उत्तर बिहार के आकाश में गिद्ध


उत्तर बिहार के आसमान पर अभी कुछ दिन पहले हेलीकॉप्टर दिखाई दे रहे थे, आजकल चील और गिद्ध दिखाई दे रहे हैं। ये नज़ारे बाढ़ के पानी के फैलने और उतरने के बाद के हैं। पानी के फैलने के साथ ही राज नेताओं और अधिकारियों का हवाई सर्वेक्षण का दौर चला और जनता की सहानुभूति हासिल करने के अपने प्रयास में पक्ष-विपक्ष ने समान रूप से बाढ़ के बहते पानी में हाथ धोने की कोशिश की थी। फिलहाल पानी उतार पर है तो बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में गन्दगी के साथ-साथ यत्र-तत्र मानव और पशुओं की लाशें अपनी उपस्थिति का एहसास करा रही हैं। आसमान में हेलिकॉप्टर गायब होने लगे हैं तो चील एवं गिद्ध उनका स्थान लेने लगे हैं।

बाढ़ का बेटाउत्तर बिहार में साल के तीन चार महीनें तक बाढ़ और राहत की राजनीति चलती है। इसका एक पक्ष होता है पानी आने के साथ हवाई सर्वेक्षण और राहत के लिये बयान युद्ध। यह दौर ख़तम हो गया और अब दूसरा चरण आरम्भ हो रहा है जो राहत की राजनीति का असली दौर है। अब सांसद–विधायक–राजनेता अपनी राजनीति (वोट) के हिसाब से रणनीति तैयार कर रहे हैं। धरना-प्रदर्शन-घेराव और अनशन की तैयारी की जा रही है, तिथियाँ तय हो रही हैं, प्रशासन को चेतावनी दी जा रही है। यह सब उत्तर बिहार की उस अभिशप्त आबादी के नाम पर हो रहा है जिसे समय पर अन्न, पानी और दवा उपलब्ध कराने का एक महिना पहले तक बिहार के जन प्रतिनिधि को कोई चिंता नहीं थी। उन दिनों वह अपहरण के बाद के बिहार के सबसे उन्नतशील उद्योग ट्रांसफर-पोस्टिंग में लगे थे।

बाढ़ बचाव कार्य समय से काफी पहले करने की तरह ही राहत की तैयारी भी समय रहते अमूमन जून तक कर लेने की बिहार में परंपरा रही है। लेकिन बिहार के बहुत से नियम-परिनियम और परंपरा-परिपाटी की तरह बाढ़ राहत की समय पूर्व तैयारी की सोच भी बेमानी हो गयी है। इस बारे में राज्य का प्रशासन तंत्र तो नहीं ही सोचता है। राजनीतिक नेतृत्व भी इसकी जरूरत नहीं समझता। सबसे दुखद पक्ष तो यह है कि हमारे जन प्रतिनिधियों को इस बारे में समय पर बात करने की फुर्सत तक नहीं रहती। बाढ़ राहत के सवाल पर पिछले वर्ष 6 अगस्त को औराई में गोली चली थी और आठ लोग मारे गए थे। लेकिन मुजफ्फरपुर में इस साल राहत के लिये तैयारी भी नहीं की गई। प्रखंड मुख्यालयों पर राहत सामग्री भेजने की जरूरत नहीं समझी गयी और लोगों को पानी से बचाने के लिये नावों की खरीद का प्रस्ताव द्वितीय प्राथमिकता में रख दिया गया। लेकिन यह केवल मुजफ्फरपुर की कहानी नहीं है, उत्तर बिहार के किसी प्रखंड में बाढ़ आने से पहले किसी प्रकार की कोई राहत सामग्री नहीं पहुँची थी।

इतना ही नहीं, कहीं नावों का प्रबंध तक नहीं किया गया। मुजफ्फरपुर में प्रखंडों के पानी से घिर जाने के बाद नाव बनाने का आदेश दिया गया। पानी में डूबे लोगों को चूड़ा की खोज प्रारंभ हुई और अखाद्य घोषित सारे चूड़े अलग-अलग चरणों में अलग-अलग दर पर खरीदे गए। लेकिन यह पर्याप्त नहीं था, सो निविदा जारी की गई। निविदा पर फैसला अब चौदह अगस्त को होना है। उसके बाद बाढ़ पीड़ितों के लिये खाद्य सामग्री खरीदी जाएगी, पॉलिथीन शीट खरीदी जाएगी। सबसे दयनीय स्थिति तो स्वास्थ्य विभाग की रही। इस विभाग ने पिछले वर्ष तक की अपनी परिपाटी को तोड़ कर बाढ़ क्षेत्रों में महामारी की रोकथाम के लिये बजट प्रावधान इस वर्ष समाप्त कर दिया। सिविल सर्जनों को आदेश दिया गया कि बाढ़ के दौरान यदि महामारी की स्थिति उत्पन्न होती है तो सामान्य अवस्था में संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिये आवंटित एक लाख रुपये से ही इससे निपटा जाए। अब अनेक स्थानों पर महामारी जैसी स्थिति उत्पन्न होने के बाद विभाग की ओर से ब्लीचिंग और गैमेक्सीन पाउडर की खरीद की निविदा जारी हुई है। बाढ़ पीड़ितों की राहत के प्रति इस अमानवीय नजरिये ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।

Path Alias

/articles/utatara-baihaara-kae-akaasa-maen-gaidadha

Post By: Hindi
×