तुम से बोलते-बतियाते

बड़ी झील!
तुम से बोलते-बतियाते
मेरी जुबान की मैल छूट जाती है
और धुल जाते हैं सारे दाग-धब्बे

कितना सारा मौन छुपा रखा है मैंने
तुम्हारे पानी में
एक दिन निकाल कर सारा मौन
उसे कहने में लाऊँगा
फिर भी जो कह न पाऊँगा
उसे ज़रूर तुम्हारे कान में
फुसफुसाऊँगा

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