कोशिश भी की गई।

श्रमिक नेताओं व स्थानीय जनता/छात्रों द्वारा परगनाधिकारी को ताड़ीखेत से रानीखेत तक एक जलूस निकाल कर विधिवत ज्ञापन दिया गया लेकिन इस पर भी कर्मचारिययों की बात कोई सुनने को तैयार नहीं था। अतः ट्रेड यूनियन द्वारा प्रशासन का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिये ताड़ीखेत में चक्काजाम करवाने की योजना बनाई गई और 31 अक्टूबर को सड़क पर पत्थर रख कर यातायात रोक दिया गया, लेकिन यह ‘बन्द’ सफल हो जाता, इससे पूर्व परगनाधिकारी रानीखेत श्री राकेश बहादुर ने आकर लाठी चार्ज करवा दिया।

मजदूर नेताओं के अनुसार परगनाधिकारी ने जीप से उतरते ही आदेश दिया कि तुरन्त लाठी चार्ज करो, यदि नहीं मानें तो... हम लोगों से किसी तरह का वार्तालाप कर हमारी बात सुनने की जहमत भी उन्होंने नहीं उठाई, हमारी समझ में नहीं आया कि सरकारी आदमी होकर भी क्यों उन्होंने ऐसा किया ? कम से कम हमारी बात तो सुनते, साहब वैसे असली बात तो यह है कि अग्रवाल साहब के आगे सरकार भी कोई चीज नहीं है। सरकार तो हम जैसों के लिये होती है, वोट माँगने और फिर डण्डे बरसाने के लिए।

31 अक्टूबर की सुबह निमर्म लाठी चार्ज के बाद पुलिस अनशनकारियों को पकड़कर रानीखेत ले गई और वहाँ चाय पिलाकर, अनशन तुड़वा कर उन्हें छोड़ दिया गया। लाठी चार्ज से घायल होने वालों में महिलायें व पुरूष दोनों थे। गम्भीर रूप से घायल व्यक्तियों का ताड़ीखेत में व एक का अल्मोड़ा में इलाज करवाया गया। लाठी चार्ज के तुरन्त बाद ट्रेड यूनियन के चार नेताओं नरसिंह मेहरा-अध्यक्ष, जीवन राम- मन्त्री, आनन्द सिंह- संयुक्त मन्त्री तथा जगन्नाथ यादव को धारा 332 (सरकारी कर्मचारियों पर पथराव) के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। दो अन्य व्यक्तियों के खिलाफ अभी वारंट हैं। तब से लेकर इस रपट के लिखे जाने तक इकाई के प्रांगण में वर्दीधारी तैनात हैं जिससे ताड़ीखेत का जनजीवन भी आतंकित है। हाँ, कर्मचारियों का वेतन अभी भी चकमक पत्थर बना हुआ है।

भारत में इस तरह की मात्र एक और इकाई एम.ई.पी.सी.लि. मदुरई में है। जब कि ऐसा अनुमान किया जाता है कि देश में ब्रौंज पाउडर की माँग की 80 प्रतिशत पूर्ति स्मगलिंग द्वारा होती है। ताड़ीखेत फैक्ट्री के उत्पादन में से 2 टन प्रतिमाह तो अकेले इण्डियन टोबैको कम्पनी, मुंगेर की खरीदती थी। लेकिन इसके बावजूद इकाई पाँच वर्षों में डेढ़ करोड़ के घाटे में क्यों आ गई है ? इसका जिम्मेदार कौन है ? इसकी पृष्ठभूमि में जाने पर कई विस्फोटक तथ्य सामने आये, इनमें सबसे पहला यह था कि इकाई में डेढ़ करोड़ घाटे की अफवाह के साथ ही लगभग एक करोड़ का घोटाला भी हुआ है, जिसमें से कम से कम 50 प्रतिशत का हिस्सा प्रबन्ध निदेशक ने स्वयं हड़पा है। इकाई के एक कर्मचारी ने बताया कि इस इकाई में आई एफ सी आई, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन उ.प्र., उ.प्र. वित्तीय विकास निगम (स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से) के अतिरिक्त बीस लाख रू. के शेयर सार्वजनिक तथा 10 लाख रू. की पूँजी अग्रवाल एसोशिएट्स की लगी हुई है। बाजार में उत्पादन की भीषण माँगों के बावजूद यह प्रतिष्ठान सदा उखड़ी ही हालत में रहा। कच्चे माल की सदा ही कमी रहती।

मजदूरों को सदा वेतन के मामले में परेशान रहना पड़ता, और सबके लिए किसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है तो वह है प्रबन्ध निदेशक। इकाई हेतु आठ टन ताम्बा प्रति माह सरकारी कोटे से होता था, जिसकी पूर्ति हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड व एमएमटीसी द्वारा की जाती थी। परन्तु कम्पनी के प्रबंध निदेशक की शह से इसमें से 50-60 प्रतिशत पहले ही इधर-उधर कर दिया जाता था और ताड़ीखेत मात्र 3-4 टन ताँबा प्रति माह ही पहुँचता था, जब कि कोटे से पूरा माल उठाया जाता था। स्टील अर्थारिटी ऑफ इंडिया लि. को 1979 में 10 टन शीट जिंक का 75,000 रू. भुगतान किया, पर वह माल इकाई तक नहीं पहुँचा।

लगभग तीन वर्ष पूर्व कम्पनी द्वारा नौ टन कच्चा ताँबा खरीदा गया था। जिसका मूल्य ढुलाई-भाड़े सहित लगभग ढाई लाख रूपया था। इसका अग्रिम भुगतान कर दिया गया था। पर आज तीन वर्ष से अधिक समय हो गया, वह ताम्बा कहाँ गया, कोई नहीं जानता। सिवा अग्रवाल साहब के और वे इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। इसी तरह हिल गुड्स ट्रांसपोर्ट के माध्यम से इकाई के निर्माण के समय एसोशिएट कम्पनी के माध्यम से 2900 बैग सीमेंट मँगवाया गया था। जिसका पूर्ण भुगतान कर दिया गया था। परन्तु इकाई में उसमें से 600 बैग ही माल पहुँचा। बाकी बाहर ही बेच दिया गया।

गत वर्ष इकाई का एक ट्रक, जिसमें ब्रौंज इनकट्स (ईंटें) लदी हुई थी, मेरठ में पकड़ा गया। अब इस मामले में बिना लाइसेंस के ईंटें बनाने व एकसाइज ड्यूटी की चोरी करने के आरोप में मेरठ की अदालत ने प्रतिष्ठान पर 2.75 लाख रू. का मुकदमा ठोका है। इस तरह का माल पहले भी कई बार प्रबंध निदेशक के आदेश पर बनाया और बाहर भेजा जाता रहा है।

कुमार ब्रौंज के अधिकारियों से प्रबंध निदेशक के अन्य कई निजी प्रतिष्ठानों, जैसे ‘कुमार एरासूल्स’ आदि में काम करवाया जाता था और उनका वेतन कुमार ब्रौंज के खातों से दिया जाता था। इकाई का मासिक वेतन व्यय लगभग 45,000 रू. था। जिसमें से लगभग 18,000 रू. ताड़ीखेत के 34 मजदूरों व 8 कर्मचारियों को दिया जाता था और शेष 27,000 रू. नई दिल्ली आसफ अली रोड़ स्थित मुख्य कार्यालय के आठ-दस अधिकारियों में बँटता था। यह नई दिल्ली ऑफिस भी किस तरह का फ्रॉड था, इसका पता इस बात से चलता है कि टाइपिस्ट जैसे पदों के होने पर भी वहाँ से सारा पत्र व्यवहार हाथ से किया जाता था।

मजदूर नेताओं के अनुसार उक्त तथ्यों के आधार पर यह निर्विवाद है कि इस काण्ड में लगभग एक करोड़ रूपये का घोटाला हुआ है। फैक्ट्री को घाटे में दिखाना एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। यद्यपि एफस आई व पिकप आदि के अधिकारी भी इस प्रतिष्ठान के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में हैं, परन्तु प्रबंध निदेशक के सामने उनका कोई मत्व नहीं है। सब जानते हुए भी वे कुछ कर पाने में असमर्थ हैं। एक स्थानीय श्रमिक नेता के अनुसार तो मि. अग्रवाल भारत के दस बड़े भ्रष्ट सफेदपोशों में से एक हैं, जिनकी गोटियाँ इस तंत्र में हर जगह फिट हैं, मजदूरों के सम्मुख एक बार मि. अग्रवाल ने कहा था, “मैंने आपके एम.पी. को खरीद रखा है। मैं किसी और को भी खरीद सकता हूँ। आपको जहाँ जाना हो, वहाँ शिकायत ले जाइये।”

कुमार ब्रौंज ट्रेड यूनियन ने जब क्षेत्रीय एम. पी. हरीश चन्द्र सिंह रावत से इस विषय पर स्पष्टीकरण देते हुए वस्तुस्थिति स्पष्ट करने का अनुरोध किया तो उन्होंने कुछ करने के बदले उल्टे ट्रेड यूनियन पर आरोप लगाया कि वह उन्हें बदनाम कर रही है।

एक मजदूर नेता ने यह तथ्य भी प्रकट किया, “साहब, हल्द्वानी लेबर कोर्ट में तारीख में न जाने का एक कारण यह भी था कि हमें अपनी जान का खतरा था। पहले इस सिलसिले में जब हम वहाँ गये थे तो हमें कुछ गुण्डों द्वारा धमकाया गया था, जो शायद अग्रवाल साहब के आदमी होंगे।”

इकाई की शुरूआत के समय प्रबंधकों द्वारा यह घोषणा की गई थी कि यह उद्योग 500 स्थानीय श्रमिकों को रोजगार देगा। परन्तु आज यहाँ 150 से घट कर मात्र कुल 42 मजदूर रह गये हैं और उन 42 मजदूरों की भी रोटी के लाले पड़े हैं।

आप लोगों ने आगे के बारे में क्या सोचा है ? जब तक काम नहीं बनेगा, आन्दोलन जारी रखेंगे। यदि कोई समझौता हो जाता है तो इकाई को हाल-फिलहाल पैसे की सख्त जरूरत है। और पैसा आ जाता है तो एक ईमानदार संचालक की जरूरत तो सदा रहेगी ही।

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