उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान

8 जुलाई 2009 को उत्तराखण्ड नदी बचाओ अभियान ने दो वर्ष पूरे किये। अभियान के अन्तर्गत इन दो वर्षों में पूरे उत्तराखंड की प्रत्येक नदी घाटी की 60 पदयात्रायें (3200 किलोमीटर), टौंस से लेकर काली नदी तक की 3000 किलोमीटर की 3 जलयात्रायें (वाहन यात्रायें) तथा 2 राज्यस्तरीय जन सम्मेलन तथा बीसियों गोष्ठियां सम्पन्न हुईं, जिनमें राज्य भर के समाजकर्मी एवं जननेता उत्तराखंड की नदियों पर आये संकटों के निराकरण के रचनात्मक व संघर्षशील आंदोलन की पहल के लिए तैयार हुए।

नदी बचाओ अभियान के दो प्रमुख उद्देश्य हैं- जल, जंगल व जमीन पर ग्रामीण कृषक-समुदायों का प्रथम अधिकार हो एवं सम्पूर्ण भारतीय हिमालय क्षेत्र की पर्यावरण सम्मत एवं जनहितकारी समग्र हिमालय नीति बने। भागीरथी, अलकानंदा, मन्दाकिनी व सरयू तथा गोरी गंगा में जन अभिप्रेरित धरने व आंदोलन चले, जिन्हें, अभियान ने अपना नैतिक, वैचारिक एवं सहभागितापूर्ण सहयोग दिया।

लोकसभा चुनावों के पूर्व अभियान ने एक घोषणा पत्र भी जारी किया व अभियान से जुड़े अनेकों साथियों ने लंबी यात्रायें कर दूर-दूर जनता के बीच तथा प्रत्याशियों तक उसे पहुंचाया।

आम जन के हृदय में अपने जल, जंगल व जमीन के प्रति अपनत्व पैदा हो, इसके लिए नदी व जंगलों को संरक्षित करने के विभिन्न उपायों के साथ-साथ नदी, धारों व नौलों आदि की सामूहिक सफाई करने का कार्यक्रम प्रारंभ किया गया; जिसे वन विभाग अल्मोड़ा ने भी विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में क्रियान्वित किया।

अभियान के साथ महिला समाख्या व उनके ग्राम प्रखण्ड स्तरीय महिला जागृति संघों का जुड़वा एक उत्साहवर्धक प्रयास रहा। रामगढ़ प्रखण्ड (जि. नैनीताल) की इन महिलाओं ने एक भू-माफिया के विरूद्ध आवाज उठाई है, जिसने उनके वनों को काटा है व जलस्रोतों पर कब्जा कर लिया है। जनमैत्री संगठन इस संघर्ष में पहले से ही सक्रिय है। नीर व ग्रामीण एकता शिक्षा ट्रस्ट जैसे स्थानीय स्वैच्छिक संगठनों ने भी इस संघर्ष में भागीदारी की है। इन सभी ने नदी बचाओ अभियान को मौके पर बुलाकर अपने साथ जोड़ा है।

इस बीच अभियान ने इस क्षेत्र के जाने-माने वैज्ञानिकों व वैज्ञानिक संस्थाओं से भी जुड़ाव किया। डॉ. केएस वाल्दिया, डॉ. जेएस रावत, हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स डॉ. मोहन पॅवार, डॉ. अरविन्द दरमोड़ा तथा गोविन्द बल्लभ पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा तथा विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधानशाला अल्मोड़ा से निरन्तर संवाद बनाये रखा है।

कोसी जैसी 10 अन्य नदियों के उद्गम स्थल धारपानीधार के जल-संचय क्षेत्र को वर्षा जल के भू-रिसाव द्वारा संतृप्त करने के लिये एक व्यावहारिक-प्रस्ताव लक्ष्मी आश्रम कौसानी द्वारा वन विभाग को भेजा गया है। जिससे इन ग्यारहों नदियों के क्षीण होते जल-प्रवाह को पुनर्जिवित किया जा सके।

ये नदियां कत्यूर, बौरारो, गगास व रामगंगा की सुंदर खेतीहर घाटियों की जीवन रेखायें हैं। इनका निरंतर घटता जल प्रवाह सबके लिये चिंता का विषय बन गया है। अतः इस बार जल संवर्द्धन के कार्य में घाटी की जनता, स्वैच्छिक संस्थायें व वन विभाग के साथ मिला-जुला प्रयास करेगी।

2-3 अगस्त, 09 को अभियान की श्रीनगर में हुई बैठक में सुरंग बांधों के द्वारा उत्तराखंड के पर्यावरण एवं जनजीवन को हो रही अपूरणीय क्षति के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की गई। इस मानव रचित आपदा से हिमालय व यहां की गंगाओं तथा जन समाज को बचाने के लिये कार्यनीति का प्रभावी स्वरूप तय किया गया। जिसमें आंदोलन समिति, कानून समिति, लोक शिक्षण समिति तथा उनके समन्वयक मानोनीत किये गये। जिनके समन्वयक डॉ. भरत झुनझुनवाला श्री सुरेश भाई, श्री बसंत पाण्डे, श्री लक्ष्मण सिंह नेगी, श्री बची सिंह विष्ट, श्री डॉ. अरविन्द दमरोड़ा बनाये गये। डा. भरत झुनझुनवाला के नेतृत्व के नेतृत्व में कानून समिति द्वारा न्यायालय में एक रिट दायर करने का निर्णय लिया गया।

नदी बचाओ अभियान के दो प्रमुख उद्देश्य हैं- जल, जंगल व जमीन पर ग्रामीण कृषक-समुदायों का प्रथम अधिकार हो एवं सम्पूर्ण भारतीय हिमालय क्षेत्र की पर्यावरण सम्मत एवं जनहितकारी समग्र हिमालय नीति बने। इस अवधि में समग्र हिमालय नीति पर व्यापक रूप से चर्चायें हुईं तथा सोचा गया कि इसकी समुचित अवधारणा जल्दी ही स्पष्ट की जाय ताकि उसके मूल लक्ष्य की स्पष्ट दृष्टि बनी रह सके। इस दिशा में प्रयास चल रहे हैं।

8 जुलाई 09 की गोष्ठी मुख्य तौर पर अभियान के जन-जुड़ाव के सवाल पर केन्द्रित थी। गोष्ठी में लिए गये निर्णयों के अनुसार पिछले माह में रामगढ़ घाटी में दो और गरूड़ गंगा, गोमती घाटी में एक कृषक युवा शिविर उक्त घाटियों के युवकों व युवतियों के लिये आयोजित किये गये। घाटी के कृषि व बागवानी से जुड़े युवाओं को दो दिनों की इन शिविर-गोष्ठियों में वनों, वनान्दोलनों, नदियों पर छाये संकटों तथा ग्रामों की संगठित-शक्ति के द्वारा ग्राम स्वराज के अन्तर्गत जल, जंगल, जमीन के अधिकार को प्राप्त करने के पुरुषार्थ की बातों पर चर्चा विचारणा की गई। स्थानीय स्तर पर आगे के कार्यक्रम तय किये गये। भू-माफिया के अन्याय से क्षेत्र को तथा जलस्रोतों को मुक्त कराने हेतु सघन जन-जागरण के लिये क्षेत्र की पदयात्रायें करने का उत्साह गोष्ठियां से उभरा है।

जल, जंगल जमीन का प्रबंधन जन समुदाय के हाथ

(शिविरः 21 अगस्त - 5 सितम्बर, 09)

उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान ने विगत वर्षो में नदियों के सवाल को वृहद जन समाज/समूहों तक पहुंचने का प्रयास किया है। इन दो वर्षो में कोसी घाटी से शुरू होकर विशेषकर ग्रासरूट महिलाओं ने अभियान को मजबूती प्रदान की है। वर्तमान में जहां उत्तराखंड का जल, जंगल व जमीन यहां के निवासियों द्वारा उपेक्षित है वहीं प्रकृति को चूस डालने व यहां के ग्रामसमाज को निगल डालने वाला व्यवसायिक दृष्टिकोण लगातार इन संवेदनशील पहाडों के विनाश को अंजाम दे रहा है। ऐसे में जरूरी है कि यहां का युवा वर्तमान परिस्थितियों - बेरोजगारी और जल, जंगल व जमीन संकट - को समझते हुये यहां की प्राकृतिक सम्पदा का उपयोग अपने गांव को मजबूती देने के लिये सम्मान पूर्वक रोजगार सृजन करे। महात्मा गांधी के ग्राम पंचायत के सपने में वर्तमान पंचायतों की ऐसी व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं थी जो केन्द्रित व्यवस्था के शोषण में गांवों को एक एजेण्ट के रूप में संचालित करती है। युवाओं का अपनी प्राकृतिक सम्पदा के प्रति लगाव पैदा हो और क्षेत्रीय स्तर पर अपने जल, जंगल का प्रबंध कर सकें, इस उद्देश्य से अभियान ने 21 अगस्त से 5 सितम्बर, 09 के दौरान तल्ला रामगढ़, गल्ला (मुक्तेश्वर), गरूड़ तथा पिथौरागढ़ में ‘जल, जंगल व जमीन का प्रबंध जन समुदाय के हाथ' विषय पर चार शिविरों का आयोजन किया।

21-22 अगस्त को तल्ला रामगढ़ आर्य समाज भवन में हुये शिविर में क्षेत्र के महिला संगठनों की महिलाओं, महिला समाख्या तथा नीर संगठन के युवाओं को मिलाकर 45 शिविरार्थियों ने भागीदारी की। शिविर के क्षेत्रीय आयोजन तथा रामगाड़ बचाओ अभियान के साथी गोपाल लोधियाल तथा नैन सिंह डंगवाल ने रामगढ़ नदी की वस्तुस्थिति को बताते हुये कहा कि चखुटा, बना, झगुटा से रामगढ़ नदी का उद्गम होता है। इस नदी के इर्द-गिर्द 36 घराटों (पनचक्कियों) में से आज की तारीख में 5-6 घराट चल रहे हैं। वह भी मौसमी हो गये है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र के 80 नौले सूख चुके हैं। पहले जगह-जगह चुपट्योले (छोटे पोखर) व 4-5 किलोमीटर में राहगीरों के लिये जलधारा होती थी जो अब भूले-बिसरे से कहीं दिखाई देते हैं। यहां के संस्कार भी जल स्रोतों से जुड़े थे और हैं भी जो जल स्रोतों की मर्यादा, महत्व व जुड़ाव को समाज में मजबूत करते थे। जल आधारित उद्योग बंद हो चुके है।

उन्होंने बताया कि भवाली से मुक्तेश्वर तक की मोटर रोड (लगभग 50 कि. मी.) के ऊपर की 60 प्रतिशत भूमि बिक चुकी है, जहां इस क्षेत्र के मुख्य वन हैं तथा जो फलोत्पादन की उत्तम भूमि है। बताया कि क्षेत्र के लेटिबूंगा गांव में 42 परिवारों ने जमीनें बेची हैं, जिनमें से एक भी परिवार ने बेचने के बाद उन्नति नहीं की है।

शिविर में श्री तरूण जोशी ने उत्तराखंड के वनों के इतिहास शिविरार्थियों को विस्तार से बताया कि किस प्रकार 1815 में अंग्रेजों के उत्तराखंड में आने के बाद यहां के वनों से लोगों के अधिकार कम होते गये। उन्होंने बताया कि वन पंचायत के रूप में आज जो अधिकार हमें मिले हैं वह 1911 से 1921 के दौरान उत्तराखंड की जनता द्वारा अपने वन अधिकारों के लिये किये गये उग्र आंदोलन के परिणाम हैं।

राधा दीदी ने महाराष्ट्र के एक गांव जहां युवाओं ने अपनी ग्रामसभा को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक रूप से सशक्त करने का सफल प्रयास किया है, का उदाहरण देते हुये कहा कि ग्रामसभाओं को सरकार व कम्पनियों से बड़ी या समानान्तर शक्ति के रूप में खड़ा होना होगा। जिसके लिये हाथ फैलाने की प्रवृत्ति को छोड़कर अपनी प्राकृतिक सम्पदा से सम्मानपूर्वक रोजगार की सम्भावनायें तलाशनी होंगी। तभी गांव व गांवों के जल, जंगल व जमीन को बचाया जा सकता है। उन्होंने इस पुरुषार्थ के लिये नौजवानों को आगे व पहल करने की अपील की।

इस शिविर में युवाओं तथा जनसमुदाय द्वारा जल, जंगल व जमीन के प्रबंधन तथा संरक्षण-संवर्द्धन के लिये किये जा सकने वाले कार्यों पर सहमति बनी और ये तय हुआ कि नीर संगठन के साथी निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखकर इस कार्य को आगे बढ़ायेंगे-

1- जल, जंगल और जमीन के सरंक्षण व संवर्द्धन हेतु जन समुदाय के बीच सामन्जस्य तथा ताल-मेल को बढ़ावा देना।
2 - रामगढ़ नदी के जलागम क्षेत्र में परम्परागत चाल-खालों का निर्माण
3 - चौड़ी पत्ती के वृक्षों का रोपण।
4 - अपनी जमीन पर अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने हेतु उन्हें न बेचना तथा बेच रहे लोगों को प्रेरित करना कि वे अपनी जमीनें न बेचें।
5 - स्थानीय सतर पर रोजगार के साधनों को खोजना और प्रयोग करना।
6 - खेती के साथ उद्योग जोड़ने के प्रयासस्वरूप स्थानीय बाजार के अनुकूल आस-पास में खेती के साथ किये जा सकने वाले उद्योगों की पहचान की जायेगी।

25-26 अगस्त जनमैत्री केन्द्र गल्ला, नत्थुवाखान, जिला नैनीताल में हुये शिविर में विशेष रूप से भू-माफियाओं के द्वारा ग्रामों के जल, जंगल व जमीनों पर जबरन कब्जे करने के आतंक की चिंता उभर के आयी। इस शिविर में जनमैत्री संगठन के युवा किसानों, महिला समाख्या की युवा कार्यकर्ता बहनों तथा जन प्रेरणा संगठन के युवाओं ने भागीदारी की। शिविर आयोजक जनमैत्री संगठन के संयोजक बची सिंह विष्ट ने शिविरार्थियों का स्वागत किया और भू-माफिया से प्रभावित खपराड़ पहाड़ की पर्यावरणीय दुर्दशा, जनाधिकारों के हनन और क्षेत्र में धड़ल्ले से बिक रही जमीनों पर चिंता व्यक्त की। शिविर में राधा बहन ने हिमालय प्रकृति की सम्पदाओं के व्यापारिक दोहन व शोषण को पूरे प्रदेश व देश-दुनिया के लिए घातक बताते हुये कहा कि राज्य तथा कम्पनियों व ठेकेदारों के गठजोड़ ने देश-दुनिया के स्थानीय समाजों को समाप्त करने का काम प्रारंभ किया है। उन्होंने कहा कि स्थानीय सामुदायिक प्रयास ही व्यापक शोषण व अनियंत्रित विकास को रोक कर अपने विकास को सही दिशा दे सकते हैं। इसके लिये नौजवान व महिलायें पंचायतों में विशेषकर ग्रामसभा में संरक्षण व सम्यक उपयोग की दृष्टि से प्रवेश करें और प्रत्येक ग्रामसभा को अपने पूरे कर्तव्यों के उपयोग द्वारा अधिकारों को प्राप्त करने के योग्य बनायें।

शिविर में स्वावलम्बन को बढ़ावा देने पर भी चर्चा हुई, जिसमें जनमैत्री के साथियों ने बताया कि वह पौधशाला, फल संस्करण, मत्स्य पालन, बीज संरक्षण, काष्ट शिल्प, सिलाई, मौन पालन, सब्जी उत्पादन व शाश्वत खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इन उद्योगों में पानी की कमी, कीटनाशकों व रासायनिक खादों से खेतों में फैल रहे जहर, बाजार तथा मंहगाई सबंधित कठिनाइयां सामने आ रहीं हैं।

दो दिन चली चर्चा में बढ़ते भू-माफिया के खिलाफ क्षेत्र में सघन जानकारी पहुंचाने व इस मुहिम में ग्रामवासियों को संगठित करने तथा क्षेत्र में जमीनों की बिक्री की वस्तुस्थिति को समझने के लिये अध्ययन की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इन चर्चाओं के बाद निष्कर्ष निकला कि 5 से 11 अक्टूबर 2009 तक पदयात्रा की जाये। इस पदयात्रा के लिये सभी स्थानीय संगठनों को आमंत्रित किया जाये तथा अधिक से अधिक गांवों तक पहुंचने का प्रयास किया जाये। इसकी पूर्व तैयारी की बैठक के लिये 15 सितम्बर, 09 तय की गयी।

इसी क्रम में 1-2 अगस्त को हिमालय ट्रस्ट भवन, गरूड़ में शिविर का अयोजन हुआ। इस शिविर में क्षेत्र के 50 युवाओं व महिलाओं ने भागीदारी की। शिविर में ईश्वरी जोशी ने उत्तराखंड के वन इतिहास पर विस्तार से बताया और राधा बहन ग्रामसभाओं की सशक्त भूमिका की आवश्यकता पर जोर दिया और उदाहरणों के माध्यम से बताया कि किस प्रकार नौजवान पहल करके ग्रामसभाओं को स्वायत्तता प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

दो दिन के दौरान विषयों पर सम्बोधन व ग्रुप चर्चाओं से अपने क्षेत्र में किये जा सकने वाले कार्यों की शिविरार्थियों के बीच समझ बनी और एक्शन प्लान के रूप में निम्न बिन्दुओं/प्रस्ताओं व उनकी जिम्मेदारियों पर चर्चा हुई-

1- हिमालय ट्रस्ट 19 नवम्बर से 26 नवम्बर तथा 27 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2009 तक गरूड़ नदी और गोमती नदी के जलागमों पर शिविर व बैठकें आयोजित करेगा, जिसकी जिम्मेदारी गिरीष तिवारी, दिनेश काण्डपाल, गोपाल भाई, अनिल जोशी, विपिन जोशी, पंकज पाण्डे आदि युवाओं ने ली।
2- बुड़सौल नदी पर वृक्षारोपण आदि कार्य जायेगें, इसकी जिम्मेदारी इस जलागम के स्थानीय निवासी भूपाल कठायत, संजय कुमार व हेमा अल्मिया ने ली।
3- नौटा कटारमल क्षेत्र की जिम्मेदारी हिमालय अंगोरा हथकरघा एंव विकास समिति के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर जोशी जी ने ली तथा कहा कि जल्दी ही इस क्षेत्र में जल सवंर्धन को लेकर एक बैठक अयोजित करेगें।
4- वज्यूला क्षेत्र से आये युवाओं ने अपने क्षेत्र में नवम्बर माह में अपने-अपने ग्राम समुदायों में बैठक करने की जिम्मेदारी ली, जिसमें भीम सिंह फर्स्वाण, पूरन चन्द्र तिवारी, हेमा, भावना, आदि लोग शामिल रहेंगे।
5- मटे तिलसारी से आये हुए साथियों ने कहा कि वह भी अपने क्षेत्र में जल संर्वधन की चर्चा कर ग्राम सभा में इसकी बैठक निर्धारित करेगें, इसकी जिम्मेदारी मनोज रावत, विपिन पाण्डे, गीता जोशी, आदि युवाओ ने ली।
6- घेठी कुलांऊ से आए उत्साही युवा साथियों ने कहा कि हम अपने क्षेत्र की घांघली नदी को बचाने तथा लोगों को इस मुहिम से जोड़ने के लिये ग्राम सभाओं में युवक मंगल दल व महिला मंगल दल को सक्रिय करने के प्रयास करेंगे।
7- सरयू नदी पर बन रहे जल विद्युत परियोजनाओं से हो रहे भूस्खलन, सूख रहे जल स्रोतों तथा बरबाद हो रही जमीन के खिलाफ आवाज उठाने व एक युवा शिविर आयोजित करने का जिम्मा सांझा मंच कपकोट से आये युवा संघर्षशील साथी प्रहलाद कोश्यारी ने ली।
8- हिमदर्शन कुटीर, धरमघर के युवा साथी विनोद ने कहा कि वह अपने क्षेत्र के जलस्रोंतो के संरक्षण हेतु एक बैठक आयोजित करेगें।

4-5 सितम्बर को उत्सव हॉल पिथौरागढ़ में शिविर हुआ। शिविर में पिथौरागढ़ शहर के आस-पास के गांवों-ग्राम पंचायत जाखपंत, सिरकुच, बरड़ी गावं, छेड़ा चण्डाक, पलेड़ा गांवों के 22 युवाओं ने भागीदारी की तथा राधा दीदी, डॉ. प्रभात उप्रेती, डॉ. कुमकुम साह, भुवन जोशी व डॉ. विपिन जोशी शिविर को सम्बोधित किया।

दो दिन के इस शिविर में पहले दिन युवाओं को उत्तराखंड के जल, जंगल व जमीन पर समझ बनाने व सिमटते अधिकारों के कारणों को जानने तथा नदियों पर आ रहे दोहरे संकट से परिचित कराने का कार्य प्रमुख रूप से किया गया। इस दौरान युवाओं के समूह बनाकर स्थानीय स्तर पर आ रही समस्याओं पर चर्चा करने की और स्थानीय स्तर पर उनके द्वारा किये जा सकने वाले प्रयासों की पहचान की। जिसमें निम्न बिन्दु निकल कर आये-

1 - चारे की समस्या के समाधान हेतु खाली भूमि पर वृक्षारोपण करना व कराना।
2 - संगठनों के माध्यम से संसाधनों के संरक्षण का कार्य करना व जागरूकता फैलाना।
3 - ग्राम पंचायत तथा वन पंचायत प्रबंधन में हस्तक्षेप कर उन्हें स्वायत्त व शक्तिशाली बनाना।
4 - गांव के जलस्रोतों व गधेरों को सूखने से बचाने हेतु वृक्षारोपण करना व उनमें गंदगी रोकने के प्रत्यक्ष कार्यों की मुहिम चलाना।
5 - शहरी कूड़े को नजदीकी ग्रामीण क्षेत्रों में डालने से पैदा हुई समस्या के समाधान के लिए एकजुट होकर विरोध करना।

समाज ने सरकार को हमारी प्राकृतिक सम्पदा के संरक्षण व संवर्धन का जिम्मा सौंपा है। अपनी इस जिम्मेदारी में सरकार बिल्कुल भी खरी नहीं उतर रही है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। एक तरफ मानव रचित प्राकृतिक आपदाओं का जोर है तो दूसरी तरफ वैश्विक पर्यावरणीय परिवर्तन और सरकारों की अपने प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व संवर्धन की उपेक्षा, प्राकृतिक सम्पदा को ह्रास की ओर ले जा रही है।

नदियों का जलस्तर लगातार घट रहा है समाज व सरकार दोनों देख रहे हैं। सरकार बीच-बीच में जल संवर्द्धन के नाम से पैसा भी देती है, लेकिन सरकारी मशीनरी से गुजरकर उस पैसे का चरित्र गांवों में विकृति ही फैलाता है। ऐसी स्थिति में समय आ गया है कि नदीघाटियों में फैला समाज अपनी प्राकृतिक सम्पदा नदी, जंगल आदि के संरक्षण-संवर्धन की स्वअभिक्रम से जिम्मेवारी उठायें। सरकार को भी चेताने का प्रयास करे और अगर सरकार नदियों के संरक्षण के प्रति गम्भीर नहीं होती है तो नदीघाटी का जनसमुदाय अपनी नदी के किनारे इकट्ठा होकर अपनी नदी को सरकार के अधिकार से मुक्त करे और उसके संरक्षण व संवर्धन की जिम्मेवारी स्वयं उठाने का संकल्प ले। नदियों को आजाद करने की मुहिम अब नहीं रुकेगी। इस सामूहिक आकांक्षा के साथ युवक-युवतियों ने अभिप्रेरित मन व मस्तिष्क लेकर अपने क्षेत्रों को प्रस्थान किया।

Path Alias

/articles/utataraakhanda-nadai-bacaao-abhaiyaana

Post By: pankajbagwan
×