हिमालय के खूबसूरत बुग्याल (मिडोज) दुनिया के लिये प्रकृति के खूबसूरत उपहार हैं, लेकिन यहां मानव हस्तक्षेप बढ़ने के कारण मखमलीघास के ये बुग्याल आजकल पाॅलीथिन और प्लास्टिक की बोतलों से अटे पड़ें हैं। इससे हिमालय और बुग्यालों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंच रहा है। अगर हिमालय को नुकसान से बचाना है तो सबसे पहले पाॅलीथिन को यहां पहुंचने से रोकना होगा।
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उत्तराखंड के मध्य हिमालय में ट्री लाइन और स्नो लाइन के बीच दुनिया के लगभग 20 बड़े बुग्याल हैं। गोरसों, पनार, मनपई, औली, बगची, देवांगन, नंदीकुंड, बारसों समेत 20 से अधिक बुग्यालों की सूबसूरती न पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। साथ ही इनका धार्मिक महत्व भी है। बुग्यालों में अति मानव हस्तक्षेप के कारण हिमालय के इन बुग्यालों को प्रभावित कर दिया है। गोविंदघाट गुरुद्वारे के मुख्य प्रबंधक सेवा सिंह ने बताया कि पवित्र हेमकुंड साहिब और विश्व प्रसिद्ध फूलो की घाट के मार्ग से अब तक हजारों टन प्लास्टिक, पाॅलीथिन और कांच की बिखरी बोतलों को बोरों में भरकर जागरुक लोग गोविंदघाट ला चुके हैं। यहां से इन गारबेज को बड़े-बड़े कूड़ा निस्तारण के केंद्रों में भेजा गया। उन्होंने लोगों से पाॅलीथिन का उपयोग नहीं करने की अपील भी की।
तुंगनाथ और चोपता में भी प्लास्टिक
तुंगनाथ और चोपता के बीच भी अभी तक सैंकड़ों टन पाॅलीथिन, प्लास्टिक और कांच बिखरे हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले शिक्षक धन सिंह रावत ने बताया कि वे अपने काॅलेज गोदली इंटर काॅलेज के छात्र-छात्राओं को लेकर तुंगनाथ गये और वहां के मार्ग पर बिखरे प्लास्टिक, पाॅलीथिन और कांच के कूड़ें को 100 बोरे में भरकर वापस लाए। बताया कि अभी भी इन बुग्यालों में सैंकड़ों टन पाॅलीथिन और प्लास्टिक का कूड़ा बिखरा है।
प्लास्टिक मुक्त उत्तराखंड बनाएं: राज्यपाल
राज्यपाल बेबी रानी मौय ने प्रदेशवासियों को हिमालय के संरक्षण का आह्वान किया है। राज्यपाल ने कहा की उत्तराखंड एक हिमालयी राज्य है। हिमालय को देश और विश्व की भौगोलिक, पर्यावरणीय, पारिस्थितिकी में अहम भूमिका है। हिमालय दुनिया को पर्यावरणीय सेवाएं दे रहा है। भारत के लिए हिमालय का विशेष सामरिक और सांस्कृति4क महत्व है। हमें हिमालय के संरक्षण के लिए मिलजुल कर काम करना होगा। राज्यपाल ने हिमालयी क्षेत्र को ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ से मुक्त करने का संकल्प लेने का आह्वान भी किया।
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