उत्तर भारत में आपदा बनता कोहरा

कुछ सालों में उत्तर भारत में अचानक पैदा होने वाले इस मौसमी परिवर्तन को समझने के बहुत ही कम प्रयास हुए हैं लेकिन जो हुए भी हैं, वे सतही हैं। इसका एक कारण यह भी रहा है कि अभी कोहरे को वैज्ञानिक समुदाय एक लघुकालिक मौसम परिवर्तन के रूप में मानकर चल रहा है फिर भी जो भी सुना, कहा और पढ़ा जा रहा है, उसके अनुसार उत्तर भारत में कोहरे के कारणों के पीछे दो अलग-अलग विचारधारा है जो इसके लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराती है। कोहरे के इस सिलसिले का कारण क्या है कब तक यह क्रम ऐसा बना रहेगा या इसमें कोई सुधार भी होगा? कोहरे के कारण दिसंबर - जनवरी में उत्तर भारत के अधिकांश हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों को हवाई जहाजों व रेलों की घंटों तक प्रतीक्षा करनी होती है। घने कोहरे के चलते उत्तर भारत के प्रमुख हवाई अड्डों मसलन दिल्ली, अमृतसर, लखनऊ, चंडीगढ़, इलाहाबाद, पटना पर उड़ाने समय पर आ-जा नहीं पातीं। उन्हें सिग्नल के लिए घंटों तक प्रतीक्षा करनी होती है। कभी-कभी तो अत्यधिक देरी के कारण कई रेल सेवाओं तक को रद्द करना पड़ता है ठीक इसी तरह का हाल राजमार्गों का भी होता है।

कोहरा: प्राकृतिक आपदा का रूप


दिसंबर के कुछ दिन तो ठीक बीतते हैं लेकिन जैसे ही उत्तर बारिश की पहली फुहार पड़ती है वैसे ही कोहरे की घनी चादर उत्तर भारत में छाने लगती है जो धीरे-धीरे और घनीभूत होते हुए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार को पूरी तरह व झारखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल, जम्मू एवं कश्मीर राजस्थान के अलावा उत्तरांचल राज्यों को आंशिक रूप से अपने आगोश में ले लेती है। कोहरे की यह मार अब एक प्रकार की प्राकृतिक आपदा का रूप लेती जा रही है। लगभग 1500 लोगों की मौत कोहरे के कारण से हो जाए तो इसे इसके अलावा भला आप क्या मानेंगे? यह आंकड़ा है दिसंबर 2002 व जनवरी 2003 के मध्य कोहरे व शीतलहर से मृत व्यक्तियों का। दिसंबर 03 जनवरी, 04 में यह आंकड़ा लगभग 800 के आसपास रहा। इसमें घने कोहरे के कारण होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में मरने व घायल होने वालों की संख्या शामिल नहीं है।

कुहासे का यह कहर उत्तरी भारत में बसी लगभग बीस से तीस करोड़ की आबादी को झेलना पड़ता है। इनमें से संपन्न व मध्यम वर्ग पर इसका असर खांसी, जुकाम, छींक आने तक ही सीमित रहता है लेकिन इस सर्दी का असली ख़ामियाज़ा गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को भुगतना होता है जिनके पास न तो पहनने को पूरे कपड़े होते हैं और न सिर पर आशियाना। खुले आसमान के नीचे भारी ठंड के चलते कई लोग दम तोड़ देते हैं और हजारों बीमार पड़ जाते हैं। कोहरे-भरी सर्दी का यह मौसम दमे के रोगियों के लिए भी जानलेवा साबित होता है।

सभी पर पड़ती कोहरे की मार


शीत की मार किसानों, उद्यमियों व व्यापारियों को भी झेलनी पड़ती है तथा जमीन तक धूप के नहीं पहुंचने के कारण फसल व सब्जियों के उत्पादन पर इसकी मार पड़ती है। कम उत्पादन व पौधों के खराब होने से उन किसानों को इसका नुकसान उठाना पड़ता है। कोहरे का सीधा प्रभाव अब उत्तर भारत के पर्यटन उद्योग पर भी होने लगा है। इसी तरह कोहरे का असर उद्योगों में कार्यरत मजदूरों की क्षमता पर भी पड़ता है। दिल्ली व अन्य प्रभावित राज्यों में कई बार भारी कोहरे व ठंड के कारण स्कूल तक बंद कर दिए जाते हैं। कोहरे के प्रभाव के कारण माल परिवहन की गति भी धीमी हो जाती है और अधिक समय व ईंधन की भी बर्बादी होती है।

कोहरे के कारण


कुछ सालों में उत्तर भारत में अचानक पैदा होने वाले इस मौसमी परिवर्तन को समझने के बहुत ही कम प्रयास हुए हैं लेकिन जो हुए भी हैं, वे सतही हैं। इसका एक कारण यह भी रहा है कि अभी कोहरे को वैज्ञानिक समुदाय एक लघुकालिक मौसम परिवर्तन के रूप में मानकर चल रहा है फिर भी जो भी सुना, कहा और पढ़ा जा रहा है, उसके अनुसार उत्तर भारत में कोहरे के कारणों के पीछे दो अलग-अलग विचारधारा है जो इसके लिए कई कारणों को जिम्मेदार ठहराती है। कोहरे के इस सिलसिले का कारण क्या है कब तक यह क्रम ऐसा बना रहेगा या इसमें कोई सुधार भी होगा? इन प्रश्नों का फिलहाल कोई ठीक-ठाक जवाब देना कठिन है।

कोहरे का कारण जो भी हो लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उत्तर भारत में बड़ी संख्या मे बनी सिंचाई नहरों के कारण जमीनी पानी के अत्यधिक इस्तेमाल व तटबंध कोहरे का मुख्य कारण हैं। जिससे इस क्षेत्र विशेष में सापेक्ष आर्द्रता बहुत अधिक बढ़ गई है और शीतकाल में तापमान के नीचे आ जाने से नमी का स्तर बढ़ गया है। इसके अलावा वायुमंडलीय प्रदूषण व ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के असर से भी कुहासे की समस्या पैदा हो रही है।

कोहरा : ग्लोबल वार्मिंग का हिस्सा


लेकिन पहले ऐसा क्यों न था या फिर अचानक नमी व प्रदूषण का स्तर क्या इतना बढ़ गया है लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों में क्यों इस प्रकार के कोहरे के आच्छादन की समस्या नहीं है? फिलहाल इसका जवाब भी अनुत्तरित है। आज जाड़े के दिनों में शिमला, नैनीताल, मंसूरी में पहले के बजाए खुशगवार मौसम मिलता है। इसका लाभ कुछ टुरिस्ट कंपनियां उठाने लगी हैं।

पर्यावरण वैज्ञानिक मौसमी बदलाव को ग्लोबल वार्मिंग का हिस्सा मानते हैं और तापमान में वृद्धि के कारण दुनिया में होने वाले अप्रत्याशित बदलावों की भविष्यवाणियां करते हैं मसलन उनकी एक भविष्यवाणी है कि पृथ्वी बढ़ने से 2050 तक समुद्र के किनारों पर बसे कई शहर जलमग्न हो जाएंगे। आज उत्तर व दक्षिण ध्रुव व ऊंचे पहाड़ों पर सुरक्षित बर्फ के भंडार बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं फलस्वरूप सागर के जलस्तर में वृद्धि हो रही है लेकिन मात्र प्रदूषण से ही पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और यही कारण मात्र मौसम परिवर्तन का कारण है, इससे वैज्ञानिक असहमत हैं।

विश्वव्यापी मौसमी बदलाव के बारे में जो दूसरे कारण दिए जाने लगे हैं उनमें से एक कारण टेक्टोनिक प्लेटों का खिसकना है तथा दूसरा पृथ्वी के घूर्णन के बारे में कुछ संकल्पनाएं। मसलन पृथ्वी के घूमने का अक्ष 41 हजार सालों में 21.2 से 24.5 अंश के कोण के मध्य होता है, इससे पृथ्वी पर सूर्य से आने वाले प्रकाश की तीव्रता प्रभावित होती है। यह एक प्रकार से चक्रीय घटना है।

बढ़ता प्रदूषण भी जिम्मेदार


उधर कुछ अंतरिक्ष व भूभौतिक शास्त्री पृथ्वी पर मौसमी बदलाव को सूर्य चक्रीय आधार पर होने वाले सौर धब्बों से जोड़कर देखते हैं जिससे पृथ्वी की जलवायु प्रभावित होती है। दरअसल सूर्य की सतह पर तापक्रम एक जैसा नहीं बना रहता है। समय-समय पर उसकी सतह पर परिवर्तन होता रहता है। इसी प्रकार सौर सक्रियता को भी पृथ्वी में मौसमी परिवर्तन से जोड़कर देखा जाने लगा है। आठ से ग्यारह साल बाद प्रकट होने वाली सौर सक्रियता के दौरान सूर्य में बढ़ी हलचल से सूर्य से उत्पन्न होने वाले विकिरण की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे पृथ्वी का मैग्नेटोस्फेयर प्रभावित होता है जो अंतरिक्ष से आने वाले विकिरणों को पृथ्वी तक आने से रोकता है। दूसरी ओर भूगर्भवेत्ता इसके उलट हिमयुग के वापस लौटने की बात करते हैं। इसके बारे में उनके अपने वैज्ञानिक तर्क हैं।

बहरहाल कारण चाहे कुछ भी हो भारत में कोहरे की घटना पर राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला व मौसम वैज्ञानिकों द्वारा एक अध्ययन किया जा रहा है। इसके अनुसार वे वायुमंडल में प्रदूषणकारी मुख्य गैसों यथा सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साईड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड व अन्य ग्रीन हाउस गैसों के कारण कोहरे के घनेपन के संबंध का अध्ययन कर रहे हैं।

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