वायु प्रदूषण से बढ़ रहा फेफड़ों के कैंसर का खतरा

फेफड़ा
फेफड़ा

चारों और फैला धुआँ, हवा इतनी जहरीली की सांस लेना भी मुश्किल। कहीं ट्रक, बस, ऑटो, जेनरेटरों से निकलता धुआँ तो कहीं सड़कों पर फैली भवन निर्माण सामग्री के कारण उड़ती धूल, कहीं बीड़ी-सिगरेट का धुआँ तो कही धुआँ उगलती फैक्ट्रियों की चिमनियाँ। इन सब के बीच सांस लेना मजबूरी है इसलिये लोग घर से निकलते ही मुँह पर कपड़ा ढक लेते हैं। मगर यह कपड़ा भी चारों ओर फैले वायु प्रदूषण को हमारे शरीर में घुसने से रोकने में नाकाम है। नतीजा, प्रदूषित वायु में मौजूद विषैले तत्व सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और अनेक प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। इनमें सबसे खतरनाक है, फेफड़ों का कैंसर।

जिसका पता, अधिकतर मरीजों में तब चलता है, जब यह बीमारी लाइलाज हो जाती है। कई बार इलाज उपलब्ध तो होता है किन्तु महँगा होेने के कारण उपचार करवा पाना प्रत्येक व्यक्ति के लिये सम्भव नहीं होता। इस विषय पर किये गए अनेक शोधों से पता चलता है कि प्रदूषित वायु वाले स्थानों पर रहने वालों को फेफड़ों का कैंसर होने की सम्भावना अधिक होती है।

शोधों से यह भी पता चला कि इस बीमारी का शिकार होने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो धूम्रपान करते ही नहीं थे या काफी सालों पहले छोड़ चुके थे। यानी उनको फेफड़ों का कैंसर होने की वजह तम्बाकू नहीं बल्कि वायु प्रदूषण है। हालांकि धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को फेफड़ों का कैंसर होने की सम्भावना अधिक होती है।

हाल ही में हुई रिसर्च के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली में खतरनाक स्तर तक पहुँच चुका वायु प्रदूषण प्रतिवर्ष लगभग तीन हजार लोगों की जान ले लेता है। यह स्थिति भारत के लगभग प्रत्येक महानगर की है। वहीं गाँवों की हवा भी अब शुद्ध नहीं रही। महानगरों से सटे गाँवों में भी वायु प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रहा है।

क्यों होता है फेफड़ों में कैंसर

ट्रक, बस, ऑटो, कार, जेनरेटर, जलाया गया कूड़ा, कच्चा ईंधन (लकड़ी, कोयला आदि) फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआँ वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं। वहीं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन जैसी गैसें भी वायु को प्रदूषित करती हैं। इनके कारण बनने वाले छोटे-छोटे धूल कण जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कहा जाता है वायुमण्डल में शामिल हो जाते हैं। ये छोटे लेकिन ठोस कण सांस के जरिए हमारे फेफड़ों तक पहुँचकर उनके टिशुओं में समा जाते हैं। लम्बे समय तक उपचार न किये जाने पर ये पार्टिकुलेट मैटर फेफड़ों में कैंसर का कारण बन जाते हैं।

परिवहन साधनों, जेनरेटर आदि से निकलने वाले डीजल के धुएँ में 10 माइक्रोमीटर से कम साइज के पर्टिकुलेट मैटर होते हैं, जो आसानी से फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं। अध्ययनों के अनुसार फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित लगभग आधे मरीज नेशनल हाइवे के लगभग 1500 मीटर के दायरे में रहने वाले थे। यानी परिवहन साधनों से निकलने वाले धुएँ ने उनके फेफड़ों को भारी नुकसान पहुँचाया।

फेफड़ों के कैंसर के लक्षण

लम्बे समय तक खाँसी का कायम रहना, कफ के साथ खून आना, छाती में दर्द रहना, सांस लेने में परेशानी या घरघराहट होना, वजन घटना। अक्सर कमजोरी और थकान रहना फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख लक्षण हैं। आमतौर पर यही लक्षण निमोनिया, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों में भी होते हैं। इसलिये लोग इन लक्षणों को गम्भीरता से नहीं लेते और किसी अन्य बीमारी का उपचार कराते रहते हैं। नतीजा यह बीमारी खतरनाक होकर जानलेवा साबित होती है।

आयुर्वेद से करें बेहतर उपचार

ऑनक्वेस्ट लेबोरेटरीज के सीओओ डॉ. रवि गौर के अनुसार सरकार, एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश और बनाए गए कानून भी इस वायु प्रदूषण के दानव को रोकने में नाकाम हैं। ऐसे में आवश्यक है कि हम खुद ही विभिन्न उपाय अपनाकर वायु प्रदूषण की रोकथाम करें। अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें और किसी भी प्रकार से लापरवाही न बरतें। फेफड़ों का कैंसर होने पर अनुभवी आर्यर्वेद चिकित्सक से उपचार कराए जाने पर इस बीमारी का निदान किया जा सकता है। फेफड़ों का कैंसर होने पर दी जाने वाली दवाएँ आमतौर पर बेहद महँगी होती है। वहीं लम्बे समय तक इन दवाओं का सेवन करने से अनेक प्रकार के साइड इफेक्ट भी होते हैं। जबकि आयुर्वेदिक दवाएँ न सिर्फ किफायती होती हैं बल्कि शरीर पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव भी नहीं डालतीं। उपयुक्त परहेज, अनुभवी चिकित्सक और प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बनी आयुर्वेदिक दवाओं का मिश्रण इस बीमारी के मरीज को बहुत जल्द लाभ पहँचाता है। फेफड़ों में कैंसर के किसी भी लक्षण को नजरअन्दाज न करें। तुरन्त अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परार्मश लेकर उपचार कराएँ। क्योंकि कहा गया है सेहत है हजार नियामत।

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