दुर्गा नौटियाल, दैनिक जागरण, 12 फरवरी, 2020
ग्रीष्मकाल के दौरान तीर्थनगरी ऋषिकेश में सर्वाधिक पर्यटक राफ्टिंग के लिए आते हैं। खासकर वीकएंड पर तो गंगा के कौड़ियाला-मुनिकीरेती ईको टूरिज्म जोन में पर्यटकों की भरमार रहती है। बावजूद इसके पर्यटन सुविधाओं का यहाँ घोर अभाव है। स्थिति यह है कि वन विभाग और पर्यटन विभाग राफ्टिंग जोन में सही एप्रोच और चेंजिंग रूम जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं जुटा पा रहे।
तीर्थनगरी में गंगा का करीब 42 किमी लम्बा कौड़ियाला-मुनिकीरेती ईको टूरिज्म जोन राफ्टिंग गतिविधियों के लिए विश्व मानचित्र में स्थान रखता है। वर्ष में करीब पांच माह तक चलने वाली राफ्टिंग गतिविधियों के लिए रोजाना हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक यहाँ पहुंचते हैं। वर्तमान में गंगा में करीब 300 कम्पनियां राफ्टिंग गतिविधियां संचालित करा रही हैं। करीब दस हजार से अधिक लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में इस व्यवसाय से लाभान्वित हो रहे हैं। फिर भी विडंबना देखिए कि इस व्यवसाय को सुव्यवस्थित करने वाले विभाग ही इस ओर ध्यान नहीं दे रहे।
यह ईको टूरिज्म जोन नरेन्द्रनगर वन प्रभाग के अन्तर्गत आता है, जबकि यहाँ पर्यटन सुविधाएं विकसित करने की जिम्मेदारी वन विभाग के साथ पर्यटन विभाग की भी है। बावजूद इसके आज तक राफ्टिंग के इनटेल और आउटटेल प्वाइंट को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाले रास्ते तक दुरुस्त नहीं हो पाए। गंगा तटों पर न तो चेंजिंग रूम की व्यवस्था है, न टॉयलेट की ही।
प्रबन्धन समिति भी नहीं बना पाई व्यवस्था
गंगा में राफ्टिंग गतिविधियों के संचालन और व्यवस्थाएं बनाने के लिए शासन स्तर से गंगा नदी राफ्टिंग प्रबंधन समिति का गठन किया गया था। जिलाधिकारी टिहरी की अध्यक्षता में गठित इस समिति में एसडीएम (उपाध्यक्ष), जिला पर्यटन अधिकारी (सचिव) व जिला कोषाधिकारी (कोषाध्यक्ष) के अलावा राफ्टिंग कारोबारी भी शामिल किए गए थे। गंगा नदी राफ्टिंग रोटेशन समिति के अध्यक्ष दिनेश भट्ट बताते हैं कि प्रबंधन समिति ने ढांचागत सुविधाओं के विकास को प्रति पर्यटक शुल्क लिए जाने का निर्णय लिया था। इससे करीब एक करोड़ रुपए की आय भी समिति को हुई। मगर, इसमें धेला भी पर्यटन सुविधाओं के विस्तार पर खर्च नहीं हुआ।
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