आज पवन और सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट की दर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की यूनिट से कम हो गई है। इस सूचना का स्रोत भारत सरकार का ऊर्जा मंत्रालय और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण है। इनके अनुसार पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का उपयोग करना कीमतें गिरने से आसान हो गया है। शुरू में परमाणु ऊर्जा और सौर ऊर्जा की कीमतें अधिक थीं क्योंकि उसके उत्पादन में आने वाले उपकरण महँगे थे। ये आँकड़े संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
विश्व की मुख्य पाँच अर्थव्यवस्थाओं में भारत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आगामी दो दशकों के भीतर उसे ऊर्जा की बहुत जरूरत होगी। बढ़ती जनसंख्या के साथ ही उद्योगों को समुचित बिजली मिलती रहे, इसके प्रयास सरकारों को करने होंगे। आज कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन से 60 फीसद बिजली हम ले रहे हैं, जबकि आने वाले समय में कोयले की खपत हमें कम करनी होगी। पर्यावरण संरक्षण, पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को रोकने के लिये यह जरूरी है।
अनुमान है कि भारत को वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के लिये 175 अरब डॉलर की जरूरत है। 2030 तक भारत 40 फीसद ऊर्जा वैकल्पिक स्रोत से लेने लगेगा। हमें पता होना चाहिए कि कोयले से प्राप्त पावर में देश 35 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन कर रहा है। हम विश्व में कोयले की खपत के मामले में दूसरे स्थान पर हैं। इस बीच, परमाणु और डीजल से प्राप्त होने वाली ऊर्जा 2003 में 11 फीसद थी, जो 2017 तक 8 फीसद ही रह गई।
यह भी देखने में आया कि सौर ऊर्जा की कीमत एक समय अधिक थी, आज कम हो गई है। 2010 से अब तक 80 फीसद इसके प्रति यूनिट कीमत में कमी आई है। इसका कारण फोटो वोल्टिक पीवी मॉड्यूल की कीमतों का घटना है और बहुत सारे सौर ऊर्जा के प्रोजेक्ट बढ़े हैं। इसी तरह पवन ऊर्जा की प्रति यूनिट की कीमत में 50 फीसद की कमी आई है। यह कमाल एक वर्ष के भीतर हुआ है। इसके पीछे कीमतों में कमी आने का कारण इस क्षेत्र में स्पर्धा का बढ़ना है।
आज पवन और सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट की दर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की यूनिट से कम हो गई है। इस सूचना का स्रोत भारत सरकार का ऊर्जा मंत्रालय और केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण है। इनके अनुसार पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का उपयोग करना कीमतें गिरने से आसान हो गया है। शुरू में परमाणु ऊर्जा और सौर ऊर्जा की कीमतें अधिक थीं क्योंकि उसके उत्पादन में आने वाले उपकरण महँगे थे। ये आँकड़े संकेत देते हैं कि आने वाले समय में हमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। वैसे अभी इस ईंधन को हम त्याग नहीं सकते क्योंकि वैकल्पिक ऊर्जा के साधन पर्याप्त नहीं हैं। इस ओर और ध्यान देना होगा।
अमेरिका की ऊर्जा सूचना एजेंसी के अनुसार, अभी यानी 2017 तक अमेरिका में खनिज तेल पेट्रोल की खपत 1953 लाख बैरल प्रति दिन थी यानी विश्व के तेल की 20 फीसद की खपत अमेरिका कर रहा था। दूसरे नम्बर पर चीन था, 1202 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से खपत कर रहा था, जो विश्व में 13 फीसद की दर पर था। भारत तीसरे स्थान पर था यानी 414 लाख बैरल क्रूड ऑयल प्रतिदिन की खपत कर रहा था।
आज खनिज तेल की खपत में बाजार एशिया की तरफ हो गया है। चीन, भारत और जापान मिलकर अमेरिका से अधिक खपत कर रहे हैं और तेल के भण्डार भी एशिया की धरती पर हैं। तेल उत्पादक देशों के हाथ में तेल की कीमतों को घटाने-बढ़ाने का नियंत्रण है। विश्व बाजार में खनिज तेल की कीमतें नियंत्रण में हैं, लेकिन भारत के आम व्यक्ति को उसका फायदा नहीं मिल रहा। भारत सरकार को तेल की कीमतों को नहीं बढ़ाना चाहिए। हर व्यक्ति इससे प्रभावित है। इसके चलते आने वाले आम चुनाव में जनता वर्तमान सरकार को नकार सकती है।
उत्पादकों पर दबाव डालना चाहिए क्योंकि जब हमारे पास ऊर्जा के अन्य विकल्प हैं, तो उनका अधिक से अधिक उत्पादन कर खनिज तेलों पर निर्भरता छोड़ देनी चाहिए। इससे स्वयं ही विश्व बाजार में तेल की खपत कम होने से तेल के भाव लुढक सकते हैं। बाजार में कीमतों को घटाने-बढ़ाने का एकाधिकार ओपेक देशों के पास है। इस निर्भरता को समाप्त करने की कोशिश होनी चाहिए।
अभी कई वर्षों से विश्व में खनिज तेल के भाव उस गति से नहीं बढ़े, जिस गति से 2010 से 2014 के बीच बढ़े थे। उसके बाद विशेषकर अमेरिका ने अपने संसाधनों की ओर ध्यान दिया जिसके फलस्वरूप ओपेक देशों को तेल के दाम गिराने पड़े। इन पाँच सालों में विश्व बाजार में तेल की कीमतें नहीं बढ़ीं या कहें कि स्थिर रहीं पर भारत में यह स्थिरता देखने को नहीं मिली।
देश की खुशहाली हर व्यक्ति चाहता है, उस खुशहाली को बरकरार रखने के लिये सही योजनाओं और नीतियों की सख्त जरूरत है। इस तरह के उपाय होने चाहिए जिनमें आम नागरिक देश की प्रगति में अपना हिस्सा दे सके। साथ ही, ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को अपनाकर कार्बन उत्सर्जन को कम-से-कम करने की ओर देश कदम बढ़ा सके।
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