उच्च हिमालय क्षेत्र के लिये सुरक्षित हिमालय योजना

उत्तराखण्ड ग्रामीण विकास
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सुरक्षित हिमालय परियोजना के अर्न्तगत चीन सीमा से सटे गंगोत्री से लेकर अस्कोट तक के उच्च हिमालयी क्षेत्र में भूमि एवं वनों का उचित प्रबन्धन के लिये ऐसी परियोजना आरम्भ होने जा रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस क्षेत्र में जहाँ हिमालय की जैवविविधता का संरक्षण होगा, वहीं स्थानीय समुदायों की आजीविका भी महफूज रहेगी। इस कड़ी में इन दिनों उत्तराखण्ड में वन विभाग सुरक्षा, आजीविका और वासस्थल विकास के मद्देनजर एक्शन प्लान तैयार कर रहा है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि हिमालय का अब तक 20 प्रतिशत हिस्से के ही सम्बन्ध में जानकारी जुटाई गई है। शेष 80 प्रतिशत हिमालय के हिस्से की जानकारी जुटाने के लिये विभिन्न शोध संस्थान तैयारी कर रहे हैं। खैर! यह रही वैज्ञानिक बात।

हम तो मौजूदा हालात पर गौर करेंगे तो यह मध्य हिमालय खतरों से खाली नहीं है। जानकार बताते हैं कि सरकारी और गैर सरकारी प्रयासो में काफी मतभेद होने की वजह से ही हिमालय के संरक्षण की बात करनी हर बार अधूरी ही रह जाती है। मालूम हो कि इस दौरान पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के तत्वावधान में एक अप्रैल से ‘सुरक्षित हिमालय’ परियोजना की शुरुआत की जा रही है। यह परियोजना कितनी सफल होगी वह तो समय ही बता पाएगा, परन्तु हिमालय की सेहत अच्छी हो यही अहम सवाल है।

बता दें कि ‘सुरक्षित हिमालय’ परियोजना के अर्न्तगत चीन सीमा से सटे गंगोत्री से लेकर अस्कोट तक के उच्च हिमालयी क्षेत्र में भूमि एवं वनों का उचित प्रबन्धन के लिये ऐसी परियोजना आरम्भ होने जा रही है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस क्षेत्र में जहाँ हिमालय की जैवविविधता का संरक्षण होगा, वहीं स्थानीय समुदायों की आजीविका भी महफूज रहेगी।

इस कड़ी में इन दिनों उत्तराखण्ड में वन विभाग सुरक्षा, आजीविका और वासस्थल विकास के मद्देनजर एक्शन प्लान तैयार कर रहा है। योजना के क्रियान्वित होने से जहाँ इन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ‘हिम तेंदुओं’ का भी संरक्षण होगा, वहीं इनसे लगे लगभग 60 गाँवों के लोगों को लाभ मिलेगा। बताया गया कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और यूएनडीपी देश के चार राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखण्ड में ‘सुरक्षित हिमालय’ परियोजना शुरू करने जा रहा है।

इस योजना में उत्तराखण्ड के गंगोत्री नेशनल पार्क, गोविन्द वन्यजीव विहार एवं अस्कोट अभयारण्य को शामिल किया गया है। ये वे क्षेत्र हैं, जो ‘हिम तेंदुओं’ के साथ ही जैव विविधता के लिये मशहूर हैं। लेकिन, इन संरक्षित क्षेत्रों के अन्तर्गत और इनसे लगे गाँवों के लोगों को दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है। इस लिहाज से देखें तो गोविन्द वन्यजीव विहार के 43 और अस्कोट अभयारण्य के लगभग 17 गाँव संरक्षित क्षेत्र की दुश्वारियों से दो-चार हो रहे हैं। अन्दाजा इसी से लगा सकते हैं कि गोविन्द वन्यजीव विहार के अन्तर्गत आने वाले 43 में से 35 गाँवों में अभी तक सड़क नहीं पहुँच पाई है।

उल्लेखनीय हो कि अन्य विकासीय सुविधाओं की राह में भी वन कानूनों की बन्दिशें रोड़ा बनी हुई हैं। पर, अब यह बात नीति नियन्ताओं की समझ में आ गई है कि जब लोगों के हित सुरक्षित होंगे तभी हिमालय भी महफूज हो सकेगा। ‘सुरक्षित हिमालय’ परियोजना इसी कड़ी का हिस्सा है। अपर प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन बताते हैं कि एक अप्रैल से शुरू होने वाली इस परियोजना के मुख्य रूप से तीन बिन्दु हैं।

इसके तहत इस उच्च हिमालयी क्षेत्र में जैवविविधता की सुरक्षा, हिम तेंदुआ समेत अन्य वन्यजीवों के लिये वासस्थल विकास और इन संरक्षित क्षेत्रों से लगे गाँवों के लोगों की आजीविका विकास के लिये एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है। कोशिश ये है कि इस सुदूर क्षेत्र के लोगों को विकास की मुख्यधारा में जोड़ने के साथ ही हिमालयी क्षेत्र के संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाये।

बताया जा रहा है कि इस योजना के तहत स्थानीय स्तर पर जहाँ जैवविधिता का विशेष ख्याल रखा जाएगा वहीं स्थानीय लोगों के लिये आजीविका विकास के भी कार्य होंगे। उच्च हिमालय क्षेत्र में इको टूरिज्म स्थानीय युवाओं के लिये रोजगार का मुख्य साधन हो सकता है।

इस योजना के तहत ऐसे कार्यों पर विशेष फोकस रखा गया है। इसके साथ-साथ जड़ी-बूटी व फलोत्पादन, ग्रामीणों को रोजगारपरक प्रशिक्षण, उत्पादों के विपणन की व्यवस्था, सेब की बेहतर प्रजातियों का वितरण, पशुओं के लिये चारा विकास योजना, स्वास्थ्य व शिक्षा की व्यवस्था, क्षेत्र में पारम्परिक भवनों को बढ़ावा जैसे कार्य इस योजना में सम्मिलित किये जा रहे हैं ताकि प्राकृतिक संसाधनों का भी संरक्षण हो और स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार भी प्राप्त हो सके।

हिम तेंदुओं का भी होगा संरक्षण


गंगोत्री नेशनल पार्क के साथ ही गोविन्द वन्यजीव विहार और अस्कोट अभयारण्य हिम तेंदुओं के लिये भी प्रसिद्ध हैं। इन क्षेत्रों में लगे कैमरा ट्रैप में अक्सर हिम तेंदुओं की तस्वीरें कैद होने से इनकी प्रमाणिकता सिद्ध होती रही है। सुरक्षित हिमालय परियोजना में हिम तेंदुओं के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसके लिये भी एक्शन प्लान पर कार्य चल रहा है।

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