उत्तराखंड में लाकडाउन में जल संरक्षण के लिए मनरेगा का इस्तेमाल, बन रहे चाल-खाल

मनरेगा में हो रहा जल-संरक्षण का काम
मनरेगा में हो रहा जल-संरक्षण का काम

कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव के लिए लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों के बाद हजारों की संख्या में प्रवासी लोग उत्तराखंड लौट आए हैं। उत्तराखंड पहले से ही बेरोजगारी की विभीषिका से जूझता रहा है। ऐसे में प्रवासी उत्तराखंडी लोगों का लौटना, यहां काम-धंधे में एक नई चुनौती पैदा कर रहा है। कोरोना वायरस से उपजे संकट काल में जहां बाकी रोजगार धंधों की बंदी लोगों की चिंता को भी बढ़ा रहा है। ऐसे में मनरेगा के माध्यम से उत्तराखंड के गांव में बारिश की बूंदों को सहेजने के काम को बढ़ाया जा रहा है। परंपरागत जल संसाधनों को जिंदा करने के लिए चाल-खाल बनाए जा रहे हैं। ताकि लोगों को काम मिल सके। मनरेगा का इस्तेमाल करने के पीछे मकसद यह है कि ताकि लोगों को काम भी मिल सके और पानी के परंपरागत जल संसाधनों चाल-खाल नौले-धारों को जिंदा भी किया जा सके।

उत्तराखंड प्रदेश के 92 विकास खंडों के 40,000 से ज्यादा लोग मनरेगा के माध्यम से जल संरक्षण के काम में लगे हुए हैं। इसके तहत बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए पहाड़ी जल संरक्षण की परंपरागत तकनीकों को बढ़ावा दिया जा रहा है। उत्तराखंड में चाल-खाल, नौले-धारे, छोटे-छोटे जलकुंड आदि बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ऐसे पौधों का रोपण भी किया जा रहा है जो जल संरक्षण में सहायक होते हैं। इन सबसे कोशिश यह है कि पानी को सहेजा जाए, ताकि सूखे मौसम में नौले-धारे, पंधेरे, चुपटैले और जलस्रोत में पानी मिलता रहे।

दैनिक जागरण में छपी खबर बताती है कि केंद्र सरकार से लॉकडाउन के दौरान मिले संबल के बूते यह मुहिम शुरू हो पाई है। दरअसल, केंद्र सरकार ने हाल में लॉकडाउन के दौरान महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत कार्य शुरू करने को सशर्त छूट दी थी। साथ ही इसमें जल संरक्षण से संबंधित कार्यों को तवज्जो देने पर जोर दिया गया था।उत्तराखंड ने केंद्र की इस गाइडलाइन के अनुरूप मनरेगा के तहत गांवों में जल संरक्षण से जुड़े कार्य शुरू कराने का निर्णय लिया। कोशिशें हुईं और फिर कार्य की मांग सामने आने के बाद 20 अप्रैल से राज्य के सभी जिलों के 95 में से 92 विकासखंडों में जल संरक्षण के कार्यों के लिए मनरेगा की गाड़ी दौड़ पड़ी। मनरेगा के राज्य समन्वयक मोहम्मद असलम बताते हैं कि इन विकासखंडों के गांवों में 6211 कार्यों के मस्टररोल जारी किए गए हैं, जिनमें से 3629 में कार्य तेजी से चल रहे हैं।

इस महामारी में मज़दूरों को आर्थिक संकट से उबारने के लिये मनरेगा को रामबाण औषधि की तरह देखा जा रहा है। इसी के साथ लॉकडाउन 1.0 के 21 दिनों की बंदी के दौरान हालांकि दिहाड़ी मजदूरों, किसानों, किसान मजदूरों को बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। विभिन्न राज्य सरकारों के लॉकडाउन 2.0 की घोषणा होने के साथ दिक्कतें और बढ़ने वाली हैं। एसे में काफी लोगं की सिफारिश थी कि मजदूरों और किसानों के लिये कुछ किये जाने की महती आवश्यकता है।

ग्रामीण गरीबों और काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन किये मजदूरों के तनाव और दिक्कतों को देखते हुए उन्हें आजीविका के अवसर देने का सरकार ने फैसला लिया गया। कोरोना-संकट की उपजी नई परिस्थितियों को देखते हुए गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन 2.0 को लेकर नए दिशानिर्देश जारी किये हैं जिसमें बताया गया है कि कौन से काम मई 3, 2020 तक किये जा सकेंगे और कौन से प्रतिबंधित रहेंगे। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि लॉकडाउन अवधि के दौरान अब मनरेगा में काम किया जा सकेगा। ऐसे में कोविड-19 से उत्पन्न हुई वर्तमान परिस्थितियों में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी एक्ट (मनरेगा) ही सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। इससे न केवल मज़दूरों को काम और पैसा मिलेगा बल्कि सामुदायिक और व्यक्तिगत स्थाई परिसम्पत्तियों का भी निर्माण होगा।
 

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