उपग्रह डाटा प्रदूषण से भारत के मौसम में बदलाव

[img_assist|nid=24813|title=|desc=|link=none|align=left|width=280|height=250]इलिनोइस विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिकों ने पिछले 10 सालों के उपग्रह डाटा प्रदूषण का अध्ययन किया और उनके सामने कुछ चौकाने वाले तथ्य आए जिसमें देखा गया कि भारतीय उपमहाद्वीप के मौसम पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा है। एयरोसोल प्रदूषण वातावरण में छोट-छोटे कणों को फैला रहा है, जिससे मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंच सकती है। व्यक्ति को इससे सांस की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। एयरोसोल प्रदूषण प्राकृतिक स्रोतों से फैल सकता है और इसका सबसे सशक्त माध्यम हवा है। लेकिन मानव गतिविधियां भी इसे बढ़ावा देने का कार्य कर रहीं हैं। उदाहरण के तौर पर ईंधन के निकलने वाला हाइड्रोकार्बन इसमें प्रमुख है।

एयरोसोल के स्तर को मापा जा सकता है लेकिन यह तकनीक अभी विकसित देशों के पास ही है, क्यों कि इसके लिए कई प्रकार के डेटा की जरुरत पड़ती है। इसी के चलते नासा के साथ काम कर चुके डी गिरलोमो ने एक मल्टी-एंगिल इमेजिंग स्पेक्ट्रो-रेडियोमीटर (एमआईएसआर) तैयार किया है। नासा ने टेरा सेटेलाइट प्लेटफोर्म को 1999 में लांच किया था इसे शोध के लिए अनुमति प्रदान की थी। इस पद्धति को एमआईएसआर कहते है जिससे इस बात का पता लगाया जा सकता है कि एयरोसोल प्रदूषण क कण हवा में किस मात्रा में उपलब्ध है।

डी गिरलोमो ने बताया कि 10 साल बाद हम एयरोसोल के कणों का मैप तैयार करने में सक्षम हो जाएंगे। इसके साथ ही हम यह भी बता सकेंगे की हम किस तरह के कणों का सामना कर रहे और इनमें से कितनी धूल है और कितने कण मानव द्वारा निर्मित है। जनरल ऑफ ज्योगरफीकल रिसर्च में छपे डी गिरलोमो ने ही पिछले दस साल के एमआईएसआर डाटा का अध्ययन किया है, और बताया है कि इसका भारतीय उपमहाद्वीप के वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि घनी आबादी वाले क्षेत्र , निगरानी स्थलों के आभाव ओर, हवा की गुणवत्ता में कमी के कारण एयरोसोल वितरण का सही अनुमान लगाना मुश्किल है।

डी गिरलोमो ने कहा कि यह अध्ययन इस बात को बताता है कि ज्यादातर देशों में वातावरण प्रदूषण अपनी सीमा को पार कर गया है, और अधिकतर देशों में दो से पांच गुना अधिक है। इसके साथ ही एमआईएसआर के डाटा में बताया गया है कि भारत में प्राकृतिक और मानवनिर्मित एयरोसोल प्रदूषण की मात्रा काफी अधिक है। इसी का प्रभाव है कि मानसून के पहले ही हवाएं अपना रुख में परिवर्तन कर देतीं है। मानसून के पूर्व हवा की गुणवत्ता काफी खराब रहती है क्यों कि हवा अफ्रीका की धूल को अरेबियन रास्ते से भारत में प्रवेश कराती हैं। बारिश के पहले हवा काफी दूषित होती है और इसके प्रभाव सिर्फ प्राकृतिक कारणों से नहीं है इसमें मानव भी अपनी भूमिका अदा कर रहा है।

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