वैश्विक गर्मी और जलवायु शरणार्थी


पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में स्थित सागर द्वीप का निवासी बिप्लब मोंडल पिछले 25 वर्षों से एक शरणार्थी की तरह दिल्ली की गोविन्दपुरी नामक गंदी बस्ती में रह रहा है। पिछली बातों को याद करते हुए वह कहता है कि ‘मैं जब भी समुद्र को देखता था तो मुझे लगता था कि जैसे वह मेरे गांव में घुस आएगा।’ वह 1992 में दिल्ली में बस गया और दिहाड़ी पर काम करने लगा। साथ ही दिल्ली में बसने के लिए उसने मकान खरीदने के लिए बचत भी प्रारंभ कर दी। 17 वर्ष बाद बिप्लब की आशंका सही साबित हुई। उसके रिश्तेदारों ने बताया कि समुद्र ने धीरे-धीरे मेरे घर को डुबोना प्रारंभ कर दिया है और अब वहां घर जैसा कहने को कुछ भी नहीं बचा है।

सन् 2009 में उसने गोविन्दपुरी में 70 हजार में एक अवैध झोपड़ी खरीद ली। अब उसका कहना है कि ‘मेरी झोपड़ी अवैध जरुर है परंतु वह डूबेगी नहीं।’ पिछले 30 वर्षों में सुंदरबन के अनेक द्वीप डूब गए हैं और अनेक लोग दिल्ली, कोलकाता और मुंबई में जाकर बस गए हैं। बिप्लब और उसके जैसे अनेक अब ‘जलवायु शरणार्थी’ हैं। भारत में अभी तक उड़ीसा, सुंदरबन आदि के अनजान गांवों के ही निवासी जलवायु शरणार्थी हो रहे थे। आने वाले वर्षों में मुंबई, चेन्नई और अन्य बड़े समुद्र तटीय शहरों के निवासी भी समुद्र की मार से जलवायु शरणार्थी बनने लगेंगे।

दिल्ली के दिहाड़ी मजदूर बाजार में देश के तटीय इलाकों के निवासी बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं। सभी जगह पलायन की परिस्थितियां एक सी है जैसे तूफान, सूखा, समुद्र का रहवासी इलाकों में प्रवेश और खेती के लिए शुद्ध पानी का अभाव। उड़ीसा का केंद्रपाड़ा जिला जो कि 1999 के भयानक तूफान में सर्वाधिक प्रभावित था, के निवासी जगन्नाथ साहू का कहना है कि ‘मेरे पिता 1971 के तूफान के बाद कोलकता चले गए थे क्योंकि वह हमारे 6 लोगों के परिवार का पोषण नहीं कर पा रहे थे। वे कभी गांव वापस नहीं लौटे। मैंने अपनी थोड़ी सी कृषि भूमि के साथ 1999 तक संघर्ष किया। परंतु उस भयानक समुद्री तूफान ने मेरी पूरी जमीन को क्षारीय कर दिया। अभी 15 गांवों में समुद्र प्रवेश कर गया है जिससे आव्रजन एकदम से बढ़ गया है।

भारत की 8000 कि.मी. लम्बी समुद्री सीमा में नौ राज्य और द्वीपों के दो समूह आते हैं। वास्तव में वैश्विक तापमान वृद्धि से समुद्र का स्तर बढ़ गया है जिसके कारण समुद्री तट के किनारे बसने वाली भारत की 25 प्रतिशत आबादी के लिए यह महज वैज्ञानिक सिद्धांत भर नहीं बल्कि जिन्दा बचे रहने का सवाल है। इसके परिणामस्वरूप भारत के अन्य इलाकों में प्रवासियों की बाढ़ आ जाएगी। कभी उम्मीदों की द्वीप कहे जाने वाले मुंबई, चेन्नई और कोलकता जैसे शहरों को अब और अधिक प्रवासियों को अपने अंदर समेटना होगा। इसका सीधा सा अर्थ है वर्तमान उपलब्ध सुविधाओं पर अतिरिक्त भार। इससे आपसी संघर्षों में भी वृद्धि होगी।

गत वर्ष एक आस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक ने रहस्योद्घाटन किया कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर नई पीढ़ी को जन्म लेने के पहले ही मार देगा। उन्होंने अंदेशा जताया कि इसकी वजह से लोगों को मजबूरन खारा पानी पीना पड़ेगा। जिससे तटीय इलाकों में रह रही गर्भवती महिलाओं में गर्भपात की संख्या बढ़ जाएगी। कई अन्य वैज्ञानिक भी इससे सहमत है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों के एक दल जिसने बांग्लादेश में तटीय गर्भवती महिलाओं पर बढ़ते समुद्री जलस्तर के प्रभाव का सर्वेक्षण किया है, का कहना है कि भारत में परिस्थितियां इससे भिन्न नहीं होगी।

उष्मीय विस्तारण की वजह से समुद्र का पानी गरम होने से उसके आकार में वृद्धि होती है। सन् 1961 के प्रयोग बताते हैं समुद्र 3000 मीटर तक गर्म हो चुका हैं और यह वातावरण में मौजूद 80 प्रतिशत गर्मी को सोख लेता है। इसकी वजह से पानी का फैलाव होता है साथ ही ग्लेशियर के पिघलने से भी स्तर बढ़ता है। समुद्र का स्तर बढ़ने के बहुआयामी प्रभाव पड़ते हैं। इससे समुद्र तटीय बसाहटें जलमग्न होती हैं, बाढ़ की भयावहता में वृद्धि, तट का टूटना, आगे की बसाहटों पर विपरीत प्रभाव पड़ना, बड़ी मात्रा में भूमि का बंजर होना और पानी के स्त्रोतों का खारा होना भी शामिल है। संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अन्तर मंत्रीय समिति का कहना है ‘बढ़ते जलस्तर से एशिया और अफ्रीका के सर्वाधिक घने बसे तटीय शहर प्रभावित होगें जिनमें मुंबई, चेन्नई एवं कोलकाता भी शामिल हैं। समिति के अनुसार भारत में 2.4 मि.मी. प्रतिवर्ष के हिसाब से समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा जो कि 2050 में कुल 38 सें.मी. हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र की एक दूसरी समिति के अनुमान से यह 40 सें.मी. होगा क्योंकि हिमालय व हिन्दुकुश श्रृंखला के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत के तटीय इलाकों में रहने वाले 5 लाख लोग तत्काल प्रभावित होंगे तथा सुंदरबन सहित तटीय इलाकों के पानी में खारापन भी बढ़ जाएगा। समिति का यह भी आकलन है कि सन् 2100 तक भारत व बांग्लादेश के तटीय इलाकों में रह रही 8 करोड़ अतिरिक्त जनसंख्या प्रभावित होगी। वहीं ग्रीन पीस का तो कहना है कि सदी के अंत तक स्तर में 3 से 5 मीटर एवं वैश्विक तापमान में औसतन 4 से 6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से इन्कार नहीं किया जा सकता।

 

 

नई भूमि -

भारत में लाखों लोग तट से 50 कि.मी. की परिधि में रहते हैं। समुद्र तट से 10 मीटर तक की ऊँचाई वाला इलाका ‘निम्न ऊँचाई समुद्री क्षेत्र’ कहलाता है। यह सबसे पहले डूबेगा। इस क्षेत्र में ग्रामीण व शहरी आबादी बराबर है। इससे भारत का 6000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र डूब में आ जाएगा। अनेक अध्ययन बताते हैं कि समुद्री जलस्तर बढ़ने से भारत और बांग्लादेश में सन् 2100 तक करीब 12 करोड़ लोग बेघर हो जाएगें। संयुक्त राष्ट्र विश्व विद्यालय के कोको वार्नर का कहना है ‘जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ऐसा विशाल मानव अप्रवास होगा जैसा पहले कभी नहीं देखा गया।’

संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में 2.4 करोड़ व्यक्ति ‘जलवायु शरणार्थी’ बन चुके हैं। वार्नर का कहना है कि भारत इससे सर्वाधिक प्रभावित हो सकता है। जलवायु परिवर्तन: मानव प्रभाव रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन का आगामी 20 वर्षों में अधिक प्रभाव पड़ेगा। इसके अनुसार ‘बढ़ता समुद्री जलस्तर जो अभी कम लोगों पर असर डाल रहा है, भविष्य में अधिक आबादी पर असर पड़ेगा।’ चूंकि पानी गरम होने में समय लेता है, अतएव अगले कुछ वर्षों में समुद्र का तापमान बढ़ेगा जिससे समुद्र के आकार में वृद्धि होगी तथा इसका परिणाम अधिक विध्वंस ही होगा। (सप्रेस/थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क फीचर्स)

परिचय - रिचर्ड महापात्र पर्यावरण पर लेखन एवं शोध करते हैं। वर्तमान में वाटर एड इण्डिया से सम्बद्ध हैं।
 

 

 

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