वायु प्रदूषण से भारत की स्थिति भयावह है। विश्व के 20 अत्यधिक प्रदूषित शहरों में भारत की राजधानी दिल्ली, नवाबों का शहर लखनऊ, गुरुग्राम, नाॅएडा, गाजियाबाद, पटना सहित सात से अधिक शहर शामिल हैं। हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में भी प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि प्रदूषण के कारण श्वास और हृदय रोग के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है। नवजात शिशुओं को वायु प्रदूषण के कारण केवल श्वास की बीमारी ही नहीं हो रही है, बल्कि वें असमय काल के गाल में भी समा रहे हैं। ऐसे में वायु प्रदूषण का शिकार हुए बच्चों के लिए ठंड मुसीबत बन गई है।
भारत में नवजात बच्चों की मौतों के मामले मे राजस्थान पहले नंबर पर है। यहां बाहरी प्रदूषण के कारण प्रति एक लाख की आबादी में 126.04 प्रतिशत बच्चे दम तोड़ देते हैं, जबकि 72.66 मौतों के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 59.32 नवजात बच्चों की मौत के साथ बिहार तीसरे नंबर पर है। घर के अंदर होने वाला वायु प्रदूषण भी सैकड़ों बच्चों की जान ले लेता है। तो वहीं वयस्कों की अपेक्षा बच्चे ज्याद सांस लेते हैं और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है। ऐसे में बच्चे जल्दी वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाते हैं। इससे वायु प्रदूषण के शिकार बच्चों की संख्या में इजाफा हो रहा है। दरअसल ठंडी हवा गर्म हवा की अपेक्षा शुष्क और भारी होती है। जो फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों को काफी परेशान करती है और उन्हें सांस लेने परेशानी होती है या काफी ज़ोर पड़ता है। इससे ठंड शुरू होते ही वायु प्रदूषण से ग्रसित बच्चों की समस्या बढ जाती है। ये जानकारी डाउन टू अर्थ द्वारा की गई पड़ताल में सामने आई है।
पांच साल पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पीएमसीएच मेडिकल काॅलेज ने वायु प्रदूषण के कारण बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया था। अध्ययन से पता चला कि प्रदूषण बढ़ने से, विशेषकर घनी आबादी और अधिक वाहनों की संख्या वाले इलाकों में, प्रदूषण के कारण 0 से 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों के फेफड़ों पर जोर पड़ रहा है। हालांकि वायु प्रदूषण और उसके प्रभावों को लेकर एम्स पटना और बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पुनः अध्ययन शुरू किया है, जो कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा कराया जा रह है, लेकिन इस अध्ययन में तीन वर्ष का समय लगेगा।
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