खेती में उन्नत तकनीक अपनाना समय की मांग है। जो किसान उन्नत तकनीक से खेती कर रहे हैं वे भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं। मिर्जापुर के किसान सुशील कुमार बिंद ने सब्जी की खेती उन्नत तकनीक से की और आज वह स्वावलंबी हैं। उन्हें खेती में मुनाफा ही मुनाफा नजर आ रहा है।
भारत के तमाम किसान नई तकनीक से उन्नत खेती कर रहे हैं। वे कड़ी मेहनत करके खेती के जरिए परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ ही समाज को भी नई दिशा दे रहे हैं। इन किसानों को समाज में खूब सम्मान मिलता है। दूसरे किसान उन्हें अपना वैज्ञानिक मानने लगते हैं और उनके बताए अनुसार खेती करने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक किसान है उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला निवासी सुशील कुमार बिंद। सुशील कुमार बिंद ने खेती में नई तकनीक अपनाई और आज खेती की बदौलत अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। परिवार के लोग खुशहाल हैं और उनकी पहचान इलाके के नामचीन किसानों में होती है। सरकार की ओर से कोई भी योजना आती है, उसके बारे में पहले सुशील कुमार बिंद से राय ली जाती है। सुशील को तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है क्योंकि वह अपने इलाके के प्रगतिशील किसान हैं और दूसरे किसानों को भी प्रगतिशील बनाने की दिशा में अग्रसर हैं। उनके इसी प्रयास की वजह से विभिन्न समारोहों में उन्हें सम्मानित भी किया गया है।
वह भले कम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन इलाके में उनकी पहचान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं है। इस सम्मान से सुशील कुमार काफी गदगद नजर आते हैं। कहते हैं कि पैसा तो सभी कमाते हैं, लेकिन एक किसान को इलाके में इतना सम्मान मिल रहा है, यह बहुत बड़ी बात है। किसान ही नहीं पढ़े-लिखे वैज्ञानिक भी उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। जब वह किसी गोष्ठी में कृषि अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों की तरह ही संबोधित करते हैं तो उन्हें बहुत खुशी होती है। वह कहते हैं कि खेती फायदे का सौदा है, बस उसे समझने की जरूरत है। जो लोग समझ लेते हैं वे खेती से मुनाफा कमा रहे हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं कि जिन किसानों को खेती में घाटा हो रहा है वे भी उन्नत तकनीक अपनाएं वैज्ञनिकों से पूछे कि आखिर गलती कहां हो रही है, जिसकी वजह से घाटा हुआ। फिर वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप खेती करें। उन्नत तकनीक अपनाएं, घाटा फायदे में बदल जाएगा।
सुशील कुमार बिंद के पास करीब एक हेक्टेयर खेत है। पढ़ाई-लिखाई के बाद जब कहीं नौकरी नहीं लगी तो उन्होंने खेती को ही अपनी नौकरी मान लिया। वह पूरे मनोयोग से खेती में जुट गए। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। वह पहले तो परंपरागत तरीके से खेती करते रहे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने उन्नत और नई तकनीक की खेती की ओर कदम बढ़ाया। एक बार जब इस दिशा में कदम बढ़े तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
सरकार और विभिन्न सरकारी संस्थानों की ओर से आए दिन खेती को बढ़ावा देने और किसानों को जागरूक करने के लिए मेले का आयोजन किया जाता है। तमाम किसान इस मेले में हिस्सा लेते हैं। कुछ तो सिर्फ घूमने-फिरने के बाद पुराने ढर्रे पर ही रह जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो मेले में हिस्सा लेने के बाद अपनी खेती को मेले में बताई गई तकनीक के आधार पर करने की कोशिश करते हैं। सुशील बताते हैं कि उनके इलाके की मिट्टी दोमट है, लेकिन कुछ हिस्से पहाड़ी होने की वजह से उपजाऊ नहीं होती है। ऐसे में खेती घाटे का सौदा बन गई थी। उन्हें भी किसान मेले के बारे में जानकारी मिली तो वह घूमने-फिरने के इरादे से वहां चले गए। सुशील बताते हैं कि मेले में जब वह गए थे तो खेती को घाटे का सौदा मान रहे थे लेकिन जब वहां से लौटे तो नए संकल्प के साथ। मेले में बताई गई बातों को अपनाकर उन्होंने मटर की खेती की। इस साल उन्हें दुगुना लाभ मिला। फिर क्या था, उन्होंने खेती को घाटे से फायदे का सौदा बनाने का संकल्प लिया।
सुशील कुमार बिंद बताते हैं कि किसान मेले में वैज्ञानिकों से सब्जी उत्पादन की उन्नत तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी ली। इस दौरान मन में आए तमाम सवालों को पूछा। वैज्ञानिकों ने हर सवाल का जवाब दिया। इस दौरान सब्जी अनुसंधान संस्थान के कई वैज्ञानिक परिचित हो गए। इसके बाद जब उन्होंने सब्जी की खेती शुरू की तो संस्थान के वैज्ञानिकों ने पूरा मार्गदर्शन किया। वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में सब्जियों की कुछ अलग-अलग प्रजातियों को खेत में बोया। इससे काफी लाभ मिला। उन्होंने उसी खेत में पहले मटर तो दोबारा बैंगन की खेती की। इसी तरह जिस खेत की मिट्टी बलुई दोमट थी, उसमें टमाटर लगाए। इसका खूब फायदा मिला। अब तो वह हर समय अपने खेत में सब्जी की ही खेती करते हैं। अलग-अलग सीजन में अलग-अलग सब्जी बोए जाने से उन्हें मुनाफा भी खूब मिलता है। सुशील बताते हैं कि अब वह हमेशा कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में रहने लगे हैं। आज पूरे इलाके के सबसे प्रगतिशील किसानों के रूप में पहचाने जाते हैं।
सुशील बताते हैं कि उनके पास खेती के लिए सिर्फ एक हेक्टेयर जमीन है। वह कृषि कार्य से बहुत ही निराश थे। एक हेक्टेयर जमीन में गेहूं, सरसो आदि बो देते थे। जो पैदा हो गया उसी से संतोष करना पड़ता था। कड़ी मेहनत के बाद बमुश्किल सालभर खाने भर का अनाज होता था, लेकिन मेले में हिस्सा लेने के बाद अब वह सालभर का अनाज भी पैदा करते हैं और अपनी तमाम जरूरतों के लिए पैसा भी उनके पास मौजूद रहता है। वह बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं। सब्जी की खेती के जरिए मिलने वाले पैसे से उनका जीवन-स्तर भी ऊंचा हो गया है।
सुशील कुमार बिंद खेती में जुटे तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। सब्जी अनुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अन्तर्गत सुशील के गांव का चयन उन्नत तकनीक के हस्तांतरण के लिए किया गया। संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में सुशील ने खेती करने की योजना बनाई। संस्थान के वैज्ञानिकों की ओर से निर्देश के तहत उन्होंने मटर की विकसित किस्में काशी उदय और काशी उन्नति की बुवाई की। इन दोनों किस्मों ने सुशील की जिंदगी में चार चांद लगा दिए। वह बताते हैं कि उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह पर अक्टूबर माह के अन्तिम सप्ताह में मटर की दोनों किस्मों की बुवाई की थी। बुवाई में न तो ज्यादा खाद डाला और न ही ज्यादा बीज। वैज्ञानिकों की देखरेख में संतुलित खाद और बीज डालकर खेती शुरू की। दिसम्बर के महीने में उन्होंने 1200 किलोग्राम फलियों की तुड़ाई की। इससे उन्हें करीब 40 हजार रुपये मिले। सुशील बताते हैं कि इन रुपयों ने उन्हें नई राह दिखाई। इसके बाद तो वह खेती के ऐसे मुरीद हुए कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
सुशील कुमार बिंद बताते हैं कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर पहले तो मटर की फलियां बेची। इसके बाद संस्थान के वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार बीज उत्पादन के लिए मटर की फलियों को तोड़ना बन्द कर दिया। फलियां पककर तैयार हुई और करीब ढाई क्वींटल बीज तैयार किया। इस बीज के लिए उन्हें महंगी कीमत मिली। इस तरह मटर की खेती के जरिए सिर्फ चार माह में करीब डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हुई। सुशील बताते हैं कि यदि खाद, बीज, पानी सहित समूचा खर्चा निकाल दें तो मटर की खेती से चार माह में करीब 80 हजार रुपये का फायदा हुआ।
सुशील कुमार बिंद सब्जी उत्पादन से बहुत ही खुश हैं। वह मटर ही नहीं दूसरी फसलों की खेती भी कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार कर रहे हैं। इससे उन्हें हर फसल में फायदा मिल रहा है। सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों से लगातार संपर्क में रहने के कारण अब खेती की तमाम तकनीक में वह माहिर हो गए हैं। ऐसे में गांव के आसपास के किसानों को वह खुद ट्रेनिंग देने में पीछे नहीं रहते हैं। सुशील बताते हैं कि उनकी खेती को देखते हुए आसपास के तमाम किसान उनके पास आते हैं। खेती के गुर सीखते हैं और जब उनके बताए अनुसार खेती में किसानों को लाभ मिलता है तो वे धन्यवाद देने आते हैं। यह बहुत अच्छा लगता है। सुशील बताते हैं कि जब कोई किसान उन्हें अपने खेत में चलकर फसल देखने को कहता है तो भी बहुत खुशी होती है, क्योंकि वह पढ़े-लिखे ज्यादा नहीं हैं, लेकिन उन्हें वैज्ञानिकों की तरह का सम्मान मिलता है। वह खेत में पहुंचते हैं और फसल देखकर अपने तजुर्बे के आधार पर किसानों को सलाह देते हैं। जो बातें समझ में नहीं आती हैं, उसके बारे में अगले दिन सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों से सलाह लेते हैँ। इस तरह उन्हें सीखने का खूब मौका मिल रहा है।
वह बताते हैं कि आए दिन उनके यहां संस्थान के वैज्ञानिक आते हैं। इससे खुशी होती है। वे खुद भी लगातार वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहते हैं। सब्जी उत्पादन से हो रहे लाभ को देखकर उनके गांव के अन्य किसान भी सब्जी उत्पादन करने लगे हैं। इससे काफी फायदा मिलता है। यदि किसी का उत्पादन कम रहता है तो उसे मंडी तक ले जाने में ज्यादा किराया नहीं खर्च करना पड़ता है। क्योंकि तीन-चार लोग मिलकर अपनी उपज को मंडी तक ले जाने के लिए ट्रैक्टर करते हैं तो खर्चा कम आता है।
बहुती गांव में सुशील कुमार बिंद की पहचान अब प्रगतिशील किसान के रूप में होने लगी है। पूरे इलाके में जो भी किसान गोष्ठी या अन्य किसानों से संबंधित कार्यक्रम होता है तो सुशील को जरूर बुलाया जाता है। सुशील अन्य किसानों को अपना अनुभव बताते हैं। सुशील कहते हैं कि खेती की बदौलत आज उनका पूरा परिवार खुशहाल है। समाज में सम्मान मिला है। बच्चे पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं। वह कहते हैं कि शायद कोई छोटी नौकरी करके यह सम्मान हासिल नहीं कर पाता, जो आज किसानी की बदौलत मिल रहा है।
सुशील बताते हैं कि पहले खेती के लिए खाद, बीज उधारी पर लेना पड़ता था। इससे काफी महंगा पड़ता था। कई बार दुकानदार समय पर खाद देने से मना कर देता था। इस वजह से भी खेती में देरी होती थी और फिर मुनाफे के बजाय घाटा लग जाता है, लेकिन अब उनके पास किसान क्रेडिट कार्ड है। जेब में पैसा न होने पर वह सीधे बैंक जाते हैं और किसान क्रेडिट कार्ड से पैसा लेकर खाद, बीज खरीदते हैं। इससे एक साथ कई फायदे मिलते हैं। एक तो मनचाही जगह से खाद, बीज खरीद लेते हैं। दूसरे उन्हें किसी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। समय पर खाद-बीज डालने से पैदावार भी अधिक मिल रही है।
सुशील कुमार बताते हैं कि खेती के जरिए उन्हें नई-नई तकनीक सीखने का मौका मिल रहा है। खेती के दौरान उन्होंने उन्नतिशील खेती के तमाम गुर सीखे। वैज्ञानिकों ने उन्हें जैविक खेती के बारे में भी जानकारी दी। जैविक खेती करना किसानों के लिए भी फायदेमंद है और उपज खाने वालों के लिए भी। सुशील बताते हैं कि वह विभिन्न जिलों का भ्रमण करके किसानों की ओर से अपनाई जा रही तकनीक के बारे में भी जानकारी लेते हैं। विभिन्न स्थानों से मिलने वाली जानकारी को अपनी खेती में प्रयोग करते हैं और उसका फायदा मिलता है। पहले वह सिर्फ सब्जी की खेती के बारे में जानते थे, लेकिन विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद उन्होंने फूलों की खेती के बारे में भी सीखा है। इस साल कुछ हिस्से में फूलों की खेती करने की तैयारी है। वह पहली बार गेंदे के फूल की खेती करने जा रहे हैं। इसके लिए वैज्ञानिकों से पूरी जानकारी ले ली है। चूंकि सब्जी के साथ ही फूल का भी अच्छा पैसा मिलता है इसलिए वह चाहते हैं कि उनके खेत में कोई न कोई फसल व फूल हमेशा निकलता रहे।
वह बागवानी के बारे में भी सीख रहे हैं। उनके पास कुछ ऐसी जमीन है, जो सब्जी के लिए माकूल नहीं है। उस जमीन में वह बागवानी करने जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों से बात की है। उसमें बेर के पेड़ लगाने से मिट्टी में भी सुधार होगा और उपज भी मिलेगी। वह कहते हैं कि पहले खुद प्रयोग करके देखते हैं। इसके बाद इलाके के अन्य खाली खेतों में भी बेर के पेड़ लगाने के लिए दूसरे किसानों को प्रोत्साहित करेंगे। इसका फायदा मिलेगा और अनुपजाऊ पूरी जमीन पर पेड़ लग जाएंगे। इससे मिट्टी का कटान बचेगा। पर्यावरण शुद्ध होगा और किसानों को अब तक खाली रहने वाली जमीन से भी मुनाफा मिलने लगेगा।
सुशील कुमार बताते हैं कि वह तो सिर्फ खेती कर रहे हैं, लेकिन खेती के साथ ही पशुपालन और मधुमक्खी पालन भी फायदेमंद है। इसके बारे में भी वह विचार कर रहे हैं। वह बताते हैं कि विभिन्न प्रशिक्षणों में यह बताया गया कि यदि सब्जी और फूलों की खेती करते समय मधुमक्खी पालन किया जाए तो काफी फायदा मिलता है क्योंकि इससे परागण की क्रिया तेजी से होती है। साथ ही शहद भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। वह बताते हैं कि पिछले दिनों उन्होंने चंदौली और वाराणसी में जाकर कुछ किसानों को ऐसा करते देखा। किसानों से बातचीत में पता चला कि वे सब्जी और फूलों की खेती के साथ मधुमक्खी पालन करके एक ही खेत में तीन गुना फायदा कमा रहे हैं। इसमें लागत भी ज्यादा नहीं आती है। इस वजह से अब उनका भी मन मधुमक्खी पालन की ओर बढ़ रहा है।
सुशील कुमार से जब सरकारी योजनाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने केंद्र सरकार की तमाम उपलब्धियां बतायी। कहा कि पहले वह भी सरकार से निराश थे। उन्हें लगता था सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर रही है, लेकिन बाद में पता चला कि सरकार तो बहुत कुछ करना चाहती है। वह बताते हैं कि सरकार की ओर से किसानों के कल्याण के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। हां, अभी किसानों में जागरूकता का अभाव है। तमाम किसान फसलों का बीमा नहीं कराते हैं। इससे नुकसान होता है। चंद पैसों की वजह से कई बार पूरी फसल खराब हो जाती है। बीमा होने पर इसका फायदा मिलता है। इसी तरह खेती को बढ़ावा देने के लिए तमाम अन्य योजनाएं भी किसानों के लिए चलाई जा रही हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं कि अपने ब्लॉक अथवा कृषि विभाग में संपर्क करके विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी लें। वैज्ञानिकों की ओर से बताई गई तकनीक को अपना कर खेती करें तो खेती कभी भी घाटे का सौदा नहीं होगी। मिट्टी में सोना भरा हुआ है। बस उस सोने को पाने के लिए थोड़ी-सी मेहनत करने की जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
भारत के तमाम किसान नई तकनीक से उन्नत खेती कर रहे हैं। वे कड़ी मेहनत करके खेती के जरिए परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के साथ ही समाज को भी नई दिशा दे रहे हैं। इन किसानों को समाज में खूब सम्मान मिलता है। दूसरे किसान उन्हें अपना वैज्ञानिक मानने लगते हैं और उनके बताए अनुसार खेती करने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही एक किसान है उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला निवासी सुशील कुमार बिंद। सुशील कुमार बिंद ने खेती में नई तकनीक अपनाई और आज खेती की बदौलत अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। परिवार के लोग खुशहाल हैं और उनकी पहचान इलाके के नामचीन किसानों में होती है। सरकार की ओर से कोई भी योजना आती है, उसके बारे में पहले सुशील कुमार बिंद से राय ली जाती है। सुशील को तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है क्योंकि वह अपने इलाके के प्रगतिशील किसान हैं और दूसरे किसानों को भी प्रगतिशील बनाने की दिशा में अग्रसर हैं। उनके इसी प्रयास की वजह से विभिन्न समारोहों में उन्हें सम्मानित भी किया गया है।
वह भले कम पढ़े-लिखे हैं, लेकिन इलाके में उनकी पहचान किसी कृषि वैज्ञानिक से कम नहीं है। इस सम्मान से सुशील कुमार काफी गदगद नजर आते हैं। कहते हैं कि पैसा तो सभी कमाते हैं, लेकिन एक किसान को इलाके में इतना सम्मान मिल रहा है, यह बहुत बड़ी बात है। किसान ही नहीं पढ़े-लिखे वैज्ञानिक भी उनकी बात को ध्यान से सुनते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। जब वह किसी गोष्ठी में कृषि अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों की तरह ही संबोधित करते हैं तो उन्हें बहुत खुशी होती है। वह कहते हैं कि खेती फायदे का सौदा है, बस उसे समझने की जरूरत है। जो लोग समझ लेते हैं वे खेती से मुनाफा कमा रहे हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं कि जिन किसानों को खेती में घाटा हो रहा है वे भी उन्नत तकनीक अपनाएं वैज्ञनिकों से पूछे कि आखिर गलती कहां हो रही है, जिसकी वजह से घाटा हुआ। फिर वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप खेती करें। उन्नत तकनीक अपनाएं, घाटा फायदे में बदल जाएगा।
सुशील कुमार बिंद के पास करीब एक हेक्टेयर खेत है। पढ़ाई-लिखाई के बाद जब कहीं नौकरी नहीं लगी तो उन्होंने खेती को ही अपनी नौकरी मान लिया। वह पूरे मनोयोग से खेती में जुट गए। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। वह पहले तो परंपरागत तरीके से खेती करते रहे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने उन्नत और नई तकनीक की खेती की ओर कदम बढ़ाया। एक बार जब इस दिशा में कदम बढ़े तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।
किसान मेले ने बदल दी जिंदगी
सरकार और विभिन्न सरकारी संस्थानों की ओर से आए दिन खेती को बढ़ावा देने और किसानों को जागरूक करने के लिए मेले का आयोजन किया जाता है। तमाम किसान इस मेले में हिस्सा लेते हैं। कुछ तो सिर्फ घूमने-फिरने के बाद पुराने ढर्रे पर ही रह जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो मेले में हिस्सा लेने के बाद अपनी खेती को मेले में बताई गई तकनीक के आधार पर करने की कोशिश करते हैं। सुशील बताते हैं कि उनके इलाके की मिट्टी दोमट है, लेकिन कुछ हिस्से पहाड़ी होने की वजह से उपजाऊ नहीं होती है। ऐसे में खेती घाटे का सौदा बन गई थी। उन्हें भी किसान मेले के बारे में जानकारी मिली तो वह घूमने-फिरने के इरादे से वहां चले गए। सुशील बताते हैं कि मेले में जब वह गए थे तो खेती को घाटे का सौदा मान रहे थे लेकिन जब वहां से लौटे तो नए संकल्प के साथ। मेले में बताई गई बातों को अपनाकर उन्होंने मटर की खेती की। इस साल उन्हें दुगुना लाभ मिला। फिर क्या था, उन्होंने खेती को घाटे से फायदे का सौदा बनाने का संकल्प लिया।
सुशील कुमार बिंद बताते हैं कि किसान मेले में वैज्ञानिकों से सब्जी उत्पादन की उन्नत तकनीकों के बारे में विस्तृत जानकारी ली। इस दौरान मन में आए तमाम सवालों को पूछा। वैज्ञानिकों ने हर सवाल का जवाब दिया। इस दौरान सब्जी अनुसंधान संस्थान के कई वैज्ञानिक परिचित हो गए। इसके बाद जब उन्होंने सब्जी की खेती शुरू की तो संस्थान के वैज्ञानिकों ने पूरा मार्गदर्शन किया। वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में सब्जियों की कुछ अलग-अलग प्रजातियों को खेत में बोया। इससे काफी लाभ मिला। उन्होंने उसी खेत में पहले मटर तो दोबारा बैंगन की खेती की। इसी तरह जिस खेत की मिट्टी बलुई दोमट थी, उसमें टमाटर लगाए। इसका खूब फायदा मिला। अब तो वह हर समय अपने खेत में सब्जी की ही खेती करते हैं। अलग-अलग सीजन में अलग-अलग सब्जी बोए जाने से उन्हें मुनाफा भी खूब मिलता है। सुशील बताते हैं कि अब वह हमेशा कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में रहने लगे हैं। आज पूरे इलाके के सबसे प्रगतिशील किसानों के रूप में पहचाने जाते हैं।
एक हेक्टेयर जमीन में करते हैं खेती
सुशील बताते हैं कि उनके पास खेती के लिए सिर्फ एक हेक्टेयर जमीन है। वह कृषि कार्य से बहुत ही निराश थे। एक हेक्टेयर जमीन में गेहूं, सरसो आदि बो देते थे। जो पैदा हो गया उसी से संतोष करना पड़ता था। कड़ी मेहनत के बाद बमुश्किल सालभर खाने भर का अनाज होता था, लेकिन मेले में हिस्सा लेने के बाद अब वह सालभर का अनाज भी पैदा करते हैं और अपनी तमाम जरूरतों के लिए पैसा भी उनके पास मौजूद रहता है। वह बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं। सब्जी की खेती के जरिए मिलने वाले पैसे से उनका जीवन-स्तर भी ऊंचा हो गया है।
संस्थान की मदद से मिला मुनाफा
सुशील कुमार बिंद खेती में जुटे तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। सब्जी अनुसंधान संस्थान और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा चलाई जा रही राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के अन्तर्गत सुशील के गांव का चयन उन्नत तकनीक के हस्तांतरण के लिए किया गया। संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में सुशील ने खेती करने की योजना बनाई। संस्थान के वैज्ञानिकों की ओर से निर्देश के तहत उन्होंने मटर की विकसित किस्में काशी उदय और काशी उन्नति की बुवाई की। इन दोनों किस्मों ने सुशील की जिंदगी में चार चांद लगा दिए। वह बताते हैं कि उन्होंने वैज्ञानिकों की सलाह पर अक्टूबर माह के अन्तिम सप्ताह में मटर की दोनों किस्मों की बुवाई की थी। बुवाई में न तो ज्यादा खाद डाला और न ही ज्यादा बीज। वैज्ञानिकों की देखरेख में संतुलित खाद और बीज डालकर खेती शुरू की। दिसम्बर के महीने में उन्होंने 1200 किलोग्राम फलियों की तुड़ाई की। इससे उन्हें करीब 40 हजार रुपये मिले। सुशील बताते हैं कि इन रुपयों ने उन्हें नई राह दिखाई। इसके बाद तो वह खेती के ऐसे मुरीद हुए कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
पहले सब्जी फिर तैयार किया बीज
सुशील कुमार बिंद बताते हैं कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर पहले तो मटर की फलियां बेची। इसके बाद संस्थान के वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार बीज उत्पादन के लिए मटर की फलियों को तोड़ना बन्द कर दिया। फलियां पककर तैयार हुई और करीब ढाई क्वींटल बीज तैयार किया। इस बीज के लिए उन्हें महंगी कीमत मिली। इस तरह मटर की खेती के जरिए सिर्फ चार माह में करीब डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हुई। सुशील बताते हैं कि यदि खाद, बीज, पानी सहित समूचा खर्चा निकाल दें तो मटर की खेती से चार माह में करीब 80 हजार रुपये का फायदा हुआ।
दूसरे किसानों के मददगार
सुशील कुमार बिंद सब्जी उत्पादन से बहुत ही खुश हैं। वह मटर ही नहीं दूसरी फसलों की खेती भी कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार कर रहे हैं। इससे उन्हें हर फसल में फायदा मिल रहा है। सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों से लगातार संपर्क में रहने के कारण अब खेती की तमाम तकनीक में वह माहिर हो गए हैं। ऐसे में गांव के आसपास के किसानों को वह खुद ट्रेनिंग देने में पीछे नहीं रहते हैं। सुशील बताते हैं कि उनकी खेती को देखते हुए आसपास के तमाम किसान उनके पास आते हैं। खेती के गुर सीखते हैं और जब उनके बताए अनुसार खेती में किसानों को लाभ मिलता है तो वे धन्यवाद देने आते हैं। यह बहुत अच्छा लगता है। सुशील बताते हैं कि जब कोई किसान उन्हें अपने खेत में चलकर फसल देखने को कहता है तो भी बहुत खुशी होती है, क्योंकि वह पढ़े-लिखे ज्यादा नहीं हैं, लेकिन उन्हें वैज्ञानिकों की तरह का सम्मान मिलता है। वह खेत में पहुंचते हैं और फसल देखकर अपने तजुर्बे के आधार पर किसानों को सलाह देते हैं। जो बातें समझ में नहीं आती हैं, उसके बारे में अगले दिन सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों से सलाह लेते हैँ। इस तरह उन्हें सीखने का खूब मौका मिल रहा है।
वैज्ञानिकों का भरपूर सहयोग
वह बताते हैं कि आए दिन उनके यहां संस्थान के वैज्ञानिक आते हैं। इससे खुशी होती है। वे खुद भी लगातार वैज्ञानिकों के सम्पर्क में रहते हैं। सब्जी उत्पादन से हो रहे लाभ को देखकर उनके गांव के अन्य किसान भी सब्जी उत्पादन करने लगे हैं। इससे काफी फायदा मिलता है। यदि किसी का उत्पादन कम रहता है तो उसे मंडी तक ले जाने में ज्यादा किराया नहीं खर्च करना पड़ता है। क्योंकि तीन-चार लोग मिलकर अपनी उपज को मंडी तक ले जाने के लिए ट्रैक्टर करते हैं तो खर्चा कम आता है।
मिली खुशहाली
बहुती गांव में सुशील कुमार बिंद की पहचान अब प्रगतिशील किसान के रूप में होने लगी है। पूरे इलाके में जो भी किसान गोष्ठी या अन्य किसानों से संबंधित कार्यक्रम होता है तो सुशील को जरूर बुलाया जाता है। सुशील अन्य किसानों को अपना अनुभव बताते हैं। सुशील कहते हैं कि खेती की बदौलत आज उनका पूरा परिवार खुशहाल है। समाज में सम्मान मिला है। बच्चे पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं। वह कहते हैं कि शायद कोई छोटी नौकरी करके यह सम्मान हासिल नहीं कर पाता, जो आज किसानी की बदौलत मिल रहा है।
किसान क्रेडिट कार्ड का मिला फायदा
सुशील बताते हैं कि पहले खेती के लिए खाद, बीज उधारी पर लेना पड़ता था। इससे काफी महंगा पड़ता था। कई बार दुकानदार समय पर खाद देने से मना कर देता था। इस वजह से भी खेती में देरी होती थी और फिर मुनाफे के बजाय घाटा लग जाता है, लेकिन अब उनके पास किसान क्रेडिट कार्ड है। जेब में पैसा न होने पर वह सीधे बैंक जाते हैं और किसान क्रेडिट कार्ड से पैसा लेकर खाद, बीज खरीदते हैं। इससे एक साथ कई फायदे मिलते हैं। एक तो मनचाही जगह से खाद, बीज खरीद लेते हैं। दूसरे उन्हें किसी का इंतजार नहीं करना पड़ता है। समय पर खाद-बीज डालने से पैदावार भी अधिक मिल रही है।
नई-नई तकनीक सीखने का मौका
सुशील कुमार बताते हैं कि खेती के जरिए उन्हें नई-नई तकनीक सीखने का मौका मिल रहा है। खेती के दौरान उन्होंने उन्नतिशील खेती के तमाम गुर सीखे। वैज्ञानिकों ने उन्हें जैविक खेती के बारे में भी जानकारी दी। जैविक खेती करना किसानों के लिए भी फायदेमंद है और उपज खाने वालों के लिए भी। सुशील बताते हैं कि वह विभिन्न जिलों का भ्रमण करके किसानों की ओर से अपनाई जा रही तकनीक के बारे में भी जानकारी लेते हैं। विभिन्न स्थानों से मिलने वाली जानकारी को अपनी खेती में प्रयोग करते हैं और उसका फायदा मिलता है। पहले वह सिर्फ सब्जी की खेती के बारे में जानते थे, लेकिन विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद उन्होंने फूलों की खेती के बारे में भी सीखा है। इस साल कुछ हिस्से में फूलों की खेती करने की तैयारी है। वह पहली बार गेंदे के फूल की खेती करने जा रहे हैं। इसके लिए वैज्ञानिकों से पूरी जानकारी ले ली है। चूंकि सब्जी के साथ ही फूल का भी अच्छा पैसा मिलता है इसलिए वह चाहते हैं कि उनके खेत में कोई न कोई फसल व फूल हमेशा निकलता रहे।
बागवानी की ओर बढ़े कदम
वह बागवानी के बारे में भी सीख रहे हैं। उनके पास कुछ ऐसी जमीन है, जो सब्जी के लिए माकूल नहीं है। उस जमीन में वह बागवानी करने जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों से बात की है। उसमें बेर के पेड़ लगाने से मिट्टी में भी सुधार होगा और उपज भी मिलेगी। वह कहते हैं कि पहले खुद प्रयोग करके देखते हैं। इसके बाद इलाके के अन्य खाली खेतों में भी बेर के पेड़ लगाने के लिए दूसरे किसानों को प्रोत्साहित करेंगे। इसका फायदा मिलेगा और अनुपजाऊ पूरी जमीन पर पेड़ लग जाएंगे। इससे मिट्टी का कटान बचेगा। पर्यावरण शुद्ध होगा और किसानों को अब तक खाली रहने वाली जमीन से भी मुनाफा मिलने लगेगा।
खेती के साथ मधुमक्खी पालन भी फायदेमंद
सुशील कुमार बताते हैं कि वह तो सिर्फ खेती कर रहे हैं, लेकिन खेती के साथ ही पशुपालन और मधुमक्खी पालन भी फायदेमंद है। इसके बारे में भी वह विचार कर रहे हैं। वह बताते हैं कि विभिन्न प्रशिक्षणों में यह बताया गया कि यदि सब्जी और फूलों की खेती करते समय मधुमक्खी पालन किया जाए तो काफी फायदा मिलता है क्योंकि इससे परागण की क्रिया तेजी से होती है। साथ ही शहद भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। वह बताते हैं कि पिछले दिनों उन्होंने चंदौली और वाराणसी में जाकर कुछ किसानों को ऐसा करते देखा। किसानों से बातचीत में पता चला कि वे सब्जी और फूलों की खेती के साथ मधुमक्खी पालन करके एक ही खेत में तीन गुना फायदा कमा रहे हैं। इसमें लागत भी ज्यादा नहीं आती है। इस वजह से अब उनका भी मन मधुमक्खी पालन की ओर बढ़ रहा है।
सरकारी योजनाओं का मिलता है फायदा
सुशील कुमार से जब सरकारी योजनाओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने केंद्र सरकार की तमाम उपलब्धियां बतायी। कहा कि पहले वह भी सरकार से निराश थे। उन्हें लगता था सरकार उनके लिए कुछ नहीं कर रही है, लेकिन बाद में पता चला कि सरकार तो बहुत कुछ करना चाहती है। वह बताते हैं कि सरकार की ओर से किसानों के कल्याण के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। हां, अभी किसानों में जागरूकता का अभाव है। तमाम किसान फसलों का बीमा नहीं कराते हैं। इससे नुकसान होता है। चंद पैसों की वजह से कई बार पूरी फसल खराब हो जाती है। बीमा होने पर इसका फायदा मिलता है। इसी तरह खेती को बढ़ावा देने के लिए तमाम अन्य योजनाएं भी किसानों के लिए चलाई जा रही हैं। वह किसानों को सलाह देते हैं कि अपने ब्लॉक अथवा कृषि विभाग में संपर्क करके विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी लें। वैज्ञानिकों की ओर से बताई गई तकनीक को अपना कर खेती करें तो खेती कभी भी घाटे का सौदा नहीं होगी। मिट्टी में सोना भरा हुआ है। बस उस सोने को पाने के लिए थोड़ी-सी मेहनत करने की जरूरत है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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Post By: pankajbagwan