गुजरात में कई किसान अपनी सिंचित सफेदा खेती में रासायनिक ऊर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन श्री चतुर्वेदी चेताते हुए कहते हैं कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से करना चाहिए। अकसर लोग मानते हैं कि रासायनिक उर्वरकों और पानी की मात्रा बढ़ने से सफेदे की पैदावार भी बढ़ती है। लेकिन ऊर्वरकों का अति-उपयोग मिट्टी और पेड़ दोनों को भारी क्षति पहुंचा सकता है। हमारे यहां सफेदे के लिए उर्वरकों के उपयोग के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है। यह भी मालूम नहीं कि सफेदा कितनी खाद हजम कर पाता है। उससे छूट गई खाद मिट्टी में रह जाती है और मिट्टी को बिगाड़ देती है। अनियमित उपयोग से खाद आगे चलकर सफेदे और दूसरे पेड़ों की बढ़त में भी नुकसान पहुंचा सकती है।
वन संवर्धन में रासायनिक दवाई के उपयोग के बारे में कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े हुए हैं, पर हमारे योजनाकारों और विशेषज्ञों ने इस पर जरा भी सोचा नहीं है।
कर्नाटक सरकार की सलाहकार समिति सफेदे के आलोचकों से इस बात पर सहमत है कि संकर सफेदे से मिट्टी के फास्फेट पर असर पड़ता है और वह अम्लयुक्त हो जाती है। लेकिन उसका कहना है कि “खारी मिट्टी के लिए यह अच्छा ही है। एक खास प्रयोग में देखा गया कि संकर सफेदे के खेत की क्षार वाली मिट्टी का फास्फेट ग्यारह सालों में 8.2 से 8.0 तक घट गया। दूसरे शब्दों में, संकर सफेदे ने सचमुच मिट्टी को सुधार दिया। कर्नाटक में ज्यादातर मिट्टी खारी है। इसलिए अम्लता का बढ़ना कोई समस्या नहीं है, भले ही ज्यादा अम्ल वाली मिट्टी में सफेदा लगाना ठीक न हो, पर थोड़ी-सी अम्लता वाली जमीन लगाने से भी कोई गंभीर खतरा पैदा होने वाला नहीं है।”
सफेदे के कारण उसके नीचे दूसरी कोई फसल पैदा होती है या नहीं इस बारे में प्राप्त जानकारियां परस्पर विरोधी हैं। देहरादून के मृदा व जल संरक्षण केंद्र के श्री आरके गुप्ता कहते हैं कि सफेदे को बहुत पानी चाहिए इसलिए उसके नीचे कोई फसल नहीं हो सकती। कर्नाटक की सलाहकार समिति इस बारे में भी जमीन की किस्म का तर्क उठाती है।
कुल मिलाकर सभी राज्यों के वन विभाग सफेदे के हाथ मजबूत करने में लगे हुए हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि सफेदा नीचे के पौधों को रोकता नहीं है। कर्नाटक वन विभाग के विकास प्रभाग के नोट के अनुसार, “जहां मिट्टी और बारिश की स्थिति अच्छी है, वहां सफेदे के नीचे छोटे-मोटे पौधे, झाड़ी और घास अकसर देखने को मिलती है। सूखे क्षेत्रों में नीचे की फसल के न आने का कारण पहले से मिट्टी की खराबी, ज्यादा चराई और लोगों द्वारा सूखे पत्तों और टहनियों का बटोर लेना है।”
हेब्बाल के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के श्री बीकेसी राजन के मत में सफेदे की आड़ी तिरछी जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह में लगभग 20 सेंमी तक फैलती हैं। इसलिए सफेदे के नीचे कुछ किस्म की घास पैदा हो सकती है। जोधपुर के मरुभूमि संस्थान का कहना है कि सफेदे के पेंड़ अपनी बढ़त के लिए ऊपर से थोड़ी गहरी सतह की नमी खींच लेते हैं, ऊपरी सतह की नमी को छोड़ देते हैं। जहां कम समय की छोटी फसलें पैदा हो सकती हैं। जहां मोटी किस्म की घास हुआ करती थी वहां सफेदा लगने के बाद हमेशा हरियाली छा गई।
लेकिन श्री राजन यह भी कहते है कि चूंकि संकर सफेदे की आड़ी तिरछी जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह के बहुत सारे हिस्से में फैलती हैं और कई शाखाओं में फूटती जाती हैं, इसलिए उनके मुकाबले में दूसरी वनस्पतियों की जड़ें टिक नहीं पातीं। पुराने संकर सफेदे के पास बोये सुबबूल की बढ़त बिल्कुल रुक जाती है।
दूसरे पेड़ों के साथ मिलकर लगाए गए सफेदे का भी नतीजा अच्छा नहीं निकलता। श्री चतुर्वेदी कहते हैं कि सफेदे से मुनाफा कमाने का एक ही रास्ता है। सफेदे की ही खेती करो बस।
वन संवर्धन में रासायनिक दवाई के उपयोग के बारे में कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े हुए हैं, पर हमारे योजनाकारों और विशेषज्ञों ने इस पर जरा भी सोचा नहीं है।
कर्नाटक सरकार की सलाहकार समिति सफेदे के आलोचकों से इस बात पर सहमत है कि संकर सफेदे से मिट्टी के फास्फेट पर असर पड़ता है और वह अम्लयुक्त हो जाती है। लेकिन उसका कहना है कि “खारी मिट्टी के लिए यह अच्छा ही है। एक खास प्रयोग में देखा गया कि संकर सफेदे के खेत की क्षार वाली मिट्टी का फास्फेट ग्यारह सालों में 8.2 से 8.0 तक घट गया। दूसरे शब्दों में, संकर सफेदे ने सचमुच मिट्टी को सुधार दिया। कर्नाटक में ज्यादातर मिट्टी खारी है। इसलिए अम्लता का बढ़ना कोई समस्या नहीं है, भले ही ज्यादा अम्ल वाली मिट्टी में सफेदा लगाना ठीक न हो, पर थोड़ी-सी अम्लता वाली जमीन लगाने से भी कोई गंभीर खतरा पैदा होने वाला नहीं है।”
सफेदे के कारण उसके नीचे दूसरी कोई फसल पैदा होती है या नहीं इस बारे में प्राप्त जानकारियां परस्पर विरोधी हैं। देहरादून के मृदा व जल संरक्षण केंद्र के श्री आरके गुप्ता कहते हैं कि सफेदे को बहुत पानी चाहिए इसलिए उसके नीचे कोई फसल नहीं हो सकती। कर्नाटक की सलाहकार समिति इस बारे में भी जमीन की किस्म का तर्क उठाती है।
कुल मिलाकर सभी राज्यों के वन विभाग सफेदे के हाथ मजबूत करने में लगे हुए हैं। वे जोर देकर कहते हैं कि सफेदा नीचे के पौधों को रोकता नहीं है। कर्नाटक वन विभाग के विकास प्रभाग के नोट के अनुसार, “जहां मिट्टी और बारिश की स्थिति अच्छी है, वहां सफेदे के नीचे छोटे-मोटे पौधे, झाड़ी और घास अकसर देखने को मिलती है। सूखे क्षेत्रों में नीचे की फसल के न आने का कारण पहले से मिट्टी की खराबी, ज्यादा चराई और लोगों द्वारा सूखे पत्तों और टहनियों का बटोर लेना है।”
हेब्बाल के कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय के श्री बीकेसी राजन के मत में सफेदे की आड़ी तिरछी जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह में लगभग 20 सेंमी तक फैलती हैं। इसलिए सफेदे के नीचे कुछ किस्म की घास पैदा हो सकती है। जोधपुर के मरुभूमि संस्थान का कहना है कि सफेदे के पेंड़ अपनी बढ़त के लिए ऊपर से थोड़ी गहरी सतह की नमी खींच लेते हैं, ऊपरी सतह की नमी को छोड़ देते हैं। जहां कम समय की छोटी फसलें पैदा हो सकती हैं। जहां मोटी किस्म की घास हुआ करती थी वहां सफेदा लगने के बाद हमेशा हरियाली छा गई।
लेकिन श्री राजन यह भी कहते है कि चूंकि संकर सफेदे की आड़ी तिरछी जड़ें मिट्टी की ऊपरी सतह के बहुत सारे हिस्से में फैलती हैं और कई शाखाओं में फूटती जाती हैं, इसलिए उनके मुकाबले में दूसरी वनस्पतियों की जड़ें टिक नहीं पातीं। पुराने संकर सफेदे के पास बोये सुबबूल की बढ़त बिल्कुल रुक जाती है।
दूसरे पेड़ों के साथ मिलकर लगाए गए सफेदे का भी नतीजा अच्छा नहीं निकलता। श्री चतुर्वेदी कहते हैं कि सफेदे से मुनाफा कमाने का एक ही रास्ता है। सफेदे की ही खेती करो बस।
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