वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे


जिस संसार में हम रहते हैं उसमें ख़ुशियाँ मनाने तथा उसकी प्रशंसा करने के कई कारण हैं। इसमें हम पर्यावरण को भी शामिल करते हैं। यद्यपि हम उसी पर्यावरण को, जो हमको संभाले हुए है, अपने कार्यों के द्वारा परिवर्तित में लगे हैं। हम सबके लिये एक अस्वाभाविक वातावरण में रहना बहुत कठिन होगा। इस पाठ से आपको इतना ज्ञान मिलता है कि विभिन्न वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों और समस्याओं को किन योजनाओं द्वारा निपटाया जा सकता है।

उद्देश्य


इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात, आपः

- प्रमुख वैश्विक पर्यावरण के मुद्दों की पहचान कर सकेंगे और उनकी सूची बना पायेंगे;
- वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग) और हरित ग्रह प्रभाव का संबंध बताते हुए परिभाषित कर सकेंगे;
- वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग) का पर्यावरण में रहने वाले सजीव तथा निर्जीव घटकों पर प्रमुख प्रभाव बता सकेंगे;
- जैव विविधता की हानि के कारणों की व्याख्या संक्षेप में कर सकेंगे;
- मरुस्थलीकरण के प्रमुख कारणों पर टिप्पणी कर सकेंगे;
- ओजोन परत के क्षय होने के कारण तथा प्रभाव की व्याख्या कर सकेंगे;
- अम्ल वर्षा का वर्णन और उससे जीवित जीवों, इमारतों तथा स्मारकों पर होने वाले हानिकारक प्रभावों का वर्णन कर सकेंगे;
- तेल-रिसाव के कारणों की पहचान कर पायेंगे और बताइये कि उनका समुद्री और स्थलीय पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का वर्णन कर सकेंगे;
- संकटदायी अपशिष्टों के निपटान संबंधी समस्याओं के विषय में बता सकेंगे।

14.1 मुख्य वैश्विक पर्यावरण के मुद्दे


मानव गतिविधियों में वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण आदि से वातावरण तेजी से नष्ट होता आया है। इसने गंभीर रूप से जीवन के जीवन रक्षा तंत्र को प्रभावित किया है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में विकास की विसंगतियां हमारे सामान्य वैश्विक पर्यावरण के लिये कई गंभीर समस्या बन गयी हैं। परिणामस्वरूप हम पर्यावरण के जटिल मुद्दे, जो ध्यान देने योग्य हैं, उनका सामना कर रहे हैं। महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दे हैं:

- ग्रीन हाउस प्रभाव (हरित ग्रह प्रभाव) तथा वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग)
- जैव विविधता के नुकसान
- मरुस्थलीकरण
- ओजोन परत की कमी
- अम्ल वर्षा
- तेल रिसाव
- खतरनाक अपशिष्टों का निपटान

14.1 हरित गृह प्रभाव तथा वैश्विक ऊष्मण
14.2.1 हरित गृह का प्रभाव क्या है?


हाल के कुछ वर्षों में पृथ्वी के आस-पास का तापमान बढ़ गया है। यह ‘हरित गृह’ के प्रभाव के कारण है।

‘हरित गृह’ एक शीशे का कक्ष होता है जिसमें सूर्य के प्रकाश (ऊर्जा का एक प्रकार) को रोककर पौधों को उगाया जाता है। सूर्य का प्रकाश (ऊर्जा का एक प्रकार) शीशे द्वारा प्रवेश करता है और उसको अवशोषित करके अंदर सौर विकिरण छोड़ता है। सूर्य के प्रकाश के विपरीत शीशे के द्वारा बाहर नहीं जा सकती है, ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, जो कांच के चैम्बर से बाहर नहीं जा सकती है। अतः सर्दियों के एक ठंडे दिन भी ‘हरित गृह’ काफी गर्म रह सकता है जिससे पौधों की वृद्धि में सहायता मिल सकती है। ऊष्मा की यह घटना, जो शीशे के कक्ष के अंदर सूर्य किरणों के विकिरण से होती है, इसे ‘हरित गृह का प्रभाव (Green house effect)’ कहते हैं।

परन्तु आप पूछेंगे कि पृथ्वी के चारों ओर शीशा (काँच) कहाँ है जो धरती की सतह से गर्मी को उत्सर्जित होने से बचाता है। चित्र 14.1 देखें और निम्नलिखित क्रम में ‘ग्रीन हाउस’ प्रभाव को समझने का प्रयास करें।

14.2.2 वैश्विक ऊष्मण (ग्लोबल वार्मिंग) तथा हरित गृह प्रभाव


‘ग्रीन हाउस’ का प्रभाव एक प्राकृतिक घटना है और जो लाखों वर्षों से पृथ्वी पर होती रही है। इस प्राकृतिक ‘ग्रीन हाउस’ का प्रभाव जो पानी की वाष्प और पानी के छोटे-छोटे कणों से संभव है, उसी के कारण धरती पर जीवन संभव हो सका है। कुल मिलाकर ये ‘ग्रीन हाउस’ भूमंडलीय तापन का 95% से भी अधिक उत्पादन करते हैं। औसतन वैश्विक तापमान प्राकृतिक ग्रीन हाउस के प्रभाव से 15°C तक बनाये रखते हैं। इस घटना के बिना, औसतन वैश्विक तापमान -17°C होता है और इतने कम तापमान में जीवन का अस्तित्व नहीं रह पायेगा।

औद्योगीकरण से पहले मनुष्य की सामान्य गतिविधियों से वातावरण के तापमान में कोई खास वृद्धि नहीं होती थी। विशेष रूप से यह अधिक चिंताजनक है कि शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण ग्रीन हाउस से निकली हुई गैसों में वृद्धि होती है। ग्रीन हाउस गैसों में आधुनिक समय में वातावरण में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है। ग्रीन हाउस गैसों के कुछ प्रमुख स्रोत तथा कारण तालिका 14.1 में सूचीबद्ध हैं।

 

तालिका 14.1: ग्रीन हाउस गैसें उनके स्रोत और कारण

गैसें

सूत्र और कारण

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2)

जीवाश्म ईंधन के जलने से, वनों की कटाई।

क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs)

प्रशीतन, विलायक, ऊष्मारोधी फाम, हवाई ईंधन, औद्योगिक  और वाणिज्यिक उपयोग।

मीथेन (CH4)

धान उगाने, मवेशियों के मल-मूत्र और अन्य पशु दीमक, जीवाश्म ईंधन का जलना, लकड़ी, भूमि भराव।

नाइट्रोजन ऑक्साइड (N2O)

जीवाश्म ईंधन का जलना, उर्वरक, लकड़ी और फसल अपशिष्टों  का जलना।

 

भूमंडलीय ऊष्मन का प्रभाव हमारे ग्रह में जैविक और अजैविक घटकों दोनों को प्रभावित करता है।

जलवायु पर प्रभाव


भूमंडलीय तापन

14.2.3 प्राणियों पर प्रभाव


- वायुमंडल में CO2 की बढ़ती सांद्रता (मात्रा) पौधों में प्रकाश संश्लेषण उत्पादन को बढ़ा देती है। बदले में यह अधिक कार्बनिक पदार्थ तैयार करता है। यह एक सकरात्मक प्रभाव प्रतीत होता है किन्तु फिर-
- अपतृणों का जल्दी-जल्दी उत्पन्न होना तथा वह भी लाभदायक पौधों की कीमत पर।
- पौधों को खाने वाले कीटों और अन्य पीड़कों की संख्या भी बढ़ जाती है।
- अन्य जीवों के जीवित रहने पर भी प्रभाव पड़ता है।

14.2.4 ‘हरित गृह’ (ग्रीन हाउस) प्रभाव का सामना करने की योजनाएँ


हमें तत्काल कदम उठाकर ग्रीन हाउस (Green House) से निकलती हुई गैसों, विशेषकर कार्बन डाइऑक्साइड को कम करके वैश्विक ऊष्मण को कम करना चाहिए। निम्नलिखित चरणों का पालन करके हम ग्रीन हाउस से निकलने वाली गैसों का वातावरण में उत्सर्जन कम कर सकते हैं:

- विद्युत संयंत्रों और वाहनों की ईंधन दक्षता को बढ़ाकर।
- विकास/सौर ऊर्जा के कार्यान्वयन/गैर जीवाश्म ईंधन के विकल्प ढूंढकर।
- वनों की कटाई को कम करने से।
- वनीकरण का समर्थन और पौधों के रोपण को करके (वृक्षारोपण)
- वायु प्रदूषण को कम करना (तालिका 14.1 देखें)

पाठगत प्रश्न 14.1


1. आपको क्यों लगता है कि पर्यावरण के मुद्दे वैश्विक महत्त्व के हैं?
2. कम से कम तीन पर्यावरण के मुद्दों के विषय में बताओ जिनका हमें आज सामना करना पड़ रहा है।
3. वैश्विक ऊष्मण परिभाषित कीजिए।
4. ग्रीन हाउस प्रभाव को ऐसा क्यों कहा जाता है?
5. ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली कौन सी विकिरण हैं जो वातावरण में परिलक्षित नहीं होती है?
6. चार ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखो।

14.3 जैव विविधता (BIODIVERSITY)


किसी क्षेत्र के पौधों और जन्तुओं की गठन को जैव विविधता कहते हैं। जैव विविधता एक प्राकृतिक सम्पत्ति है जो मानव अस्तित्व के लिये आवश्यक होता है।

14.3.1 वर्गीकरण


जैव विविधता को वर्गीकृत किया जा सकता हैः
(क) जैव विविधता की प्रजातियाँ: इसमें कुल संख्या में विभिन्न वर्गिकीय या जैविक प्रजातियाँ शामिल हैं। भारत में 200000 से अधिक प्रजातियाँ हैं जिनमें से बहुत सी केवल भारत तक ही सीमित हैं। (स्थानिक)

(ख) आनुवांशिक जैव विविधताः इसमें भूमि, बागवानी की किस्में, कृषिजोपजाति, पारिप्ररूप (संबंधित प्रकारों के पाये जाने वाले अंतर के कारण पारितंत्र की दशाओं में अंतर) पाया जाना सभी एक जैविक प्रजातियों के भीतर।

(ग) पारितंत्र जैव विविधताः इनमें कई जैविक क्षेत्र, जैसे कि झील, रेगिस्तान, तट, ज्वारनदमुख, आर्द्रभूमि, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ आदि शामिल हैं।

पूरे संसार के विभिन्न प्रकार की मनुष्य की अविवेकी गतिविधियाँ वनस्पतियों तथा जीवों दोनों को प्रभावित कर रही हैं। ये गतिविधियाँ प्रायः मानव आबादी में तेजी से हो रही वृद्धि, वनों की कटाई, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से संबंधित हैं।

14.3.2 जैव विविधता के नुकसान के कारण


जैव विविधता की तेजी से होती हुई गिरावट कई कारणों का परिणाम हैः

(1) प्राकृतिक पर्यावासों का अंतः मानव जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण, भूमि की आवश्यकता बढ़ रही है जिससे भूमि पाटने के कारण वेटलैण्ड (आर्द्रभूमि) सूख गये हैं। प्राकृतिक वन को उद्योग, कृषि, बाँधों, बस्ती, मनोरंजन स्थल, खेलों आदि के लिये काटे जा रहे हैं। परिणामस्वरूप प्रत्येक पौधा तथा पशु प्रजातियाँ जो पारितंत्र में रहती हैं, वे अस्थायी अथवा स्थायी रूप से प्रभावित हैं। इसी प्रकार पलायन पक्षियों या अन्य जानवरों के जो इस प्रकृति में रहते हैं; उनके ऊपर भी प्रभाव दिखाई देता है।

अतः उस पर्यावास में रहने वाली विभिन्न प्रजातियों की आबादी अस्थिर हो जाती है। एक परिवर्तित पारितंत्र पड़ोसी पारितंत्र में परिवर्तन लाता है।

(2) प्रदूषणः प्रदूषण से भी पर्यावास में इतना परिवर्तन आ जाता है कि कुछ प्रजातियों के अस्तित्व के लिये बहुत संकट उत्पन्न हो जाता है। उदाहरणार्थ- जो प्रदूषण ग्रीन हाउस प्रभाव को बढ़ाता है, उसके कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ जाती है। ये सारी प्रजातियाँ, जो बदलते हुए वातावरण में संमंजित करने में बहुत अधिक समय लेते हैं, वे प्रजातियाँ समाप्त (विलुप्त) हो जाती हैं।

(3) अत्यधिक प्रयोगः मनुष्य तेल के लिये व्हेल मछली, भोजन के लिये, लकड़ी के लिये वृक्ष, औषधि के लिये पौधे आदि अधिक मात्रा पर निकाल कर कम संख्या में लगा पाता है। वृक्षों की अत्यधिक कटाई, अतिचारण, ईंधन का इकट्ठा करना, खालों के लिये जंगली पशुओं का शिकार करने के (जैसे कि भारत के आरक्षित वनों से बाघ तथा हाथी दाँत आदि) परिणामस्वरूप प्रजातियों का क्रमशः ह्रास हो रहा है।

(4) विदेशी प्रजातियों से परिचयः विदेशी क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय यात्रा की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ प्रजातियों का किसी नये क्षेत्र में आकस्मिक प्रवेश अब आसान हो गया है। कई प्रजातियाँ हैं जिन्होंने नये क्षेत्रों पर आकस्मिक आक्रमण कर दिया है। कई नई प्रजातियाँ जो नये क्षेत्रों में घुस आयी हैं, वे देशी प्रजातियों की कीमत पर जीवित रह रही हैं। उदाहरण के लिये विदेशी मूल के पार्थेनियम, आर्जिमोन और लोनताना हमारे देश में पाये जाने वाले कुछ सामान्य अपतृण हैं।

चित्र 14.2 हमारे देश में सामान्य विदेशी उद्गम से पाये जाने वाले अपतृण(5) पर्यावरण ह्रास: पर्यावरण अवक्रमण के बहुत सारे कारण जैव विविधता को नष्ट कर देते हैं। इनमें से कुछ कारण हैं- वैश्विक ऊष्मण, बढ़ी हुई CO2 , वातावरण में एकाग्रता, परमाणु विकिरण, UV-किरणों का उद्भासन, तेल फैलाव आदि उदाहरण के रूप में, नीचे हम कारकों का संयोजन करके संकलन करते हैं।

हम नीचे एक उदाहरण लेते हैं जो समुद्री जैवविविधता को नुकसान पहुँचाने वाले कारकों का एक संयुक्त रूप से तैयार किया गया खाँचा है।

14.4 मरुस्थलीकरण (DESERTIFICATION)


जैसा कि पहले परिभाषित किया गया है कि मरुस्थलीकरण (रेगिस्तान) भूमि की जैविक क्षमता का विनाश करती है जिससे अंततः रेगिस्तान का निर्माण होता है।

ऐसी भूमि को, जिसने अपनी उत्पादकता को खो दिया हो (पौधों को विकसित करने की क्षमता), उसे मरुस्थल (रेगिस्तान) कहते हैं। मरुस्थल का परिदृश्य, वनस्पति का एक बहुत ही सीमित विकास तथा पौधों का भी अवरुद्ध विकास दिखाता है। पृथ्वी के एक स्थलीय क्षेत्र का एक बहुत बड़ा भाग 132.4 मिलियन sqkm3 मरुस्थल का सामना कर रहा है- जो मानव गतिविधियों के लिये भूमि संसाधनों का स्वार्थसाधन तथा कुप्रबन्ध के कारण है।

चित्र 14.3 समुद्री जैवविविधता को प्रभावित करने वाले कारकरेगिस्तान को बढ़ाने वाले मुख्य कारकः

- अत्यधिक खेती
- अत्यधिक चराई (अतिचारण)
- वनों की कटाई (वनोन्मूलन) और
- सिंचाई के कारण नमक संचय

(क) अत्यधिक खेती


खेती के प्रत्येक चक्र की बुवाई से पहले हल चलाकर अपतृणों (खरपतवारों) को निकाला जाता है। भूमि जोतने के कारण मिट्टी ऊपर नीचे उथल पुथल की जाती है। जिसके कारण उपजाऊ मिट्टी को हवा-पानी के अपरदन से संपर्क हो जाता है। ऐसी भूमि वर्ष के अधिकांश समय के लिये बंजर रह सकती है। अधिक कटाव से मिट्टी का क्षरण हो जाता है। ऐसे कटाव सबसे अधिक ढलानों पर पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा कम होने वाले क्षेत्रों में प्रायः मिट्टी सूख जाती है और अधिक कटाव की संभावना होती है। जोती हुई मिट्टी वाष्पीकरण से अधिक पानी खो देती है।

(ख) अत्यधिक चराई (अतिचारण, Over grazing)


रेगिस्तान में वर्षा कम होती है। रेगिस्तान में विरल वनस्पति जिनमें अधिकतर घास और जड़ी बूटियाँ पायी जाती है जो चराई के इस्तेमाल के लिये सबसे बढ़िया होती है। बकरियों की अत्यधिक चराई, घरेलू पशु से बचाकर रखने वाली वनस्पतियों को हटाकर भूमि को नंगा करते हैं। इसके अतिरिक्त चरने वाले पशुओं ‘चलते समय’ अपने खुरों से भूमि की सतह को ढीला कर देते हैं। असुरक्षित ढीली मिट्टी भूक्षरण से लड़ने की प्रवणता, जो हवा और जल से होती है, खो देती है। ऐसी घटनाएँ रेगिस्तान की प्रगति का कारण बनती है जिन्हें चित्र 14.4 में दिखाया गया है।

चित्र 14.4 मरुस्थलीकरण को दर्शाते कारक

(ग) वनों की कटाई


वन और वनस्पति भूमि के कटाव (मृदा-अपरदन) को रोकते हैं और गीली मिट्टी पानी को जकड़ लेती हैं। पौधों की जड़ें सड़े-गले कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त पोषक तत्त्वों की पुनर्चक्रित करके जड़ों द्वारा अवशोषित कर लेती है। वन प्रायः कृषि, लकड़ी, निर्माण लकड़ी, ईंधन, कागज बनाने के कच्चे माल आदि के लिये काटे जाते हैं। ये सभी कारण धरती को बंजर बनाकर भूमि को मरुस्थल (रेगिस्तान) बना देती हैं।

(घ) सिंचाई से जल का नमकीन होना


कृषि की अधिक मांग के साथ, फसलें उन क्षेत्रों में बोई जा रही हैं जिनमें प्राकृतिक जल-निकायों की पहुँच नहीं है। इन बढ़ते हुए क्षेत्रों में जल कृत्रिम साधनों और सुधारित सिंचाई विधियों द्वारा दिया जाता है। यह जल, अपने साथ पानी मे घुला लवण लाता है। सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले सिंचाई में 200-500 ppm लवण होता है। सिंचाई जल के लिये जल वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से कृषि क्षेत्रों द्वारा नष्ट कर देते हैं। जल तो वाष्पीकरण से सूख जाता है किन्तु घुला हुआ नमक एकत्र होता रहता है जो बाद में नमकीन मिट्टी में नमक छोड़ देता है। इस प्रकार मिट्टी और अधिक नमकीन हो जाती है। भूमि पर अधिक नमक जमा होने के कारण पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न करने लगती है। जिस भूमि में पादप आवरण नहीं रहता, वह आसानी से मरुस्थल हो जाता है। मिट्टी में अत्यधिक नमक का होना या नमक का संचय होना भूमि को कृषि के लिये अयोग्य बना देता है।

पाठगत प्रश्न 14.2


1. जैव विविधता के विविध घटकों की सूची बनाइये।
2. जैव विविधता की क्षति क्यों होती है?
3. उच्च प्रौद्योगिकी तकनीक से मछली पकड़ने से समुद्री जैव विविधता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
4. एक प्रजाति अपना प्राकृतिक निवास कैसे खोता है?
5. किन प्रकार की गतिविधियों से रेगिस्तान को बढ़ावा मिलता है?
6. किस प्रकार की बुवाई लंबी अवधि के लिये बेहतर है- हल या ट्रैक्टर बुवाई?
7. रेगिस्तान क्या होता है?

14.5 ओजोन परत का अपक्षय (OZONE LAYER DEPLETION)
14.5.1 ओजोन परत की संरचना


ओजोन (O3) एक उच्च प्रतिक्रियाशील अणु है जो ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से युक्त है। पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी सतह, जो 10 और 50 किमी. के बीच पृथ्वी से ऊपर की सतह पर होती है, उसे समतापमंडल (stratosphere) कहते हैं। इसमें ओजोन की एक पतली परत होती है। यह ओजोन परत सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी विकिरण रोकने के लिये एक प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करती है।

अल्ट्रॉवायलेट (UV) विकिरणों, जिनकी तरंगदैर्घ्य दृश्य स्पेक्ट्रम की तुलना में उच्च ऊर्जा होती है, UV विकिरणों को तीन रूपों में विभाजित किया जा सकता है: UV-A (तरंगदैर्घ्य 320-400nm के बीच में), UV-B (तरंगदैर्घ्य 280 nm से कम), और UV-C (तरंगदैर्घ्य 280nm से भी कम), UV-C जैविक तंत्रों को सबसे ज्यादा हानि पहुँचाती है।

1970 के प्रारंभ से ही समतापमंडलीय ओजोन (stratospheric ozone) की पर्तें भूमि के कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से अंटाकर्टिक क्षेत्र में पतली हो रही हैं। अंटाकर्टिक क्षेत्र विश्व की सबसे उत्पादक समुद्री पारितंत्र प्रणालियों में से है। समतापमंडलीय ओजोन परत के पतला होने को ‘‘ओजोन छिद्र’’ (Ozone Hole) कहते हैं।

14.5.2 ओजोन परत के अपक्षय के कारण


ओजोन परत (O3) को मानव तथा प्राकृतिक-दोनों कारणों से नष्ट किया जा सकता हैः-

(i) प्राकृतिक कारणः प्रकृति से उत्पन्न कई पदार्थ समतापमंडलीय ओजोन को नष्ट कर देते हैं। इनमें सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यौगिक हैं:-

हाइड्रोजन ऑक्साइड (HOx), मीथेन (CH4), हाइड्रोजन गैस (H2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), क्लोरीन मोनोऑक्साइड (ClO), ज्वालामुखी फटने के समय, क्लोरीन की महत्त्वपूर्ण मात्र समतापमंडल में छोड़ी जा सकती है। समतापमंडल के छोटे कण जिन्हें समतापमंडलीय एअरोसोल कहा जाता है, भी ओजोन के विनाश का कारण बन सकता है।

(ii) मानव गतिविधियों से संबंधित कारणः ऐसी घटना, जिससे वायुमंडल में क्लोरीन परमाणु उत्सर्जित होते हैं वह ओजोन-विनाश का गंभीर कारण बन सकते हैं क्योंकि समतापमंडल में क्लोरीन परमाणु बड़ी कुशलता से ओजोन को नष्ट कर सकते हैं। इन ऐजेंटों में से सबसे विनाशकारी मनुष्य द्वारा निर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन (Chlorofluoro Carbons, CFCs) हैं जिनका प्रयोग व्यापक रूप से प्रयोग प्रशीतलन (Refrigerants) में तथा छिड़काव करने वाली बोतलों को दाबानुकूलित करने के लिये किया जाता है। समतापमंडल में CFCs में क्लोरीन परमाणु ओजोन के साथ प्रतिक्रिया करके क्लोरीन मोनोऑक्साइड और ऑक्सीजन अणु बन जाते हैं।

Cl + O3 …………………………. ClO + O2

क्लोरीन मोनोऑक्साइड तब ऑक्सीजन अणु के साथ प्रतिक्रिया करके और अधिक क्लोरीन परमाणु छोड़ देते हैं।

चित्र 14.5 ओजोन अणु का निर्माण

 

तालिका 14.2: महत्त्वपूर्ण ओजोन क्षयकारी रसायन और उनका उपयोग

यौगिक का नाम

उपयोग में

CFCs

प्रशीतलन, एयरोसोल, फॉम, खाद्यों को ठंडा करने, वार्मिंग उपकरणों (ऊष्मा प्रदान करने वाले उपकरण), सौंदर्य प्रसाधन, ऊष्मा को पहचानने वाले विलायक, प्रशीतलक, अग्निशमन

ऑक्सीजन

अग्नि शमन

HCFC-22

प्रशीतलक, एयरोसोल, फॉम, अग्निशमन

मिथाईल क्लोरोफोर्म

विलायक

कार्बन टेट्राक्लोराइड

विलायक

 

14.5.3 O3 परत अपक्षय का प्रभाव


हम ओजोन छिद्र के विषय में इतने चिंतित क्यों हैं? इसका कारण है कि ओजोन कवच के बिना घातक पराबैंगनी विकिरण वातावरण को बेध कर धरती की सतह पर पहुँच जायेगा। UV विकिरण की एक छोटी मात्रा में विकिरण मनुष्यों तथा अन्य जीवों के लिये आवश्यक है जैसे कि UV-बी विटामिन डी के संश्लेषण को बढ़ावा देता है। UV विकिरण जर्मनाशी के रूप में सूक्ष्मजीवों को नियंत्रित करने का कार्य भी करते हैं। यद्यपि UV की बढ़ी हुई खुराक जीवित जीवों के लिये बहुत अधिक खतरनाक होती है।

मानव पर हानिकारक प्रभाव


- त्वचा कैंसर के प्रति अतिसंवेदनशीलता में वृद्धि
- मोतियाबिंद में वृद्धि
- DNA की क्षति
- कॉर्निया की क्षति
- नेत्र संबंधी रोगों का कारण
- मानव प्रतिरोधी तंत्र का कमजोर होना

पौधों पर हानिकारक प्रभाव


- प्रकाश संश्लेषण का संदमन
- उपापचय क्रिया का संदमन
- वृद्धि का रुकना
- कोशिकाओं का नष्ट होना
- उत्परिवर्तन का कारण
- वन-उत्पादकता में कमी होना

अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव


- समुद्री/अलवणीय जल जीव UV-किरणों के प्रति अति संवेदनशील होते हैं।
- मछली के लार्वा बहुत संवेदनशील होते हैं।
- प्लवक समष्टि बुरी तरह नष्ट हो जाती है।
- मछली/श्रिम्प/झींगों के लार्वे प्रभावित होते हैं।

निर्जीव पदार्थों पर हानिकारक प्रभाव


- पेंट के झड़ने को बढ़ावा मिलता है।
- प्लास्टिक के टूटने को बढ़ावा मिलता है।
- वायुमंडल में तापमान-प्रवणता स्तर प्रभावित होता है।
- वायुमंडलीय परिसंचरण प्रणाली प्रभावित होती है, जलवायवीय बदलाव होते हैं।

14.5.4 ओजोन परत के रिक्तीकरण रोकने के उपाय


वैश्विक जागरूकता तथा विश्व समुदाय की जागरूकता के लिये हेलसिंकी (1989), माट्रियल (1990s) के अधिवेशन और प्रोटोकाल के रूप में इस मोर्चे पर कुछ महत्त्वपूर्ण सफलता मिली है। CFCs तथा अन्य ओजोन को नष्ट करने वाले अन्य रसायनों के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की जा रही है। इसके अतिरिक्त क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs) के लिये एक विकल्प के रूप में हाइड्रोक्लोरिक फ्लोरोकार्बन के प्रयोग की अस्थाई आधार पर सिफारिश की जा रही है क्योंकि CFCs की तुलना में HCFCs ओजोन परत को अपेक्षाकृत कम हानि पहुँचा रहे हैं- किन्तु वे भी ओजोन परत को पूरी तरह सुरक्षित नहीं कर सकते।

पाठगत प्रश्न 14.3


1. समतापमंडल में ओजोन किन प्रकार की विद्युत तरंगों की स्क्रीन कर रही हैं? उनके तरंगदैर्घ्य दें।
2. ओजोन के एक अणु में कितने ऑक्सीजन परमाणु होते हैं?
3. ज्वालामुखियों से O3 के नष्ट होने में क्या योगदान है?
4. किस प्रकार की मानवजनित गतिविधियाँ ओजोन कवच के लिये सबसे खतरनाक होती हैं?
5. UV (पराबैंगनी) विकिरण का मनुष्य पर कुछ हानिकारक प्रभावों के नाम लिखिए।

14.6 अम्ल वर्षा


अम्ल वर्षा (Acid rain) उन सभी अवक्षेपों (वर्षा, कोहरा, धुंध, बर्फ) को इंगित करती है जो सामान्य से अधिक अम्लीय होती है। अम्ल वर्षा पर्यावरण प्रदूषण से निकलने वाली अम्लीय गैसों-जैसे सल्फरडाइ ऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों, जो जीवाश्म ईंधन के जलने से पैदा होते हैं, उनके कारण होती है। अम्ल वर्षा का संघटन तब होता है जबकि अम्लीय गैंसे, विद्युत संयंत्रों के उद्योगों और ऑटोमोबाइल से उत्सर्जित होकर वर्षा की बूँदों के साथ मिल जाती हैं। अम्ल वर्षा पारितंत्रों को विभिन्न प्रकार से प्रभावित कर सकती है।

चित्र 14.6 अम्ल वर्षाअतः वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड का उत्सर्जन अम्ल वर्षा के बनने का कारण होता है।

यह भी मान्यता है कि अम्लीय स्मोग, कोहरा, धुंध, वातावरण के बाहर चले जाते हैं और बदले में वे धूल कणों पर जमा होकर वनस्पति पर अम्ल जमावों के रूप में एकत्र हो जाते हैं और अम्ल की ओंस बन जाती है।

नीचे दी गई तालिका आपकी यह जानने में सहायता करेगी कि उन गैसों/पदार्थों का क्या योगदान हैं जिनसे अम्ल वर्षा होती है।

 

तालिका 14.3: अम्लीय गैसों और उनके उत्सर्जन स्रोत

अम्लीय गैसें

स्रोत

CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड)

जीवाश्म ईंधन के जलने से, औद्योगिक प्रक्रियाओं, श्वसन

CH4 (मीथेन)

धान के खेत, आर्द्रभूमि, गैस ड्रिलिंग, भूमिभरण, पशुओं, दीमक

CO (कार्बन मोनोऑक्साइड)

बायोमास का जलना, औद्योगिक स्रोत, जीवातजनन (Biogenesis), पादप आइसोप्रीन

SOx (सल्फर डाइऑक्साइड)

जीवाश्म ईंधन जलाने, औद्योगिक स्रोतों, ज्वालामुखी, महासागरों से

NOx (नाइटोजन ऑक्साइड)

जीवाश्म ईंधन जलाने, बिजली, बायोमास जल, महासागरों, बिजली संयंत्र से

 

14.6.1 अम्ल वर्षा के हानिकारक प्रभाव


अम्ल अवक्षेपण जलीय और स्थलीय दोनों प्रकार के जीवों को प्रभावित करता है। यह इमारतों तथा स्मारकों को भी नुकसान पहुँचाता है।

(i) जलीय जीवन पर प्रभाव


आस-पास या माध्यम का pH जलीय जीवों की चयापचय प्रक्रियाओं के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। मछलियों, मेढ़कों तथा अन्य जलीय जीवों के अंडे या शुक्राणु pH परिवर्तन के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। अम्ल वर्षा युग्मकों को मारता है जिससे उनके जीवन चक्र और उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है। मृत्यु अथवा उनकी संख्या में वृद्धि करने की अक्षमता अम्लीय जल निकायों में जलीय खाद्य शृंखलाओं को प्रभावित कर सकती है। इससे गंभीर पारितंत्र असंतुलन पैदा हो सकता है।

अम्लीय झील के पानी में पाये जाने वाले बैक्टीरिया/सूक्ष्मजीवों/प्लवक मारे जा सकते हैं और अम्लीय झीलें अनुत्पादक तथा प्राणहीन हो सकती हैं। ऐसे अम्लीय और बेजान तालाबों/झीलों से मत्स्य पालन और आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(ii) स्थलीय जीवन पर प्रभाव


अम्लीय वर्षा पौधे के पत्तों के उपचर्म (cuticle ) को नुकसान पहुँचा सकता है जिसके परिणामस्वरूप पत्ते पर पीलापन छा जाता है। बदले में, यह प्रकाश संश्लेषण कम कर देता है। कम प्रकाश संश्लेषण से पत्ते गिरने लगते हैं और फसल की उत्पादकता कम हो जाती है।

अम्लीय माध्यम भारी धातुओं जैसे एल्यूमिनियम, सीसा और पारे के निक्षालन को बढ़ावा देता है। इस प्रकार के धातु पृथ्वी के पानी में छन कर जाते हैं। मिट्टी को सूक्ष्मजीव/सूक्ष्मपादप को प्रभावित करते हैं। मिट्टी बेजान हो जाती है। पौधे तथा सूक्ष्मजीव इन विषैली धातुओं का अवशोषण करते हैं जिससे उनकी उपापचय क्रिया प्रभावित होती है।

(iii) वनों पर प्रभाव


अम्ल वर्षा वनों को नुकसान पहुँचाती है और वनस्पतियों को नष्ट करती है तथा परिदृश्य को गंभीर हानि पहुँचाती है।

(iv) इमारतों और स्मारकों पर प्रभाव


कई पुरानी ऐतिहासिक इमारतों, कला-कृतियों और वस्त्रों पर अम्ल वर्षा का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। चूना, पत्थर और संगमरमर अम्ल वर्षा से नष्ट हो रहे हैं। इन पर धुएँ और कालिख की परत लगी है। वायु में अम्लीय धुएँ के कारण ये धीरे-धीरे सतह की परतों को घुलित/पत्रक कर रहे हैं। कई इमारतें/स्मारक जैसे कि आगरा का ताजमहल अम्ल वर्षा से खराब हो रहा है।

14.6.2 अम्ल वर्षा से निपटने के लिये नीतियाँ (रणनीतियाँ)


कोई भी प्रक्रिया जो वातावरण में सल्फर और नाइट्रोजन के उत्सर्जन को कम करेगा, वही अम्ल वर्षा पर नियंत्रण कर पायेगा। कम सल्फर ईंधन या प्राकृतिक गैस या धुआँ कोयला (कोयले की रासायनिक धुलाई), इन चीजों का तापीय संयंत्रों में उपयोग, अम्ल वर्षा की घटनाओं को कम कर सकता है।

पाठगत प्रश्न 14.4


1. दो अम्लों के नाम लिखो जो अम्ल वर्षा में होते हैं।
2. अम्ल वर्षा जलीय जीवन को कैसे प्रभावित करती है?
3. किस प्रकार के ईंधन का प्रयोग करने से अम्लवर्षा को रोकने में सहायता मिलेगी?

14.7 नाभिकीय आपदाएँ (NUCLEAR DISASTERS)


नाभिकीय ऊर्जा कई पर्यावरणीय और सामाजिक समस्याओं के लिये एक विकल्प प्रदान करता है किन्तु, उससे कई गंभीर समस्याएँ शुरू होती हैं। यद्यपि यह पर्यावरण के अनुकूल है किन्तु आर्थिक दृष्टि से इसका बोझ अभी नहीं उठा सकते। नाभिकीय संयंत्रों से दुर्घटनाओं का संभावित खतरा होता है जो पर्यावरण में खतरनाक रेडियोधर्मी सामग्री को उत्सर्जित कर सकते हैं। समस्याएँ दोनों ओर की हैं: (1) परमाणु आपदाएं और उनका घटित होना (2) परमाणु नाभिकीय संयंत्रों द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट का सुरक्षित निपटान। कुछ प्रमुख परमाणु आपदाओं की सूची तालिका 14.4 में दी गई है।

 

तालिका 14.4: कुछ प्रमुख परमाणु आपदाओं की सूची

वर्ष

परमाणु ऊर्जा संयंत्र

दिसम्बर

1952 चाक नदी, टोरेंटों, कनाडा

अक्टूबर 1957

विंडस्केल प्लूटोनियम उत्पादन केन्द्र, यू-के-

26 अप्रैल 1986

चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर, कीव, चेरनोबिल, सोवियत संघ

नवम्बर 1995

मोन्जू, जापान

 

14.7.1 पर्यावरण पर परमाणु आपदाओं का प्रभाव


परमाणु रिसाव के हानिकारक प्रभाव जल्दी या धीमी गति से हो सकते हैं।
परमाणु विकिरण के घातक और तत्काल प्रभाव होते हैं सब जानते हैं कि विश्व युद्ध II के दौरान जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में इन प्रभावों को सभी ने देखा है। अतः नाभिकीय ऊर्जा का सैन्य उपयोग सदैव अकल्पनीय परिणाम लाता है।

धीमी गति से परमाणु विकिरण भी परमाणु रिएक्टरों, प्रयोगशालाओं, अस्पतालों और नैदानिक प्रयोजनों के लिये विकिरण को प्रत्यक्ष निवेश (उदाहरण के लिये एक्स-रे) जैसे विभिन्न स्रोतों से निर्गत हो सकता है।

इतनी कम मात्रा में विकिरण जीवन के प्रकारों और पारितंत्रों पर काफी महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।

अब यह प्रचलित हो गया है कि कम मात्रा में लगातार जारी किये जाने वाले छोटे परमाणु विकिरण की मात्रा बहुत हानिकारक हो सकती है। इसके कारण बचपन से होने वाला रक्त कैंसर (ल्यूकीमिया) गर्भपात, कमजोर बच्चे, शिशु मृत्यु, बढ़ता हुआ एड्स का खतरा तथा अन्य प्रतिरक्षा विकारों और बढ़ती हुई अपराधिता हो सकती है।

भूमिगत बम परीक्षण बहुत थोड़ी मात्र में विकिरण छोड़ता है जो भूमिगत जल में पहुँच जाता है। यह रेडियाधर्मी पानी पौधों की जड़ों के माध्यम से सोख लिया जाता है। यह रेडियोधर्मिता खाद्य शृंखला में प्रवेश कर जाती है जिससे यह पौधे (भोजन) पशु और मनुष्य खा लेते हैं। ऐसी रेडियाधर्मिता दूध तक में पायी जाती है।

पाठगत प्रश्न 14.5


1. धीमे परमाणु विकिरण जो जीवन रूपों के लिये खतरा बन सकते हैं, उनके सूत्रों के विषय में बताओ।
2. परमाणु विकिरण के कुछ हानिकारक प्रभाव जो मानव-जीवन पर पड़ते हैं, उनकी सूची बनायें।

14.8 तेल रिसाव (OIL SPILLS)


तेल प्रदूषण जल निकायों पर तेल की परतों को संदर्भित करता है। तेल रिसाव सभी समुद्री प्रदूषणों का सबसे भयानक रूप है। हर समुद्री परिवहन पोत तेल रिसाव के लिये एक संभावित खतरा बन गया है।

14.8.1 तेल रिसाव के कारण


तेल रिसाव का सबसे सामान्य कारण है समुद्री परिवहन के दौरान रिसाव होना। इसमें प्रायः (छोटे पैमाने पर) और बड़े पैमाने पर (दुर्घटना) शामिल होती है। तेल रिसाव समुद्री तट पर तेल उत्पादन के दौरान भी हो सकता है। यह लगातार तेल रिसाव के साथ-साथ तेल टैंकरों द्वारा आपूर्ति लाइन से भी हो सकता है। मोटर बोटों द्वारा भी समुद्र में तेल गिर जाता है। औसतन, प्रति 1000 टन तेल पर, जो समुद्र से ले जाया जाता है, उसके पीछे एक टन तेल समुद्र में फैल जाता है।

14.8.2 समुद्री जीवन पर तेल रिसाव का प्रभाव


तेल रिवास के कुछ ही घंटों के भीतर मछलियाँ, शैलफिश, प्लवक, घुटन और चयापचय विकारों के कारण मर जाते हैं। रिसाव के एक दिन के भीतर पक्षी और समुद्री स्तनपायी मर जाते हैं। इन जीवों की मृत्यु से समुद्री पारितंत्र पर गंभीर रूप से प्रभाव पड़ता है। तेल रिसाव से या तो विष निकलता है या शैवाल वृद्धि या एल्गल ब्लूम (algal blooms) पर घुटन का प्रभाव हो जाता है। परिणामस्वरूप जल निकायों में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। जिस पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, ऐसा पानी भारी संख्या में मछलियों/सामुद्रिक जीवन की मृत्यु के लिये जिम्मेदार होता है।

14.8.3 स्थलीय जीवन पर तेल फैलाव का प्रभाव


खाड़ियां, ज्वारनदों, तटों, भित्तियों, बड़े समुद्री तटीय शहरों अथवा नदियों की खाड़ियां- ये सब तेल रिसाव के खतरों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। कई तटीय गतिविधियों विशेष रूप से मनोरंजन जैसे कि तैराकी, नौका-विहार, मछलियाँ आदि पकड़ना, बेड़ों को चलाना आदि पर भी प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप तटीय क्षेत्रों में पर्यटन तथा होटल व्यवसाय भी गंभीर रूप से ग्रस्त हो रहे हैं।

पाठगत प्रश्न 14.6


1. शैवाल वृद्धि (algal blooms) पर तेल-रिसाव का क्या प्रभाव होता है?
2. तेल रिसाव का समुद्री जीवन पर क्या हानिकारक प्रभाव पड़ेगा?

14.9 संकटदायी अपशिष्ट (HAZARDOUS WASTE)


कोई भी पदार्थ जो वातावरण में मौजूद है या जो वातावरण में छोड़ा जाता है तथा जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण कल्याण के लिये गंभीर रूप से हानिकारक है, उसे संकटदायी पदार्थ कहते हैं।

कोई भी पदार्थ जिसके एक विकिरण से स्वास्थ्य पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़े, उसे संकटदायी (खतरनाक) पदार्थ कहा जाता है। कोई भी संकटदायी पदार्थ किसी एक अथवा एक से अधिक निम्नलिखित लक्षणों का प्रदर्शन करता हैः

- विषाक्तता
- ज्वलनशीलता
- संक्षारक
- अभिक्रियात्मक (विस्फोट)

इस प्रकार कोई भी अपशिष्ट जिसमें खतरनाक या बहुत हानिकारक तत्व पाया जाता है, उसे अपशिष्ट कहते हैं। संकटदायी अपशिष्ट विभिन्न स्रोतों से जैसे कि घर की वस्तुएँ, स्थानीय क्षेत्रों, शहरी, उद्योग, कृषि, निर्माण कार्य, अस्पतालों और प्रयोगशालाओं, ऊर्जा संयंत्रों और अन्य स्रोतों से पैदा होता है।

संकटदायी अपशिष्ट (कचरे) के निपटान से सम्बन्धित समस्याएँ
वास्तव में खतरनाक कचरे को जब फेंकते हैं तब उसका निपटान पर्यावरण अमित्र पदार्थ को अत्यधिक मात्रा में छोड़ता है। उसमें से कुछ तालिका 14.4 में दिये गये हैं।

 

तालिका 14.4: घातक अपशिष्ट, उसके निपटान और प्रभाव

स्रोत

निपटरा/उपयोग के रूप

प्रदूषण कारी ऐजेंट

प्रभाव

औद्योगिक अपशिष्ट

कचरे को जलाये जाने से

जहरीली लपटें, क्लोरीन पोलीविनाइलक्लोरीन

क्लोरीन अम्ल वर्षा के कारण संभव है।

 

अधूरा दहन

डायोक्सिन/आर्गेनो

कार्सिजेनिक (कैंसरजन्य)

 

जलनिकायों में निष्काषित

क्लोरोफीनोल, फ्लोरीन यौगिक, ऐल्डीहाइड, SO2, CO2

पर्यावरणीय प्रदूषण का कारण

 

प्लास्टिक से

पॉलीथीन, पॉलीप्रोपाइलीन, पोलियेस्टर आदि  के जलने से उत्पन्न गैसें

विषाक्त पारिस्थितिकीय प्रदूषण

नाभिकीय अपशिष्ट

अस्पतालों, प्रयोगशालाओं से

धीमी/चिकित्सा में निरंतर कृषि उपयोग

स्वास्थ्य के लिये खतरा, कैंसरजनित उत्परिवर्तन

कृषि अपशिष्ट

नाइट्रोजन अपशिष्ट के रूप में  

खाद/गोबर में NO3-/NO2

सब्जियों में एकत्र होना, मिथेनोबेनेमीया  सायनोसिस का कारण

  

नाइट्रोसेमीन्स/ NO3-/NO2-

अम्ल वर्षा में कैंसरजनितों का योगदान

  

N2O

हरितगृह प्रभाव

  

NH3 (मवेशियों के प्रजनन से)

जलीय जीवन पर प्रभाव, कवक वृद्धि को बढ़ाते हैं, अधिपादपों, वनों में अपक्षय का कारण

 

फॉस्फेट

 

जलीय पर्यावरण को सुपोषित करना (यूट्रोफिकेशन)

 

फाइटोसेनेटरी उत्पाद

कीटनाशक/पीड़कनाशक कवकनाशक/शाकनाशी

बहते जल के साथ मृदा में प्रवेश करते हैं। जलीय जीवन का प्रदूषित जल तालिका प्रभावित करता है, कैंसरजनित, किडनी फेल होना

 

मीथेन

रूमीनैन्ट मवेशी, कार्बनिक पदार्थों का  किण्वन

शक्तिशाली हरित गृह प्रभाव


 

पाठगत प्रश्न 14.7


1. कोई चार महत्त्वपूर्ण लक्षण बताइये जो किसी भी पदार्थ को संकटदायी बनाते हैं?
2. संकटदायी पदार्थ क्या होता है?
3. क्या प्लास्टिक जलाना संकटदायी हो सकता है?
4. फाइटोसेनेटर उत्पाद क्या होते हैं? ये किस प्रकार खतरनाक हो सकते हैं।

आपने क्या सीखा


- हम सभी सामान्य वैश्विक पर्यावरण के उत्तराधिकारी हैं।

- हम सभी इस बढ़ती हुई गिरावट के लिये जिम्मेदार हैं। यदि यह गिरावट एक सीमा से अधिक बढ़ जायेगी तो हमें खतरनाक परिस्थिति में रहना होगा।

- प्रदूषण, ओजोन छिद्र, हरित गृह (ग्रीन हाउस) प्रभाव, मरुस्थलीकरण, जैव विविधता के नुकसान, तेल रिसाव, नाभिकीय आपदाओं, खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन, ये सब वैश्विक पर्यावरण की कुछ समस्याएँ हैं, जिनको सामूहिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

- मानव गतिविधियों में वृद्धि, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण के कारण पर्यावरण में तेजी से गिरावट आई है। इन्होंने जीवन प्रणाली को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

- हरित गृह (ग्रीन हाउस) एक कांच का कक्ष होता है जिसमें पौधों को सौर विकिरण और गर्मी को सोख करके, पौधों को गर्मी प्रदान करके उगाया जाता है। अवरक्त किरणें शीशे में से गुजरती हैं और उनसे जो गर्माहट उत्पन्न होती है, वह कांच के कक्ष से बाहर नहीं जा सकती।

- वाहनों में ईंधन क्षमता में विकास/सौर ऊर्जा के कार्यान्वन/ गैर जीवाश्म विकल्प, पेट्रोल विकल्प और वनों की कटाई रोकने, वृक्षारोपण का समर्थन करने से और वायु प्रदूषण आदि नीतियों से हरित गृह के प्रभाव से जूझने की नीतियाँ हैं।

- किसी भी क्षेत्र की वनस्पतियाँ तथा जीवों से वहाँ की जैव विविधता का गठन होता है। इसे प्रकृति की प्राकृतिक संपदा के रूप में माना जाता है।

- जैव विविधता को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्रजातियों की जैव विविधता, आनुवांशिक जैव विविधता और पारितंत्र की जैव विविधता।

- पर्यावास की क्षति, प्रदूषण, अत्यधिक प्रयोग, विदेशी प्रजातियों का आपसी परिचय, और अन्य पर्यावरणीय पतन के कारकों के योगदान से जैव विविधता को नुकसान होता है।

- रेगिस्तान ह्रास या भूमि की जैविक क्षमता का विनाश अंततः रेगिस्तान की ओर ले जाता है। अत्यधिक खेती, अत्यधिक चराई, वनों की कटाई, और सिंचाई जल में लवण का पाया जाना, ये रेगिस्तान बढ़ने के प्रमुख कारण होते हैं।

- अम्ल वर्षा दोनों जलीय और स्थलीय जीवन को प्रभावित करता है। यह इमारतों तथा स्मारकों को भी हानि पहुँचाते हैं।

- हम सबको व्यक्तिगत, घरेलू, स्थानीय, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पर्यावरण को स्वच्छ और सतत के लिये सहयोग देना चाहिये।

पाठांत प्रश्न


1. एक शामिल हुई खरपतवार का नाम लिखो।
2. दो ग्रीन हाउस गैसों के नाम लिखो।
3. किन्हीं दो यौगिकों को जो ओजोन परत के लिये हानिकारक है, उनके नाम लिखो।
4. अब तक सबसे विनाशकारी दुर्घटना कौनसी हुई है?
5. किसी एक फाइटोसेनेटरी उत्पाद का नाम लिखो।
6. विभिन्न (कम से कम पाँच) वैश्विक पर्यावरण मुद्दों के विषय में लिखो।
7. पर्यावरण संबंधित मुद्दे वैश्विक चिन्ताओं के कारण क्यों हो रहे हैं?
8. CFCs और ऐसे यौगिकों का प्रयोग हमें क्यों नहीं करना चाहिए?
9. संक्षिप्त व्याख्या करोः
(क) हमारे ग्रह में जीवन पर क्षोभमंडल (tropospheric) तथा समतापमंडलीय (stratospheric) ओजोन के क्या प्रभाव पड़ते हैं?
(ख) ग्रीन हाउस प्रभाव से निपटने के लिये हमें कौनसी नीतियाँ अपनानी चाहिये?
(ग) नहर पर आधारित सिंचाई मरुस्थलीकरण के लिये जिम्मेदार क्या योगदान है?
(घ) क्लोरीन परमाणु ओजोन छिद्र का कारण हो सकता है।
(ड़) मानव पर पराबैंगनी विकिरण के हानिकारक प्रभाव।
(च) नाभिकीय आपदाओं के खतरे।
(छ) ‘‘पर्यावरणीय समस्याओं को वैश्विक हस्तक्षेप की आवश्यकता है।’’

पाठगत प्रश्नों के उत्तर


14.1
1. क्योंकि पर्यावरण की अपनी कोई सीमाएँ नहीं होती, इसलिये कोई भूगौलिक सीमाएँ भी नहीं होती।
2. प्रदूषण, O2 -छिद्र, ग्रीन हाउस प्रभाव, जैव विविधता के कारण नुकसान, रेगिस्तान, खतरनाक अपशिष्ट पदार्थ, परमाणु आपदाओं, तेल रिसाव (कोई तीन)
3. पृथ्वी की सतह के निकट वातावरण के औसतन वैश्विक तापमान में प्राकृतिक या मानव प्रेरित वृद्धि के रूप में वैश्विक ऊष्मण को परिभाषित किया गया है।
4. क्योंकि यह ग्रीन हाउस जैसी स्थितियों को उत्पन्न करता है।
5. अवरक्त लाल विकिरण
6. CFCs मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, CO2

14.2
1. प्रजातियों जैव विविधता, आनुवंशिक जैव विविधता, पारितंत्रीय जैव विविधता
2. क्योंकि पर्यावास की क्षति, अत्यधिक उपयोग, विदेशियों प्रजातियों के शामिल होने के कारण
3. क्योंकि मछलियों के झुंडों का बहुत सही और बहुत कुशलता से पता लगाते हैं।
4. जब वासस्थानों को घर, उद्योग, कृषि, खेतों के लिये नष्ट किया जाता है।
5. अत्यधिक कृषि, अत्यधिक चराई, वनों की कटाई, सिंचाई के कारण नमकीन।
6. ट्रैक्टर-बुवाई
7. कुछ भूमि जिसने अपनी उत्पादन क्षमता को खो दिया हो, उसे रेगिस्तान कहा जाता है।

14.3
1. पराबैंगनी, 200-400jm
2. तीन
3. क्लोरीन की महत्त्वपूर्ण राशि जारी करने के कारक।
4. कोई भी गतिविधि जो वातावरण में क्लोरीन परमाणु छोड़ती है।
5. त्वचा कैंसर, रेटीना के रोगों, कॉर्निया के हानि आदि का कारण।

14.4
1. H2SO4, HNO3
2. अम्ल वर्षा, जिसमें जीव रहता है, वर्षा के पानी का pH कम करती है। कम pH में जीवों के युग्मक (अंडे)/शुक्राणु जीवित नहीं रह सकते। यह जीवन-चक्र को प्रभावित करता है। पीढ़ी/आबादी नुकसान।
3. सौर/परमाणु ऊर्जा

14.5
1. ज्वलनशीलता, संक्षारक, अभिक्रियात्मक, विषाक्तता।
2. बच्चों में होने वाला रक्त कैंसर, गर्भपात, कमजोर बच्चे, शिशु मृत्यु, एड्स इत्यादि।

14.6
1. समुद्री, पारिस्थितिकी तंत्र को विषाक्त या घुटन से नष्ट कर सकते हैं।
2. ऑक्सीजन की जल निकायों में कमी होने के कारण मछलियों या समुद्री जीवन की भारी संख्या में मृत्यु का कारण बन सकता है।

14.7
1. परमाणु रिएक्टरों से- प्रयोगशालाओं, अस्पतालों और प्रत्यक्ष नैदानिक प्रयोजनों के लिये- विकिरण के संपर्क के द्वारा
2. मानव और अन्य प्रकार के जीवन पर त्वरित और विनाशकारी प्रभाव, धीरे असर, बच्चों में ल्यूकीमिया, गर्भपात, शिशु मृत्यु दर, AIOs की संवेदनशीलता में वृद्धि हुई है।
3. यहाँ उनका दम घुटता है, उन्हें विषाक्त कर देती है।
4. यदि समुद्री पानी में ऑक्सीजन की कमी हो तो, पानी में रहने वाले जीवों के लिये ऑक्सीश्वसन बहुत आवश्यक होती है।

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