उत्तर प्रदेश में ऑपरेशन फ्लड


प्रदेश में योजना के सफल क्रियान्वयन हेतु किए गए प्रयासों के फलस्वरूप उत्साहवर्धक प्रगति हुई। दुग्ध उत्पादकों को उत्पादित दूध के विक्रय हेतु आनन्द पद्धति की दुग्ध समितियों के माध्यम से सीधा दुग्ध विक्रय बाजार उपलब्ध कराया गया। उनके दुधारू पशुओं हेतु पशु निवेश सेवाएं भी समितियों के स्तर पर ही उपलब्ध कराई गई।

उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु देश में पहली बार सहकारी क्षेत्र में दुग्ध व्यवसाय का प्रादुर्भाव वर्ष 1917 में इलाहाबाद की कटरा सहकारी दुग्ध समिती की स्थापना से हुआ। वर्ष 1938 में लखनऊ दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ की स्थापना देश में संगठित दुग्ध विकास कार्यक्रम की ओर पहला कदम था। तत्पश्चात अगले वर्षों में इलाहाबाद (1941), वाराणसी (1947), कानपुर (1948), हल्द्वानी (1949), मेरठ (1950) में दुग्ध संघों की स्थापना हुई।

वर्ष 1962 में प्रदेश के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि तथा दुग्ध एवं दुग्ध पदार्थों की प्रक्रिया एवं विपणन की व्यवस्था के साथ-साथ दुग्धशाला उद्योग के उत्थान के उद्देश्य से “प्रादेशिक कोऑपरेटिव डेरी फेडरेशन लिमिटेड” की स्थापना की गई। प्रारम्भ में फेडरेशन द्वारा डेरी उद्योग में एक प्राविधिक सलाहकार के रूप में कार्य किया गया तथा इसके सहयोग से लखनऊ, आगरा, बरेली, देहरादून, लालकुँआ, मथुरा एवं गोरखपुर जनपदों में दुग्धशालाएं स्थापित की गई। वर्ष 1970-71 में फेडरेशन द्वारा प्रदेश सरकार के सहयोग से दलपतपुर (मुरादाबाद) में एक शिशु दुग्ध आहार निर्माणशाला की स्थापना की गई।

वर्ष 1971 में प्रदेश में दुग्ध विकास कार्यक्रम को दृढ़ता प्रदान करने के उद्देश्य से विश्व खाद्य कार्यक्रम के अन्तर्गत ऑपरेशन फ्लड-प्रथम योजना प्रारम्भ की गई। इसके क्रियान्वयन का दायित्व प्रादेशिक कोऑपरेटिव डेरी फेडरेशन लि. को सौंपा गया। इस योजना में चार पश्चमी (मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद एवं बुलन्दशहर) तथा पूर्वी (वाराणसी, गाजीपुर, बलिया एवं मिर्जापुर) जनपदों को सम्मिलित किया गया। इसके क्रियान्वयन हेतु 70 प्रतिशत ऋण एवं 30 प्रतिशत अनुदान के रूप में 687.50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता भारतीय डेयरी निगम द्वारा प्रदान की गई। इस योजना के अन्तर्गत मेरठ एवं वाराणसी जनपदों में एक-एक लाख लीटर दैनिक दुग्ध कार्य-क्षमता की दो दुग्धशालाएं तथा 100-100 मी. टन क्षमता की दो पशु आहार निर्माणशालाएं एवं रायबरेली में एक जर्सी गौ प्रजनन इकाई की स्थापना की गई।

वर्ष 1975 में एफ.एफ.एच.सी. ब्रिटेन एवं प्रदेश सरकार से प्राप्त रु. 47.44 लाख की आर्थिक सहायता से फेडरेशन द्वारा मुरादाबाद में एक “संकर प्रजनन परियोजना” चलाई गई। जिसका उद्देश्य नस्ल सुधार करके गायों की दुग्ध उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है। परन्तु आशानुरूप परिणाम प्राप्त न होने के कारण वर्ष 1982 में इस कार्यक्रम का सिंहावलोकन किया गया जिसमें पाया गया कि केवल 30 प्रतिशत ग्राम स्तर की निबन्धित सहकारी समितियां कार्यरत थीं तथा मुश्किल से लगभग 25 प्रतिशत सरकारी एवं सहकारी क्षेत्र में प्रतिस्थापित दुग्ध हेन्डलिंग क्षमता का उपयोग हो रहा था। परिणाम स्वरूप सहकारी दुग्धशालाओं द्वारा दिए गए दुग्ध मूल्य का एक बड़ा हिस्सा बिचौलिए प्राप्त करते रहे तथा दुग्ध उत्पादकों का निरन्तर शोषण हो रहा था। अतएव इस सम्बंध में शासन द्वारा नीति विषयक निर्णय लेकर कार्यक्रम को गति प्रदान करने की दृष्टि से नवम्बर 1982 में भारतीय डेरी निगम एवं राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड के सहयोग से ऑपरेशन फ्लड द्वितीय योजना प्रदेश में निम्न उद्देश्यों से लागू की गईः

1. दुग्ध उत्पादकों को बिचौलियों के शोषण से मुक्त कराने हेतु आनन्द पद्धति पर आधारित ग्राम्य स्तर पर सहकारी दुग्ध समितियां गठित कर दुग्ध उपार्जन करना।

2. तकनीकी निवेश सुविधाएं जिनमें कृत्रिम गर्भाधान, पशु स्वास्थ्य रक्षा एवं चिकित्सा सेवा, हरा-चारा, बीज व संतुलित पशु आहार सम्मिलित हैं, उपलब्ध कराकर दुधारू पशुओं के दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करना।

3. प्रदेश के प्रमुख नगरों में उत्तम गुणवत्ता के तरल दुग्ध की आपूर्ति उचित मूल्य पर सुनिश्चित करना है।

 

योजनान्तर्गत प्रदेश के 28 जनपदों में तीन चरणों में कार्य प्रारम्भ किया गया।

प्रथम चरण

द्वितीय चरण

तृतीय चरण

मेरठ

बलिया

अलीगढ़

मुरादाबाद

लखनऊ

हरदोई

वाराणसी

इलाहाबाद

गाजीपुर

गाजियाबाद

आगरा

सीतापुर

बुलन्दशहर

कानपुर

जौनपुर

बाराबंकी

मुजफ्फरनगर

उन्नाव

फतेहपुर

सुल्तानपुर

एटा

 

रायबरेली

फर्रुखाबाद

 

मिर्जापुर

मैनपुरी

 

सहारनपुर

 

 

मथुरा

 

 

इटावा

 

 

 
प्रदेश में योजना के सफल क्रियान्वयन हेतु किए गए प्रयासों के फलस्वरूप उत्साहवर्धक प्रगति हुई। दुग्ध उत्पादकों को उत्पादित दूध के विक्रय हेतु आनन्द पद्धति की दुग्ध समितियों के माध्यम से सीधा दुग्ध विक्रय बाजार उपलब्ध कराया गया। उनके दुधारू पशुओं हेतु पशु निवेश सेवाएं भी समितियों के स्तर पर ही उपलब्ध कराई गई। परिणामस्वरूप दुग्ध उत्पादकों में कार्यक्रम के प्रति आस्था एवं विश्वास जागृत हुआ। सितम्बर, 1987 से यह योजना समाप्त होकर अक्टूबर, 1987 से ऑपरेसन फ्लड तृतीय योजना प्रदेश में पूर्व उद्देश्यों के साथ ही लागू हुई। इसमें दुग्ध विकास कार्यक्रम की सुदृढ़ता के साथ-साथ दुग्ध संघों की आर्थिक स्थिति में सुधार पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। योजना के अंतर्गत उत्तम 28 जनपदों के अतिरिक्त दो अन्य जनपद बिजनोर एवं बदायूं भी सम्मिलित किए गए हैं तथा ऑपरेशन फ्लड क्षेत्र में 27 दुग्ध संघों के माध्यम से 32 जनपदों में दुग्ध विकास कार्यक्रम चल रहा है।

ऑपरेशन फ्लड क्षेत्र में वर्तमान में 7 डेरी प्लान्ट एवं 12 अवशीतन केन्द्र स्थापित है। जिनकी प्रबन्ध क्षमता क्रमशः 7.20 लाख लीटर एवं 3.70 लाख लीटर प्रतिदिन है। वर्तमान में 18 स्थानों पर डेरी प्लान्टों एवं अवशीतन केन्द्रों के निर्माण का कार्य चल रहा है, जिससे मार्च, 1994 तक डेरी प्लान्टों एवं अवशीतन केन्द्रों की कुल क्षमता बढ़कर क्रमशः 13.80 एवं 7.90 लाख लीटर हो जायेगी।

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प्रगति के आयाम

 

1981-82 ऑपरेशन फ्लड द्वितीय से पूर्व

1992-93 ऑपरेशन फ्लड तृतीय

दुग्ध समितियाँ

434

6582

दुग्ध उपार्जन (हजार ली. प्रतिदिन)

55.1

572.07

दुग्ध समिति सदस्यता

23,700

3,74,500

नगरीय तरल दूध बिक्री (हजार ली. प्रतिदिन)

7.8

314.38

दुग्ध मूल्य (करोड़ रु.)

4.62

122.99

 

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