वायु प्रदूषण से याददाश्त हो रही कमजोर

वायु प्रदूषण से याददाश्त हो रही कमजोर
वायु प्रदूषण से याददाश्त हो रही कमजोर

‘‘वायु’’ पृथ्वी पर जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है। जिसके बिना धरती पर न तो इंसानों का जीवन संभव है और न ही जीव-जंतुओं तथा पेड़ पौधों का। लेकिन जैसे-जैसे मानव आधुनिकता की ओर बढ़ा, उसने अपनी सुविधा व सहुलियत के लिए नई-नई तकनीकों का आविष्कार करना शुरू किया। समय के साथ पृथ्वी पर इंसानों की आबादी बढ़ने से इन तकनीकों के उपयोग में वृद्धि हुई। बढ़ती आबादी की सहुलियतनुमा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर उद्योगों को लगाया गया। परिवहन के लिए मोटर गाड़ी बाजार में आई। हवा में उड़ने के लिए एयरोप्लेन और हेलीकाॅप्टर का उपयोग होने लगा। दूर दराज बैठे किसी व्यक्ति से बात करने के लिए फोन/मोबाइल का आविष्कार हुआ। हालांकि आविष्कार करना गलत नहीं है, लेकिन ये सब करते वक्त भविष्य में पड़ने वाले प्रभावों के बारे में नहीं सोचा गया। नतीजतन, बढ़ते उद्योगों, वाहनों और प्लास्टिकयुक्त सामर्गियों को जलाने से वायु इस हद तक प्रदूषित हो गई कि हर साल 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो जाती है। अब तो वायु प्रदूषण ( Air pollution) का असर हमारी याददाश्त (memory) पर भी पड़ने लगा है और हमें चीजों को याद रखने में परेशानी होने लगी है। जिसका सबसे ज्यादा असर भारत में पड़ने की संभावना बनी हुई है।

हाल ही में वार्विक विश्वविद्यालय  (University of Warwick) द्वारा इंग्लैंड (England) के प्रदूषित और गैर प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले करीब 34 हजार लोगों पर एक शोध किया गया। अध्ययन में शामिल सभी लोगों को शब्द याद रखने की परीक्षा से गुजरना पड़ा। इस परीक्षा में सभी को 10 शब्द याद रखने के लिए दिए गए। साथ ही याददाश्त (Memory) पर प्रभाव डालने वाले अन्य घटकों जैसे आयु, स्वास्थ्य, शिक्षा का स्तर, जातीयता, परिवार और रोजगार आदि की स्थिति का भी ध्यान रखा गया। अध्ययन में सामने आया कि हवा/वायु में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (nitrogen dioxide) और पीएम10 का बढ़ता स्तर याददाश्त पर प्रभाव डाल रहे हैं। कम प्रदूषित वायु (polluted air) में रहने वाले शख्स की अपेक्षा अधिक वायु प्रदूषण (Air pollution) में रहने वाले व्यक्ति की याददाश्त में करीब दस साल का अंतर पाया गया। यानी प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले 40 साल के व्यक्ति की याददाश्त कम प्रदूषण में रहने वाले 50 साल के व्यक्ति के बराबर पाई गई

दरअसल वायु प्रदूषण धीमे जहर की तरह है। जो न चाहते हुए भी हमारे भीतर जाता है और शरीर को खोखला कर देता है। इसके दुष्परिणाम का एहसास हमें तब होता है, जब स्थिति नियंत्रण के बाहर हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) ने भी वायु प्रदूषण के इस दुष्प्रभाव से दुनिया को आगाह किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) के अनुसार विश्व की करीब 91 प्रतिशत आबादी वायु प्रदूषण (Air pollution) से प्रभावित इलाकों में रहती है। दुनिया भर में होने वाले 24 प्रतिशत स्ट्रोक और 25 प्रतिशत हृदय संबंधी बीमारियों का कारण भी वायु प्रदूषण ही है, लेकिन इन सब के बावजूद हम आज भी अपने स्वास्थ्य और भविष्य के प्रति संजीदा नहीं हैं। इसके परिणाम अभी से दिखने लगे हैं, जो भविष्य में और भयावह हो सकते हैं, इसलिए अपने भविष्य को सुरक्षित रखने और स्वस्थ रहने के लिए हमें ध्वनिमत से वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग लड़नी होगी और अपने अपने स्तर पर हानिकारक वस्तुओं का त्याग करना होगा।

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Post By: Shivendra
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