भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसे गहरे समुद्र में खनन अन्वेषण के लिये पर्याप्त क्षेत्र दिया गया था। वर्ष 1987 में भारत को केन्द्रीय हिन्द महासागर बेसिन में पॉलिमेटॉलिक नोड्यूल्स में अन्वेषण का मौका मिला था।नई दिल्ली, 31 मई (इंडिया साइंस वायर) : पृथ्वी के लगभग तीन चौथाई भाग को घेरे महासागरों के गर्भ में दबी अकूत खनिज सम्पदा का पता लगाने के लिये वैज्ञानिक कड़ा परिश्रम कर रहे हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव श्री राजीवन के अनुसार भारत द्वारा समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में भारत काफी महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहा है। उम्मीद है कि अगले वर्ष जनवरी से ‘डीप ओशन मिशन’ की शुरुआत हो सकती है। इस मिशन का मकसद समुद्री अनुसंधान के क्षेत्र में भारत की वर्तमान स्थिति को बेहतर करना है।
आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से महासागरों से पेट्रोलियम सहित कई उपयोगी प्राकृतिक संसाधन प्राप्त किए जा रहे हैं। तटीय क्षेत्रों में निवास करने वाले विश्व की कुल जनसंख्या के लगभग 30 प्रतिशत लोगों के लिये महासागर खाद्य पदार्थों का प्रमुख स्रोत साबित हो सकते हैं। खाद्य पदार्थों का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण महासागर हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने का महत्त्वपूर्ण माध्यम भी हैं।
महासागर में उपलब्ध संसाधनों को मुख्य रूप से चार वर्गों में बाँटा जाता है। पहले वर्ग में वे खाद्य पदार्थ हैं, जो मनुष्य एवं अन्य जीवों को भोजन के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं। दूसरे वर्ग में नमक सहित कई अन्य पदार्थ शामिल हैं। तीसरे वर्ग में महासागरीय जल से प्राप्त होने वाले पदार्थ और पेट्रोलियम शामिल है। चौथे वर्ग में महासागर में उठने वाले ज्वारभाटे व लहरों से प्राप्त ऊर्जा एवं महासागर में लवणता के अंतर से प्राप्त होने वाली ऊर्जा शामिल है।
महासागर प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का असीम स्रोत है। महासागर में उपलब्ध शैवाल यानी काई भी एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। कुछ शैवालों में आयोडिन मौजूद होता है, तो कई शैवालों का उपयोग उद्योगों में भी किया जा सकता है। महासागरीय जल अत्यंत समृद्ध संसाधनों में से एक है। महासागरीय जल से औद्योगिक उपयोग के 40 से अधिक तत्व निकाले जा सकते हैं। काँच, साबुन और कागज बनाने के काम में आने वाले गूदे के लिये सोडियम सल्फेट का उपयोग किया जाता है, जिसे बहुत अधिक मात्रा में महासागर के जल से निकाला जाता है। प्रतिवर्ष भारत में महासागरीय जल से नमक निकालने के बाद बचे भाग में से लगभग चार लाख टन मैग्नीशियम सल्फेट, करीब 70 हजार टन पोटेशियम सल्फेट और सात हजार टन ब्रोमीन निकाला जा सकता है।
महासागर के तल पर छोट-छोटे गोले के रूप में मैग्नीज, लोहा, तांबा, कोबाल्ट व निकिल जैसे अन्य खनिज होते हैं। वर्तमान में विश्व के कुछ देश महासागर की अथाह खनिज संपदा के दोहन के लिये सरल व सुविधाजनक तकनीक के विकास में जुटे हैं। महासागरों में सोना भी मिलता है, लेकिन बहुत ही नगण्य मात्रा में।
महासागरीय जल में घुले हुए या उसमें तैरने वाले तत्वों के अतिरिक्त कई गैसें भी पाई जाती हैं। जल में घुली हुई गैसों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गैस ऑक्सीजन है। इस ऑक्सीजन का प्रयोग जल में रहने वाले अरबों पौधे और जीव साँस लेने के लिये करते हैं। ऑक्सीजन के अलावा नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड गैसें भी महासागरीय जल में घुली हुई हैं। जल में घुली कार्बन डाइऑक्साइड गैस कुछ महासागरीय जीवों के लिये उपयोगी होती है। पादप वर्ग प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में कर्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर स्वयं के लिये व अन्य जीवों के लिये भोजन का निर्माण करता है।
खनिज संपदा के अलावा महासागर से असीमित ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। महासागर से ऊर्जा प्राप्त करने के कई स्रोत हैं। ये नवीकरणीय या गैर परंपरागत ऊर्जा का अच्छे स्रोत साबित हो सकते हैं। ज्वारभाटे और लहरों में छिपी ऊर्जा को यदि उपयोग में लाया जाए तो विश्व की समस्त ऊर्जा आवश्यकता पूरी हो सकती है।
फ्रांस व रूस जैसे कुछ देशों में ज्वारभाटे से बिजली पैदा की जा रही है। महासागर में चलने वाली हवा और उसके जल की धाराओं की ऊर्जा का प्रयोग भी टर्बाइन चलाने और बिजली पैदा करने के लिये किया जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व महासागरीय जल में लवणता की विभिन्नता के आधार पर बिजली प्राप्ति की तकनीक विकसित की गई है। इसके अलावा जल की विभिन्न परतों में तापमान की भिन्नता के कारण समाहित ऊर्जा भी भविष्य में ऊर्जा का अच्छा स्रोत साबित हो सकती है।
भारत के पास लगभग 75,000 वर्ग किलोमीटर महासागरीय क्षेत्र है। समुद्री संसाधन मूल्यांकन के आधार पर भारत के पास लगभग 10 करोड़ टन सामरिक धातुओं जैसे कॉपर, निकिल, कोबाल्ट और मैग्नीज और आयरन के अनुमानित भंडार है।
असल में भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है, जिसे गहरे समुद्र में खनन अन्वेषण के लिये पर्याप्त क्षेत्र दिया गया था। वर्ष 1987 में भारत को केन्द्रीय हिन्द महासागर बेसिन में पॉलिमेटॉलिक नोड्यूल्स में अन्वेषण का मौका मिला था।
डीप ओशन मिशन में विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत वैज्ञानिक संस्थाएं आपस में मिलकर काम करेंगी। वर्तमान में भी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय पॉलिमेटालिक मोड्यूल कार्यक्रम के अंतर्गत नोड्यूल खनन के लिये वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानी सीएसआईआर की विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा विभिन्न स्तरों पर कार्य किया जा रहा है।
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान, गोवा द्वारा खनन के पर्यावरण प्रभाव आकलन का अध्ययन, राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, जमशेदपुर और खनिज एवं धातु प्रौद्योगिकी संस्थान, भुवनेश्वर द्वारा धातु निष्कर्षण प्रक्रिया का विकास और राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा खनन प्रौद्योगिकी के विकास संबंधी शोध कार्य किए जा रहे हैं। (इंडिया साइंस वायर)
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