सारांश:
तमाम आर्थिक सामाजिक क्रिया-कलापों के चलते दिनोदिन प्रकृति एवं जलवायु विषयक अनुकूलन के विक्षुब्ध होने के कारण किंचित वनौषधि प्रजातियाँ पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त चम्बल, यमुना और उनकी सहायक नदियों की रेती के निरंतर खनन एवं मृदा अपरदन की वजह से सृजित कन्दराओं में हजारों हेक्टेयर उपजाऊ जमीन व जैवसम्पदा विध्वस्त हो रही है। इस आशय से अति महत्त्वपूर्ण लोकचिकित्सकीय ज्ञान के विलोपित होने से पूर्व विज्ञान और तकनीक की मदद से क्षेत्रीय लोगों के औषधीय पौधों द्वारा नैदानिक उपचार संबंधी ज्ञान को वैज्ञानिक रीति से सहेजकर शोध व समन्वय के माध्यम से हर्बल औषधीय विरचन तथा आधुनिक संष्लिष्ट औषधियों के विकास हेतु स्रोतमूलक स्वरूप प्रयोजनार्थ संचयित किया जाना आवश्यक है। वर्तमान शोध में औषधीय पौधों का सर्वेक्षण कर जानकारी एकत्र की गई जिससे कि अभीष्ट प्रयोजन की व्यवहार्यता का आकलन संभव हो सके। इस प्रकार चम्बल घाटी के पुराऔषधीय ज्ञान को संरक्षित व सवंर्धित कर कौशलपूर्वक शोध उन्नयन का रास्ता प्रबुद्ध किया गया है।
Abstract
The multifarious economic and social activities have led to climate disturbances which caused several medicinal species already extinct. In addition, the incessant mining, soil and gully erosion in the river bank of Chambal Yamuna and their tributaries fuelled the formation of ravines resulting in loss of thousands of acres of productive land and bio-resource. It is, therefore, imperative to preserve the curative community wisdom of the region in a scientific way respecting therapeutic utility of the medicinal flora before the highly valuable ethonomedicinal knowledge of the people fade away in view to derive resource for herbal drug formulation and development of modern synthetic medicines through research and development. The comprised research appraises the intended scope through the survey based information of the medicinal plants and their therapeutic utility in practice among regional community of Chambal region, enlighten the way forward for skillful investigations towards preservation and promotion of ethnomedicinal knowledge.
प्रस्तावना
पुरातनकाल से ही मानव समाज व सभ्यता के संरक्षण एवं संवर्धन में वनस्पतियों का महती योगदान रहा है। वन एवं वनस्पतियाँ मानव के जाति की नैसर्गिक सम्पत्ति है। अर्वाचीन आलथक संसाधनों के विकास में पेड़-पौधों के महत्व को उजागर करने की आवश्यकता नहीं है। प्राचीन काल से ही भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में पादप तथा पादप उत्पादों का इस्तेमाल विभिन्न व्याधियों के उपचार हेतु किया जाता रहा है। आरम्भिक सभ्यता के अभिलेख यह प्रकट करते हैं कि वर्तमान चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली काफी औषधियाँ सनातन काल में भी प्रचलित थीं। भारतीय चिकित्सा शास्त्र के अभिज्ञात दस्तावेजों में वर्णित जड़ी-बूटियों के अतिरिक्त राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में विशेषतः अल्पाधुनिक व जनजातीय क्षेत्रों में अनेकों स्थानीय, देशज एवं पुराऔषधीय उपचारात्मक विधियाँ (नुस्खे) प्रचलित हैं, जिनका प्रयोग वैद्यों हकीमों स्थानीय जानकार लोगों तथा आम जनमानस द्वारा बड़े विश्वास के साथ किया जाता है। ये औषधियाँ अपना प्रभाव भी खूब दिखाती हैं।
आज तक अनेक शिक्षा प्राप्त चिकित्सा शास्त्रियों व विज्ञानवेत्ताओं ने स्वदेशी औषधियों के विषय में बहुत कुछ जाँच-पड़ताल की है तथा इस पर अनेकों लेख/ग्रंथ आदि भी प्रकाशित किये हैं। तथापि वैश्वीकरण, आधुनिकीकरण तथा सांस्कृतिक कायापलट के इस दौर में दिनोंदिन बहुमूल्य पौराणिक ज्ञान का विलोपन हो रहा है। वहीं दूसरी ओर बढ़ती हुई बाजार मांग को प्रगतिशील देशों द्वारा एक अवसर के रूप में भांपकर औषधीय पौधों के निहित विभव को उत्कर्षित कर अपने समग्र व दीर्घकालिक आर्थिक-सामाजिक विकास हेतु निमित किये जाने की आवश्यकता है। ऐसे हालत में मूल्यवर्धित लोकज्ञान को वैज्ञानिक रीति से अभिलिखित कर संगृहीत किया जाना आवश्यक है। जिससे की हर्बल दवाओं की उत्पादकता व नवोन्मेश एंव विरचन में औषधीय पौधों के माध्यम से आर्थिक विकास का सम्बल प्रशस्त किया जा सके।
इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुये विनाश विहीन विदोहन, प्रसंस्करण, विपणन तथा हरित-उपभोक्तावाद के उन्नयन हेतु गाँवों में परम्परागत चिकित्सकों को अपनी योजनाओं में शामिल कर उनके अनुभवों व ज्ञान का लाभ प्राप्त करके इस पारम्परिक ज्ञान को विज्ञान की कसौटी में परीक्षित कर वनौषधीय साहित्य स्वरूप संग्रहीत किये जाने तथा निहित ज्ञानार्जन से औषध क्षेत्र में संवहनीय शोध हेतु स्रोतमूलक स्वरूप प्रायोजित कर अपने जैविक व बौद्धिक संसाधनों, संरक्षण एवं संवर्धन वर्तमान शोध का मूल उद्देश्य है। प्रस्तुत शोधपत्र में उत्तर प्रदेश राज्य के चम्बल घाटी प्रक्षेत्र में वनाचल व ग्रामीण कुटुम्बों वैद्यों लोकचिकित्सकों एवं जनजातीय समुदायों तथा वन रक्षक समिति के लोगों से सुनियोजित सर्वेक्षण के माध्यम से प्राप्त जानकारी को वैज्ञानिक रीति से अभिलिखित कर आंचलिक पुरावानस्पतिक ज्ञानकोश के सदृश संकलित किया गया है।
सामग्री एवं विधि
अध्ययन प्रक्षेत्र: यह अध्ययन ग्रामांचल में उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद अंतर्गत मुख्यतः चम्बल घाटी के दायरे में आने वाले गाँवों को सुनिश्चित कर वर्ष 2013 में किया गया। इटावा जनपद भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत के दक्षिण पश्चिमी भाग में स्थित है। इस शहर में कई खण्ड हैं। चम्बल घाटी प्रक्षेत्र में उदी, गरह्यता, भरेह, बहुरी, गवाई, गाटी, असाई छिबरौली, पाठकपुरा और पन्चनदा आदि गाँव शामिल हैं।
लक्षित जनसमुदाय: चिन्हित क्षेत्र के सामान्यतः जनजातीय समुदायों, सपेरे, नट, जोगी एवं वनांचल व ग्रामीण कुटुम्बों, वैद्यों, लोकचिकित्सकों तथा वन रक्षक समिति के सदस्यों एवं क्षेत्र के अन्य जानकार लोगों (महिलायें व पुरुष) को सीधे ही इस अध्ययन में सम्मिलित किया गया। इसके अतिरिक्त पंचायत के ग्राम-सभा सरपंच को भी अध्ययन में शामिल किया गया।
प्रक्रिया: कार्यक्षेत्र में लक्षित जनसमुदाय से सूचनाएं व जानकारी एकत्र करने से संबंधित पहलुओं एवं प्रक्रिया के संदर्भ में विवेचनात्मक समीक्षा द्वारा ग्रामीण जन समुदाय के मध्य तथ्य व आंकड़े जुटाने के लिये प्रश्नावली व साक्षात्कार के प्रश्नों को अभिकल्पित कर किंचित महत्त्वपूर्ण बिंदुओं व निर्देशों को मुकम्मल अनुवृत्ति के लिये अभिलिखित किया। प्रश्नावली के बिंदुओं को सम्मिलित करते हुये सूचना प्रदाता द्वारा दी गई जानकारी को अभिलिखित व संग्रहीत किये जाने हेतु द्विभाषी (हिन्दी व अंग्रेजी) सहमति सूचना प्रपत्र पर वांछित जानकारियाँ प्राप्त कर संगृहीत की गईं (प्रपत्र-क) अधिकांश सूचनादाताओं के साक्षर न होने या सहमति सूचना प्रपत्र पूरित करने में अभिरुचि प्रदर्शित न करने की दशा में व्यक्तिगत साक्षात्कार, संकेंद्रित समूह परिचर्चा, सघन बातचीत एवं मंत्रणा आदि प्रक्रिया के माध्यम से अध्ययन के उद्देश्य को रेखांकित करते हुये तथ्य व सूचनाएं एकत्र की गईं।
आंकड़ों का विश्लेषण तथा कसौटी: संग्रहीत सूचनाओं को संकलित कर इनके वैद्यक इस्तेमाल संबंधी पुष्टि क्षेत्र के जानकार लोगों से इस आशय से परिचर्चा के माध्यम से की गई, कि अमुक्त औषधि का वास्तव में निर्दिष्ट उपचार हेतु प्रयोग होता है अथवा सर्वेक्षण में किये गये दावे का आधार महज जनश्रुति के सिवा कुछ भी नहीं। इस प्रकार प्राप्त आंकड़ों को कदाचित अन्यत्र अभिलेखों में प्रतिवेदित होने की पड़ताल की गई जिससे कि इन सूचनाओं के भविष्यवर्ती शोध में स्रोतमूलक होने की संभव्यता परखी जा सके। अध्ययन से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रमुख आरोग्यकारी एवं उपचारात्मक महत्व की वनस्पतियों को वैज्ञानिक रूप से अभिलिखित कर प्रतिवेदित किया गया।
परिणाम एवं विवेचना
मानवीय परिवेश से सुदूर चम्बल घाटी प्रक्षेत्र में अनुपयोगी भूमि में स्वतः उगने वाली वनस्पतियों में अनेकों औषधीय महत्व की जड़ी-बूटियाँ पल्लवित-पुष्पित होती हैं जो कि निर्जन एवं अल्पाक्रांत भू-भाग में विनाशकारी विदोहन से अब तक बची हुई है। घाटी के आर्थिक सामाजिक रूप से अल्प विकसित ग्रामांचल व जनजातीय जनसमुदाय के लोग स्वास्थ्य लाभ हेतु मुख्यतः जड़ी-बूटी आधारित प्राकृतिक औषधियों पर निर्भर करते हैं। इस कारण क्षेत्रीय जानकार लोग, वैद्य, हकीम आदि महत्त्वपूर्ण पुराऔषधीय जानकारी संजोये हुये हैं। कतिपय दुर्लभ आरोग्यकारी ज्ञान वयोवृद्ध लोगों के प्रयाण के साथ ही विलोपित हो रहा है। पूर्व में वैद्य, हकीम एवं नुस्खों के जानकार लोग खास औषधीय जानकारी साझा करने से कतराते थे तथा आरोग्यकारी नुस्खों का ज्ञान सतत उत्तरजीविता के माध्यम से ही पीढी-दर-पीढी हस्तांतरित होता था। किंतु वर्तमान में संबंधित कुटुम्बों युवाओं द्वारा सामुदायिक विधान में कदाचित रुचि प्रदर्शित न किये जाने की स्थिति में यह लोग पारम्परिक मेघा व सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण व संवर्धन हेतु उचित सम्मानपूर्वक पेश आने पर निज ज्ञान/अनुभव को सहर्ष साझा कर सहयोग हेतु आने से नहीं कतराते हैं।
प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि अनेक वनस्पतियाँ एक से अधिक व्याधियों के उपचार में लाभकारी बताई गई। इस स्थिति में अनेकानेक लोगों द्वारा प्रतिवेदित सूचना की बारम्बारता का संज्ञान लेते हुये व सूचनादाता की आरोग्यकारी साख के आधार पर संबंधित वनस्पति की सार्थकतम औषधीय उपयोगिता को प्रलेखित किया गया। वस्तुतः सर्वेक्षण से प्राप्त वृहद आंकड़ों को अनुवीक्षित कर अमुक जड़ी-बूटी के वनस्पति-वैज्ञानिक नाम तथा सार्थकतम औषधीय उपयोगिता/उपयोगिताओं के साथ संक्षेपित किया गया। पुराऔषधीय सर्वेक्षण से अर्जित जानकारी के अनुसार अधोवणित 50 प्रमुख जड़ी-बूटियों को चिन्हित किया गया। जिन्हें आगे अन्वेषणोन्मुख पड़ताल से यथेष्ट वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाकर उनके निहित औषधीय विभव को उत्कर्षित कर औषधीय शोध व विरचन हेतु निमित्त किये जाने की प्रबल संभाव्यता है।
1. गेंदा - (Calendula officinalis) पत्तियाँ एवं पुष्प अर्श रोग (piles) में उपयोगी। 2. बेहया/बेशरम - (Ipomoea carnes) पत्तियाँ - सूजन में उपयोगी। 3. हाथ जोड़ी- (Martynia annua) पत्तियां कटे व घावों को भरने में उपयोगी। 4. ताल मुरिया- (Tridax procumbens) पूरा पौधा-विष्णुरोधी व त्वचा की सूजन को कम करने में उपयोगी। 5. नीम - (Azadirachta indica) छाल-फोड़े, मुहासे व जीवाणु रोधी में उपयोगी। 6. कद्दू- (Cucurbita maxima) बीज व पत्तियां-घाव में उपयोगी। 7. तुलसी- (Ocimum sanctum) पत्तियां एवं संपूर्ण पौधा-सर्दी व खांसी में उपयोगी 8. धनिया (Coriandrum sativum) पत्तियां एवं फल-वातहर (गैस रिपेलेन्ट) में उपयोगी। 9. सर्पगंधा- (Rauwolfia serpentina) : जड़-मूत्रवर्धक एवं उच्च रक्तचाप में उपयोगी। 10. क्लोव/लौंग- (Eugenia caryophyllus) : फूल, कली-दाँतों के दर्द में उपयोगी। 11. धृतकुमारी- (Aleovera) : पत्तियां-शोधक (Purgative) 12. हल्दी- (Curcuma longa) जड़े-घावों को सुखाने गठिया व पेट दर्द में उपयोगी। 13. पीपल- (Ficus religiosa) पत्तियां-सर्दी व सिर दर्द में उपयोगी। 14. ब्राह्मी/ब्राह्म मंदुकी (Hydrocotyle asiatica/Centella asiatica): संपूर्ण पौधा-मुहासे, कुष्ठ तथा एक्जिमा रोग में उपयोगी। 15. लटजीरा/चिरचिटा- (Achyranthus aspera) : फल, बीज-डायरिया (दस्त), सर्प के काटने व फिस्टुला को ठीक करने में उपयोगी 16. अडूसा- (Justicia adhotoda) : पत्तियां सिर दर्द में उपयोगी। 17. बेल- (Aegle folia) : फल-बुखार व डायरिया (दस्त) में उपयेागी। 18. बबूल (Accacia nilotica) : जड़े-दर्द में उपयोगी। 19. शीशम - (Dalbergia sissoo), पत्तियां बुखार में उपयोगी। 20. रसना- (Pluchea lanceolata): संपूर्ण पौधा, पत्तियां-बवासीर (अर्श रोग) व बुखार में उपयोगी। 21. बिल्वा- (Aegle marmelos) : फल-कार्मिनेटिव व पेचिस में उपयोगी। 22. शतावरी- (Asparagus racemosus) : जड़-दूध स्राव व फिमेल रिजुवनिटिव (नया यौवन) में उपयोगी। 23. जवासा- (Alhagi pseudalhagi) : सम्पूर्ण पौधा-प्यास लगने व बुखार में उपयोगी। 24. धतूरा- (Datura metel): जड़-त्वचा रोग (संक्रमण) में उपयोगी। 25. प्याज- (Allium cepa) गांठ ( Bulb) व तना (shoots) सर्दी व खांसी में उपयोगी। 26. लहसुन- (Allium sativum) : गांठ (Bulb)- पेट दर्द, सिर दर्द व उच्च रक्तचाप में उपयोगी। 27. गांजा (Cannabis sativa): संपूर्ण पौधा, कब्ज को दूर करने में उपयोगी। 28. बरगद- (Ficus benghalensis): जड़-सिर दर्द व संक्रमण में उपयोगी। 29. मदार- (Calotropis gigantes) : पत्तियां एवं पुष्प-दर्द में उपयोगी। 30. कटकरंज (Caesalpinia bonduc) : पत्तियां, बीज, छाल-बुखार, कान के बहने व बवासीर के दर्द में उपयोगी। 31. गूलर- (Ficus racemosa) : छाल मधुमेह व व्रण (अल्सर) में उपयोगी। 32. हरहर- (Cleome viscosa) : पत्तियां-दाद में उपयोगी। 33. जामुन- (Szygium jambolanum): फल, बीज-मधुमेह में उपयोगी। 34. भांगरा/भृंगराज- (Eclipta alba): संपूर्ण पौधा, पत्तियां घाव व बालों के झड़ने में उपयोगी। 35. दुधी - (Euphorbia thymifolia). पत्तियां व तना-पेचिस में उपयोगी। 36. मेंहदी- (Lawsoniainermmis): जड़ व पत्तियां- गर्भपात व हृदय आघात (दिल का दौरा) में उपयोगी। 37. अमरबेल- (Cuscuta reflexa) : फल आँखो के रोगों में उपयोगी। 38. गुगुल- (Commiphora weightii): फल-सूजन, बवासीर व हड्डियों के टूटने में उपयोगी। 39. गोखरू- (Tribulus terrestris) : फल- मूत्र संक्रमण में उपयोगी। 40. अश्वगंधा- (Withania somnifera) : पत्तियां-बदन दर्द व श्वसन में उपयोगी। 41. इन्द्रजव- (Wrigtia tinctoria): छाल, बीज-बुखार व बवासीर में उपयोगी। 42. अमलतास- (Cassia fistula) कलियां (legume) पेट दर्द व बवासीर में उपयोगी। 43. कसोंदा (Cassia occidentalia) : पत्तियां कब्ज दूर करने (परगेटिव) व मूत्रवर्धक (डाइयूरेटिक) में उपयोगी। 44. गुलदाउदी- (Chrysanthemum coronarium) : संपूर्ण पौधा-मूत्रवर्धक व पीलिया में उपयोगी। 45. कुन्द्रू- (Coccinia grandis) फल व पत्तियां श्वास रोग (दमा व ब्रोकाइटिस) कुष्ट रोग व पीलिया में उपयोगी। 46. सुदर्शन - (Crinum latifolium): पत्तियां व गांठ (Bulb) बुखार व कान के दर्द में उपयोगी। 47. मोथा- (Cyperus rotundus) : कंद (ट्यूबर) स्वप्नदोश, पेट दर्द व कुष्ठ रोग में उपयोगी। 48. शंखपुष्पी- (Evolvulus alsinoides) : सम्पूर्ण पौधा, फल, कली-बुद्धिवर्धक व भूलने के उपचार में उपयोगी। 49. निली/श्रीफल (Indigofera tinctoria) : संपूर्ण पौधा, सिर दर्द व आंखों के रोगों में उपयोगी। 50. काला सिरिस- (Albizia odorattisima) पत्तियां-घावों को भरने में उपयोगी।
आभार
शोध कार्य के दौरान आंचलिक लोगों के साथ परिचर्चा तथा साक्षात्कार आयोजित करने एवं भौगोलिक जानकारी उपलब्ध कराये जाने में श्री झब्बूलाल जन जागृति समिति, इटावा, प्रमुखतः श्री मुकेश कुमार जी द्वारा बहुमूल्य सहयोग प्रदान किये जाने हेतु विशेष आभार।
संदर्भ
1. योजना आयोग, भारत सरकार, रिपोर्ट ऑफ द टास्क फोर्स ऑन ग्रीनिंग इण्डिया फॉर लाइव्लीहुड सिक्योरिटी एंड सस्टेनेबल डवलपमेन्ट, जुलाई (2001).
सम्पर्क
निखिल कुमार सचान, अनुपम कुमार सचान, एवं सी वीराव, Nikhil Kumar Sachan, Anupam Kumar Sachan & C V Rao
फार्मेसी संस्थान, दयानन्द दीनानाथ कालेज, रमईपुर कानपुर 209014 (उ.प्र.), वै.औ.अ.प. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ 226001 (उ.प्र.), Education Officer, University Grants Commission, Bahadur Shah Zafar Marg, New Delhi 110002, Institute of Pharmacy, Dayanand Dinanath College, Ramaipur, Kanpur 209014 (U.P.), CSIR National Botanical Research Institute, Lucknow 226001 (U.P.)
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