विदर्भ का पानी उद्योगों को देने की तैयारी

महाराष्ट्र विधानसभा में विधेयक पारित


छह साल पहले जल संसाधन नियामक प्राधिकरण कानून बना था, जिसके मुताबिक राज्य में खेती, उद्योग और पेयजल के लिए पानी की कीमतें तय करने के अलावा इस प्राधिकरण को पानी का न्यायोचित बंटवारा, आबंटन और उपयोग भी सुनिश्चित करना था।

मुंबई (ब्यूरो)। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अब महाराष्ट्र की नदियों, बांधों और नहरों पर कब्जा जमाने की फिराक में है। एनसीपी ने महाराष्ट्र के उस इलाके का पानी बिजलीघरों समेत तमाम दूसरे उद्योगों को देने का एक विधेयक विधानसभा में आधी रात को पारित करा लिया, जहां सूखे और दूसरी दिक्कतों के चलते अब तक सैकड़ों किसान आत्महत्या कर चुके हैं। ये इलाका है विदर्भ का और यहां के कांग्रेसी विधायकों को अब जाकर इसका पता चला है।

महाराष्ट्र में कांग्रेस किस तरह काम कर रही है, इसकी पोल एक बार फिर खुली है। हुआ ये है कि बीते हफ्ते गुरुवार को आधी रात के बाद करीब एक बजे विधानसभा में महाराष्ट्र जल संसाधन नियामक प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक 2011 पारित हो गया और कांग्रेसी दिग्गजों को इसकी हवा तक नहीं लगी। महाराष्ट्र कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि उस वक्त विधानसभा में गिनती के ही विधायक मौजूद थे और वे भी ज्यादातर एनसीपी के। एनसीपी के सुनील तटकरे राज्य के कृषि मंत्री है और ऊर्जा विभाग भी एनसीपी के ही उपमुख्यमंत्री अजित पवार के पास है। इस नए विधेयक के कानून बनने के बाद राज्य में पानी के वितरण के सारे अधिकार उस उच्चाधिकार समिति के पास चले जाएंगे, जिसका पदेन अध्यक्ष कृषि मंत्री होता है।

महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कोयले पर आधारित बिजली घरों को पानी मुहैया कराने के लिए राज्य की एक ताकतवर लॉबी अरसे से प्रयासरत है, इसके अलावा सिंचाई के लिए बने बांधों से उद्योगों के लिए पानी देने के प्रयासों के तहत पिछले साल एक अध्यादेश भी जारी किया गया था। मौजूदा विधेयक इसी अध्यादेश को कानूनी जामा पहनाने का प्रयास बताया जा रहा है।

राज्य में पानी के प्रबंधन के लिए छह साल पहले जल संसाधन नियामक प्राधिकरण कानून बना था, जिसके मुताबिक राज्य में खेती, उद्योग और पेयजल के लिए पानी की कीमतें तय करने के अलावा इस प्राधिकरण को पानी का न्यायोचित बंटवारा, आबंटन और उपयोग भी सुनिश्चित करना था। इस कानून के तहत सिंचाई या पेयजल की किसी परियोजना के पानी का औद्योगिक प्रयोग तभी हो सकता है जब इस पर सार्वजनिक सुनवाई हो और किसानों की आपत्तियों का वाजिब निस्तारण हो।

एक अनुमान के मुताबिक पिछले छह साल में 5300 करोड़ क्यूबिक फिट पानी सिंचाई परियोजनाओं से उद्योगों को दिया जा चुका है।

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