ठहरे हुए पानी की सच्चाई

बहते दरिया की लहरों से हर चेहरा पामाल हुआ
सूरज ने किरणों को खोया चांद की कश्ती डूब गई
रिश्ते टूटे, नक्शे बिगड़े, बेताबी में रंग उड़े
पंख-पखेरू, पेड़ पहाड़ी सब ही उथल-पुथल
साहिल की रेतें आखिर कौन चुराकर भाग गया
नील गगन के आंगन में क्यों लहरों का तूफान उठा
तह के अंदर-अंदर जाने ये कैसा हैजान उठा
पानी ठहरे तो हम देखें क्या-क्या मोती गर्क हुए
झूठ का ये सैलाब थमे तो लम्हा भर को हम भी
साकित पानी की सच्चाई में सरमाए को जांचें
लहरें थककर सो जाएं तो धीरे-धीरे उठें
सारी चीजें अपनी जगह पे देख के खुश हो जाएं
उर्दू कविता

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