(2005 का अधिनियम संख्यांक 24)
(23 दिसम्बर 2005)
तटीय क्षेत्रों में तटीय जलकृषि से सम्बन्धित क्रियाकलापों का विनियमन करने के लिये तटीय जलकृषि प्राधिकरण की स्थापना और उससे सम्बन्धित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम
भारत गणराज्य के छप्पनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित होः-
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त का नाम तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम, 2005 है।
(2) धारा 27 के उपबन्ध तुरन्त प्रवृत्त होंगे और इस अधिनियम के शेष उपबन्ध उस तारीख को प्रवृत्त होंगे जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
2. परिभाषाएँ
(1) इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ‘‘प्राधिकरण’’ से धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित तटीय जलकृषि प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) ‘अध्यक्ष’ से प्राधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ग) ‘तटीय जलकृषि’ से तटीय क्षेत्रों में, तालों, बाड़ों और अहातों में नियंत्रित या अन्यथा दशाओं के अधीन लवणीय या खारे जल में श्रिम्प (चिंगर), झींगा, मछली या किसी अन्य जलीय जीव का पालन करना अभिप्रेत है; किन्तु इसके अन्तर्गत ताजा जल में जलकृषि नहीं है;
(घ) ‘तटीय क्षेत्र’ से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय (पर्यावरण, वन और वन्यजीव विभाग) की अधिसूचना सं. का. आ. 114 (अ), तारीख 19 फरवरी, 1991 में तत्समय तट विनियमन जोन के रूप में घोषित किया गया है और इसके अन्तर्गत ऐसा अन्य क्षेत्रों भी है जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे;
(ङ) ‘सदस्य’ से धारा 4 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त प्राधिकरण का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अध्यक्ष और सदस्य-सचिव भी है;
(च) ‘विहित’ से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है; और
छ) ‘विनियम’ से इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं।
(2) उन शब्दों और पदों के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं किन्तु पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उस अधिनियम में हैं।
अध्याय 2
केन्द्रीय सरकार की साधारण शक्तियाँ
3. पर्यावरण का संरक्षण करने के लिये उपाय करने की केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ
केन्द्रीय सरकार, यह सुनिश्चित करने के लिये कि तटीय जलकृषि से तटीय पर्यावरण का कोई अहित कारित नहीं होगा, मार्गदर्शक सिद्धान्त विहित करके तटीय जलकृषि के विनियमन के लिये ऐसे सभी उपाय करेगी जिन्हें वह आवश्यक या समीचीन समझे और ऐसे मार्गदर्शक सिद्धान्तों में अन्तर्विष्ट उत्तरदायी तटीय जलकृषि की संकल्पना का तटीय क्षेत्रों में रह रहे व्यक्तियों में विभिन्न वर्गाें की जीविका का संरक्षण करने के लिये तटीय जलकृषि क्रियाकलापों को विनियमित करने में अनुसरण किया जाएगा।
अध्याय 3
तटीय जलकृषि प्राधिकरण
4. प्राधिकरण की स्थापना और अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति
(1) ऐसी तारीख से, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये तटीय जलकृषि प्राधिकरण के नाम से एक प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी।
(2) प्राधिकरण का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जिसे केन्द्रीय सरकार विनिश्चित करे।
(3) प्राधिकरण निम्नलिखित ऐसे सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे, अर्थात-
(क) अध्यक्ष, जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है;
(ख) एक सदस्य, जो तटीय जलकृषि के क्षेत्रों में विशेषज्ञ हो;
(ग) एक सदस्य, जो तटीय परिस्थितिकी के क्षेत्रों में विशेषज्ञ हो, जिसे केन्द्रीय सरकार के समुद्र विकास विभाग द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;
(घ) एक सदस्य, जो पर्यावरण संरक्षण या प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में विशेषज्ञ हो, जिसे केन्द्रीय सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा;
(ङ) केन्द्रीय सरकार के कृषि मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य;
(च) केन्द्रीय सरकार के वाणिज्य मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य;
(छ) तटीय राज्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिये चार सदस्य चक्रानुक्रम के आधार पर;
(ज) एक सदस्य-सचिव।
(4) अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य की पदावधि तीन वर्ष की होगी।
(5) सदस्य को सन्देय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।
5. सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिये निरर्हताएँ
कोई व्यक्ति सदस्य के रूप में नियुक्ति किये जाने के लिये निरर्हित होगा यदि वह -
(क) किसी ऐसे अपराध के लिये जिसमें, केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है, सिद्धदोष ठहराया गया है और कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है; या
(ख) अनुन्मोचित दिवालिया है; या
(ग) विकृतचित्त का है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया है; या
(घ) सरकार की या सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी निगम की सेवा से हटाया गया है या पदच्युत किया गया है; या
(ङ) केन्द्रीय सरकार की राय में, प्राधिकरण में ऐसा वित्तीय या अन्य हित रखता है जिससे सदस्य के रूप में उसके द्वारा उसके कृत्यों का निर्वहन करने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।
6. पुनर्नियुक्ति के लिये सदस्य की पात्रता
धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति, जो सदस्य नहीं रहा है, ऐसे सदस्य के रूप में दो क्रमवर्ती पदावधियों से अनधिक के लिये पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होगा।
7. प्राधिकरण के अधिवेशन
(1) प्राधिकरण ऐसे समयों और स्थानों पर अधिवेशन करेगा और अपने अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में, (जिसके अन्तर्गत ऐसे अधिवेशनों में गणपूर्ति भी है), प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ।
(2) यदि किसी कारण से, अध्यक्ष प्राधिकरण के किसी अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो उस अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा चुना गया कोई अन्य सदस्य उस अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा।
(3) ऐसे सभी प्रश्नों का, जो प्राधिकरण के किसी अधिवेशन के समक्ष आएँ, विनिश्चय उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में, अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का द्वितीय या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।
8. प्राधिकरण में रिक्ति से कायर्वाही का अविधिमान्य न होना
प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण से अविधिमान्य नहीं होगी कि-
(क) प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या
(ख) प्राधिकरण के सदस्य के रूप में कार्यरत किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुति है; या
(ग) प्राधिकरण द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता है जिससे मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
9. प्राधिकरण के अधिकारियों, परामर्शियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति
(1) प्राधिकरण, अपने कृत्यों के निर्वहन के प्रयोजनों के लिये, उतनी संख्या में अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को जो वह ठीक समझे, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर नियुक्त करेगा, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएँ।
(2) प्राधिकरण, समय-समय पर, किसी ऐसे व्यक्ति को सलाहकार या परामर्शी के रूप में जिसे वह आवश्यक समझे, ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर नियुक्त कर सकेगा, जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएँ।
10. प्राधिकरण के आदेशों और अन्य लिखतों का अधिप्रमाणीकरण
प्राधिकरण के सभी आदेश, विनिश्चय और अन्य लिखतें अध्यक्ष या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत प्राधिकरण के किसी अन्य सदस्य या किसी अधिकारी के हस्ताक्षर से अधिप्रमाणित की जाएँगी।
अध्याय 4
प्राधिकरण की शक्तियाँ और कृत्य
11. प्राधिकरण के कृत्य
(1) धारा 3 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किये गए किन्हीं मार्गदर्शन सिद्धान्तों के अधीन रहते हुए, प्राधिकरण निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग और निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात-
(क) तटीय क्षेत्रों के भीतर जलकृषि फार्मों के सन्निर्माण और प्रचालन के लिये विनियम बनाना;
(ख) जलकृषि फार्माें का, तटीय जलकृषि द्वारा कारित उनके पर्यावरणीय प्रभाव को अभिनिश्चित करने की दृष्टि से, निरीक्षण करना;
(ग) तटीय जलकृषि फार्मों को रजिस्टर करना;
(घ) ऐसे किन्हीं तटीय जलकृषि फार्मों को, जो प्रदूषण कारित कर रहे हैं, फार्म के अधिभोगी को सुनने के पश्चात हटाने या ढहा देने का आदेश देना; और
(ङ) ऐसे अन्य कृत्य करना जो विहित किये जाएँ।
(2) जहाँ प्राधिकरण, उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन किसी तटीय जलकृषि फार्म को हटाने या ढहा देने का आदेश देता है वहाँ उक्त फार्म के कर्मकार को ऐसे प्रतिकर का सन्दाय किया जाएगा जो प्राधिकरण द्वारा नियुक्त किये जाने वाले केवल एक व्यक्ति वाले प्राधिकारी के माध्यम से कर्मकारों और प्रबन्ध-मण्डल के बीच तय किया जाये और ऐसा प्राधिकारी ऐसे प्रयोजन के लिये जिला मजिस्ट्रेट की ऐसी शक्तियों का, जो विहित की जाएँ, प्रयोग कर सकेगा।
12. प्रवेश करने की शक्ति
इस निमित्त बनाए गए किसी नियम के अधीन रहते हुए, प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त साधारणतया या विशेषतया प्राधिकृत कोई व्यक्ति, जहाँ कहीं इस अधिनियम के किन्हीं प्रयोजनों के लिये ऐसा करना आवश्यक हो, सभी युक्तियुक्त समयों पर, किसी तटीय जलकृषि भूमि, ताल, बाड़े या अहाते में प्रवेश कर सकेगा, और-
(क) कोई निरीक्षण, सर्वेक्षण, माप, मूल्यांकन या जाँच कर सकेगा;
(ख) उसमें की किसी संरचना को हटा सकेगा या ढहा सकेगा;
(ग) ऐसे अन्य कार्य या बात कर सकेगा जो विहित की जाये;
परन्तु ऐसा कोई व्यक्ति, किसी तटीय जलकृषि भूमि, ताल, बाड़े या अहाते में, ऐसी जलकृषि भूमि, ताल, बाड़े या अहाते के अधिभोगी को कम-से-कम चौबीस घंटे पूर्व ऐसा करने के अपने आशय की लिखित रूप में सूचना दिये बिना प्रवेश नहीं करेगा।
13. तटीय जलकृषि के लिये रजिस्ट्रीकरण
(1) इस धारा में जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय, कोई भी व्यक्ति तटीय क्षेत्रों में तटीय जलकृषि या ऐसे परम्परागत तटीय जलकृषि फार्म में, जो उपधारा (9) में निर्दिष्ट तट विनियमन जोन के अन्दर पड़ता है और नियत दिन को जिसका उपयोग तटीय जलकृषि प्रयोजनों के लिये नहीं किया जाता है, परम्परागत तटीय जलकृषि तब तक नहीं करेगा या नहीं कराएगा जब तक कि उसने अपने फार्म को, यथास्थिति, उपधारा (5) के अधीन या उपधारा (9) के अनुसरण में प्राधिकरण के पास रजिस्टर न कराया हो।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, ऐसा कोई व्यक्ति, जो नियत दिन से ठीक पहले तटीय जलकृषि में लगा हुआ है, उस दिन से तीन मास की अवधि तक ऐसे रजिस्ट्रीकरण के बिना और यदि वह तीन मास की उक्त अवधि के भीतर उपधारा (4) के अधीन ऐसे रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करता है तो प्राधिकरण द्वारा ऐसे आवेदन के निपटारे की उसे संसूचना तक ऐसा क्रियाकलाप करता रह सकेगा।
(3) उपधारा (5) के अधीन या उपधारा (9) के अनुसरण में किया गया रजिस्ट्रीकरण-
(क) पाँच वर्ष की अवधि के लिये विधिमान्य होगा;
(ख) समय-समय पर उतनी ही अवधि के लिये नवीकृत किया जा सकेगा;
(ग) ऐसे प्रारूप में होगा और ऐसी शर्तों के अध्यधीन होगा जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएँ।
(4) कोई व्यक्ति जो तटीय जलकृषि करने का आशय रखता है, प्राधिकरण के समक्ष अपने फार्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन ऐसे प्रारूप में और ऐसी फीस के साथ करेगा, जो उपधारा (5) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के प्रयोजन के लिये विहित की जाये।
(5) प्राधिकरण, उपधारा (4) के अधीन फार्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये किसी आवेदन की प्राप्ति पर, उस आवेदन पर विहित रीति से विचार करेगा और आवेदन पर विचार करने के पश्चात या तो फार्म को रजिस्टर करेगा या आवेदन को नामंजूर कर देगाः
परन्तु प्राधिकरण आवेदन को, ऐसी नामंजूरी के कारणों को लेखबद्ध किये बिना नामंजूर नहीं करेगा।
(6) प्राधिकरण, उपधारा (5) के अधीन फार्म को रजिस्टर करने के पश्चात, उस व्यक्ति को, जिसने ऐसे रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन किया है, विहित प्रारूप में रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा।
(7) ऐसे फार्म की दशा में जिसमें दो हेक्टेयर से अधिक जलमग्न क्षेत्र समाविष्ट है, तटीय जलकृषि से सम्बन्धित कोई क्रियाकलाप प्रारम्भ करने के लिये रजिस्ट्रीकरण हेतु किसी आवदेन पर उपधारा (5) के अधीन तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक कि प्राधिकरण का, ऐसी जाँच करने के पश्चात जिसे वह ठीक समझे, यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसे फार्म का रजिस्ट्रीकरण तटीय पर्यावरण के लिये हानिकारक नहीं होगा।
(8) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी,-
(क) कोई भी तटीय जलकृषि उच्च ज्वार सीमाओं से दो सौ मीटर के भीतर नहीं की जाएगी; और
(ख) कोई भी तटीय जलकृषि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) के अधीन तत्समय घोषित तट विनियमन जोन के भीतर संकरी खाड़ियों, नदियों और अप्रवाही जलों में नहीं की जाएगीः
परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे तटीय जलकृषि फार्म की दशा में, जो नियत दिन को विद्यमान है और सरकार के या सरकार द्वारा वित्त पोषित किसी अनुसन्धान संस्थान द्वारा संचालित या उसके द्वारा संचालित किये जाने के लिये प्रस्तावित गैर वाणिज्यिक और प्रयोगात्मक तटीय जलकृषि फार्म को लागू नहीं होगी:
परन्तु यह और कि प्राधिकरण, पहले परन्तुक के अधीन छूट प्रदान करने के प्रयोजनों के लिये, समय-समय पर तटीय जलकृषि फार्माें की विद्यमानता और उनके क्रियाकलापों का पुनर्विलोकन कर सकेगा और इस धारा के उपबन्ध ऐसे पुनर्विलोकन को ध्यान में रखते हुए तटीय जलकृषि फार्मों को लागू होंगे।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, ‘उच्च ज्वार सीमा’ से भूमि पर ऐसी सीमा अभिप्रेत है जिस तक वृहत ज्वार के दौरान उच्चतम जल लहरें पहुँचती हैं।
(9) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी ऐसा परम्परागत तटीय कृषि फार्म, जो भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय (पर्यावरण, वन और वन्यजीव विभाग) की अधिसूचना संख्या का.आ. 114 (अ), तारीख 19 फरवरी, 1991 द्वारा घोषित तट विनियमन जोन के भीतर पड़ता है और जिसका उपयोग नियत दिन को तटीय जलकृषि प्रयोजनों के लिये नहीं किया जाता है, प्राधिकरण के समक्ष, ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो उस फर्म का स्वामी है, ऐसे स्वामित्व का दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करके उपधारा (5) के अधीन रजिस्टर किया जाएगा जिसके न हो सकने पर ऐसे फार्म को उपधारा (5) के अधीन रजिस्टर नहीं किया जाएगा और यदि ऐसा व्यक्ति ऐसे रजिस्ट्रीकरण के पश्चात ऐसे फार्म का एक वर्ष के भीतर तटीय जलकृषि प्रयोजनों के लिये उपयोग नहीं करता है तो रजिस्ट्रीकरण प्राधिकरण द्वारा रद्द कर दिया जाएगा।
(10) ऐसा व्यक्ति, जिसका आशय उपधारा (5) के अधीन या उपधारा (9) के अनुसरण में किये गए फार्म के रजिस्ट्रीकरण को नवीकृत कराने का है, ऐसे रजिस्ट्रीकरण की समाप्ति से पूर्व दो मास के भीतर विहित प्रारूप में विहित फीस के साथ प्राधिकरण को आवेदन कर सकेगा और प्राधिकरण, ऐसे आवेदन को प्राप्त करने के पश्चात रजिस्ट्रीकरण को नवीकृत करेगा और उस प्रयोजन के लिये उपधारा (6) के अधीन जारी किये गए ऐसे फार्म से सम्बन्धित रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र पर अपनी मुद्रा सहित प्रविष्टि करेगा।
(11) यदि प्राधिकरण का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा व्यक्ति, जिसका ऐसे रजिस्ट्रीकरण किया गया था, ऐसे फार्म का तटीय जलकृषि प्रयोजनों के लिये उपयोग करने में असफल रहा है या उसने किसी युक्तियुक्त कारण के बिना इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या विनियमों के किसी उपबन्ध का या धारा 11 के अनुसरण में प्राधिकरण द्वारा दिये गए किसी निदेश या किये गए किसी आदेश का अतिक्रमण किया है तो प्राधिकरण उपधारा (10) के अधीन फार्म के रजिस्ट्रीकरण को नवीकृत करने से इनकार कर सकेगाः
परन्तु ऐसे व्यक्ति को सुने जाने का अवसर दिये बिना रजिस्ट्रीकरण को नवीकृत करने से इनकार नहीं किया जाएगा।
स्पष्टीकरण 1
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, ‘नियत दिन’से प्राधिकरण की स्थापना की तारीख अभिप्रेत है।
स्पष्टीकरण 2
शंकाओं को दूर करने के लिये यह घोषित किया जाता है कि उपधारा (10) और उपधारा (11) में प्रयुक्त, ‘रजिस्ट्रीकरण को नवीकृत करना’ पद का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत रजिस्ट्रीकरण को और नवीकृत करना है।
14. रजिस्ट्रीकरण के बिना तटीय जलकृषि करने के लिये दण्ड
यदि कोई व्यक्ति धारा 13 की उपधारा (1) के उल्लंघन में कोई तटीय जलकृषि या पंरपरागत तटीय जलकृषि करेगा या तटीय जलकृषि या परम्परागत तटीय जलकृषि कराएगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से, दण्डनीय होगा।
15. अपराध का संज्ञान
कोई भी न्यायालय धारा 14 के अधीन अपराध का संज्ञान प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत उसके अधिकारी द्वारा फाइल किये गए लिखित परिवाद के बिना नहीं करेगा।
अध्याय 5
वित्त, लेखा और सम्परीक्षा
16. प्राधिकरण को सन्दाय
केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात प्राधिकरण को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसी राशि का सन्दाय करेगी जो इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण के कृत्यों के पालन के लिये आवश्यक समझी जाये।
17. प्राधिकरण की निधि
(1) प्राधिकरण की अपनी निधि होगी और ऐसी सभी राशियाँ, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे समय-समय पर सन्दत्त की जाएँ तथा प्राधिकरण की सभी प्राप्तियाँ (जिनके अन्तर्गत कोई ऐसी राशि भी है जो कोई राज्य सरकार या कोई अन्य प्राधिकारी व्यक्ति प्राधिकरण को सौंपे) उक्त निधि में जमा की जाएँगी और प्राधिकरण द्वारा सभी सन्दाय उसमें से किये जाएँगे।
(2) निधि के सभी धन केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन के अधीन रहते हुए ऐसे बैंकों में जमा किये जाएँगे या ऐसी रीति से विनिहित किये जाएँगे जो प्राधिकरण द्वारा विनिश्चित की जाये।
(3) प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के लिये उतनी राशि व्यय कर सकेगा जितनी वह ठीक समझे और ऐसी राशि को प्राधिकरण की निधि में से सन्देय व्यय माना जाएगा।
18. बजट
प्राधिकरण, प्रत्येक वर्ष ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर जो विहित किया जाये, आगामी वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में बजट तैयार करेगा, जिसमें प्राक्कलित प्राप्तियाँ और व्यय दर्शित किये जाएँगे और उसकी प्रतियाँ केन्द्रीय सरकार को भेजी जाएँगी।
19. वार्षिक रिपोर्ट
प्राधिकरण, प्रत्येक कैलेण्डर वर्ष में एक बार ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, पूर्व वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का सही और पूरा विवरण देते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा और उसकी प्रतियाँ केन्द्रीय सरकार को भेजी जाएँगी और वह सरकार उन्हें संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।
20. लेखा और सम्परीक्षा
(1) प्राधिकरण अपने लेखाओं के सम्बन्ध में ऐसी लेखा बहियाँ और अन्य बहियाँ, ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति से, जो भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के परामर्श से विहित की जाये, रखवाएगा।
(2) प्राधिकरण, अपने वार्षिक लेखे बन्द करने के पश्चात यथाशीघ्र, ऐसे प्रारूप में एक विवरण तैयार करेगा और उसे ऐसी तारीख तक भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को भेजेगा, जो केन्द्रीय सरकार, नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के परामर्श से अवधारित करे।
(3) प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे समय पर और ऐसी रीति से की जाएगी, जो वह ठीक समझे।
(4) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथा प्रमाणित प्राधिकरण के लेखे, उनकी सम्परीक्षा रिपोर्ट सहित, प्रतिवर्ष केन्द्रीय सरकार को भेजे जाएँगे और वह सरकार उन्हें संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।
अध्याय 6
प्रकीर्ण
21. प्राधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों आदि का लोक सेवक होना
प्राधिकरण का अध्यक्ष और अन्य सदस्य तथा अधिकारी और अन्य कर्मचारी और प्राधिकरण द्वारा नियुक्त प्राधिकारी भारतीय दण्ड संंहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जाएँगे।
22. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण
इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी विनियम या नियम या किये गए किसी आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई वाद, अभियोजन या
अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या प्राधिकरण या प्राधिकरण के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों या प्राधिकरण द्वारा नियुक्त प्राधिकारी या प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति या अध्यक्ष द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी के विरुद्ध नहीं होगी।
23. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति
(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हों और जो उसे ऐसी कठिनाई को दूर करने के लिये आवश्यक या समीचीन प्रतीत हैः
परन्तु ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, उसके किये जाने के पश्चात, यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।
24. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात-
(क) धारा 3 के अधीन मार्गदर्शक सिद्धान्त;
(ख) धारा 4 की उपधारा (5) के अधीन सदस्यों को सन्देय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबन्धन और शर्तें;
(ग) धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (ङ) के अधीन प्राधिकरण के अन्य कृत्य;
(घ) धारा 11 की उपधारा (2) के अधीन प्राधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ;
(ङ) वे नियम, जिनके अधीन रहते हुए, धारा 12 में निर्दिष्ट, कोई व्यक्ति उस धारा के अधीन किसी तटीय जलकृषि भूमि, ताल, बाड़े या अहाते में प्रवेश कर सकेगा;
(च) धारा 12 के खण्ड (ग) के अधीन अन्य कार्य या बातें;
(छ) धारा 13 की उपधारा (4) के अधीन आवेदन का प्रारूप और उसके साथ दी जाने वाली फीस;
(ज) धारा 13 की उपधारा (5) के अधीन आवेदन पर विचार करने की रीति;
(झ) धारा 13 की उपधारा (6) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का प्रारूप;
(ञ) धारा 13 की उपधारा (10) के अधीन आवेदन का प्रारूप और उसके साथ दी जाने वाली फीस;
(ट) धारा 18 के अधीन बजट तैयार करने का प्रारूप और समय;
(ठ) धारा 19 के अधीन वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने का प्रारूप और समय;
(ड) धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन प्राधिकरण के लेखाओं के सम्बन्ध में रखी जाने वाली लेखा बहियाँ और अन्य बहियाँ तथा ऐसी लेखा बहियों और अन्य बहियों का प्रारूप और उन्हें बनाए रखने की रीति; और
(ढ) कोई अन्य विषय, जिसका विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जाये।
25. प्राधिकरण की विनियम बनाने की शक्ति
(1) प्राधिकरण, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे विनियम बना सकेगा जो इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों से असंगत न हों।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात;
(क) धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन प्राधिकरण के अधिवेशनों के समय और स्थान तथा उसके अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में (जिसके अन्तर्गत उसमें गणपूर्ति भी है) अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के नियम;
(ख) धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के निबन्धन और शर्तें;
(ग) धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन सलाहकार या परामर्शी की नियुक्ति के निबन्धन और शर्तें;
(घ) धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन तटीय क्षेत्रों के भीतर तटीय जलकृषि फार्मों का सन्निर्माण और प्रचालन;
(ङ) धारा 13 की उपधारा (3) के खण्ड (ग) के अधीन रजिस्ट्रीकरण का प्रारूप और शर्तें;
(च) साधारणतया तटीय जलकृषि का बेहतर विनियमन।
26.नियमों और विनियमों का संसद के समक्ष रखा जाना
इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येेक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिये सत्र में हो, जो एक सत्र अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वाेक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ या दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो पश्चात वह नियम या विनियम, यथास्थिति, ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम या विनियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उस नियम या विनियम के अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
27. विधिमान्यकरण
(1) पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (1986 का 29) की धारा 3 की उपधारा (2) के खण्ड (v) में या पर्यावरण (संरक्षण) नियम, 1986 के नियम 5 के उपनियम (3) के खण्ड (घ) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय (पर्यावरण, वन और वन्यजीव विभाग) की तारीख 19 फरवरी, 1991 की अधिसूचना सं. का. आ. 114 (अ), में (जिसे इस धारा में इसके पश्चात उक्त अधिसूचना कहा गया है) पैरा 2 के उपपैरा (xiii) के पश्चात निम्नलिखित उपपैरा अन्तः स्थापित किया जाएगा और यह सदैव 19 फरवरी, 1991 से अन्तः स्थापित किया गया समझा जाएगा, अर्थात-
‘‘(xiv) इस पैरा में अन्तर्विष्ट कोई बात तटीय जलकृषि को लागू नहीं होगी।’’।
(2) उक्त अधिसूचना सभी प्रयोजनों के लिये ऐसे प्रभावी होगी और सदैव ऐसे प्रभावी समझी जाएगी मानो इस धारा के पूर्वगामी उपबन्ध सभी तात्त्विक समयों पर प्रवर्तन में थे और तद्नुसार किसी न्यायालय, अधिकरण या अन्य प्राधिकारी के किसी निर्णय, डिक्री या आदेश में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी कोई तटीय जलकृषि जो की गई थी या हाथ में ली गई थी अथवा जिसका किया जाना या हाथ में लिया जाना तात्पर्यित है, उक्त अधिसूचना के उल्लंघन में नहीं समझी जाएगी और सभी प्रयोजनों के लिये विधि के अनुसार ऐसे की गई और सदैव की जा रही समझी जाएगी मानो इस धारा के पूर्वगामी उपबन्ध सभी तात्त्विक समयों पर प्रवर्तन में थे और पूूर्वोक्त रूप में किसी बात के होते हुए भी और पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कोई डिक्री या आदेश देने वाले न्यायालय द्वारा किसी तटीय जलकृषि सम्बन्धी क्रियाकलाप को हटाने या बन्द करने का अथवा तद्धीन सम्बन्धित किसी संरचना को ढहा देने का, जिसको, यदि इस धारा के पूर्वगामी उपबन्ध उन सभी तात्त्विक समयों पर प्रवर्तन में रहे होते तो हटाए जाने, बन्द किये जाने या ढहा दिये जाने की इस प्रकार आवश्यकता नहीं होती, निदेश देते हुए दिये गए किसी निदेश के प्रवर्तन के लिये किसी न्यायालय में कोई वाद या अन्य कार्यवाही नहीं चलाई जाएगी या जारी नहीं रखी जाएगी।
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