वही जख्म, वही दर्द


आजादी के बाद दूसरे क्षेत्र जब विकास की राह बढ़े, तब यह इलाका दुश्वारियों के घेरे में फँसना शुरू हुआ। पानी की किल्लत पहले से थी। ऊपर से पोखरे समतल कर दिये गए। जंगलों की अन्धाधुन्ध कटान हुई। अन्ना प्रथा बढ़ी। बेरोजगारी, उद्योगों का अभाव, किसानों की आत्महत्या, अवैध खनन सुर्खियाँ बनीं। राजनीतिज्ञों ने इसे कुर्सी हासिल करने का किस्सा बनाया, मगर यहाँ के ‘पानी’ (इज्जत) की लड़ाई नहीं लड़ी। चुनाव फिर है। पुराने जख्म कुरेदे जा रहे हैं मगर, इससे ऊबे बुन्देलखण्डवासी अब अपनी पुरानी पहचान वापस चाहते हैं। बात बुन्देलखण्ड के पूर्वी क्षेत्र यानी चित्रकूट के पाठा से। आजादी के पानी की विभीषिका का जिक्र करते हुए किसी ने विरह गीत लिखा- ‘भौंरा तोरा पानी गजब करि जाए, गगरी न फूटै खसम मरि जाए!’ अर्थ यह कि एक घड़ा पानी बचा रहना चाहिए, चाहे पति की मौत क्यों न हो जाये। आजादी की आधी शताब्दी बाद भी यह दर्द बना हुआ है। बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, ललितपुर, झाँसी का भी यही हाल है। अतीत को छोड़ एक दशक का हाल देखें तो अन्ना प्रथा, सूखा, कर्ज के बोझ से दबे किसानों की आत्महत्याएँ यहाँ की पहचान हैं। तीस अप्रैल 2011 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बुन्देलखण्ड पहुँचे। पैकेज का एलान किया। मगर वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। अभी हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महोबा गए। उन्होंने भी सिर्फ उम्मीदें जगाई। इसके पहले राहुल गाँधी ने महोबा के सूपा से ‘बुन्देलखण्ड बचाओ’ पदयात्रा की शुरुआत की। क्षेत्रीय लोगों की ओर से तैयार आँकड़ों को सच मानें तो अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 किसानों ने आत्महत्या की। बेमौसम बारिश और ओलों ने किसान परिवार को हलाकान कर डाला। बुन्देलखण्ड में 80.53 फीसद किसान कर्जदार हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 300 करोड़ रुपए का राहत पैकेज जारी किया।

दरअसल, जंगल कटते जा रहे हैं। खनन की अति की सीमा पार कर गया है। ओलावृष्टि से चारा नष्ट हो गया। मवेशियों की संख्या घट गई है। उद्योग है नहीं, कर्ज का ब्याज लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में किसान आत्महत्या की राह चुन रहा है। आत्महत्या के आँकड़ों की नजर से देखें तो बांदा, महोबा, जालौन और चित्रकूट में सबसे ज्यादा आत्महत्याएँ हुईं और इसी क्षेत्र में अन्धाधुन्ध खनन हुआ। जंगल काटे गए।

कैसे मिले किसानों को जिन्दगी


सच तो यह है कि बुन्देलखण्ड में किसानों की जमीन, मवेशी और चारा बचाने को अब तक सार्थक पहल ही नहीं हुई। न बीज उस तक पहुँचे और न ही खाद और तकनीक। भण्डारण की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं हुई। समूह आधारित सहकारिता को व्यवहार में उतारकर यह किया जा सकता है लेकिन ऐसा भी नहीं किया जा सका। खेती, बागवानी, डेयरी, मत्स्य इस क्षेत्र को नई दिशा दे सकते हैं लेकिन इन्हें दूसरे उद्योगों के लिये कुर्बान किया जाता रहा। भूमि अधिग्रहण संशोधनों के विरोध की हकीकत यह है कि यह विरोध न उद्योग का है और न भूमि अधिग्रहण का। औद्योगिक, पर्यावरणीय मानकों तथा कानूनों की परवाह किये बगैर उद्योग चलाए जाते हैं, विरोध इसका है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह उन्नत खेती व किसानों को बचाने का अभियान शुरू किया है। वे कहते हैं कि सरकारों को किसान केन्द्रित कर योजनाएँ बनानी होंगी। जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा। दूसरी ओर समाजसेवी संजय सिंह कहते हैं कि पानी की समस्या खत्म करने के लिये जल सहेलियों जैसे प्रयोग फायदेमन्द हैं। किसानों के उत्पाद को उनके खेतों में खरीदने की व्यवस्था करनी होगी।

लुट गई पेयजल परियोजनाएँ


बुन्देलखण्ड में पिछले तीन दशकों में 17 बार सूखा पड़ चुका है और हर बार किसानों को पानी पहुँचाने के नाम पर तमाम पेयजल परियोजनाओं को मंजूरी मिली लेकिन किसान अब भी प्यासा है। आजादी के बाद से 2012 तक यहाँ 24 सिर्फ बाँध बने। जबकि क्षेत्र में पानी का संचयन ही यहाँ की दुश्वारियों का एकमात्र इलाज है। सपा के शासनकाल में सात हजार करोड़ की योजनाएँ शुरू हुईं जिसमें कई अभी पूरी होनी हैं। वस्तुतः मनमोहन सिंह पैकेज में विभागों ने जमकर लूट की तो बाद में भी यही स्थिति बहाल रही। कई पेयजल परियोजनाएँ तो ऐसी रहीं कि विलम्ब की वजह से उनकी लागत बढ़ती चली गई। इन पर काम करने के बजाय केन्द्र और राज्य सरकार एक-दूसरे पर आरोपों का ठीकरा ही फोड़ते रहे।

पर्यटन क्षेत्र बनाने पर ध्यान नहीं


बुन्देलखण्ड में 147 ऐसे पुरातत्व स्मारक हैं, जिन्हें पर्यटन स्थल का दर्जा देकर क्षेत्र में खुशहाली लाई जा सकती है, मगर इस दिशा में कारगर कदम नहीं उठाया जा रहा है। महोबा के मलकपुरा में कीरत सागर, चित्रकूट में गणेश बाग मन्दिर, झाँसी में किला और रानी महल, ललितपुर में लक्ष्मी नारायण मन्दिर ऐसे स्मारक जिन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की अपार सम्भावनाएँ हैं। महोबा आल्हा, ऊदल के स्मारक, चन्देल कालीन तालाब, कालिंजर दुर्ग ऐसे ही पर्यटन स्थल में शुमार हैं। लापरवाही का आलम यह है कि कालिंजर दुर्ग से बड़ी संख्या में दुर्लभ मूर्तियाँ चोरी हो रही हैं।

बुन्देलखण्ड पर्यटन परिपथ का प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा गया, मगर उस पर कोई कारगर कार्रवाई अब नहीं हुई है। राज्य सरकार के एक अधिकारी बताते हैं कि बुन्देलखण्ड का टूरिज्म मास्टर प्लान तैयार करने वाली कंसल्टेंट कम्पनी बुन्देलखण्ड पर्यटन परिपथ में 30 ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्त्व के स्मारकों को पर्यटन विकास के लिये चयनित किया है। इनमें सबसे अधिक डेढ़ दर्जन स्थल महोबा जिले के हैं लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की फिलहाल दिलचस्पी नहीं। भित्त चित्रों की एक लम्बी शृंखला भी मौजूद है। उत्तर प्रदेश कैडर के एक आईपीएस अधिकारी विजय कुमार की पत्नी ने इन भित्त चित्रों को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य भी किया है।

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Post By: RuralWater
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