तपती गर्मी में गहराई पानी की किल्लत

दिल्ली जल बोर्ड के लिए हर घर को पानी मुहैया कराना चुनौती

दिल्ली के नीचे जा रहे जल स्तर को रोकने के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पुराने नौ जिलों में से सात जिलों में भूजल के दोहन रोकने के आदेश जारी कर दिए। प्राधिकरण ने साल 2000 में दिल्ली के दक्षिणी और पश्चिमी जिलों को गंभीर क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया। मार्च 2006 में अधिसूचना के माध्यम से पूर्वी जिला, नई दिल्ली जिला, उत्तर-पूर्वी जिला और पश्चिम जिला को अत्यधिक दोहन वाला क्षेत्र घोषित करके जल दोहन पर रोक लगा दी। इस पर कानून बनाने के लिए दिल्ली विधान सभा दिल्ली जल बोर्ड (संशोधन) विधेयक 2005 लाया गया। इसे भारी विरोध के चलते प्रवर समिति को भेजा गया।

दो दिन पहले ऊपरी गंग नहर में मुज़फ़्फरनगर के पास खतौली में दिल्ली के लिए आ रही पानी की लाइन में पड़े दरार ने दिल्ली में हाहाकार मचा दिया है। करीब एक चौथाई दिल्ली में जल संकट अचानक बढ़ गया है। मुख्यमंत्री और जल बोर्ड की अध्यक्ष शीला दीक्षित की माने तो फौरी संकट के समाधान होने तक हरियाणा अतिरिक्त पानी देने पर तैयार हो गया है और रविवार तक अतिरिक्त पानी दिल्ली पहुंच जाएगा। अगले तीन से चार दिन में पाइप लाइन की दरार भी ठीक हो जाने की उम्मीद की जा रही है। यह बवाल तो उस पानी के लिए है जो पहले से दिल्ली को मिल रहा है। दिल्ली को तो सामान्य जरूरत से कम पानी पहले से ही मिल रहा है। यह तब जब दिल्ली के कमोबेश एक चौथाई इलाके में दिल्ली जल बोर्ड के पानी की लाइन ही नहीं पहुंची है। यानी देश की राजधानी के लाखों लोग आज भी हैंडपंप और ट्यूबवेल आदि पर पानी के लिए निर्भर है।

इस भयंकर गर्मी में जब पानी की मांग सामान्य से काफी बढ़ गई है, जल बोर्ड के लिए साफ पानी हर रोज दो घंटे हर घर तक पहुंचाना चुनौती बन गया है। यह सब तब हो रहा है जब इसी साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लगता यही है कि उस चुनाव में अन्य मुद्दों से अधिक बिजली-पानी का मुद्दा प्रभावी बनने वाला है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मुनक नहर को पूरा करवाने के लिए नए मंत्रियों का समूह (जीओएम) बनवाने में सफल हो गई है। अब पहले की तरह केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की अगुआई में जल संसाधन मंत्री हरीश रावत और संचार मंत्री कपिल सिब्बल की कमेटी बन गई है। उस में शीला दीक्षित और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा आमंत्रित सदस्य होंगे। 1994 में यमुना जल बँटवारे के अनुरूप दिल्ली को ताजेवाला बांध से अतिरिक्त पानी दिल्ली लाने के लिए हरियाणा को दिल्ली के पैसे से पक्की नहर बनाना था। करीब 17 साल से यह काम पूरा नहीं हो पाया है। 160 करोड़ से शुरू हुई मांग 414 करोड़ देने के बाद भी नहीं पूरी हुई है। अभी करीब 150 करोड़ की मांग हो रही है इसलिए सारा काम करके 400 मीटर हिस्सा छोड़ दिया गया है। पानी के जो हालात खुद हरियाणा झेल रहा है उसमें लगता नहीं की 1994 के समझौते के अनुरूप वह आसानी से दिल्ली को पानी दे देगा।

दूसरी बार यूपीए की सरकार बनने पर शीला दीक्षित ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से तब के गृह मंत्री पी चिदंबरम की अगुआई में जो जीओएम बना था उसमें वीरप्पा मोइली, कपिल सिब्बल, सलमान ख़ुर्शीद के अलावा दिल्ली और हरियाणा के मुख्यमंत्री सदस्य थे। वह समिति बिना कुछ किए खत्म हो गई। मुनक नहर से दिल्ली को 80 से 85 एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) पानी मिलना है। कच्ची नहर होने के चलते 35 से 40 फीसद पानी बर्बाद होता था। इस नहर के भरोसे द्वारका, ओखला और बवाना जल शोधन संयंत्र बनाए गए जो सालों से पानी का इंतजार कर रहे हैं।

अभी कुछ दिन पहले दिल्ली जल बोर्ड के बजट में बताया गया कि पानी की उपलब्धता 1998 के 545 एमजीडी के मुकाबले 835 एमजीडी हो गई है। उसी के साथ अब कनेक्शन भी बढ़कर 19.6 लाख हो गए हैं। जिन 70-75 फीसद दिल्ली में दिल्ली जल बोर्ड के कनेक्शन हैं उनकी मांग एक हजार एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) से ज्यादा है। ऐसा 160 से 180 गैलन रोज पानी उपलब्ध करवाने के लक्ष्य के चलते हो रहा है। यह भी बोर्ड के ही अधिकारी मानते हैं कि जहां पानी का कनेक्शन है उन सभी जगहों पर हर रोज महज दो घंटे पानी पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है। इसे बता कर अधिकारी खुश होते हैं कि चेन्नई और बंगलूर में तो हर दूसरे दिन पानी दिया जाता है। इस मायने में दिल्ली बेहतर है। वैसे बोर्ड के आंकड़े हैं कि अगर 80 गैलन पानी की व्यवस्था हर व्यक्ति के लिए की जाए तो एक करोड़ 90 लाख आबादी के लिए 1140 एमजीडी पानी की व्यवस्था करनी होगी। बोर्ड के अधिकारी स्वीकारते हैं कि पानी लीकेज करीब 30 फीसद है। यह अंतर्राष्ट्रीय मानक 15 फीसद से दो गुणा है। पानी चोरी रोकने और अवैध पंप लगाकर पानी खींचने वालों के खिलाफ अदालत ही सख्त हुई और पहली बाद दो साल पहले दिल्ली में चार पानी अदालतों का गठन हुआ। जिसने लाखों रुपए जुर्मानें लगाए।

पानी की लाइनें काफी पुरानी हो गई है। कुल 12000 किलोमीटर मुख्य लाइनों को बदलने का काम तभी शुरू हुआ। हर साल तीन हजार किलोमीटर लाइन बदली जा रही है। यह काम दो-तीन साल में पूरा हो जाएगा। पुरानी दिल्ली शाहजहानाबाद की पूरी मुख्य लाइनें बदल दी गई हैं। यह दिल्ली का पांचवां हिस्सा है। इस इलाके में 1935-36 में लाइनें डाली गई थीं। मुख्य लाइन बदलने से लीकेज कम होंगे और पानी साफ होने के साथ तेज बहाव से आएगा। अभी जो पानी दिल्ली को मिल रहा है उसमें 80 फीसद से ज्यादा पानी गंगा, यमुना का है यानि हरियाणा, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आ रहा है। भविष्य के लिए हिमाचल प्रदेश में बन रहे रेणुका बांध और उत्तराखंड के किशाऊ और लखवार व्यासी बांध से दिल्ली को पानी मिलने की उम्मीद है। दिल्ली जल बोर्ड ने जो 2021 का पानी का मास्टर प्लान बनाया है उसके हिसाब से दिल्ली को तब 1840 एमजीडी पानी की जरूरत होगी। इसके लिए पुराने पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

दिल्ली के नीचे जा रहे जल स्तर को रोकने के लिए केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने पुराने नौ जिलों में से सात जिलों में भूजल के दोहन रोकने के आदेश जारी कर दिए। प्राधिकरण ने साल 2000 में दिल्ली के दक्षिणी और पश्चिमी जिलों को गंभीर क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया। मार्च 2006 में अधिसूचना के माध्यम से पूर्वी जिला, नई दिल्ली जिला, उत्तर-पूर्वी जिला और पश्चिम जिला को अत्यधिक दोहन वाला क्षेत्र घोषित करके जल दोहन पर रोक लगा दी। इस पर कानून बनाने के लिए दिल्ली विधान सभा दिल्ली जल बोर्ड (संशोधन) विधेयक 2005 लाया गया। इसे भारी विरोध के चलते प्रवर समिति को भेजा गया। फिर समिति ने दो फरवरी 2006 को उसे रद्द कर दिया।

दिल्ली सरकार पानी की मात्रा, पानी के कनेक्शन और पानी की लाइनों में लगातार बढ़ोतरी का दावा कर रहा है। जिन इलाकों में पानी की लाइनें नहीं हैं उनमें काफी में आबादी इस तरह से बस गई है कि एक सिरे से पानी की लाइन डालना संभव ही नहीं है। वोट बैंक की राजनीति में नए सिरे से तोड़-फोड़ हो ही नहीं सकता है। लेकिन पानी सबको चाहिए। पानी के बिना जीवन संभव ही नहीं है। जरूरत दिल्ली में अतिरिक्त पानी की है और जो पानी उपलब्ध है अगर उसमें भी कमी हो रही है तो हाहाकार मचना स्वाभाविक है। यह भी अजीब तथ्य है कि दिल्ली का जो इलाक़ा जितना ही संपन्न है उस इलाके में पानी की उतनी ही कमी है। इसमें लुटियन की नई दिल्ली अपवाद है क्योंकि उस इलाके के लिए पानी पहले से ही बचा कर रखा रहता है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि साल भर दिल्ली में पानी संकट रहता है फिर गर्मी में तो संकट के चरम सीमा पर पहुंचने का अंदेशा था ही।

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