सारांश
वाष्पोत्सर्जन जल चक्र का महत्वपूर्ण घटक है। फसलों के चयन में इसकी मुख्य भूमिका होती है। अतः इसका सटीक आंकलन नितान्त आवश्यक है। भारत में वाष्पोत्सर्जन की दर शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्र में 4 मिमी प्रति माह से लेकर 6 मिमी प्रति माह आंकी गई है। वाष्पोत्सर्जन का आकलन करने के लिए मुख्यतया तापमान, वायु की गति, आर्द्रता और विकिरण आदि की आवश्यकता पड़ती है। वाष्पोत्सर्जन आंकलन हेतु कई विधियां (जैसे पैनमैने मोनटीथ, हरग्रीब्ज, अर्क, प्रीस्टले और टेलर, जैनसन विधि, इत्यादि) उपलब्ध हैं।
इस अध्ययन मे रुड़की क्षेत्र में उपलब्ध वेधशाला से 1987 से 2018 तक के आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन के अनुसार पैनमैन मोनटीथ विधि से वाष्पोत्सर्जन की औसत दर प्रति माह 4.6 मिमी (3.4 - 6.9), जबकि हरग्रीब्ज विधि के अनुसार वाष्पोत्सर्जन की औसत दर 4.3 मिमी (4.34-4.37)/प्रति माह है। अध्ययनों से पता चलता है कि पैनमैन मोनटीथ विधि सर्वोत्तम है।
Abstract
Evapotranspiration is an important component of hydrological cycle- It plays an important role for crop selection. Hence, accurate estimation of ET is essential. The ET varies from 4mm to 6mm per month for arid to semi & arid areas in India. The temperature, wind speed, humidity and solar radiation are mainly required for the estimation of the evapotranspiration rates. In this connection, various ET methods (viz., Penman Monteith, Hargreaves, Turc, Priestley and Tailor, Jenson etc.) are mainly available for estimation.
In this study, available meteorological data of Roorkee area for the year 1987 & 2018 has been used. In present study, the average monthly ET were estimated in the order of 4.6 mm (3.4 mm - 6-9 mm) and 4.3 mm (4.34 mm–4.37 mm) as per Penman Monteith and Hargreaves methods respectively. Penman Monteith method of ET estimation was found as best method in this study.
परिचय
वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन जलविज्ञान चक्र के प्राथमिक सार हैं। ये अपवाह की घटना के दौरान कम होते हैं और उपेक्षित हो सकते हैं। वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन का दौर अपवाह घटनाओं के बीच के समय में होता है, जो आमतौर पर लंबा होता है। इसलिए, इस समय अंतराल के दौरान ये सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। वाष्पीकरण और उत्सर्जन के संयुक्त प्रभाव को वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। समशीतोष्ण क्षेत्रों में बड़े भूमि भाग में, वार्षिक वर्षा का लगभग दो तिहाई हिस्सा वाष्पीकृत होता है और शेष एक तिहाई नदियों और भूजल के माध्यम से महासागरों में चला जाता है। शुष्क क्षेत्रों में वाष्पोत्सर्जन और भी अधिक महत्वपूर्ण होता है, जो वार्षिक वर्षा का 90 प्रतिशत या उससे अधिक हो सकता है। वाष्पोत्सर्जन न केवल वैश्विक जल संतुलन में प्रमुख भूमिका निभाता है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा संतुलन को भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसलिए, जल संसाधन प्रबंधन, सिंचाई शेड्यूलिंग और पर्यावरण मूल्यांकन (जेन्सेन इत्यादि, 1990) के लिए वाष्पीकरण की मात्रा का निर्धारण आवश्यक है। वास्तविक वाष्पोत्सर्जन (Eta) का आकलन करने के लिए पहले संभावित वाष्पीकरण (ETa) का अनुमान लगाना आवश्यक है। इसके अलावा, फसल गुणांक, जो फसल की विशेषताओं और स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं, का उपयोग Eto को Eta में बदलने के लिए किया जाता है।
एलन इत्यादि, 1998 के अनुसार ईटी0 को ‘‘एक काल्पनिक फसल जिसकी ऊंचाई (0.12 मीटर), कैनोपी प्रतिरोध (70 एस/एम) और अल्बेडो (0.23) हो तथा जो एक समान हरी घास के आवरण] जो अच्छी प्रकार उगा हुआ हो तथा जिसने भूमि को पूरी तरह से ढका हुआ हो तथा जिसमें पानी की कमी नहीं रही हो, से होने वाले वाष्पोत्सर्जन के सामान परिभाषित किया जा सकता है। संभावित वाष्पोत्सर्जन (ETo ) के आकलन के लिए साहित्य में कई विधियाँ उपलब्ध हैं, इन विधियों को आमतौर पर आवश्यक डेटा के आधार पर तापमान-आधारित, विकिरण-आधारित, पैन वाष्पीकरण-आधारित या संयोजन प्रकार के तरीकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है (सिंह, वी, पी, और जू, सी, वाई, (1997a), जू, सी, वाई, और सिंह, वी, पी, (2002), नंदगिरी, एल, एंड कूवर, जी.एम, (2006)। सारणी-1 में विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले औसत वष्पोत्सर्जन (mm/month) को दिया गया है।
सारणी-1 विभिन्न क्षेत्रों का औसत वस्पोत्सर्जन (mm/month)
वाष्पोत्सर्जन (ईटी) को वाटरशेड में पौधों की वृद्धि के परिणाम स्वरूप उत्पन्न वाष्प के रूप में परिभाषित किया गया है, वाष्पोत्सर्जन और उपभोग्य उपयोगों में वनस्पति द्वारा उत्सर्जन और मुक्त सतहों, मिट्टी, हिम, बर्फ और वनस्पति से वाष्पीकरण दोनों शामिल हैं। यहां वाष्पीकरण और उपभोग के उपयोग के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण होगा, उपभोग्य उपयोग वाष्पोत्सर्जन से भिन्न होता है, इसमें पौधे के ऊतकों को बनाने के लिए उपयोग किया जाने वाला पानी शामिल होता है, वाष्पोत्सर्जन में वाष्पीकरण और उत्सर्जन दोनों शामिल हैं।
संभावित वाष्पोत्सर्जन
संभावित वाष्पोत्सर्जन (PET) को उस स्थिति में वाष्पोत्सर्जन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जब सतह पर वनस्पति के लिए पर्याप्त पानी आपूर्ति उप्लब्ध हो।
वाष्पोत्सर्जन का मापन
मृदा एवपोरिमीटर और लाइसिमिटर
वाष्पोत्सर्जन को मृदा एवपोरिमीटर और लाइसीमीटर द्वारा, पानी बजट या हीट-बजट के तरीकों से, अशांत-प्रसार विधि द्वारा या मौसम संबंधी आंकड़ों के आधार पर विभिन्न अनुभवजन्य सूत्रों द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। मृदा एवपोरिमीटर और लाइसीमीटर का उपयोग विभिन्न भूमि सतहों से और खेती वाले पौधों के बीच मिट्टी से वाष्पोत्सर्जन ज्ञात करने में सहायक है। यदि उनकी स्थापना के दौरान सभी तकनीकी संबंधित आवश्यकताएं पूरी कर ली जायें, तो ये उपकरण सरल और सटीक हैं। वाष्पोत्सर्जन को मापने के लिए कोई मात्र एक मानक उपकरण उपलब्ध नहीं है।
मृदा एवपोरिमीटर और लाइसीमीटर को उनके संचालन की विधि के अनुसार निम्नानुसार वर्गीकृत किया जाता हैः
ए) वजन आधारित, जो पानी की मात्रा में परिवर्तन के लिए यांत्रिक तराजू का उपयोग करते हैं;
(बी) हाइड्रोलिक आधारित, जो वजन के हाइड्रोस्टेटिक सिद्धांत का उपयोग करते हैं;
(सी) वॉल्यूमेट्रिक आधारित, जिसमें पानी की मात्रा स्थिर रहती है और वाष्पोत्सर्जन को जोडे या हटाए गए पानी की मात्रा से मापा जाता है।
वाष्पोत्सर्जन ज्ञात करने की रिमोट-सेंसिंग विधि
हाल ही में, शोधकर्ताओं ने क्षेत्रीय वास्तविक वाष्पोत्सर्जन का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह डेटा का उपयोग शुरू कर दिया है। ईटी का अनुमान लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कई महत्वपूर्ण मापदंडों की रिमोट-सेंसिंग के किसी विशेष वेवबैंड में विद्युत चुम्बकीय विकिरण को मापने या पृथ्वी की सतह से उत्सर्जित, को मापकर किया जाता है। आने वाले सौर विकिरण, सतह अल्बेडो और सतह के तापमान का अनुमान एक ही उपग्रह माप से किया जा सकता है, मिट्टी के माइक्रोवेव गुणों (माइक्रोवेव उत्सर्जन और प्रतिबिंब या मिट्टी से बैकस्कैटर) के माप का उपयोग करके मिट्टी की नमी का अनुमान लगाया जा सकता है हालांकि, सतह के खुरदरेपन और वानस्पतिक आवरण जैसे कारकों के कारण इस तरह के मिट्टी के नमी के अनुमानों में अनिश्चितताएं हैं।
जल-बजट पद्धति
जल-बजट विधि का उपयोग वाष्पोत्सर्जन का अनुमान लगाने के लिए उस समय किया जाता है, जब जब वर्षण (P), धारा अपवाह (Q), गहरी रिसन (QSS), और भंडारण में परिवर्तन (ए), ज्ञात हो। समीकरण इस प्रकार हैः
ET = P – Q - Qss ± S S
ऊर्जा-बजट विधि
इस विधि (WMO, 1966) को वाष्पोत्सर्जन के अनुमान के लिए लागू किया जा सकता है, जब विकिरण संतुलन और मिट्टी में हीट फ्लक्स के बीच अंतर महत्वपूर्ण हो और मापन त्रुटियों से अधिक हो। यह विधि 10 दिनों से कम अवधि के लिए वाष्पोत्सर्जन के अनुमान के लिए लागू नहीं होती है। कम अवधि के लिए, ऊर्जा-बजट विधि द्वारा वाष्पोत्सर्जन का अनुमान लगाना मुश्किल है।
हरग्रीब्ज विधि
जहाँ, ET0 वाष्पोत्सर्जन, T तापमान, Ra , एक्स्ट्रा टेरेस्टिअल रेडिएशन
इस विधि द्वारा ज्ञात वाष्पोत्सर्जन को नीचे दिये चित्र-1 में दर्शाया गया है
चित्र-1 हरग्रीवस विधि द्वारा रुड़की क्षेत्र के लिए ज्ञात किया गया वाष्पोत्सर्जन मान
थोर्नटवेट विधि
जहाँ, ET (mm)- वाष्पोत्सर्जन, T- तापमान, N- सन शाइन डूरेसन (Hours) और K - माह
टर्क विधि
जहाँ, T mean औसत तापमान (oC), RH mean औसत आद्रता (%), R8 सोलर रेडिएशन (cal/cm2day). यदि Rs (MJ/m2 /day) ज्ञात है, तो R’s = Rs/0.041869
λ वाष्पन की गुप्त ऊष्मा (MJ/kg).
पेनमेन मोंटिथ विधि
वाष्पोत्सर्जन ज्ञात करने हेतु पेनमेन मोंटिथ विधि का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है (Allen et al., 1998)
जहाँ ET वाष्पोत्सर्जन (mm/day); Rn नेट रेडिएशन (MJ/m2/d); G मिटटी की हीट फ्लक्स डेन्सिटी (MJ/m2/d); T वायु का औसत तापमान (oC); u2 सतह से 2 मीटर की ऊंचाई पर वायु की गति (m/s); es सैचुरेटेड वेपर प्रेशर (kPa); ea वास्तविक वेपर प्रेशर (kPa); es-ea सैचुरेटेड वेपर प्रेशर डेफिसिट (kPa); Δ स्लोप ऑफ वेपर प्रेशर वर्सेज तापमान कर्व (kPa/oC). ϒ साईक्रोमेटिक कांस्टेंट (kPa/oC). अल्बेड़ो 0.23। इस विधि द्वारा ज्ञात वाष्पोत्सर्जन को नीचे (चित्र-2) में दर्शाया गया है।
उपसंहार
वैसे तो वाष्पोत्सर्जन ज्ञात करने हेतु काफी विधियाँ उप्लब्ध है. हरग्रीवस विधि को उस स्थिति में प्रयोग किया जाता है जब हमारे पास उस क्षेत्र का केवल तापमान उपलब्ध हो ऐसी स्थिति में यह विधि काफी उपयुक्त है। कई विधियाँ ऐसी है जिन्हें पर्याप्त डेटा न होने कि बजह से प्रयोग नहीं किया जा सकता। अध्य्यन से पता चलता है कि रुड़की क्षेत्र के लिए पेनमेन मोन्टीथ विधि और हरग्रीवस विधि काफी उपयुक्त है। पर्याप्त डेटा उप्लब्ध होने कि स्थिति में अन्य विधियों से तुलनात्मक अध्य्यन किया जाना आवश्यक है।
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