उत्तराखण्ड सरकार ने दुनिया में पहली बार हिमनदों की देखरेख, संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से राज्य के दस बड़े तथा 1400 छोटे हिमनदों के लिए एक प्राधिकरण का गठन करने की नायाब योजना बनाई है। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में गठित होने वाले प्राधिकरण के लिए आवश्यक कार्रवाई शुरू कर दी गई है। राज्य में अकूत बर्फ और हिमनद के संरक्षण के लिए यह नायाब कदम उठाया जा रहा है जो आज तक दुनिया के किसी भी कोने में नहीं किया गया है।
मुख्यमंत्री ने विशेष बातचीत में कहा कि राज्य में 65 प्रतिशत भूभाग में वन और 20 प्रतिशत भाग में बर्फ तथा हिमनद है । इन्हीं हिमनदों से नदियों में पानी आता है तथा और जलाशय भी पानी से भरते हैं-इस पर न केवल उत्तराखण्ड के लोगों का जनजीवन बल्कि पड़ोसी राज्यों का भी जनजीवन आधारित है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि उत्तराखण्ड में पहली बार इस नायाब प्राधिकरण के बनने से न केवल देश के अन्य राज्य बल्कि दुनिया के अनेक देश भी इसमें रूचि दिखा सकते हैं और इसकी कार्यप्रणाली जानने के लिये उत्तराखंड का भ्रमण कर सकते हैं।
विश्व के अनेक देशों में बर्फबारी, भूस्खलन तथा हिमनदों के अचानक ढह जाने के चलते प्राकृतिक आपदा आती है जिससे निपटने के लिए अभी तक कोई अलग से प्राधिकरण नहीं बनाया गया है लेकिन उत्तराखण्ड इस पहल के साथ अब पूरी दुनिया में इस सिलसिले में अग्रणी भूमिका निभाने को तैयार है। राज्य के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव राजीव चंद्रा तथा उत्तराखण्ड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र (यूसैक) के निदेशक एम एम किमोठी ने इस सिलसिले में बताया कि प्रस्तावित प्राधिकरण में विश्व के जाने माने हिमपात तथा हिमनद पर्यावरण विशेषज्ञों के अतिरिक्त इस क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों तथा संस्थानों के विशेष लोगों को शामिल किया जायेगा।
प्रस्तावित प्राधिकरण के क्रियाकलापों में भारतीय अंतरिक्ष संस्थान ( इसरो ) की मदद ली जायेगी-इसके अतिरिक्त चण्डीगढ़ स्थित स्नो एंड एवलांच स्टडीज स्टेब्लिशमेंट, केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग, देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलाजी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, गढ़वाल तथा कुमांयू विश्वविद्यालय, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलाजी तथा कुछ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञों को इस प्राधिकरण में शामिल किया जायेगा। किमोठी ने बताया कि अभी तक दुनिया के किसी भी देश में हिमनदों और बर्फ के लिए अलग से प्राधिकरण नहीं बनाया गया है-यह उत्तराखण्ड द्वारा पहली कोशिश होगी-राज्य सरकार इस संस्थान के डाटाबेस का विश्व जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने में विभिन्न देशों और संस्थाओं के साथ अनुसंधान, सहभागिता के साथ साथ जानकारी के आदान प्रदान में उपयोग करने पर भी विचार करेगी।
निशंक ने बताया कि उत्तराखंड ऐसा राज्य है जहां दस बड़े और करीब 1400 छोटे हिमनद हैं । करीब 75 किलोमीटर क्षेत्र में गंगोत्री ग्लेशियर फैला है जहां से करोड़ों लोगों की आस्था भागीरथी निकलती हैं जो बाद में देवप्रयाग में गंगा बनकर देश के अन्य हिस्सों में जाती है। उन्होंने बताया कि उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में पांच किलोमीटर से लेकर 75 किलोमीटर आकार के करीब 162 ग्लेशियरों का अध्ययन इसरो की मदद से अभी किया जा रहा है। निशंक ने बताया कि उत्तराखंड के दस ग्लेशियरों को दुनिया में बड़ा ग्लेशियर माना जाता है लेकिन इसके अतिरिक्त भी कई ग्लेशियर हैं जो कई नदियों को जन्म देते हैं। पिथौरागढ़ जिले में करीब तीस किलोमीटर क्षेत्र में फैला मिलाप ग्लेशियर गौरीगंगा नदी का जन्मदाता है लेकिन इसके साथ साथ कलबिलन, उत्तरी बालटी, उंग्लाफू, मेओला, सिफू, बुरफू और बालगंगा ग्लेशियरों से भी काफी मात्रा में पानी आता है। उन्होंने बताया कि केवल पिथौरागढ़ में कम से कम 65 जबकि उत्तराखंड राज्य में दस किलोमीटर आकार के कम से कम 160 ग्लेशियर हैं। मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रस्तावित प्राधिकरण बर्फ और हिमनदों को विश्व संपदा घोषित कराने की दिशा में भी काम करेगा।
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