वायु प्रदूषण से काला मोतियाबिंद का खतरा, भारत में 1.2 करोड़ लोग प्रभावित

वायु प्रदूषण से काला मोतियाबिंद का खतरा, भारत में 1.2 करोड़ लोग प्रभावित
वायु प्रदूषण से काला मोतियाबिंद का खतरा, भारत में 1.2 करोड़ लोग प्रभावित

औद्योगिकरण के साथ साथ विश्वभर में वायु प्रदूषण तेज गति से बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण के कारण लोग खांसी, स्ट्रोक, कैंसर, अस्थमा आदि बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। विशेषकर एशियाई देशों में इसके भयावह परिणाम देखने को मिल रहे हैं, लेकिन हाल ही में यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन द्वारा किए गए एक अध्ययन में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली एक नई बीमारी के बारे में पता चला है, जिसे ग्लोकोमा यानी काला मोतियाबिंद कहा जाता है। ये बीमारी विश्वभर में अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक है। ग्लोकोमा के प्रभावों से भारत सबसे ज्यादा ग्रसित है।

आंखें इंसान के शरीर का ऐसा अभिन्न अंग हैं, जिसके बारे में किसी व्यक्ति को बताना नहीं पड़ता। वास्तव में वो आंखें ही हैं, जिनसे इंसान प्रकृति की सुंदरता को निहारता है। इन्ही के सहारे इंसान चलता है, खेलने कूदने, पढ़ने-लिखने सहित अन्य सभी कार्य करता है। आंखों के बारे में कई शायरियां भी बनी हैं। आंखें तो इंसान के जीवन में उस प्रज्जवलित दीपक की तरह है, जिसके जलते ही अंधकार मिट जाता है और चारों तरफ प्रकाश छा जाता है, लेकिन कल्पना कीजिए कि खुशहाली से बीत रहे आपके जीवन में यदि धीरे धीरे आंखों की रोशनी चली जाए, तो आपका जीवन कैसे बीतेगा ? दरअसल यूनिवर्सिटी काॅलेज लंदन के अध्ययन में बताया गया कि वायु प्रदूषण के कारण ग्लोकोमा नाम की बीमारी होने का खतरा है। ग्लोकोमा से विश्वभर में 6 करोड लोग प्रभावित हैं, जिसमें अकेले भारत में 1.2 करोड लोग प्रभावित हैं। यहां तक कि 12 लाख लोग आंखों की रोशनी गंवा चुके हैं। 

ग्लोकोमा एक प्रकार की न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है। इसमे आंखों से दिमाग तक चित्रों को पहुंचाने वाली ऑप्टिक नर्व पर अधिक दबाव पड़ता है, जिससे चित्र ठीक से नहीं बनता है। इससे धीरे धीरे आंखों से दिखना कम हो जाता है। दरअसल हवा में कई प्रकार के कण पाए जाते हैं, जिनमें पीएम 10, पीएम 2.5 और पीएम 1 जैसे कणों का नाम हम अक्सर सुनते हैं। इंसानों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक पीएम 2.5 और पीएम 1 है। इन प्रदूषकों के कारण हृदय रोग, कैंसर, अल्जाइमर आदि बीमारियां तो होती ही हैं, लेकिन अब ग्लोकोमा यानी काला मोतियाबिंद का खतरा भी बन गया है, किंतु पीएम 2.5 ( पार्टिकुलेट मैटर 2.5) से प्रत्यक्ष रूप से तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचता है और इनमें सूजन आने लगती हैं। गौरतलब है कि हमें अक्सर वायु प्रदूषण के कारण आंखों में जलन और दबाव महसूस किया होगा। यदि जलन लंबे समय रहे तो इसे ग्लोकोमा की शुरुआत भी समझा जा सकता है। हालाकि नियमित रूप से एहतियात बरतने पर इससे बचा जा सकता है। 

बता दें कि यह अध्ययन वर्ष 2006 से 2010 के बीच बायोबैंक द्वारा 1 लाख 11 हजार 370 प्रतिभागियों पर किया गया था। इसके अंतर्गत ब्रिटेन में प्रतिभागियों की आंखों की जांच कराई गई थी। साथ ही प्रतिभागियों के घर के आसपास वायु प्रदूषण की मात्रा को भी जांचा गया। शोध में पाया कि प्रदूषित इलाकों में रहने वाले लोगों में ग्लोकोमा होने की संभावना कम से कम 6 प्रतिशत अधिक थी। इन प्रदूषित इलाकों में रहने वाले लोगों का रेटिना भी सामान्यतः पतला होने की संभावना भी अधिक थी। वास्तव वायु प्रदूषण सहित विभिन्न प्रकार के प्रदूषण की बात की जाए आज इंसान के शरीर का ऐसा कोई अंग नहीं है, जो सुरक्षित है। प्रदूषण इस चरम पर पहुंच चुका है कि खतरनाक बीमारियों की चपेट में लोग आ रहे हैं। स्पष्ट तौर पर कहें तो धरती पर जीवन खतरे में है। इससे बचने के लिए जलद जीवनशैली में बदलाव करते हुए सख्त कदम उठाने जरूरी है।

लेख - हिमांशु भट्ट 

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Post By: Shivendra
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