वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे को देखते हुए इसकी मॉनिटरिंग का दायरा बढ़ाने को लेकर प्रयास किये जा रहे हैं। वायु प्रदूषण को मापने वाली मशीनें काफी महँगी हैं। लिहाजा महानगरों के अलावा मंझोले और छोटे शहरों में भीड़-भाड़ वाले चौराहों से लेकर गली मुहल्लों तक में प्रदूषण का स्तर मापना आसान नहीं है। लेकिन इसे आसान बनाने के लिये एक भारतीय स्टार्टअप ने उल्लेखनीय कार्य कर दिखाया है। इससे अब वायु प्रदूषण को मापने पर आने वाला खर्च मौजूदा की तुलना में करीब 1.5 फीसद रह जाएगा। रेस्पायरल लिविंग साइंसेज स्टार्टअप को सस्ता मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित करने में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर का सहयोग भी मिला।
दस लाख की मशीन 15 हजार में
वर्तमान समय में जिन मशीनों से वायु प्रदूषण की मात्रा को मापा जा रहा है, उनकी कीमत करीब दस लाख रुपये है। लेकिन आईआईटी और स्टार्टअप द्वारा विकसित मशीन की लागत महज 15 हजार रुपये तक पड़ रही है। इस सिस्टम से बिजली की खपत भी बहुत कम होती है। मशीन का सबसे अहम हिस्सा है इसमें लगाया जाने वाला सेंसर, जो कीमती होता है। आईआईटी के वैज्ञानिकों ने काफी सस्ते सेंसर विकसित करने में सफलता पाई है।
हानिकारक गैसों की मात्रा भी होगी दर्ज
इस मशीन सो वायु प्रदूषण स्तर यानी हवा में घुले खतरनाक सूक्ष्म कणों पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर तक होता है) की मात्रा के अलावा वातावरण में मौजूद क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओजोन व वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की मात्रा को भी दर्ज किया जा सकेगा। इस सिस्टम की खास बात यह भी है कि इसमें दर्ज हो रहीं सभी सूचनाएँ उसी समय ऑनलाइन भी उपलब्ध रहेंगी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी इस बात से इत्तेफाक रखता है। उसका मानना है कि अगर प्रदूषण मापने की मशीनें सस्ती होंगी तो उन्हें अधिक स्थानों पर लगाया जा सकेगा। इससे वायु प्रदूषण पर लगातार नजर रखी जा सकेगी, ताकि समय रहते नियंत्रण के उपाय किये जा सकें। इससे लोगों को काफी फायदा होगा।
खतरे में जान
मेडिकल साइंस की अग्रणी पत्रिका लेंसर की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल विश्व में 60 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हुई। इसमें 25 लाख भारत के थे।
ठंड में बढ़ जाता है खतरा
ठंड बढ़ने के साथ ही वायु में पीएम 2.5 का स्तर बढ़कर 300 से 500 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक पहुँच जाता है। जो सामान्यत: 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर तक होना चाहिये।
कैंसर का खतरा
यह सूक्ष्म कण दृश्यता कम करने के साथ आँख, नाक व गले के लिये भी हानिकारक होते हैं। ये कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि सांस के जरिये फेफड़ों मे पहुँच जाते हैं। लगातार फेफड़ों के सम्पर्क में बने रहने से कैंसर का खतरा भी हो सकता है।
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