08 नवम्बर 1953 को एक साधारण परिवार में जन्में विजय जड़धारी स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद वह समाज सेवा के कार्य में सुंदरलाल बहुगुणा और धूम सिंह नेगी के साथ लग गए। विजय जी 35 वर्ष से एक गांव में रहकर पर्यावरण व सामाजिक कार्य में लगे हैं। सत्तर के दशक से लेकर आज तक उनकी सामाजिक और पर्यावरणीय कार्यों में कोई कमी नहीं आई। इसी कार्य को देखते हुए विश्व पर्यावरण दिवस 05 जून को दिल्ली में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पर्यावरणविद् व गांधीवादी कार्यकर्ता विजय जड़धारी को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के मौके पर 5 जून को दिल्ली में ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री जंयती नटराजन के हाथों दिया गया। पुरस्कार के रूप में उन्हें तीन लाख रुपये की धनराशि और चाँदी का कमल प्रतीक चिन्ह के रूप में दिया गया।
विजय जड़धारी 35 वर्ष से सुदूर गाँव में रहकर पर्यावरण व सामाजिक कार्य में जुटे हैं। उन्होंने पारंपरिक बीजों के संरक्षण का अनूठा कार्य किया है। सत्तर के दशक में चिपको आंदोलन से लेकर आज तक उनकी सक्रियता में कमी नहीं आई है।
टिहरी जनपद के चम्बा प्रखण्ड के जड़धार गाँव में 8 नवम्बर 1953 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे विजय जड़धारी ने स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत सुन्दरलाल बहुगुणा और धूम सिंह नेगी के साथ काम करते हुए की। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में जाकर उन्होंने लोगों को जंगलों का संरक्षण करने के लिए जागरूक किया। इस दौरान नरेन्द्रनगर में वनों की नीलामी का विरोध करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने शराबबंदी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और गाँव-गाँव जाकर लोगों को शराब के खिलाफ एकजुट करते रहे। पर्यावरण का संदेश गाँवों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने कई गाँवों में वन सुरक्षा समितियों का गठन करवाया। उनके इस प्रयास की बदौलत आज कई गाँवों में लोगों ने अपना खुद का जंगल पनपाया हुआ है।
सन अस्सी की शुरूआत में उन्होंने दूनघाटी के प्रसिद्ध सिस्यारूँखाला खनन विरोधी आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दो हजार के दशक में कटाल्डी के खनन विरोधी आंदोलन में उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किये गये, लेकिन वे बाइज्जत बरी हुए। इसी दौर में विजय जड़़धारी ने अपने साथियों के साथ पहाड़ के पारंपरिक लुप्त होते बीजों को बचाने और गैर रासायनिक खेती को बढ़ावा देने की जो मुहिम शुरू की, उसके दर्शन व विचार को आज विश्व भर में मान्यता मिली है। वे इसके लिए सरकार से भी जूझते रहे हैं। विजय जड़धारी ने सूचना के अधिकार का प्रचार-प्रसार करने और इसे आम आदमी के लिए प्रभावी बनाने का कार्य भी किया है। उन्होंने सूचना के अधिकार का प्रयोग कर कई घोटालों को उजागर किया। कृषि पर अब तक उनके कई उपयोगी शोध लेख व पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिलने पर विजय जड़धारी ने कहा कि यह सम्मान उन लोगों का सम्मान है, जो ईमानदारी से समाज के हित में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कार के रूप में मिली धनराशि में से अधिकांश का प्रयोग ‘बीज बचाओ आंदोलन’ के काम को आगे बढ़ाने में किया जायेगा।
पर्यावरणविद् व गांधीवादी कार्यकर्ता विजय जड़धारी को पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ के मौके पर 5 जून को दिल्ली में ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय पर्यावरण राज्यमंत्री जंयती नटराजन के हाथों दिया गया। पुरस्कार के रूप में उन्हें तीन लाख रुपये की धनराशि और चाँदी का कमल प्रतीक चिन्ह के रूप में दिया गया।
विजय जड़धारी 35 वर्ष से सुदूर गाँव में रहकर पर्यावरण व सामाजिक कार्य में जुटे हैं। उन्होंने पारंपरिक बीजों के संरक्षण का अनूठा कार्य किया है। सत्तर के दशक में चिपको आंदोलन से लेकर आज तक उनकी सक्रियता में कमी नहीं आई है।
टिहरी जनपद के चम्बा प्रखण्ड के जड़धार गाँव में 8 नवम्बर 1953 को एक साधारण किसान परिवार में जन्मे विजय जड़धारी ने स्नातक तक पढ़ाई करने के बाद अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत सुन्दरलाल बहुगुणा और धूम सिंह नेगी के साथ काम करते हुए की। उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में जाकर उन्होंने लोगों को जंगलों का संरक्षण करने के लिए जागरूक किया। इस दौरान नरेन्द्रनगर में वनों की नीलामी का विरोध करने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा। चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने शराबबंदी आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की और गाँव-गाँव जाकर लोगों को शराब के खिलाफ एकजुट करते रहे। पर्यावरण का संदेश गाँवों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने कई गाँवों में वन सुरक्षा समितियों का गठन करवाया। उनके इस प्रयास की बदौलत आज कई गाँवों में लोगों ने अपना खुद का जंगल पनपाया हुआ है।
सन अस्सी की शुरूआत में उन्होंने दूनघाटी के प्रसिद्ध सिस्यारूँखाला खनन विरोधी आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दो हजार के दशक में कटाल्डी के खनन विरोधी आंदोलन में उन पर झूठे मुकदमे दर्ज किये गये, लेकिन वे बाइज्जत बरी हुए। इसी दौर में विजय जड़़धारी ने अपने साथियों के साथ पहाड़ के पारंपरिक लुप्त होते बीजों को बचाने और गैर रासायनिक खेती को बढ़ावा देने की जो मुहिम शुरू की, उसके दर्शन व विचार को आज विश्व भर में मान्यता मिली है। वे इसके लिए सरकार से भी जूझते रहे हैं। विजय जड़धारी ने सूचना के अधिकार का प्रचार-प्रसार करने और इसे आम आदमी के लिए प्रभावी बनाने का कार्य भी किया है। उन्होंने सूचना के अधिकार का प्रयोग कर कई घोटालों को उजागर किया। कृषि पर अब तक उनके कई उपयोगी शोध लेख व पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिलने पर विजय जड़धारी ने कहा कि यह सम्मान उन लोगों का सम्मान है, जो ईमानदारी से समाज के हित में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कार के रूप में मिली धनराशि में से अधिकांश का प्रयोग ‘बीज बचाओ आंदोलन’ के काम को आगे बढ़ाने में किया जायेगा।
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