उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय

गेहूँ की खेती
गेहूँ की खेती


झारखंड में 80 प्रतिशत लोग खेती में लगे हैं। अधिक फसल उत्पादन के लिये आधुनिक -कृषि तकनीक में उन्नत बीज, समय से फसल बुआई, कोड़ाई, पटवन, उर्वरक का उपयोग खरपतवार नियंत्रण, कीट व रोग नियंत्रण, समय से कटाई एवं फसल चक्र का उपयोग करने लगे हैं। इनमें सबसे महँगा उपादान उर्वरक है।

मिट्टी में सही मात्रा में एवं सही अनुपात (नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश) में उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। यह तभी संभव है जब आप मिट्टी परीक्षण करा कर उर्वरकों का प्रयोग करेंगे। इससे होता यह है कि मिट्टी में आवश्यक पोषक तत्व का उर्वरक अधिक डालकर ही उपज का अधिक लाभ ले सकते हैं पोषक तत्व का सही अनुपात चाहिए नहीं तो एक तत्व की कमी दूसरे तत्व की उपयोगिता को प्रभावित करेगी। मिट्टी में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ण जानकारी मिट्टी परीक्षण द्वारा विभिन्न फसलों की आवश्यकतानुसार निर्धारित निश्चित मात्रा में उर्वरक की सिफारिश से अधिक लाभ ले सकते हैं।

मिट्टी परीक्षण से आपकी मिट्टी में सुधार की आवश्यकता है या नहीं यह भी पता चलता है यदि आपकी मिट्टी अम्लीय है तो उसमें तीन से चार क्विंटल चूना बुआई के समय डालकर ही उर्वरक की क्षमता को पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। झारखंड की 49 प्रतिशत मिट्टी अधिक अम्लीय है। यह सभी ऊपरी जमीन है। धान के अलावा अधिकांश फसल में मिट्टी सुधार चुना डालकर उर्वरकों की क्षमता बढ़ा सकते हैं।

मिट्टी परीक्षण से आपकी मिट्टी के कार्बन की प्रतिशत उपलब्धता का पता चलता है 80 प्रतिशत नत्रजन कार्बन पदार्थ के साथ संलग्न होता है। झारखंड की 47 प्रतिशत मिट्टी में कम प्रतिशत में जैव कार्बन है। मिट्टी परीक्षण करने के बाद कितना गोबर खाद देना है, उसका निर्धारण होता है। समुचित मात्रा में गोबर खाद देकर ही फसलों में दिए गये उर्वरकों का पूर्ण उपयोग किया जा सकता है। गोबर खाद मिट्टी की दशा सुधार कर अनुपलब्ध पोषक तत्व को उपलब्ध पोषक तत्व में बदल देता है।

किसानों में यह धारणा है कि रासायनिक उर्वरक डालने से मिट्टी खराब हो जाता है, यह सही नहीं है। यदि सही मात्रा एवं अनुपात में तीनों आवश्यक उर्वरकों का प्रयोग किया जाए तो भरपुर उपज लिया जा सकता है। प्रयोग से ऐसा पता चला है कि यदि केवल यूरिया का उपयोग किया जाए तो शुरू के वर्ष में फसल की अच्छी उपज मिलती है लेकिन 10-12 वर्षों के बाद फसल की उपज बहुत कम हो जाती है। यदि रासायनिक उर्वरक की क्षमता अधिक लेना है तो नत्रजन, स्फूर एवं पोटाश की संतुलित मात्रा देनी होगी एवं नत्रजन उर्वरक तीन बार फसल की आयु एवं अवस्था के अनुसार देना होेगा। शुष्क खेती में उर्वरकों का उपयोग सतह के नीचे (4.5 इंच) करना चाहिए।

फसल बोने के लिये मिट्टी को खूब भुरभुरा करना चाहिए जिससे पौधों की जड़ों का अधिक फैलाव होकर अधिक से अधिक पोषक तत्वों का उपयोग कर सके। अच्छी जुताई से पौधों को अधिक हवा एवं जल मिलता है जो उपलब्ध पोषक तत्व की उपयोगिता बढ़ाता है। समय पर फसल की बुआई एवं अनुशंसित बीज की मात्रा से कम उर्वरक से अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं। समय से पहले या देरी से बुआई करने पर डाले गये उर्वरक की उपयोगिता कम हो जाता है एवं कीट या पौधा रोग की अधिक संभावना होती है।

यूरिया का छिड़काव हमेशा खरपतवार को हटाने के बाद करना चाहिए। यदि खरपतवार का नियंत्रण करना संभव न हो तो ऊपर से नत्रजन का प्रयोग न करें। नत्रजन उर्वरक 2-3 बार हमेशा पटवन के बाद छिड़काव करेें। स्फूर एवं पोटाश उर्वरक की उपयोगिता पौधों के प्रथम आधे उम्र तक अधिक होता है। उसके बाद उसकी उपयोगिता कम हो जाती है। लेकिन नत्रजन का उपयोग बढ़वार के प्रथम एवं अन्तिम अवस्था में कम जरूरत होती है एवं बीच के अवस्था में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।

फसलों की अच्छी पैदावार के साथ-साथ मृदा की उर्वरा शक्ति बनाये रखें एवं भूक्षरण से बचाये रहना आवश्यक है। इसके लिये अदलहनी फसलों के बाद दलहनी फसल, गहरी जड़ों वाली फसल के बाद कम गहरी जड़ वाली, अधिक जल व खाद चाहने वाली फसल के बाद कम जल व खाद चाहने वाली फसलें अधिक निकाई, गुड़ाई वाले फसल के बाद कम गुड़ाई वाले फसल से ही अधिक मृदा उर्वरा का उपयोग एवं अधिक फसल उपज ले सकते हैं।

 

 

 

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