सारांश
जलवायु परिवर्तन के पूर्वानुमान के अनुसार निकट भविष्य में तापमान में वृद्धि एवं वर्षण अभिलक्षणों में परिवर्तन की संभावना है जिसके कारण जल चक्र के विभिन्न घटकों पर प्रभाव पड़ेगा। इसके फलस्वरूप समय एवं स्थान में जल की उपलब्धता में परितर्वन आयेगा। जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण उत्पन्न खतरों से निपटने क लिये तथा अनुकूल युक्तियों का विकास करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि बेसिन स्केल पर विस्तृत निदर्शन विश्लेषण किये जाएं जिससे भू सतह के ऊपर व नीचे जल चक्र के प्रवाह घटकों को आंकलित किया जा सके तथा विभिन्न जलवायु परिवर्तनों की स्थिति में भविष्य के घटकों का पूर्वानुमान किया जा सके। वर्तमान निदर्षणों में नदी बेसिन में जल संसाधन अवयवों पर जलवायु संवेदनशील प्राचलों तथा विभिन्न विकास गतिविधियों के प्रभाव का निर्धारण करना कठिन कार्य है। इसलिये नदी बेसिन में जलविज्ञानीय चक्र के विभिन्न घटकों के निर्धारण के लिये तथा विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल मांग के आकलन के लिये एक निदर्श के विकास की आवश्यकता महसूस की गई।
नदी बेसिन में जलविज्ञानीय चक्र के विभिन्न घटकों के आंकलन के लिये एक संकल्पनात्मक वितरित जल संतुलन निदर्श का विकास किया गया है। यह निदर्श नदी बेसिन में भूमि उपयोग, मृदा किस्म, वर्षा वाष्पोत्सर्जन, भू-आकृतिक अभिलक्षण, फसल उत्पादन, सिंचाई विकास, भूजल अवस्था, नदी तथा हाइड्रोलिक संरचनाओं की स्थलिक विविधताओं को शामिल करता है। निदर्श से स्थिति आँकड़ों को जोड़ने के लिये जी आई, एस. का अनुप्रयोग किया गया। बेसिन को समान आकार के ग्रिड में विभाजित किया गया तथा निदर्श जल विज्ञानीय चक्र के विभिन्न घटकों, जैसे कि वष्पोत्सर्जन, भूमि पर प्रवाह भूजल पुनः पूरण तथा मृदा जल अवयव (मासिक समय पर) का प्रत्येक ग्रिड के लिये गणना करता है। निदर्श बेसिन में कुल जल उपलब्धता, विभिन्न उपयोगों के लिये उपभोग किया गया जल, तथा नदी बेसिन में विभिन्न हाइड्रोलिक संरचनाओं में मृदा जल क्षेत्र में तथा भूजल जलदायी स्तर में जल संचयन के बारे में भी बताता है। प्रस्तुत पत्र विकसित निदर्श का संक्षिप्त विवरण देता है। इस निदर्श का उपयोग करते हुए नदी बेसिन में विभिन्न भूतकाल, वर्तमान एवं भविष्य की जलविज्ञानीय स्थितियों का अनुमान करना सम्भव है।
Abstract
A number of climate change scenarios predict rise in temperature and change in precipitation characteristic in the near future which may affect various components of water cycle, thereby changing the availability of water in space and time. To cope up with the emerging challenges due to climate change impact on water resource and develop adaptation strategies, it is important to carry out detailed modeling analysis at basin scale so that the current components of water cycle at/below the land surface could be evaluated and future components could be predicted in the light of various climate change scenarios. In the present modeling approaches, it is difficult to account for the effect of various developmental activities and climate sensitive parameters on water resources scenario in a river basin. Therefore, a need was felt to develop a detailed model to assess various components of the hydrological cycle in a river basin and to estimate the demands for various purposes.
To evaluate various components of the hydrological cycle at the basin scale, a conceptual spatially distributed water balance model has been developed. In this model, focus is given to incorporate spatial variation of land-use, soil type, rainfall, evapo-transpiration, physiographic characteristics, cropping pattern, irrigation development, groundwater conditions, river network and hydraulic structures in a river basin. GIS is employed to link the spatial data with the simulation model and to project the model results in map form easy visualization. The basin is divided into grids of uniform size (1km) and model computes various components of hydrologic cycle such as actual evapo-transpiration overland flow, groundwater recharge, and residual soil water content at monthly time step for each grid. The model brings out total water availability in the basin, water consumed by different uses; and water storage in different hydraulic structures, in soil water zone, and in groundwater aquifer in a river basin. The present paper gives a brief description of the developed model. Using this model, it is possible to simulate various past, present or future hydrological scenarios in a river basin.
प्रस्तावना
समय के साथ हम महसूस कर रहे हैं कि हमारी जल आपूर्ति की गुणता एवं मात्रा, दोनों की सीमाएं हैं जल के बहुत उपयोग हैं सभी प्रतिभागियों की आवश्यकता को समय एवं स्थान के अनुसार संतुष्ट करना एक कठिन कार्य है। इसिलिये नदी बेसिन में जल एवं संबंधित पर्यावरण के प्रभावी प्रबन्धन के लिये एक समेकित नियोजन की आवश्यकता है।
समेकित जल संसाधन नियोजन एवं प्रबंधन के लिये संगणक निदर्श एक महत्त्वपूर्ण युक्ति है जो तीव्र गणना सरल आँकड़ा प्रबंधन तथा वैकल्पिक जल नीति के बारे में निष्कर्ष निकालने में सहायक होता है।
वर्तमान में बेसिन में उत्पन्न जल संबंधी अथवा भविष्य में परिवर्तन से पड़ने वाली विभिन्नताओं में स्थलिक एवं कालिक परिवर्तनों के प्रभावों का निर्धारण करना कठिन कार्य है। उदाहरण के लिये मौसम विज्ञानीय प्राचल जैसे कि तापमान वायु एवं आर्द्रता में परिवर्तन बेसिन से वाष्पोत्सर्जन हानि को प्रभावित करता है जो फसल जल आवश्यकता एवं मृदा जलाशय में आर्द्रता संचयन को प्रभावित करता है। बेसिन में कुल जल संसाधनों के निर्धारण में भूजल को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है। जल उपलबधता आंकलन के लिये निस्सरण को आधारभूत इकाई माना गया है जो विभिन्न बेसिन प्राचलों जैसे कि जनसंख्या, औद्योगिकीकरण, सिंचित क्षेत्र में परिवर्तन, सिंचाई क्षमता के सुधार, भूजल उपलब्धता एवं विकास, भूमि उपयोग में परिवर्तन (वन क्षेत्र शहरी क्षेत्र बंजर भूमि इत्यादि में परिवर्तन), क्षेत्र की जलवायु में परिवर्तन (तापमान वर्षण इत्यादि में परिवर्तन), हाइड्रोलिक संरचनाओं का निर्माण इत्यादि से प्रभावित होती है।
इसलिये नदी बेसिन में उपलब्ध जल संसाधनों के निर्धारण तथा विभिन्न उपयोगों के लिये जल मांग के आंकलन के लिये विस्तृत स्थलिक एवं कालिक निदर्श के विकास की आवश्यकता अनुभव की गई। इस शोध पत्र में रा.ज.सं. द्वारा जल उपलब्धत आंकलन के लिये विकसित निदर्श का विवरण दिया गया है। इस निदर्श का उपयोग कर नदी बेसिन में भूत वर्तमान एवं भविष्य की जलविज्ञानीय स्थिति का अनुमान किया जा सकता है तथा नदी बेसिन की जल संबंधी विविधताओं पर जलवायु परिवर्तन के भविष्य में संभावित प्रभावों का निर्धारण किया जा सकता है।
निदर्श की व्याख्या
इस निदर्श का उद्देश्य नदी बेसिन में कालिक एवं स्थलिक जल संसाधन उपलब्धता एवं मांग का अनुमान करना है। चूँकि नदी बेसिन निस्सरण बढ़त से कारकों से प्रभावित होता है इसलिये जल उपलब्धता निर्धारण के लिये वर्षा का आधारभूत इकाई लिया गया है। इसका उद्देश्य जलविज्ञानीय चक्र के विभिन्न घटकों का अनुमान करना है ताकि भूत, वर्तमान, तथा भविष्य की विभिन्न स्थितियों के सापेक्ष जल उपलब्धता तथा मांग का मूल्यांकन किया जा सके। निदर्श के विशिष्ट अभिलक्षण निम्न प्रकार हैंः
1. बेसिन को सामान आकार के ग्रिड (1 किमी) में विभाजित किया गया तथा प्रत्येक ग्रिड के लिये मृदा आर्द्रता की गणना की गई। उपग्रह आँकड़ों IRS अथवा NOAA) का उपयोग नदी बेसिन में स्थलिक भूमि उपयोग के निर्धारण के लिये किया गया। स्थलिक वितरित निदर्शन के लिये जीआईएस का उपयोग किया गया।2. निदर्श का विकास प्रतिदिन समय पद के लिये किया गया। बेसिन में मृदा निदर्शन भूजल पुनः पूरण आंकलन के लिये किया गया। निदर्श एक माह के लिये प्रचालित होता है तथा माह के दौरान जल उपलब्धता तथा विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल मांग का आंकलन करता है। विभिन्न जल आवश्यकताओं मे घरेलू एवं औद्योगिक जल आवश्यकता, सिंचाई आवश्यकता, विभिन्न भू-उपयोगों से वाष्पोत्सर्जन आवश्यकता तथा बेसिन में आस-पास या बाहर से जल स्थानान्तरण शामिल है।
3. निदर्श बेसिन के प्रत्येक ग्रिड में जल विज्ञानीय चक्र के विभिन्न घटक, जैसे कि भूमि पर प्रवाह, वास्तविक वाष्पोत्सर्जन मृदा आर्द्रता संचयन तथा भूजल पुनः पूरण की गणना करता है। प्रत्येक ग्रिड में भूमि पर प्रवाह उत्पादन के आंकलन के लिये तथा विभिन्न ग्रिडों में प्रवाह दिशा पर निर्भर नदी में इसके प्रवाह के आंकलन के लिये एससीएस विधि का उपयोग किया गया है।
4. मानक रेखीय प्रचालन नीति का उपयोग करते हुए विभिन्न जलाशयों/वियरों का प्रचालन किया गया है।
5. बेसिन में विभिन्न माह के लिये संशोधित भूजल अवस्थाओं की गणना के लिये एक भूजल अनुसार निदर्श (विजुअल मॉडलों) को इस निदर्श के साथ जोड़ा गया। जी आई एस में भूजल सतह को बनाया जाता है तथा प्रत्येक ग्रिड में विभिन्न आवश्यकताओं के लिये भूजल उपलब्धता आंकलन किया गया है।
6. निदर्श के समायोजन एवं सत्यापन में बेसिन में विभिन्न मापन स्थलों पर अपवाह आयतन का मिलान करना तथा प्रेक्षण कुपों में भिन्न समय अंतरालों पर प्रेक्षित एवं अनुकरित भूजल स्तर की तुलना करना है।
7. निदर्श का निम्न में उपयोग किया जा सकता हैः बेसिन जल संसाधनों पर भूमि उपयोग परिवर्तन, फसल प्रवृत्ति में परिवर्तन तथा जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव को देखना, जल के अंतः बेसिन स्थानान्तरण जैसे प्रबंधन विकल्पों का विश्लेषण करना, वर्षा तथा मौसम विज्ञानीय अभिलक्षणों में परिवर्तन की विभिन्न जलवायु स्थितियों का विश्लेषण करना आदि।
आवश्यक आँकड़े
बेसिन का जल संतुलन विश्लेषण करने के लिये निदर्श द्वारा विभिन्न प्रकार के स्थलिक, लक्षणिक एवं गतिय आँकड़ों को समेकित किया जाता है सुदूर सम्वेदी विश्लेषण (भूमि उपयोग एवं फसल प्रकार) तथा जी.आई.एस. में मानचित्रों के अंकीयकरण से भू संदर्भित मानचित्रों के रूप में स्थलिक सूचना प्राप्त की जाती है जिनमें शामिल है: भूमि उपयोग मानचित्र (पाँच भूमि उपयोग लिये गए) वन, वृक्षण, सिंचित एवं असिंचित कृषि भूमि, बंजर भूमि एवं जलस्रोत। फसल मानचित्र मृदा मानचित्र एफ बेसिन में मुख्य शहरों की स्थिति टोपोग्राफिक विवरण, डी.ई एम प्रवणता, भूजल स्तर मानचित्र नदी। तंत्र मानचित्र, जे संचयन/डाइवर्जन संरचना, जल फैलाव मानचित्र एवं सेच्य क्षेत्र मानचित्र, सिंचाई स्रोत मानचित्र, सतही जल अथवा भूजल एवं जलदायी स्तर अभिलक्षण संचयन गुणाक एवं प्रसारणता मानचित्र।
विभिन्न प्रकार के लक्षणिक आँकड़े निम्न सूचनाओं पर आधारित हैं फसलें मृदा, हाइड्रोलिक संरचना, नदी तंत्र मापन स्थल एवं मानकों से संबंधित विभिन्न प्रकार की सूचनाएं।
गतिय सूचनाएं जो प्रतिदिन परिवर्तित होती रहती है। तथा निदर्श को बाहर से आपूर्ति देती हैं, में शामिल हैं : विभिन्न वर्षा मापी स्थल पर वर्षा तथा सापेक्ष वाष्पोत्सर्जन। इसके अतिरिक्त विभिन्न मापित स्थलों पर प्रेक्षित मासिक जल प्रवाह तथा बेसिन में भिन्न प्रेक्षण कूपों में भूजल स्तर का उपयोग निदर्श के सत्यापन एवं समायोजन के लिये किया जाता है। विभिन्न उप-बेसिनों के लिये प्राचलों के तीन सेट निश्चित होते हैं:
1. प्रत्येक उप-बेसिन के लिये भिन्न-भिन्न भूमि उपयोग के CNFAC निश्चित होते हैं जो CN मान को व्यवस्थित (विशिष्ट रेंज के अंदर) करते हैं जिससे कि प्रेक्षित एवं अनुकारित प्रवाह का मिलान किया जा सके।
2. यदि CNFAC प्रेक्षित सतही प्रवाह को संतोषजनक रूप से उत्पादित नहीं कर सकती तो उपबेसिन के परिणामों को संशोधित करने के लिये प्रत्येक उप-बेसिन के लिये SBFAC निश्चित होते हैं, तथा
3. प्रत्येक उप-बेसिन के लिये भिन्न-भिन्न माह के लिये GWFAC निश्चित होते हैं तथा ये भिन्न मापन स्थल पर आधार प्रवाह में भूजल योगदान का आंकलन करते हैं।
विश्लेषण क्रम
नदी बेसिन में भिन्न-भिन्न जल संबंधी गतिविधियों को निदर्श में सात मुख्य मॉड्यूल द्वारा निरूपित किया जाता है। इन मॉड्यूलों में शामिल हैं : भूमि पर प्रवाह उत्पादन मॉड्यूल, डी एवं आई. मांग आंकलन मॉड्यूल, मृदा जल संतुलन मॉड्यूल, भूजल पुनः पूरण/निकासी मॉड्यूल तथा well मॉड्यूल, भूमि पर प्रवाह मॉड्यूल एस.सी.वक्र संख्या विधि उपयोग करते हुए प्रत्येक ग्रिड के भूमि पर उत्पादि प्रवाह गहराई की गणना करता है। यह विधि ग्रिड में वर्षा की मात्रा, भूमि उपयोग मृदा किस्म टोपोग्राफी तथा पिछली आर्द्रता अवस्था पर निर्भर करती है।
निदर्श का विस्तृत विवरण गोयल 2008 से प्राप्त किया जा सकता है। निदर्श के गणनात्मक पदों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया गया है।
1. स्थलिक आँकड़ा आधार का विकास ILWIS GIS तन्त्र में किया गया तथा GIS आँकड़ों को ASCII फाइल्स के रूप में भेजा गया। निदर्श विकल्पों एवं विशिष्ट आँकड़ों को पढ़ता है। प्रत्येक ग्रिड के लिये प्रत्येक जिले में शहरी/ग्रामीण ग्रिड का उपयोग कर शहरी/ग्रामीण जनसंख्या का निर्धारण किया जाता है। अधिप्रवाह आवाह क्षेत्र में भूजल संचयन पर निर्भर, प्रत्येक मापन स्थल पर आधार प्रवाह योगदान का निर्धारण किया जाता है। माह के प्रथम दिन प्रत्येक ग्रिड में आरिम्भक मृदा आर्द्रता मात्रा की गणना की जाती है तथा आँकड़ा फाइल से विभिन्न हाईड्रोलिक संरचनाओं में आरम्भिक संचयन पढ़ा जाता है। सापेक्ष सप्ताह का अभिनिर्धारण किया जाता है तथा इस सप्ताह में विभिन्न फसलों की जड़ गहराई तथा फसल कारकों का निर्धारण किया जाता है।
2. डी.एवं आई. मॉड्यूल कार्य करता है तथा भिन्न-भिन्न ग्रिडों पर जल आपूर्ति आवश्यकता की गणना की जाती है प्रत्येक ग्रिड मेंं इन आवश्यकता की पूर्ति हेतु की गई पम्पिंग डी एवं आई उपयोग से सतही निकासी के कारण उत्पादित भूमि प्रवाह तथा विभिन्न जलाशयों से डी एवं आई मांग की गणना की जाती है।
3. भूमि ऊपर प्रवाह मॉड्यूल का प्रयोग करते हुए प्रत्येक ग्रिड में वर्तमान एवं पाँच दिन पहले की वर्षा मृदा किस्म, भूमि उपयोग, प्रवणता के सापेक्ष अधिक वर्षा के कारण भूमि पर प्रवाह का निर्धारण किया जाता है।
4. इसके बाद मृदा जल संतुलन मॉड्यूल को अनुप्रयोग करते हुए गणना की जाती है। फसल ग्रिड के लिये तात्कालिक दिवस के फसल अभिलक्षण का निर्धारण कर प्रभावी मृदा गहराई (फसल जड़ गहराई) का आकलन किया जाता है। उसके पश्चात आरम्भिक आर्द्रता को पढ़ा जाता है। यदि भूजल स्तर जड़ क्षेत्र के अंदर होता है तो भूजल योगदान की गणना की जाती है। उसके पश्चात जड़ गहराई एवं मृदा किस्म के सापेक्ष भिन्न समान जल मात्रा का आंकलन किया जाता है तथा PET एवं सिंचाई से कोई प्राप्ति न मानकर जल संतुलन की गणना की जाती है। यदि जल की अन्तिम मात्रा न्यूनतम से नीचे रहती है तो जल न्यूनता स्थिति में होती है तथा सापेक्ष ह्रासित वाष्पोत्सर्जन (AET) का निर्धारण किया जाता है। इसके पश्चात भूजल पुनःपूरण (यदि कोई है) संतृप्त-अधिकृत भूमि पर प्रवाह (यदि कोई है) तथा सिंचाई मांग (फसल ग्रिड के लिये) का निर्धारण किया जाता है।
5. इसके बाद भूमि पर उत्पन्न प्रवाह को प्रवाह दिशा के अनुसार नदी व जलाशयों तक एकत्रित किया जाता है।
6. प्रत्येक ग्रिड तथा भिन्न हाइड्रोलिक संरचनाओं के सेच्च क्षेत्र सीमाओं पर सिंचाई मांग को जानने के पश्चात भिन्न जलाशयों से कुल सिंचाई मांग आंकलन के लिये सिंचाई आवश्यकता आंकलन किया जाता है। इसके पश्चात जलाशय प्रचालन मॉड्यूल को चलाया जाता है नदी खण्ड के एकदम अधिप्रवाह से आरम्भ कर नदी तंत्र निरंतरता के अनुसार प्रत्येक नदी खण्ड में प्रवाह को निर्धारित किया जाता है। यदि किसी खण्ड पर जलाशय स्थित होता है तो वहाँ जलाशय प्राचलन मॉड्यूल चलाया जाता है।
7. हाइड्रोलिक संरचना जैसे कि नदी अन्तःप्रवाह पेरीफेरल अन्तःप्रवाह, जलाशय पर वर्षा, जल आयात, वाष्पन, हानि डी एवं जल निर्यात इत्यादि के विभिन्न जल संतुलन घटकों को प्रतिदिन सारणी के प्रस्तुतीकरण के लिये संचित किया जाता है। इन आँकड़ों को मासिक परिणामों के प्रस्तुतीकरण हेतु माह के लिये जोड़ा जाता है।
8. तत्पश्चात सतही जल आपूर्ति (डी एवं आई तथा सिंचाई आवश्यकताओं के लिये) तथा शेष आवश्यकता की पूर्ति के लिये भूजल की पूर्ति के उद्देश्य से सतही जल एवं भूजल एलोकेशन मॉड्यूल का प्रयोग किया जाता है।
9. जलाशयों के प्रचालन तथा नदी प्रवाह को जोड़ने के पश्चात विभिन्न मापन स्थलों पर प्रतिदिन रिकार्ड प्रस्तुतीकरण के लिये प्रतिदिन प्रवाह को संचित किया जाता है। प्रत्येक मापन स्थल पर मासिक प्रस्तुतीकरण के लिये पूरे माह के लिये प्रवाह आँकड़ों को एकत्रित किया जाता है। प्रत्येक ग्रिड में अंतिम मृदाजल अवयवों तथा विभिन्न हाइड्रोलिक संरचनाओं में संचयन अवयवों को अस्थायी फाइल में लिखा जाता है तथा अगले दिन के लिये पुनः उपयोग में लाया जाता है।
10. माह के सभी दिनों के लिये गणना की जाती है तथा निदर्श परिणामों को भिन्न फाइलों में स्टोर किया जाता है। ग्रिड के अनुसार मासिक भूजल पम्पिंग एवं पुनःपूरण जानने के पश्चात VMOD के लिये पम्पिंग/पुनःपूरण फाइल तैयार करने के लिये WELL मॉड्यूल उपयोग में लाया जाता है। VMOD में मासिक पम्पिंग/पुनः पूरण को आयात कर अगले माह के लिये संशोधित भूजल स्तर निर्धारित किये जाते हैं।
11. निदर्श सत्यापन के लिये भिन्न उप-आवाह क्षेत्र के मापन स्थलों के लिये सतही प्रवाह कारक (CNFAC एवं SBFAC) एवं भूजल कारक (GWFAC) के समायोजन की आवश्यकता होती है जिससे भिन्न मापन स्थलों पर प्रेक्षित एवं अनुसरित प्रवाह का तथा बेसिन में भिन्न प्रेक्षण कूपों पर प्रेक्षित एवं अनुकरित भूजल स्तर का मिलान किया जा सके।
परिणाम एवं व्याख्या
निदर्श के परिणाम चित्रों एवं सारणी के रूप में मिलते हैं। निदर्श द्वारा तैयार किये गये इमेज चित्रों में निम्न शामिल हैं : 1. माह के अंत में अन्तिम मृदा जल मात्रा 2. माह में भूजल पम्पिंग एवं पुनः पूरण 3. मासिक वास्तविक वाष्पोत्सर्जन। इन मानचित्रों को ILWIS GIS सॉफ्टवेयर में ले जाकर प्रदर्शित किया जा सकता है।
निदर्श द्वारा प्रतिदिन एवं मासिक समय पर सारणी में परिणाम तैयार किये जाते हैं। प्रतिदिन तैयार की गई सारणियों में शामिल हैं 1. बेसिन में भिन्न मापन स्टेशनों पर नदी प्रवाह 2. बेसिन में भिन्न हाइड्रोलिक संरचनाओं की कार्यकारी सारणी 3. भिन्न उप-बेसिनों के लिये जलविज्ञानीय विवरण जिनमें शामिल है : घरेलू एवं औद्योगिक मांग एवं आपूर्ति, भिन्न भूमि उपयोग के लिये जलविज्ञानीय विवरण, सिंचाई मांग एवं आपूर्ति, उप-बेसिन में रुका हुआ अपवाह अथवा बेसिन/उप-बेसिन से प्रवाहित अपवाह तथा भिन्न जलाशयों के परिणाम।
निदर्श परिणामों के विश्लेषण द्वारा बेसिन में जल उपलब्धता एवं मांग की संपूर्ण स्थिति प्राप्त की जा सकती है दीर्घ अवधि के लिये निदर्श के प्रचालन द्वारा विभिन्न जल संसाधन प्रबंधन योजनाओं की अविरतता की समीक्षा की जा सकती है। विभिन्न कारकों के प्रभाव का विश्लेषण करने के लिये निदर्श का उपयोग किया जा सकता है इसमें शामिल हैं 1. भूमि उपयोग में परिवर्तन (वन क्षेत्र, उपजाऊ क्षेत्र, तथा बंजर भूमि में वृद्धि अथवा ह्रास 2. क्षेत्र में फसल में परिवर्तन, 3. जल उपयोग एवं क्षमता में परिवर्तन 4. नवीन जल संसाधन परियोजनाओं का निर्माण अथवा उपलब्ध परियोजना अभिकल्प में परिवर्तन, 5. जनंसख्या में परिवर्तन तथा बेसिन के जल संसाधन पर सापेक्ष डी एवं आई मांग। निदर्श किसी दी गई जलवायु परिवर्तन स्थिति के सापेक्ष भविष्य की स्थिति का पूर्वानुमान कर सकता है। स्थलिक अथवा कालिक वर्षा प्रवृत्ति में परिवर्तन अथवा तापमान अथवा आर्द्रता उतार-चढ़ाव के कारण सन्दर्भित वाष्पोत्सर्जन में परिवर्तन।
तापी नदी बेसिन पर निदर्श का अनुप्रयोग
इस अध्ययन में विकसित नदी बेसिन अनुकार निदर्श का प्रयोग तापी नदी बेसिन में किया गया जो भारत की पश्चिम प्रवाहित नदियों में दूसरी सबसे बड़ी है तथा इसका आवाह क्षेत्र मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा गुजरात राज्य में स्थित है। उकई बाँध तक तापी बेसिन का कुल आवाह क्षेत्र 62,225 वर्ग किमी है। बेसिन का लगभग 80 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में स्थित है। सुदूर संवेदी एवं जीआईएस विश्लेषण का उपयोग कर ILWIS GIS में पन्द्रह स्थलिक आँकड़ा स्तर तैयार किये गये। बेसिन का DEM तथा अन्य टोपोग्राफिक लक्षण SRTM आँकड़ों से प्राप्त किये गये। बेसिन सीमा प्रवणता प्रवाह दिशा निकासी तंत्र तथा उप-बेसिन से संबंधित मानचित्र की व्युत्पत्ति ILWIS के “DEM हाइड्रो-प्रक्रमण’’ मॉड्यूल के उपयोग द्वारा तैयार किये गये।
थिसन पॉलीगन के विकास के लिये 55 वर्षा स्टेशनों तथा 8 ET स्टेशनों को सम्मिलित किया गया। टोपोशीट्स एवं लैंडसेट ईमेज का उपयोग कर बेसिन में 11 जिलों तथा 192 शहरों का परिसीमन किया गया। फसल तथा भिन्न जलाशयों के सिंचाई योग्य सेच्य क्षेत्र की व्युत्पत्ति के लिये बहु-कालिक NOAA AVHRR आँकड़े (1 किमी.) तथा तापी बेसिन में CCA सूचनाओं का उपयोग किया गया। बेसिन में शहरों की सीमा तथा भिन्न जलाशयों की व्युत्पत्ति के लिये बेसिन के लैंडसेट (TM संवेदक) आँकड़ों का उपयोग किया गया। लैंडसेट TM इमेज का उपयोग करते हुए कुल 77 जलाशयों डायवर्जन संरचनाओं को सम्मिलित किया गया। मृदा मानचित्र NBSSLUP से प्राप्त किये गये तथा मृदा को 4 जलविज्ञानीय श्रेणियों में विभाजित किया गया। यूरेशिया के लिये USGC भूमि उपयोग/भूमि आवरण मानचित्र से बेसिन के लिये भूमि उपयोग मानचित्र प्राप्त किया गया।
फसल, मृदा, मापित स्थल, विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किये गये। कुछ वर्षों (1992-96) के वर्षा के आँकड़े CWC से प्राप्त किये गये। औसत मौसम विज्ञानीय प्राचलों का उपयोग करते हुए CROPWAT निदर्श द्वारा औसत वाष्पोत्सर्जन गहराई की गणना की गई। निदर्श के लिये आँकड़ा तैयार करना काफी मुश्किल कार्य था परंतु तापी बेसिन के लिये यहाँ संक्षिप्त में विविरण दिया गया है। निदर्श के विस्तृत अनुप्रयोगों के लिये कृपया गोयल आदि 2008 के संदर्भ का अवलोकन करें।
उकई बाँध तक संपूर्ण बेसिन के लिये कार्य 1992-96 अवधि के लिये 55 स्टेशनों के वर्षा आँकड़ों का उपयोग कर निदर्श का अनुप्रयोग किया गया तथा निदर्श प्रचालनों को पुनः शोधित किया गया जिससे विभिन्न मापन स्थलों पर प्रेक्षित एवं अनुकारित प्रवाह में विचारणीय समानता आ सके। वर्ष 1992-93 के लिये 5 मुख्य मापन स्थलों पर प्रेक्षित एवं अनुकारित प्रवाह चित्र 2 (a-e) में दर्शाये गये हैं। यद्यपि आँकड़ों के कुछ सैटो में बहुत सी कल्पनाऐं की गई हैं। (वार्षिक औसत ET, SLOP नीति के अनुसार जलाशय प्रचालन, फसल इत्यादि) फिर भी परिणामों में विचारणीय समानता देखी गई है।
सीमाएं एवं कार्य
यह निदर्श विकास एवं सुधार के पथ पर निरन्तर अग्रसर है। वर्तमान निदर्श की कुछ सीमाएं हैं जिनको परिभाषित किया जाना है इनमें से कुछ हैं : 1. भूमि पर प्रवाह एवं चैनल प्रवाह का मार्गाभिगमन, 2. जलाशय का रूल वक्र आधारित प्रचालन जिससे भिन्न-भिन्न प्रचालन नीतियों को समायोजित किया जा सके तथा 3. वैद्युत उर्जा अनुकार का विकल्प जो जलाशय के लिये आवश्यक सूचनाओं में वृद्धि करता है। इसके अतिरिक्त वर्तमान में जलाशय के लिये उदविक्षेप क्षेत्र वक्र को रेखीय के रूप में लिया जाता है जिसको प्रत्येक जलाशय के लिये विशिष्ट उदविक्षेप क्षेत्र क्षमता सारणी द्वारा सुधारा जा सकता है। विकास की अगली अवस्थाओं में जल गुणता को भी जोड़ा जा सकता है।
नदी बेसिन में निदर्श के अनुप्रयोग के लिये आँकड़ों की सीमाओं के कारण भूजल अनुकार नहीं किया जा सका। निदर्श को अन्य अच्छे आँकड़ों आधार वाले नदी बेसिनों पर अनुप्रयोग करने का प्रयास किया जा रहा है।
निष्कर्ष
नदी बेसिन में जल संसाधनों के विभिन्न घटकों (वर्षा, वाष्पों, घरेलू आवश्यकता, जलाशय इत्यादि) को परस्पर जोड़ने के लिये बेसिन के वास्तविक प्रतिनिरूपण के लिये उपयुक्त चित्रण विवरण (स्थलिक एवं कालिक) को शामिल करने के लिये तथा हमारे देश में जल संसाधन उपलब्धता एवं आवश्यकता निर्धारण में आँकड़ों की उपलब्धता की सीमाओं के हल के उद्देश्य के साथ राजसं ने एक स्थलिक वितरित नदी बेसिन अनुकार निदर्श का विकास किया। निदर्श प्रतिदिन आधार पर प्रचलित होता है तथा विभिन्न जलविज्ञानीय परिवर्तनशील प्राचलों (वर्षा, वाष्पोत्सर्जन, भूजल योगदान, अपवाह, मृदा आर्द्रता स्थिति आदि) का मात्रात्मक परिणाम बताता है तथा उप बेसिन स्केल पर जल की मांग एवं आपूर्ति विभिन्न हाइड्रोलिक संरचनाओं की कार्यकारी सारणी तथा विभिन्न नदियों एवं सरिताओं में उत्पादित अपवाह बताता है। निदर्श द्वारा यह संभव है कि बेसिन के बाहर से जलाशय अथवा नदी खण्ड में जल भेजा जाए अथवा बेसिन में किसी सरिता/जलाशय में किसी अन्य सरिता/जलाशय को लिंक के द्वारा जल स्थानांतरित किया जा सके। ऐसा माना जाता है कि बेसिन समान आकार के ग्रिड इकाइयों में विभाजित हैं प्रत्येक ग्रिड के लिये जलविज्ञानीय विश्लेषण किया गया है। निदर्श को ILWIS (एकीकृत भूमि एवं जल सूचना तंत्र) GIS तन्त्र से जोड़ा गया।
प्रत्येक ग्रिड में भूमि पर प्रवाह जो प्रवाह दिशा के आधार पर नदी से माध्यम ग्रिड द्वारा मार्गभिगमित होता है, के आकलन के लिये संशोधित एस सी एस वक्र संख्या विधि का उपयोग किया जाता है। सिंचाई आवश्यकता एवं भूजल पुनःपूरण आंकलन के लिये प्रत्येक ग्रिड में मृदा आर्द्रता की गणना की जाती है। माह में आंकलित स्थलिक पम्पिंग/पुनः पूरण प्रवृत्ति के सापेक्ष माह के लिये संशोधित भूजल अवस्थाओं की गणना के लिये निदर्श को भूजल अनुकार निदर्श (विजुवल MODFOW) के साथ लिंक किया गया है। मानक रेखीय प्रचालन नीति का उपयोग कर विभिन्न जलाशयों/वियरों का प्रचालन अनुकारित किया गया। निदर्श का उपयोग किया जा सकता है। (क) भूमि उपयोग परिवर्तन, फसल प्रवृत्ति परिवर्तन जलवायु परिवर्तन (वर्षा एवं आँकड़ा वितरण तापमान आर्द्रता इत्यादि के रूप में) तक बेसिन जल संसाधनों पर जनंसख्या एवं औद्योगिक प्रगति का प्रभाव को दर्शाने के लिये तथा (ख) नवीन जल संसाधन परियोजनाओं का विकास जल का अंतः बेसिन स्थानान्तरण जैसी विभिन्न प्रबन्धन विकल्पों का विश्लेषण करना।
यहाँ यह प्रतिवेदन करना आवश्यक है। कि निदर्श के लिये आँकड़ा आधार आवश्यकता काफी व्यापक है तथा यह बहुत से विभागों/संस्थाओं जैसे कि CWS, CGWB, IMD, कृषि विभाग, सांख्यिकी निदेशालय, नदी बेसिन में परियोजना प्राधिकरण द्वारा एकत्रित आँकड़ों को समेकित करता है। नदी बेसिन के लिये निदर्श के सफलतापूर्वक निष्पादन के लिये विभिन्न संस्थाओं/विभागों के साथ समन्वयन की प्रबल आवश्यकता है।
संदर्भ
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सम्पर्क
एम के गोयल एवं तिलक राज सपरा, MK Goel & Tilak Raj Sapra, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, National Institute of Hydrology Roorkee
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