प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण

प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण

गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का एक बड़ा लक्ष्य किसानों और गाँवों को तकनीकी रूप से सम्पन्न बनाने में निहित है। देश की प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों को गाँवों और खेतों तक पहुँचाया जा रहा है। देश में 'लैब टू लैंड' प्रयासों से किसानों को तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों और संसाधनों को सीधे गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है।

प्रौद्योगिकी उन्नयन और समावेशी विकास ग्रामीण भारत के विकास के केंद्र बिंदु रहे हैं। देश की प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियां आत्मनिर्भर गाँवों के लिए तकनीकी सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आज प्रौद्योगिकी को समाज और गाँव केंद्रित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के सामंजस्य और खेतों तक पहुँच से बेहतर कृषि उत्पादकता, सामाजिक-आर्थिक समानता और सतत विकास को सुनिश्चित किया जा रहा है। ग्रामीण आत्मनिर्भरता, तकनीकी समझ और कृषि प्रौद्योगिकी से लेकर कौशल विकास की परिभाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ देश के गाँवों में सृजित हो रही है। भारत में करीब साढ़े छह लाख गाँव है, छह हजार से अधिक ब्लॉक हैं, और सभी पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासित हैं। 

भारत के अन्नदाता गाँवों में बसते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2022- 23 के अनुसार, भारत की 65% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और 47% आबादी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का एक बड़ा लक्ष्य किसानों और गाँवों को तकनीकी रूप से सम्पन्न बनाने में निहित है। देश की प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों को गाँवों और खेतों तक पहुंचाया जा रहा है। देश में 'लैब टू लैंड' प्रयासों से किसानों -को तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों और संसाधनों को सीधे गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है।

अरोमा मिशन और पुष्पखेती मिशन फूलों का तेल किसानों के लिए लाभ का सौदा किसान समुदाय में तकनीकी आत्मनिर्भरता को उत्प्रेरित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अरोमा और पुष्पखेती मिशन में सुगंधित फसलों की खेती आरंभ की गई है। इसके तहत 14,500 से 27,500 हेक्टेयर क्षेत्र पर कार्य किया गया। सीएसआईआर ने उन तकनीकों के माध्यम से उद्यमशीलता भी विकसित की है, जो सुगंधित फसलों की खेती और प्रसंस्करण, उच्च सुगंध वाले रसायनों और उत्पादों के लिए मूल्यवर्धित सुगंधित फसलों को बढ़ावा देती हैं।

अरोमा मिशन की शुरुआत लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने के लिए जम्मू कश्मीर के रामबन जिले से हुई। यह प्रसिद्ध मिशन 2016 में शुरू किया गया था, जिसे लैवेंडर या बैंगनी क्रांति के नाम से भी जानते हैं। केंद्रीय स्तर पर किसानों की आय बढ़ाने के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए एकीकृत 'अरोमा डेयरी उद्यमिता' की भी योजना बनाई गई है। लैवेंडर की खेती से जम्मू-कश्मीर के 10 जिलों में 1000 से अधिक कृषक परिवारों को लाभ मिला है और उनकी आमदनी कई गुना बढ़ गई है। भारत कुछ वर्ष पूर्व तक लेमनग्रास, आवश्यक तेल के आयातकों में से एक था, अब दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक बन गया है।

अरोमा मिशन के अंतर्गत सुगंध उद्योग के विकास और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कृषि, प्रसंस्करण और उत्पाद विकास में हस्तक्षेप के माध्यम से सुगंध क्षेत्र में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के प्रयास किए गए हैं। इस मिशन के तहत 6000 हेक्टेयर को खेती के दायरे में लाया गया है, जिसमें 46 जिले शामिल हैं। लगभग 44,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया और 231 डिस्टलेशन इकाइयां स्थापित की गईं और 500 टन आवश्यक तेल तैयार किया गया।

पुष्पखेती मिशन के तहत लाहौल और स्पीति में ट्यूलिप उत्पादन से रोपण सामग्री के आयात को कम करने में मदद मिली है। अरोमा और फ्लोरीकल्चर मिशन की सफलता के साथ-साथ हींग और दालचीनी जैसी फसलों की शुरुआत की गई है। ये मिशन आजीविका के अवसर पैदा करने और आयात को कम करने की दिशा में बड़े कदम है। भारत में पहली बार हींग की खेती शुरू की गई है और केसर की खेती का दायरा बढ़ाया गया है। जंगली जानवरों से प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उपयुक्त सुगंधित गेंदा प्रौद्योगिकी सीएसआईआर में विकसित की गई है। तुलसी, जिरेनेयम, मेंथा, गेंदा और गुलाब जैसे पौधों के अर्क से बने सुगंधित तेलों का उपयोग दवाइयों, कॉस्मेटिक उत्पादों, परफ्यूम और फूड इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर होता है।

दक्षिण अफ्रीका के बाद भारत गेंदे के तेल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सगंध तेल उत्पादन के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में उगायी जाने वाली जंगली गेंदे की टैजेटिस माइन्यूटा प्रजाति किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो रही है। जंगली गेंदे से मिलने वाली सुगंध या वाष्पशील तेल में फ्लेवर व सुगंध आधारित एजेंट पाए जाते हैं। सुगंधित गेंदा प्रौद्योगिकी द्वारा गेंदे से मिलने वाले तेल के उत्पादन से भारतीय किसानों के लिए बेहतर आमदनी के द्वार खुले हैं।

लेखक विज्ञान संचारक एवं विज्ञान प्रसार में वैज्ञानिक हैं। ई-मेल : nimish.vp@gmail.com


स्रोत :- कुरुक्षेत्र दिसंबर 2023 

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Post By: Shivendra
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