थम नहीं रहा है पानी का कारोबार

एक तरफ तो जल के अधिकार की बात होती हैं, वहीं दूसरी पानी के बाजार के हवालेकर आम लोगों को जल के अधिकार से वंचित करने की बड़ी सा​जिश की जा रही है। हैरतअंगेज़ बात तो यह स्वयंसेवी संस्थाएँ न तो इस खतरे के प्रति लोगों को न तो जागरूक कर रही है और न ही पानी वाले इलाके के लोग भविष्य के सम्भावित खतरे के प्रति सतर्क ही हैं। बोतल के रिसाइकलिंग से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। पानी का कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। महानगरों से लेकर अब छोटे कस्बे तक फैल गया है। जिस ढंग से यह कारोबार अपनी जड़ें जमाता जा रहा है, भविष्य के लिये खतरे की घंटी है। एक ओर तो भूजल के लगातार दोहन के कारण जल का स्तर नीचे जा रहा है। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को दूषित किया जा रहा है। सरकारी महकमा इससे पूरी तरह बेखबर है।

पानी के मुद्दे पर तो कोई चिन्ता है ही नहीं। यह मामला कई सरकारी महकमों से जुड़ा है। एक आँकड़े के मुताबिक पूरा देश बोतलबन्द पानी का कारोबार लगभग दस हजार करोड़ रुपए को भी पार कर चुका है।

तेरह लाख की आबादी वाला छोटा शहर भी इससे अछूता नहीं है। इस छोटे से शहर में लगभग दो दर्जन से ज्यादा वाटर बोटलिंग प्लांट बिना नियम और कायदे के चल रहे हैं। न तो गुणवत्ता की गारंटी है न ही सरकारी नियमों का पालन ही हो रहा है। बाजार ने पानी को संजोने, साफ रखने की सारी परम्परा ध्वस्त कर पूरी व्यवस्था को बाजार के हवाले कर दिया।

सरकारी समारोह से लेकर हर उत्सव में बोतलबन्द पानी का चलन हो गया है। जब पानी बनाने वाली बड़ी कम्पनियों के उत्पाद की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं तो छोटे कस्बे में उत्पादित बोतलबन्द पानी के गुणवत्ता की गारंटी क्या?

इस कारोबार का आलम यह है कि सिर्फ जिले के उद्योग विभाग से अपना निबन्धन एक उद्यमी के रूप में कराकर अपना उत्पादन कर रहे हैं। न किसी के पास भारतीय मानक संस्थान से आईएसआई का मार्का ही है। हैरतअंगेज बात तो यह है कि न भूगर्भ जल बोर्ड का आदेश है। लिहाज बेरोकटोक यह कारोबार जारी है।

ये वाटर बोटलिंग प्लांट जिन इलाकों में चल रहे हैं वे हैं— मोगलबाजार, जानकीनगर, मयदरियापुर, बरियारपुर, हलीमपुर, पूरबसराय, ईस्ट कॉलोनी, केशोपुर जमालपुर, ​सफियाबाद, लाल दरवाजा, दलहट्टा, शास्त्रीनगर, मकससपुर। इन इलाकों की स्थिति है कि चापानल तो बेकार पड़े हैं।

इन चापानलों में न सिर्फ घरों का चापानल है बल्कि सरकारी और विधायक कोटे से बने चापानल हैं। जाहिर है कि भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। इसके बाद भी इस खतरे को गम्भीरता से लोग नहीं ले रहे हैं।

मुंगेर के सदर अनुमंडलाधिकारी डॉ. कुंदन कुमार को महज सिर्फ इतनी जानकारी है कि बोतलबन्द पानी के उत्पाद में लगी कम्पनियाँ फर्जी ढंग से आईएसआई मार्का का लेवल लगाकर पानी बाजार में बेचा जा रहा है।

इस आधार पर उन्होंने अपने अधीनस्थ थानेदारों और अंचलाधिकारियों को यह निर्देश दिया कि जिले में चल रही वाटर बोटलिंग प्लांट की जाँच करें और बताएँ कि वह सरकारी मापदंडों का अनुपालन कर रही है या नहीं।

उनके आदेश के तीन—चार माह के अन्दर इन अधिकारियों से कोई रिर्पोट नहीं मिली तो दोबारा नवम्बर माह में पुन: इन ​अधिकारियों को आदेश जारी कर इन तथाकथित प्लांटों के सत्यापन का आदेश दिया, लेकिन अब तक उन्हें अपने अधीनस्थ अधिकारियों से कोई प्रतिवेदन प्राप्त नहीं हुआ है, जिसके आधार पर वे कोई कार्रवाई कर सकें।

एक ओर तो इन कम्पनियों द्वारा शुद्ध और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का दावा किया जाता है, लेकिन हकीक़त यह है कि इनके जल में रासायनिक अवयव की मात्रा कितनी है या जल कितना शुद्ध है, इसकी जाँच के लिये कोई प्रयोगशाला तक नहीं है। मुंगेर लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के प्रयोगशाला के रसायनज्ञ बताते हैं कि नियमत:जल की जाँच होनी चाहिए।

वे सिर्फ इतना कहते हैं कि यदि किसी को इन बोतलबन्द पानी की गुणवत्ता पर सन्देह है तो वे जनहित में इसकी जाँच करवा सकते हैं। यह बात सर्वविदित है कि मुंगेर के भूगर्भीय जल में आर्सेनिक, फ्लोराइड, आयरन और नाइट्रेट जैसे तत्व पाये गए हैं और वह निर्धारित मानक से ज्यादा है। भूगर्भ जल बोर्ड से पानी निकलने के सन्दर्भ में आदेश भी होना चाहिए। वह भी नहीं है।

इन सारी सच्चाइयों के बाद भी प्रशासन इस मसले पर गम्भीर नहीं है। न ही प्रशासन के पास कोई आँकड़ा ही है कि कितना भूजल का इस्तेमाल किस प्लांट द्वारा किया जा रहा है। न ही आधिकारिक निरीक्षण इन प्लांटों का किया जाता है। एक ओर तो कई इलाकों में पेयजल की समस्या बरकरार है तो दूसरी ओर पानी का कारोबार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

हकीक़त तो यह है कि इन ​तथाकथित कम्पनियों को पानी की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती है। जल जैसे प्राकृतिक संसाधन का दोहनकर बड़े पैमाने पर मुनाफा अर्जित किया जा रहा है। जल विशेषज्ञों की माने तो एक लीटर बोतलबन्द पानी बनाने में ढाई गुणा पानी बर्बाद किया जाता है।

एक तरफ तो जल के अधिकार की बात होती हैं, वहीं दूसरी पानी के बाजार के हवालेकर आम लोगों को जल के अधिकार से वंचित करने की बड़ी सा​जिश की जा रही है। हैरतअंगेज़ बात तो यह स्वयंसेवी संस्थाएँ न तो इस खतरे के प्रति लोगों को न तो जागरूक कर रही है और न ही पानी वाले इलाके के लोग भविष्य के सम्भावित खतरे के प्रति सतर्क ही हैं। बोतल के रिसाइकलिंग से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।

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