जलविहीन मूत्रालय के लाभ
जलसंकट के इस दौर में नई डिज़ाइन वाले निर्जल मूत्रालय आज के समय की महती आवश्यकता हैं। जलविहीन मूत्रालय को कुछ इस प्रकार बनाया गया है कि इनमें मूत्र के निस्तारण के लिये परम्परागत मूत्रालयों की तरह पानी की आवश्यकता नहीं होती। इन मूत्रालयों को घरों, संस्थानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर लगाया जाना चाहिये। इन मूत्रालयों से पानी की बचत के साथ-साथ, ऊर्जा की बचत तथा खेती के लिये एक विशाल खाद स्रोत भी मिलेगा। इन मूत्रालयों की स्थापना में कम से कम बुनियादी सुविधाओं और पानी की कम आपूर्ति के बावजूद की जा सकती है। निर्जल मूत्रालयों की यह अवधारणा पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखने में परम्परागत फ़्लश वाले मूत्रालयों की अपेक्षा अधिक बेहतर है।
मानव मूत्र का पुनर्चक्रीकरण (पुनः प्रयोग) –
हाल ही में मानव के मूत्र की पहचान कृषि कार्यों हेतु खाद के एक सम्भावित और मजबूत स्रोत के रूप में की जा रही है। शोधों में पाया गया है कि मानव मूत्र कृषि के लिये बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकता है। मानव के मूत्र में पौधों और खेतों के लिये पर्याप्त मात्रा में कई प्रमुख तत्व जैसे नाईट्रोजन, फ़ॉस्फ़ेट और पोटेशियम पाया जाता है। विभिन्न नई तकनीकों के जरिये मानव मूत्र और मानव मल को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है। दुनिया के फ़ॉस्फ़ेट और तेल भण्डारों के खत्म होते जाने की दशा में तथा दिनोंदिन कृषि उर्वरकों की कीमतें बढ़ने के कारण मानव मूत्र का पुनः प्रयोग करना समय की आवश्यकता है तथा “वाटर हार्वेस्टिंग” की तरह “मूत्र हार्वेस्टिंग” का भी एक आंदोलन चलाना होगा।
दुर्गन्धरोधक यन्त्र -
इन मूत्रालयों में बदबू को रोकने के लिये, इनमे आने-जाने वाली ड्रेनेज लाइनों के अन्दर एक विशेष प्रकार का मेकेनिज़्म लगाया गया है। पूरे विश्व में इस प्रकार के मूत्रालयों में द्रव पदार्थ रोकने, दुर्गन्ध को दबाने तथा सूक्ष्म जैविक नियन्त्रण के लिये एक “मेम्ब्रेन” (झिल्ली) और वाल्व तकनीक का उपयोग किया जाता है। लेकिन बदबू रोकने के इन मेकेनिज़्म को समय-समय पर लगातार बदलना पड़ता है, जिस वजह से इन मूत्रालयों का रखरखाव खर्च बढ़ जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए आईआईटी दिल्ली द्वारा बदबूरोधक नये मूत्रालयों का निर्माण किया गया है जो सस्ते भी हैं और इनमें किसी प्रकार के पुर्जे अथवा यन्त्र बदलने की जरूरत नहीं पड़ती।
मूत्रालयों का अभिनव नवीन डिज़ाइन -
भारत में वर्तमान में स्थित सार्वजनिक शौचालयों और मूत्रालयों की स्थिति बेहद खराब है, ये मूत्रालय बदतर रखरखाव, असामाजिक तत्वों के जमावड़े और बीमारी उत्पन्न कर देने वाली स्थितियों की वजह से दुर्दशा के शिकार हैं। इसे ध्यान में रखते हुए आईआईटी दिल्ली द्वारा सार्वजनिक मूत्रालयों का एक नवोन्मेषी डिज़ाइन तैयार किया गया है (देखें चित्र) -
जलविहीन (निर्जल) सार्वजनिक मूत्रालय कियोस्क (WPUK) – यह एक प्रकार के विशिष्ट डिज़ाइन का बना हुआ कंक्रीट और फ़ाइबर का मिलाजुला मूत्रालय है, जिसे किसी भी सार्वजनिक स्थान अथवा संस्थान में आसानी से स्थापित किया जा सकता है। हालांकि पहले भी बने-बनाये मूत्रालय कियोस्क होते थे जो कि स्टील और सीमेंट के बने होते थे लेकिन यह नई डिज़ाइन वाले सस्ते और मजबूत भी हैं।
ग्रीन निर्जल मूत्रालय – यह एक प्रकार का कम लागत वाला मूत्रालय है जो कि कम जगह तथा कम व्यक्तियों के उपयोग वाली जगह पर लगाया जाता है। इसमें मानव मूत्र एकत्रित करके Canna indica तथा Ficus के पौधों से आच्छादित ज़मीन की तरफ़ मोड़ दिया जाता है। इन पौधों को इस मूत्र की समान मात्रा मिलती रहे इसके लिये एक छिद्रों वाला पाइप इन पौधों के साथ-साथ लगाया जाता है, और जैसा कि पहले बताया गया मानव मूत्र में उपलब्ध नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटेशियम के कारण इन पौधों की बढ़त तेजी से होती है। इस पौधारोपण की वजह से मूत्रालय के आसपास व्यक्ति की गोपनीयता और एकान्त बरकरार रहता है।
जलरहित मूत्रालयों की प्रमुख चुनौतियाँ और नीति-निर्माण
• सार्वजनिक स्थानों और बड़े संस्थानों हेतु – सरकारों को चाहिये कि इन निर्जल मूत्रालयों को सभी सार्वजनिक स्थानों तथा बड़े संस्थानों में अनिवार्य रूप से स्थापित करवाये। ऐसी जगहों पर संस्थापित किये जाने के बाद जहाँ पानी बचाने की अत्यधिक आवश्यकता है, इन मूत्रालयों का रखरखाव नियमित होना चाहिये, ताकि पर्यावरण संरक्षण भी हो और साफ़ जल को बचाया जा सके।
• नये बनने वाले भवनों हेतु नीति बनाना – इन जलरहित मूत्रालयों को बड़े घरों तथा इमारतों में लगाया जाना अनिवार्य करना होगा, खासकर ऐसी इमारतों में जहाँ व्यक्तियों की आवाजाही सतत बनी रहती हो तथा जहाँ मूत्रालयों की संख्या अधिक हो। सामान्य घरों में भी शौचालय के साथ-साथ इन्हें भी स्थापित किया जा सकता है, ताकि सिर्फ़ पेशाब करने वाला व्यक्ति भी इसे उपयोग करे तो काफ़ी पानी बचाया जा सकता है। बड़े शहरों में भवन निर्माण की शर्तों में इसे जोड़ दिये जाने पर बड़ी मात्रा में पानी का अपव्यय भी रोका जा सकता है तथा सीवेज लाइनों पर भी दबाव कम होगा।
• महिलाओं के उपयोग हेतु जलरहित मूत्रालयों का निर्माण करना चाहिये – इस प्रकार के निर्जल मूत्रालयों का डिज़ाइन फ़िलहाल महिलाओं के उपयोग के लिये नहीं बन पाया है, इस योजना पर भी काम होना चाहिये। वर्तमान में महिलाओं के उपयोग के लिये भी लगभग इतने ही मूत्रालय हैं, इसलिये यह बेहद जरूरी है। फ़िलहाल लड़कियों के स्कूल में खुली नालियों वाले ड्रेनेज इस्तेमाल किये जा रहे हैं। नतीजतन, इनके निर्माण की लागत बढ़ना, बदबू एवं असुविधा का सामना तथा घटिया रखरखाव की समस्याएं सामने आती हैं। इसलिये इन्हें दूर करने के लिये काम आगे बढ़ाने की जरूरत है, और आईआईटी दिल्ली ने महिलाओं के लिये भी पानीरहित मूत्रालयों की नई डिज़ाइन तैयार की है, जिसे महिलाएं आसानी से उपयोग कर सकें।
• मानव मूत्र का औद्योगिक उपयोग – कृषि कार्यों के लिये उर्वरक के रूप में उपयोग करने के साथ-साथ मानव मूत्र को औद्योगिक कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, और उद्योगों के आसपास की ज़मीन पर ऐसे जलरहित मूत्रालयों की स्थापना की जानी चाहिये। मुख्य सीवेज से मल और मूत्र को अलग-अलग करने से भूजल में नाईट्रेट का स्तर कम होगा। इसी प्रकार आसपास के जलस्रोतों का प्रदूषण भी कम होगा क्योंकि इन मूत्रालयों से फ़ॉस्फ़ेट का स्तर कम किया जायेगा।
• जागरूकता अभियान – स्वयंसेवी संस्थाओं को सरकार के साथ मिलकर इन मूत्रालयों के प्रति भवन निर्माताओं, इंजीनियरों, आर्किटेक्ट, नगर शिल्पज्ञों तथा नीति निर्माताओं के बीच जागरुकता अभियान चलाना होगा ताकि पानी बचाने वाले इन मूत्रालयों को अधिकाधिक स्थापित किया जा सके। पूरे देश में इन मूत्रालयों को लोकप्रिय बनाने के लिये एक प्रयास करना चाहिये।
• निर्जल मूत्रालयों के रखरखाव सम्बन्धी – इन जलरहित मूत्रालयों का नियमित और उचित रखरखाव करना बेहद महत्वपूर्ण होगा। इनका गलत या खराब रखरखाव करने से पानी बचाने की इस शानदार तकनीक के असफ़ल होने का खतरा भी रहेगा। इसलिये इन मूत्रालयों के उपयोगकर्ताओं को संवेदनशील बनाना, उन्हें शिक्षित करना, रखरखाव हेतु पर्याप्त बजट और मानव संसाधन भी आवश्यक होगा, ताकि पानी रहित यह मूत्रालय सफ़ल हो सकें और धरती का बेशकीमती स्वच्छ जल बचाया जा सके।
आप इसे अंग्रेजी में पढ़ना चाहते हैं तो अटैचमेंट से डाउनलोड करें
Path Alias
/articles/vaataralaesa-yauurainala-nairajala-mauutaraalaya-isakae-upayaoga-aura-laabha