अगले 50 सालों में, वायुमंडल के समतापमंडल के मौजूद ओज़ोन के क्षरण के कारण त्वचा कैंसर की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है। विशेषकर शीतोष्ण जलवायु जहां ओज़ोन की परत पतली है के गोरी चमड़ी वाले लोगों में इसका खतरा अधिक है। गर्माती धरती के कारण अधिक प्रचंड और अनिश्चित मौसम अपना असर दिखाएगा जिससे अकाल, बाढ़, तूफान आदि में वृद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर, चोटग्रस्त होने की दर तथा कीटों के विस्तार के साथ संक्रामक रोगों की दर में वृद्धि दर्ज की जाएगी। अब से पहले तक, वैज्ञानिकों और नीतिनिर्माताओं का ध्यान मूल रूप से इस दिशा की ओर केंद्रित था कि तापवृद्धि के कारण पृथ्वी के भौतिक तंत्र पर किस प्रकार के प्रभाव पड़ेगे और इसके लिए बढ़ते समुद्री स्तर और बढ़ते तूफानों का परीक्षण कर संभावनाएं प्रस्तुत करते थे। परंतु आई.पी.सी.सी. द्वारा जलवायु परिवर्तन से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर एक अध्याय जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए, गर्मियों की प्रचंड लू प्रतिवर्ष हजारों अतिरिक्त लोगों की जान ले सकती है। संक्रामक रोगों की महामारियां उष्णकटिबंध से शीतोष्ण जलवायु की ओर बढ़ना जारी रख सकती है और अगली पूरी सदी तक अमेरिका, यूरोप और आस्ट्रेलिया के मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में त्वचा कैंसर के रोगियों की संख्या में बढ़ावा होने की आशंका है।
जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, इसलिए वैश्विक स्वास्थ्य सर्वे कार्यक्रमों में सुधार, शोध, स्वास्थ्य व्यवसायियों की शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग आज की आवश्यकता है। औद्योगिक राष्ट्रों में जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभाव संभवतया लू के थपेड़ों के रूप में देखे जा सकेंगे। 1 से 3 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापवृद्धि संभवतया शीतोष्ण क्षेत्रों में अत्यधिक गर्म दिवसों की संख्या में वृद्धि करेगी जिसके परिणामस्वरूप तापघात के कारण कई हजार अतिरिक्त मौतें प्रतिवर्ष हो सकती हैं। गर्मियों की बढ़ती तपिश से बचने के लिए वातनुकूलन विधियों को प्रयोग करने में सक्षम लोग इसका अधिकाधिक उपयोग करेंगे जिससे विद्युतगृहों के द्वारा वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी। विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले बारीक कण सीधे तौर पर सांस एवं दिल की बीमारियों के कारण अस्पतालों में होने वाली भर्तियों से जुड़े हैं।
अगले 50 सालों में, वायुमंडल के समतापमंडल के मौजूद ओज़ोन के क्षरण के कारण त्वचा कैंसर की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है। विशेषकर शीतोष्ण जलवायु जहां ओज़ोन की परत पतली है के गोरी चमड़ी वाले लोगों में इसका खतरा अधिक है। गर्माती धरती के कारण अधिक प्रचंड और अनिश्चित मौसम अपना असर दिखाएगा जिससे अकाल, बाढ़, तूफान आदि में वृद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर, चोटग्रस्त होने की दर तथा कीटों के विस्तार के साथ संक्रामक रोगों की दर में वृद्धि दर्ज की जाएगी। उदाहरण के लिए पिछले प्रत्येक पांच वर्षों के दौरान, अल नीनो के कारण पूरी दुनिया में बहुत गर्म और नम दौर देखे गए। परिणामस्वरूप मलेरिया, पीत ज्वर और डेंगू के रोगवाहक शीतोष्ण जलवायु और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच गए हैं तथा उन लोगों में संक्रमण पैदा कर रहे है जिनमें इन रोगों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। वैश्विक तापवृद्धि के चलते फैलने वाली अन्य प्रमुख बीमारियाँ हैजा, फाईलेरियेसिस और निद्रा रोग है। कुछ विकासशील देशों में तेजी से हो रहा वननाशन और शहरीकरण इस घातकता को और बढ़ाने में सहयोग कर रहा है।
कार्यक्षेत्रों में कार्यरत स्वास्थ्य व्यवसायी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित होने आवश्यक हैं जिससे वे नए उभरते रोगों की निगरानी और सूचना देने का कार्य कर सकें। स्थानीय स्वास्थ्य-सुरक्षा कर्मियों को नवीन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए इस प्रकार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि उन्हें पता हो कि समस्या की सूचना उन्हें किसे देनी है। असुरक्षित जनसंख्या, जिनमें बच्चे, वृद्ध एवं वे व्यक्ति सम्मिलित हैं जो ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां रोग की महामारी हो सकती है, को एक विकसित वैश्विक सर्वे तंत्र का लक्ष्य बनाना चाहिए। संवेदनशील लोगों को स्वास्थ्य के प्रति बढ़ते ख़तरों के बारे में बेहतर ढंग से शिक्षित करना चाहिए और टीकों की उपलब्धता तथा उनके प्रभाव की जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए।
जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है, इसलिए वैश्विक स्वास्थ्य सर्वे कार्यक्रमों में सुधार, शोध, स्वास्थ्य व्यवसायियों की शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग आज की आवश्यकता है। औद्योगिक राष्ट्रों में जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभाव संभवतया लू के थपेड़ों के रूप में देखे जा सकेंगे। 1 से 3 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक तापवृद्धि संभवतया शीतोष्ण क्षेत्रों में अत्यधिक गर्म दिवसों की संख्या में वृद्धि करेगी जिसके परिणामस्वरूप तापघात के कारण कई हजार अतिरिक्त मौतें प्रतिवर्ष हो सकती हैं। गर्मियों की बढ़ती तपिश से बचने के लिए वातनुकूलन विधियों को प्रयोग करने में सक्षम लोग इसका अधिकाधिक उपयोग करेंगे जिससे विद्युतगृहों के द्वारा वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी। विद्युत संयंत्रों से निकलने वाले बारीक कण सीधे तौर पर सांस एवं दिल की बीमारियों के कारण अस्पतालों में होने वाली भर्तियों से जुड़े हैं।
अगले 50 सालों में, वायुमंडल के समतापमंडल के मौजूद ओज़ोन के क्षरण के कारण त्वचा कैंसर की संख्या में वृद्धि होने की आशंका है। विशेषकर शीतोष्ण जलवायु जहां ओज़ोन की परत पतली है के गोरी चमड़ी वाले लोगों में इसका खतरा अधिक है। गर्माती धरती के कारण अधिक प्रचंड और अनिश्चित मौसम अपना असर दिखाएगा जिससे अकाल, बाढ़, तूफान आदि में वृद्धि होगी और इसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर, चोटग्रस्त होने की दर तथा कीटों के विस्तार के साथ संक्रामक रोगों की दर में वृद्धि दर्ज की जाएगी। उदाहरण के लिए पिछले प्रत्येक पांच वर्षों के दौरान, अल नीनो के कारण पूरी दुनिया में बहुत गर्म और नम दौर देखे गए। परिणामस्वरूप मलेरिया, पीत ज्वर और डेंगू के रोगवाहक शीतोष्ण जलवायु और अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच गए हैं तथा उन लोगों में संक्रमण पैदा कर रहे है जिनमें इन रोगों के विरूद्ध प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। वैश्विक तापवृद्धि के चलते फैलने वाली अन्य प्रमुख बीमारियाँ हैजा, फाईलेरियेसिस और निद्रा रोग है। कुछ विकासशील देशों में तेजी से हो रहा वननाशन और शहरीकरण इस घातकता को और बढ़ाने में सहयोग कर रहा है।
सुझाव
कार्यक्षेत्रों में कार्यरत स्वास्थ्य व्यवसायी बेहतर ढंग से प्रशिक्षित होने आवश्यक हैं जिससे वे नए उभरते रोगों की निगरानी और सूचना देने का कार्य कर सकें। स्थानीय स्वास्थ्य-सुरक्षा कर्मियों को नवीन स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए इस प्रकार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए कि उन्हें पता हो कि समस्या की सूचना उन्हें किसे देनी है। असुरक्षित जनसंख्या, जिनमें बच्चे, वृद्ध एवं वे व्यक्ति सम्मिलित हैं जो ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां रोग की महामारी हो सकती है, को एक विकसित वैश्विक सर्वे तंत्र का लक्ष्य बनाना चाहिए। संवेदनशील लोगों को स्वास्थ्य के प्रति बढ़ते ख़तरों के बारे में बेहतर ढंग से शिक्षित करना चाहिए और टीकों की उपलब्धता तथा उनके प्रभाव की जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए।
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