हमें समझना होगा कि दिल्ली सहित विभिन्न भारतीय शहरों में हवा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है। बेहतर होगा कि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से जुड़े एक्सपर्ट अपनी ऊर्जा हवा में प्रदूषण का स्तर कम करने में लगाएँ। जनता को भी इसमें अपना अहम योगदान देना होगा। हाल के वर्षों में वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में तो तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है। ‘देश की राजधानी दिल्ली में हवा में साँस लेना जहर हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे, यहाँ तक कि मेरा पोता भी मास्क पहनता है ताकि वह खुद को जहरीली हवा से कुछ हद तक बचा सके। ऐसा करने पर वह कार्टून कैरेक्टर निंजा की तरह दिखता है। हम चाहते हैं कि यह मसला अखबारों के पहले पन्ने पर छपे। आमतौर पर अखबारों को अदालतें ऐसा नहीं कहतीं, लेकिन लोगों को इस बार में शिक्षित करना जरूरी है, इसलिये यह खबर छपनी चाहिए।’
यह टिप्पणी पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू ने की थी उनकी इस टिप्पणी से कोई सबक लिया गया होता, तो इस साल दीपावली से पहले और बाद में जैसा वायु प्रदूषण दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों में दिखा है, वह इतना विकट न होता। इस साल वायु प्रदूषण ने पिछले तीन सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, इस तथ्य से ही स्पष्ट है कि हमारे शहरों में हवा के प्रदूषण का स्तर कितना खतरनाक हो गया है।
मसला अकेले दिल्ली का नहीं है। उत्तर-मध्य भारत के ज्यादातर शहरों का यही हाल है। कानपुर, इन्दौर, मुम्बई, अहमदाबाद-सभी जगह प्रदूषित धुएँ ने लोगों का साँस लेना मुश्किल कर दिया है। चिन्ता यह है कि भारत दुनिया के उन देशों में हैं, जहाँ सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है। हवा के इस प्रदूषण का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह लोगों में साँस की बीमारियाँ पैदा कर रहा है। इसके कारण आम लोगों की जिन्दगी औसतन तीन साल तक कम हो जा रही है।
कुछ ही समय पहले इस बारे में एक अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, हार्वर्ड और येल के अर्थशास्त्रियों ने किया था। उनके अध्ययन से पता चला कि हमारे देश के करीब 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ की हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर सुरक्षित मानकों से ऊपर है। इधर यूनिसेफ ने जारी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के प्रत्येक सात में से एक बच्चा उन क्षेत्रों में रह रहा है जहाँ घर से बाहर वायु प्रदूषण बेहद गम्भीर स्थिति में है।
इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वर्ष 2014 के एक सर्वे में यह भी बता चुका है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में हैं। डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा था कि वायु प्रदूषण भारत में अकाल मौतों की प्रमुख वजहों में से एक है। इससे सम्बन्धित बीमारियों की वजह से हर साल छह लाख बीस हजार लोगों की मौतें भारत में होती हैं।
आमतौर पर देश की राजधानी दिल्ली को देश के सबसे अधिक हरे-भरे शहरों में गिना जाता है, पर इसकी एक उलट तस्वीर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़े कर चुके हैं। डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के जिन 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची बनाई थी, उनमें दिल्ली को सबसे ज्यादा प्रदूषित ठहराया गया था। इस प्रदूषण को दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले झेलते व महसूस करते हैं।
अलबत्ता गाहे-बगाहे ये खबरें अवश्य मिलती रहती हैं कि कुछ विदेशी राजनयिकों ने वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली को अलविदा कह दिया। इसी तरह जो साधन-सम्पन्न लोग हैं, वे दिल्ली के नजदीक बाहरी शहरों को अपने निवास के लिये चुनने लगे हैं। गुड़गाँव या नोएडा के पार जाकर उन्होंने रिहाइश के ऐसे ठिकाने तलाश कर वहाँ रहना शुरू कर दिया है जहाँ की हवा साफ-सुथरी है, पर ऐसा सभी तो नहीं कर सकते। लिहाजा उन्हें इसी प्रदूषित हवा में साँस लेते हुए, बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि दुनिया की आधी शहरी आबादी प्रदूषित हवा का इस्तेमाल करने को मजबूर है, जो सुरक्षित माने जाने वाले मानकों के हिसाब से ढाई गुना अधिक प्रदूषित है। इन्हीं वजहों से वर्ष 2012 में वायु प्रदूषण की चपेट में आकर करीब 37 लाख मौतों का विश्वव्यापी अनुमान लगाया गया था।
इससे जुड़ा एक आँकड़ा एन्वायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स का है, जिसमें प्रकाशित एक शोध के अनुसार वायु प्रदूषण से हर साल करीब 26 लाख लोग असमय मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। दुनिया में जो लगभग चार लाख 70 हजार औद्योगिक इकाइयाँ हैं, वे इतना धुँआ उगल रही हैं कि अकेले उन्हीं के कारण 21 लाख मौतें हो रही हैं।
हमें समझना होगा कि दिल्ली सहित विभिन्न भारतीय शहरों में हवा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है। बेहतर होगा कि भारत सरकार से जुड़े एक्सपर्ट अपनी ऊर्जा हवा में प्रदूषण का स्तर कम करने में लगाएँ। हाल के वर्षों में वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 फीसद की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण वाहनों की संख्या में इजाफा होना, बड़ी फैक्टरियों और उद्योग धन्धों में कोयले व खनिज तेल का उपयोग बढ़ना है। इनके जलने से सल्फर डाइऑक्साइड निकलती है जो हम इंसानों के स्वास्थ्य के लिये बेहद खतरनाक है।
कारखानों से निकलने वाले धुएँ के अलावा शहरों का दायरा भी बढ़ रहा है जिसके अनुपात में वाहनों की संख्या भी बढ़ रही है। इन सारी वजहों से हवा में प्रदूषण की मात्रा भी बढ़ रही है। हवा के प्रदूषित कण इंसानी शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं। जैसे सल्फर डाइऑक्साइड से फेफड़े, कैडमियम से हृदय रोग और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और साँस सम्बन्धी रोग होते हैं। हवा का यही प्रदूषण जब बादलों तक पहुँचता है तो अम्ल वर्षा के रूप में धरती पर वापस लौटता है। इससे खेती को नुकसान होता है और मनुष्यों व जानवरों में त्वचा सम्बन्धी विकार पैदा होते हैं।
जस्टिस एचएल दत्तू और पर्यावरणवादी संगठनों की चेतावनी का आशय स्पष्ट है कि यदि समय रहते वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में कदम ना उठाए गए तो यह मामला हमारे हाथ से बाहर निकल सकता है। इधर दिल्ली सरकार ने सड़कों को वैक्यूम क्लीनर से साफ करने, शहर के कुछ इलाकों में विशालकाय एयर प्यूरीफायर लगाने का ऐलान किया है, पर ये उपाय भी तभी कारगर हैं जब जनता हवा के प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान दे।
पूरे साल खराब हवा की शिकायत करने वाले लोग दीपावली जैसे त्योहार पर अगर वातावरण जहरीला करने से, शोर घुलने वाले पटाखों के इस्तेमाल से और छोटी दूरियों के लिये भी कारों के प्रयोग से खुद को रोक नहीं सकते, तो उन्हें शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है। यह समस्या शायद उनके लिये ज्यादा बड़ी है जो खुद तो ऐसा कुछ भी नहीं करते, लेकिन दूसरों की करनी का नतीजा उन्हें भुगतना पड़ता है।
इसी तरह पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों पर खेती के अवशेष जलाने के लिये कोसने के बजाय वहाँ के किसानों को पराली (कृषि कचरा) आदि जलाने के पर्यावरण-हितैषी तौर-तरीके बताने और मुहैया कराने होंगे। ध्यान रहे कि हर जगह प्रतिबन्ध और जुर्माने की व्यवस्था काम नहीं करती। हवा-पानी साफ रखने की पहल हर किसी को यह सोचते हुए करनी होगी कि इसी से हमारा और भावी पीढ़ियों का जीवन बचा रहेगा, अन्यथा मौजूदा दुनिया के वजूद को ही संकट पैदा हो जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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Post By: RuralWater