आपदाग्रस्त उत्तराखंड में टी.एच.डी.सी. की मनमानी
हरसारी गांव के मकान पहले ही जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, भयानक विस्फोटों के कंपन से मकानों में कंपन होता है, जिसकी सूचना लगातार जिला अधिकारी/उपजिलाधिकारी को दी गई, उपजिलाधिकारी ने कहा था कि अपने कर्मचारियों को गांव में भेजेंगे। पर उनका सिर्फ इंतजार ही रहा, फोन पर भी बताया गया कि लगातार रात 11 बजे से 2 बजे तक विस्फोट हो रहे हैं। डर के मारे लोग घर में सोते नहीं। लगातार विस्फोटों को बंद करने की मांग के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। जून की आपदा में पूरे उत्तराखंड में जगह-जगह गांव-घर-जमीनें धसकी हैं। किंतु फिर भी अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना (400 मेवा) की कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सी. विस्फोटों का प्रयोग कर रही है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के विद्युतगृह को जाने वाली सुरंग निर्माण के कारण हरसारी गांव के मकानों में दरारें पड़ी हैं, पानी के स्रोत सूखे हैं, फसल खराब हुई हैं। लोगों ने बांध का विरोध किया है। नतीजा यह है कि लगभग दस वर्ष बाद भी प्रभावितों की समस्याओं का निराकरण नहीं हुआ है। बांध का विरोध जारी है इसलिए बांध कंपनी द्वारा झूठे मुकदमों में लोगों को फँसाने की कोशिशें हो रही हैं। इसीलिए हरसारी के प्रभावित समाज-सरकार के सामने एक दिन के उपवास पर बैठे ताकि बांध कंपनी की मनमानी और लोगों की पीड़ा सामने आए। एक आपदाग्रस्त राज्य में टी.एच.डी.सी. द्वारा नई आपदा लाने के स्वीकार नहीं किया जाएगा।
गोपेश्वर में ज़िलाधीश कार्यालय के बाहर धरने पर शहरी विकास मंत्री एवं चमोली जिला आपदा प्रभारी श्री प्रीतम सिंह पंवार और श्री अनुसूया प्रसाद मैखुरी उपाध्यक्ष विधानसभा ने लोगों से मुलाकात की और ज़िलाधीश व पुलिस अधीक्षक को केस वापिस लेने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा की प्रभावितों के हितों की उपेक्षा नहीं की जाएगी। ज़िलाधीश महोदय ने बाद में कहा की मैं कैसे निर्णय ले सकता हूं? आप कोर्ट जाएं। बहुत कहने पर माना की उपजिलाधिकारी के साथ बैठक कर सकते हैं। दिन बाद में बताया जाएगा।
ज्ञातव्य है कि 13 अगस्त 2013 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के. एस. राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा जी के आदेश के अनुसार अभी टी.एच.डी.सी. को विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिए राज्य सरकार से पर्यावरण स्वीकृति नहीं मिली है।
‘‘हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ-साथ उत्तराखंड राज्य को आदेश देते हैं कि वे इसके अगले आदेश तक, उत्तराखंड में किसी भी जल विद्युत परियोजना के लिए पर्यावरणीय या वन स्वीकृति न दें।”
लोगों ने चमोली के जिलाधिकारियों को लगातार अपनी समस्याओं से अवगत कराया है, लेकिन समस्याओं का निदान नहीं हुआ। विश्व बैंक इस बांध में पैसा उधार दे रहा है उनके अधिकारी बार-बार दिल्ली से गांव भी पहुंचे। उनका भी लोगों पर यही दबाव था कि बांध स्वीकार कर लो समस्याओं का निराकरण हो जाएगा। बाहर के लोगों के भरोसे मत रहो। उनका इशारा माटू जनसंगठन की ओर था। पर लोगों का लगातार यही कहना है कि हमारा मुआवजा दो और इस बात की गारंटी दो की हमारे पर बांध का कोई असर नहीं पड़ेगा। आंदोलन के कारण चुपचाप बांध कंपनी टी.एच.डी.सी. ने हरसारी गांव की ज़मीन के नीचे से निकलने वाली सुरंग का रास्ता थोड़ा बदला और ज़िलाधीश जी को दिखाकर नई सुरंग बनाने का आदेश ले लिया। हर कोई इस बात को समझ सकता है कि सुरंग और विस्फोट कोई जीव जंतु नहीं जिनके रास्ता बदलने से उनका प्रभाव बंद हो जाएगा।
हरसारी गांव के मकान पहले ही जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं, भयानक विस्फोटों के कंपन से मकानों में कंपन होता है, जिसकी सूचना लगातार जिला अधिकारी/उपजिलाधिकारी को दी गई, उपजिलाधिकारी ने कहा था कि अपने कर्मचारियों को गांव में भेजेंगे। पर उनका सिर्फ इंतजार ही रहा, फोन पर भी बताया गया कि लगातार रात 11 बजे से 2 बजे तक विस्फोट हो रहे हैं। डर के मारे लोग घर में सोते नहीं। लगातार विस्फोटों को बंद करने की मांग के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई। हरसारी गांव के श्री तारेन्द्र प्रसाद जोशी का मकान भी गिरा है। जिसका सर्वेक्षण राजस्व विभाग/बांध कंपनी टी.एच.डी.सी. ने आकर किया पर प्रभावित को मुआवज़े के तौर पर अस्सी हजार रुपए राजस्व विभाग से दिए गए। क्या अस्सी हजार में मकान बन सकता है? क्या बाकि लोग भी मकान गिरने का इंतजार करे? विस्फोट जारी है, पानी-फसल मुआवज़े की समस्याएं बरकार है। ऐसे में लोग कहां जाएं?ऐसे समय पर जब आपदा आई हुई है प्रदेश में बांधों से भारी तबाही हुई है, टी.एच.डी.सी. ने दोबारा से सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया है लोगों के अंदर दहशत है बिना समस्याओं का निराकरण किए विस्फोट जारी है, लोग लगातार इसे बंद करते हैं कंपनी फिर शुरू कर देती है।
4 सितंबर 2013 को जब लोग कार्य बंद करने गए तो टनल के अंदर से ठेकेदार के कर्मचारी कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सी. के कर्मचारी श्री टिकेन्द्र कोटियाल, जहां पर सड़क में ग्रामीण विरोध कर रहे थे, ऊपर आए, लोगों ने कहा कि निर्माण कार्य बंद करो और हमारी मकानें तो आप ने स्वयं आकर देखी है जो कि ज़मीन पर विस्फोटों की वजह से गिरी पड़ी है, इतने में उत्तेजना में आकर उन्होंने नरेन्द्र पोखरियाल के बायें गाल पर थप्पड़ मारा और जूता दिखाने लगा, महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करने लगे। साथ ही पुलिस की धमकी देकर चले गए। थोड़ी देर में पुलिस लेकर आ गए, चौकी इन्चार्ज ने हमसे कहा कि ये बहुत बड़ा मामला है आप उपजिलाधिकारी के कार्यालय में धरना दो तथा हाट गांव के अनुरूप पैसे ले लो, हमने कहा कि हमने सारी सूचनाएं समय-समय पर प्रशासन को दी है, महोदय हमारी सुरक्षा की व्यवस्था की जाए क्योंकि कार्यदायी संस्था से हमें पहले से ही खतरा बना हुआ है जिसकी सूचना हमने पहले ही प्रशासन को दी है।
विस्फोटों से हरसारी के मकान क्षतिग्रस्त हैं भूकंप की संभावना बनी हुई है। टी.एच.डी.सी. का दबाव है कि लोग बांध स्वीकार कर लें नहीं तो आगे भी इसी तरह के परिणाम भुगतने पड़ेंगे। क्या बांध कंपनियां आज इतनी सक्षम हो गई हैं कि वो जो चाहे करें? नरेन्द्र पोखरियाल को पहले भी केस में फंसाने की कोशिश हुई थी चूंकि वो आवाज़ उठाते हैं।
हमारी समस्याओं का समाधान किया जाए, हमारे मानवाधिकारों की रक्षा की जाए। इसलिए प्रभावित समाज-सरकार के सामने एक दिन के उपवास पर बैठे। विकास और गरीबी हटाने के नाम पर बड़े बांधों को पैसा देने वाला विश्व बैंक और उसके सामने पैसे की कमी का रोने वाली अपने देश की सरकार कैसे इन सारी ज़िम्मेदारी से पीछे हट सकती है?
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