उधार की साबरमती

‘साबरमती के सन्त तूने कर दिया कमाल, दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।’ साल 1954 में आई ‘जागृति’ नाम की इस फिल्म ने महात्मा गाँधी को साबरमती का सन्त बना दिया था। गाँधी थे भी। बाद में अहमदाबाद के कोचरब में बने गाँधी के आश्रम को साबरमती के किनारे बसा दिया गया। तब से इसे साबरमती आश्रम के नाम से जाना जाने लगा। आज साबरमती के सन्त के नाम पर केवल गाँधी की स्मृतियाँ ही शेष हैं। ठीक वैसे ही अब सिर्फ साबरमती नदी की स्मृतियाँ ही बाकी हैं। साबरमती आज अपना मूल स्वरूप गवाँ चुकी है। वह उधार के नर्मदा के पानी पर जिन्दा है।

साबरमती आश्रम के शान्त माहौल से नदी के स्थिर पानी में देखें, तो इसमें आपको अपना अक्स नजर आने से पहले इसमें जमी गहरी काई नजर आएगी। साबरमती नदी का यह हाल महज आश्रम तट पर नहीं है, बल्कि अहमदाबाद शहर में नदी तट पर बने करीब 11 कि.मी. से ज्यादा लम्बे रिवर-फ्रन्ट पर भी है। इसे तब मुख्यमन्त्री रहे और आज के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने बनवाया। यह उनके ड्रीम परियोजनाओं में शुमार रहा। इसकी तारीफों के कसीदे देश-विदेश में पढ़े गए। साबरमती परियोजना से मोदी का जुड़ाव इस बात से जाहिर होता है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 2014 की तीन दिवसीय यात्रा का यह गवाह रहा। इसी किनारे मोदी और सपत्नीक पधारे चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग ने डिनर डिप्लोमेसी में भाग लिया। बहरहाल, मुद्दा यह नहीं है कि यह ड्रीम प्रोजेक्ट सफल है या नहीं।

इस परियोजना की तारीफ हर अहमदाबादी करता है। लेकिन असल मुद्दा इससे अलग है वह है साबरमती नदी का और प्रदूषित हो जाना। दरअसल, सालों पहले साबरमती सूखकर मरने लगी थी। कहा जाता है कि इस नदी का नाम ‘साबर’ और ‘हाथमती’ नाम की नदियों की धाराओं के मिलने के वजह से साबरमती पड़ा। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, पत्रकार और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी काका कालेलकर ‘गुर्जर-माता साबरमती’ में लिखते हैं कि हाथमती तो साबरमती से ही मिलने वाली नदी है। हिरन या साबर जिसके किनारे बसते हैं, लड़ते हैं और आजादी से विहार करते हैं, वह है ‘साबर-मती’।

साबरमती गुजरात की सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम राजस्थान के उदयपुर जिले में अरावली पर्वत शृंखला के धेबर झील से है। यह वहाँ से दक्षिण पश्चिम की दिशा में बहती हुई 371 किलोमीटर की यात्रा के बाद अरब सागर के खंभात खाड़ी में गिरती है। अहमदाबाद शहर के दस कि.मी. रिवरफ्रंट परियोजना के तहत नदी में दिखाई देने वाला पानी नर्मदा से लाया जाता है। इसे कुछ दूरी पर आगे बैराज बनाकर रोका गया है ताकि नदी में पानी रहे। ताकि रिवरफ्रंट परियोजना की हतिविधियाँ और नौकायन आदि जारी रह सके। जानकारों के मुताबिक इस परियोजना के लिए धोबीघाटों को हटाया गया, तो बहुत से छोटे उद्योगों और अन्य अपशिष्ट का नदी में आना रोका गया। जिससे की पानी प्रदूषित नहीं हो। लेकिन जानकार बताते हैं कि इसी दायरे में करीब 60 से ज्यादा प्वाइंट ऐसे हैं जो अभी भी अपशिष्ट नदी में मिल रहे हैं। इससे पानी प्रदूषित हो रहा है।

यह हाल तब है जब इस पूरी परियोजना पर सरकारी निगरानी है। इससे बैराज के आगे के इलाकों व हिस्सों में होने वाले प्रदूषण की कल्पना आसानी से की जा सकती है। इस मामले पर बात करने से स्थानीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधिकारी कतराते हैं। यह हालात तब हैं जब केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड बीते कई सालों से साबरमती को सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में शुमार करता आ रहा है। साबरमती आश्रम के सचिव अमृत मोदी कहते हैं “साबरमती तो सिर्फ नाम की बची हुई है आधुनिक तरक्की की ऐसी ही कीमत अदा करनी पड़ती है।”

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